रोमन कूरिया से पोप : प्यार करनेवाले ही आगे बढ़ सकते हैं
वाटिकन न्यूज
वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 21 दिसम्बर 2023 (रेई) : ख्रीस्त जयन्ती के पूर्व 21 दिसम्बर को संत पापा फ्राँसिस ने रोमन कूरिया के कार्डिनलों, धर्माध्यक्षों और सभी अधिकारियों से मुलाकात की और उन्हें क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनाएँ अर्पित की। कर्मचारियों की ओर से कार्डिनल जोवन्नी बपतिस्ता रे ने संत पापा को सम्बोधित करते हुए ख्रीस्त जयन्ती की मंगलकामनाएँ दीं। इस अवसर पर संत पापा ने हरेक से व्यक्ति मुलाकात करते हुए उन्हें पर्व की शुभकामनाएँ दीं।
अपने संदेश में संत पापा ने कहा, “क्रिसमस का रहस्य एक अप्रत्याशित संदेश से हमारे दिलों को विस्मय से भर देता है: ईश्वर आ गए हैं, ईश्वर यहां हमारे बीच में हैं, और उनकी रोशनी ने दुनिया के अंधेरे को हमेशा के लिए दूर कर दिया है। हमें इस संदेश को नए सिरे से सुनने और स्वीकार करने की जरूरत है, खासकर, युद्ध की हिंसा, जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न गंभीर खतरों और गरीबी, पीड़ा, भूख और वर्तमान समय की सभी गंभीर समस्याओं से जूझ रहे इन दिनों में।”
संत पापा ने कहा, “यह जानकर सांत्वना मिलती है कि उन दर्दनाक स्थितियों और हमारे कमजोर मानव परिवार की अन्य सभी समस्याओं में भी, ईश्वर खुद को इस पालने, चरनी में उपस्थित करते हैं जहां आज वे पैदा होना चाहते हैं और सभी के लिए पिता का प्यार लाना चाहते हैं। इसे वे ईश्वर के "तरीके" : निकटता, करुणा, कोमलता के साथ लाना चाहते है।”
संत पापा ने रोमन कूरिया के अधिकारियों से कहा, “प्रिय मित्रों, हमें ईश्वर के संदेश को सुनने की जरूरत है जो हमारे पास आते हैं; हमें उनकी उपस्थिति के संकेतों को समझने और उसके पदचिन्हों पर चलते हुए उसके वचन को स्वीकार करने की आवश्यकता है।” उन्होंने रोमन कुरिया में सेवा देने और विश्वास की यात्रा में आगे बढ़ने के लिए तीन आवश्यक क्रियाओं का जिक्र किया : सुनना, आत्मपरख करना और यात्रा करना।
हृदय से सुनना
कुँवारी मरियम के अनुकरणीय आदर्श की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए संत पापा ने उपस्थित लोगों से आग्रह किया कि वे न केवल अपने कानों से बल्कि अपने दिलों से भी सुनें, संत बेनेडिक्ट के ज्ञान को प्रतिध्वनित करें जो "अपने दिल के कान" से सुनने की बात करते हैं।
उन्होंने कहा, मरियम ने देवदूत के संदेश का खुले दिल से स्वागत किया जो स्मरण दिलाता है कि सचमुच सुनने में एक आंतरिक खुलापन होता है जो केवल सूचनाओं के आदान-प्रदान से परे जाता है "क्योंकि किसी भी नियम से अधिक महत्वपूर्ण है ईश्वर के साथ संबंध बनाना", उस प्रेम के उपहार को स्वीकार करते हुए जिसको वे हमारे लिए देने आये।''
पोप ने सुनने में विनम्रता के महत्व पर जोर दिया और कहा, "अपने घुटनों पर बैठकर सुनने से बेहतर कोई तरीका नहीं है।"
उन्होंने समझाया, यह विनम्र मुद्रा पूर्वकल्पित धारणाओं और पूर्वाग्रहों को दूर करने की इच्छा को दर्शाती है, जिससे हमें दूसरों की इच्छाओं और जरूरतों को सही मायने में समझने की शक्ति मिलती है।
"भूखे भेड़ियों" की तरह बनने के प्रलोभन के खिलाफ चेतावनी देते हुए, जो वास्तविक समझ के बिना शब्दों को खा जाते हैं, पोप फ्रांसिस ने कहा कि "वास्तव में किसी अन्य व्यक्ति को सुनने के लिए आंतरिक शांति की आवश्यकता होती है और हम जो सुनते हैं और जो कहते हैं उसके बीच मौन के लिए जगह बनाना है।"
इस प्रकार, उन्होंने वाटिकन के सभी अधिकारियों को सुनने की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित किया जो दैनिक कार्यों और पदों से परे है, जो रिश्तों को मूल्य देता है और ईमानदारी से एवं बिना निर्णय के सुनने की क्षमता द्वारा चिह्नित एक सुसमाचारी भावना को बनाए रखता है।
“भाइयों और बहनों, कुरिया में भी हमें सुनने की कला सीखनी होगी। उन्होंने कहा, ''हमारे दैनिक कार्यों और जिम्मेदारियों, या यहाँ तक कि जिन पदों पर हम हैं, उससे भी अधिक महत्वपूर्ण रिश्तों के मूल्य की सराहना करना है।''
आत्मपरख
दूसरी क्रिया, आत्मपरख की ओर बढ़ते हुए, पोप ने योहन बपतिस्ता की कहानी को याद किया। उन्होंने कहा, प्रेरित के शक्तिशाली उपदेश के बावजूद, येसु की अप्रत्याशित दया और करुणा का सामना करने पर उन्हें विश्वास के संकट का अनुभव होता है।
संत पापा ने कहा कि योहन बपतिस्ता ने महसूस किया कि उन्हें आत्मरख की जरूरत है ताकि वे शुद्ध नजर प्राप्त कर सकें।
“एक शब्द में, येसु वे नहीं थे जिनकी लोगों ने अपेक्षा की थी, और यहां तक कि अग्रदूत को भी राज्य के नयेपन में परिवर्तित करना पड़ा। आत्मपरख करने के लिए उनमें आवश्यक विनम्रता और साहस होना चाहिए था।
संत पापा ने कहा कि आत्मपरख हमारी आध्यात्मिक यात्रा के लिए जरूरी है क्योंकि यह ईश्वर की इच्छा की गहरी समझ के बिना नियमों के कठोर प्रयोग के प्रति सावधान करता है।
आत्मपरख हम सभी के लिए महत्वपूर्ण है
उन्होंने आगे कहा, आत्मपरख हमें सर्वज्ञता के भ्रम से मुक्त करता है और परिचित उदाहरण को बनाए रखने के प्रलोभन को चुनौती देता है।
संत पापा ने कहा, “आत्म परख प्रेम का प्रस्फूटित होना है जो इस बीच अंतर करता है कि क्या अच्छा है और किस में बेहतर करने की आवश्यकता है।"
"आत्मपरख से हमें पवित्र आत्मा के प्रति विनम्र होने, प्रत्युत्तर को चुनने और सांसारिक मानदंडों के आधार पर या केवल नियमों को लागू करने के आधार पर नहीं, बल्कि सुसमाचार के अनुसार निर्णय लेने में मदद करनी चाहिए।"
यात्रा
पोप ने कहा, अंतिम शब्द है यात्रा करना। जिसको जादूगर की कहानी के माध्यम से दर्शाया गया है जो हमें "यात्रा के महत्व" की याद दिलाती है।
पोप फ्रांसिस ने कहा कि सुसमाचार के आनंद को अपनाने से शिष्यत्व की प्राप्ति होती है, और हमें प्रभु के साथ मुलाकात की ओर यात्रा शुरू करने के लिए बुलाया जाता है।
“वे हमें एक यात्रा पर भेजते हैं, हमें हमारे आराम क्षेत्र से बाहर निकालते हैं...और इस तरह, वे हमें मुक्त करते हैं; वे हमें बदलते हैं और वे हमारे दिल की आंखों को रोशन करते हैं ताकि हम उस महान आशा को समझ सकें जिसके लिए उन्होंने हमें बुलाया है।''
उन्होंने भय, कठोरता और निरसता के खतरों के लिए चेतावनी दी, जो गतिहीनता की ओर ले जाते हैं और ईश्वर के आह्वान की निरंतर नवीनता को देखने में विफल करते हैं, पोप ने कहा कि परमाध्यक्षीय रोमी कार्यालय को सत्य की निरंतर खोज और विकास के लिए खुलेपन को आगे बढ़ाने के हेतु बुलाया गया है।
उन्होंने कहा, "यहाँ कूरिया में हमारी सेवा में भी, आगे बढ़ते रहना, सत्य की खोज करते रहना और अपनी समझ को बढ़ाते रहना, स्थिर खड़े रहने के प्रलोभन और अपने डर की "उलझन" पर काबू पाना महत्वपूर्ण है।"
उन्होंने उपस्थित लोगों से नौकरशाही और औसत के जाल से बचने और "कठोर वैचारिक पदों" के प्रति सतर्क रहने का आग्रह किया जो हमें वास्तविकता से अलग करते हैं और हमें आगे बढ़ने से रोकते हैं।
उन्होंने कहा, यात्रा, उन ज्योतिषियों की तरह, हमेशा "ऊपर से" शुरू होती है, जो ईश्वर के आह्वान और ईश्वर के वचन की रोशनी द्वारा निर्देशित होती है।
प्रेम और दीनता के लिए बुलावा
पोप फ्राँसिस ने विश्वास और सेवा की हमारी यात्रा में साहस, प्रेम और विनम्रता के आह्वान के साथ समापन किया।
एक "उत्साही पुरोहित" के बारे में एक किस्सा साझा करते हुए उन्होंने स्वीकार किया कि "कलीसिया की राख के नीचे अंगारे को फिर से प्रज्वलित करना" आसान नहीं है।
“आज हम उन लोगों में जुनून जगाने का प्रयास कर रहे हैं जो लंबे समय से इसे खो चुके हैं। वाटिकन महासभा के साठ साल बाद, हम अभी भी "प्रगतिशील" और "रूढ़िवादी" के बीच विभाजन पर बहस कर रहे हैं, जबकि वास्तविक अंतर प्रेमियों और उन लोगों के बीच है जिन्होंने प्रारंभिक जुनून को खो दिया है। उन्होंने कहा, “यही अंतर है, केवल वे ही आगे बढ़ते हैं जो प्यार करते हैं।''
संत पापा ने अंत में कहा, "धन्यवाद," "विशेष रूप से उन सभी कार्यों के लिए जो आप मौन रहकर करते हैं, सुनते हैं, समझते हैं, यात्रा करते हैं," और उन्होंने विनम्र और उदार सेवा में आनंद लेने की कृपा प्रदान करने के लिए प्रभु का आह्वान किया। उन्होंने कहा, “हम हमारी विनोदी भावना को कभी न खोयें।”
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