फ्राँसिसकन धर्मसमाजी अपने मूल करिशमें को जियें
वाटिकन सिटी
वाटिकन सिटी, शुक्रवार, 1 दिसम्बर 2023 (रेई, वाटिकन रेडियो): फ्राँसिसकन धर्मसमाज की 8वीं शताब्दी के उपलक्ष्य में सन्त पापा फ्राँसिस ने धर्मसमाज को एक सन्देश प्रेषित कर फ्राँसिसकन मठवासियों एवं धर्मबहनों को वर्तमान विश्व में अकिंचनता और भ्रातृत्व के सुसमाचार का प्रचार करने तथा अपने मूल करिशमें को नवीकृत करने हेतु आमंत्रित किया है। सन् 1223 ई. में 29 नवम्बर को फ्राँसिसकन धर्मसमाज की स्थापना हुई थी।
सन्त पापा फ्रांसिस ने फ्रांसिसकन परिवार के सदस्यों से सुसमाचार को साझा करने हेतु दुनिया भर में जाकर अपने संस्थापक के भाईचारे, विनम्रता और अकिंचनता के करिश्माई सत्य की प्रकाशना का आग्रह किया।
1223 का रेगोला बुल्लाता
सन्त पापा होनोरियुस तृतीय द्वारा असीसी के सन्त फ्राँसिस धर्मसमाज के शासन एवं नियम की औपचारिक पुष्टि की 8वीं शताब्दी के अवसर पर सम्बोधित पत्र में सन्त पापा फ्राँसिस ने लिखा, फ्रांसिसकन मठवासियों एवं धर्मबहनों के लिए दुनिया भर में यात्रा करने का अर्थ है "भाईचारे और शांतिपूर्ण जीवन की शैली में यात्रा करना", जो कि सभी ख्रीस्तीयों के "दूसरों तक पहुँचती कलीसिया बनने के आह्वान" के अनुरूप है।
रेगोला बुल्लाता अर्थात् फ्राँसिसकन धर्मसमाज के नियम को, औपचारिक रूप से, आज से 800 साल पहले 29 नवंबर 1223 को जारी किए गए आदेशपत्र "सोलेरे एनुएरे" में मान्यता दी गई थी।
सन्त पापा फ्रांसिस का पत्र रोम में सन्त जॉन लातेरान महागिरजाघर में बुधवार को आयोजित एक पवित्र धर्मविधि के दौरान पढ़ा गया, जिसकी अध्यक्षता रोम धर्मप्रान्त के लिये सन्त पापा फ्राँसिस के प्रतिनिधि कार्डिनल आन्जेलो दोनातिस ने की।
सुसमाचार में मूलबद्ध
अपने संदेश में, सन्त पापा फ्राँसिस ने कहा कि शताब्दी "एक शुभ अवसर" है न केवल एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना को याद करने का, बल्कि सबसे ऊपर, "उसी भावना को पुनर्जीवित करने का जिसने असीसी के सन्त फ्राँसिस को प्रेरित किया, जिसके कारण उन्होंने खुद को सब कुछ से अलग कर लिया, और सुसमाचार में निहित जीवन के एक अनूठे और आकर्षक रूप को जन्म दिया"।
सन्त पापा ने मंगलयाचना की कि "यह जयंती हर किसी के लिए कलीसिया के नए मिशनरी आदेश का समय सिद्ध हो जो हमसे उस दुनिया के साक्षात्कार का आग्रह करता है जहां हमारे कई भाई-बहन सांत्वना, प्रेम और देखभाल की प्रतीक्षा कर रहे हैं।"
फ्राँसिसकन धर्मसमाज के सदस्यों को सन्त पापा ने सबसे पहले "अकिंचनता, विनम्रता और सुसमाचार का वरण करने तथा "आज्ञाकारिता के भाव में शुद्धता में जीवन यापन" के लिए प्रोत्साहित किया। यह याद करते हुए कि असीसी के सन्त फ्राँसिस ने "सुसमाचार को अपने अस्तित्व के केंद्र में रखा", सन्त पापा ने अपने पत्र में "ख्रीस्तीय और बपतिस्मात्मक प्रतिबद्धता की नींव पर लौटने के महत्व पर ज़ोर दिया, जो हर विकल्प में, प्रभु के वचन से प्रेरित होने में सक्षम है।" उन्होंने लिखाः "मसीह आपकी आध्यात्मिकता का केंद्र बिंदु है! आप ऐसे पुरुष और महिला बनें जो वास्तव में येसु की पाठशाला में "शासन और जीवन" सीखते हैं!"
कलीसिया के प्रति आज्ञाकारिता
तदोपरान्त, सन्त पापा फ्राँसिस ने असीसी के सन्त फ्राँसिस के नियम में स्थापित कलीसिया के प्रति आज्ञाकारिता के कर्तव्य पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि फ्रांसिस का नियम. "कलीसिया के परमाध्यक्ष और रोम की कलीसिया के प्रति आज्ञाकारिता और श्रद्धा के बंधन का आदेश देता है। सन्त फ्राँसिस ने अपनी बुलाहट के प्रति निष्ठा और यूखारिस्त में येसु मसीह को प्राप्त करने की एक आवश्यक विशेषता को पहचाना और कलीसिया का समर्थन करते हुए वे अपने जीवन उदाहरण और साक्ष्य सहित इसके सुधार हेतु दृढ़ संकल्प रहे। उन्हीं के पदचिन्हों पर चलने का मैं आप सबसे आग्रह करता हूँ।"
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