काथलिक एवं पूर्वी ऑरथोडोक्स कलीसियाओं से सन्त पापा
वाटिकन सिटी
वाटिकन सिटी, शुक्रवार, 26 जनवरी 2024 (रेई, वाटिकन रेडियो): काथलिक एवं पूर्वी ऑरथोडोक्स कलीसियाओं के बीच ईशशास्त्रीय और धर्म सम्बन्धी संवाद के लिए हेतु गठित संयुक्त अंतर्राष्ट्रीय आयोग की 20 वीं वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में आयोग के सदस्यों ने सन्त पापा फ्राँसिस का साक्षात्कार कर उनका सन्देश सुना।
अभिवादन
पूर्वी ऑरथोडोक्स कलीसियाओं के समस्त विश्वासियों का अभिवादन कर सन्त पापा फ्राँसिस ने पूर्वी रीति की कलीसियाओं के प्रमुख महामहिम तावाद्रोस द्वितीय, महामहिम बाज़िलियोस मारथोमा मैथ्यू तृतीय तथा महामहिम प्राधिधर्माध्यक्ष इफ्रेम के प्रति हार्दिक सम्मान की अभिव्यक्ति की।
सन्त पापा ने कहा कि काथलिक एवं पूर्वी रीति की ऑरथोडोक्स कलीसियाओं के बीच इस प्रकार की बैठकें तथा मुलाकातें आवश्यक हैं, इसलिये कि ये हमें "उदारता के संवाद" और "सच्चाई के संवाद" के साथ-साथ चलने की अनुमति देती हैं जिसका आपका आयोग प्रयास करता रहा है।
"उदारता और सत्य का संवाद"
सन्त पापा ने कहा कि कलीसिया के शुरुआती दिनों से, पत्रों, प्रतिनिधिमंडलों और उपहारों के आदान-प्रदान के साथ ऐसी यात्राएं और मुलाकातें एकता का संकेत और साधन रही हैं। उन्होंने कहा कि ये संकेत, एक बपतिस्मा की मान्यता पर आधारित, केवल शिष्टाचार या कूटनीति के कार्य नहीं हैं, बल्कि इनका कलीसियाई संबंधी महत्व है और इन्हें सच्चा "स्थानीय ईशशास्त्र" माना जा सकता है। जैसा कि संत जॉन पॉल द्वितीय ने अपने विश्वपत्र "ऊत ऊनुम सिन्त" में कहा है, "हमारे बीच भाईचारे को स्वीकार करना... विश्वव्यापी शिष्टाचार के कार्य से कहीं अधिक है; यह एक बुनियादी कलीसियाई संबंधी कथन का गठन करता है।"
सन्त पापा ने कहा कि इस सन्दर्भ में मेरा विश्वास है कि "उदारता के संवाद" को केवल "सत्य के संवाद" की तैयारी के रूप में नहीं समझा जाना चाहिए, बल्कि स्वयं एक "कार्य में ईशशास्त्र" के रूप में समझा जाना चाहिए, जो हमारी कलीसियाई यात्रा हेतु नए क्षितिज खोलने में सक्षम है।
20 वीं वर्षगाँठ
सन्त पापा ने कहा कि विगत 20 वर्षों के अन्तराल में आपके आयोग ने उदारता के संवाद, सत्य के संवाद और जीवन के संवाद को विश्वव्यापी यात्रा पर आगे बढ़ने के तीन अविभाज्य तरीके के रूप में प्रोत्साहित किया है।
उन्होंने मंगलकामना की कि यह 20 वीं वर्षगाँठ अब तक की यात्रा के लिए ईश्वर की स्तुति करने और उन सभी को कृतज्ञतापूर्वक याद करने का समय सिद्ध हो जिन्होंने अपनी धार्मिक विशेषज्ञता और प्रार्थना के माध्यम से इसमें योगदान दिया है। यह इस दृढ़ विश्वास को नवीनीकृत करे कि हमारी कलीसियाओं के बीच पूर्ण सहभागिता न केवल संभव है, बल्कि तत्काल और आवश्यक भी है "ताकि दुनिया विश्वास कर सके"।
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