ख्रीस्तीय एकता की यात्रा प्रार्थना में मूलबद्ध हो, सन्त पापा
वाटिकन सिटी
रोम, शुक्रवार, 26 जनवरी 2024 (रेई, वाटिकन रेडियो): रोम की दीवारों के बाहर सन्त पौल महागिरजाघर में गुरुवार सन्ध्या आयोजित ख्रीस्तीय एकतावर्द्धक प्रार्थना सप्ताह के समापन समारोह में सन्त पापा फ्राँसिस ने समस्त विश्व के ख्रीस्तानुयायियों का आह्वान किया कि वे विभाजन रूपी शैतान के जाल न फँसें तथा प्रार्थना एवं निःस्वार्थ सेवा द्वारा विभाजनों को दूर कर एकता में आगे बढ़ें।
निःस्वार्थ सेवा
सन्त पापा ने कहा, "केवल वह प्रेम जो नि:शुल्क और निःस्वार्थ सेवा बन जाता है, वह प्रेम जिसका पाठ येसु मसीह ने हमें पढ़ाया और जिसे उन्होंने अपनाया बिछड़े हुए ख्रीस्तानुयायियों को एक दूसरे के करीब ला सकता है।"
ख्रीस्तीयों के बीच पूर्ण एकता हेतु आयोजित प्रार्थना सप्ताह के समापन पर, सन्त पापा फ्राँसिस विभिन्न ख्रीस्तीय समुदायों के प्रमुखों और प्रतिनिधियों के साथ प्रार्थना में शामिल हुए। इनमें काथलिक महाधर्माध्यक्षों सहित कॉन्स्टेंटिनोपल के विश्वव्यापी प्राधिधर्माध्यक्षीय पीठ का प्रतिनिधित्व करनेवाले इटली के मेट्रोपॉलिटन पॉलीकार्प, इंगलैण्ड में एंगलिकन कलीसिया के प्रधान महाधर्माध्यक्ष जस्टीन वेल्बी तथा उनके साथ आये दो काथलिक और दो एंगलिकन महाधर्माध्यक्ष शामिल थे।
काथलिक एवं अन्य सम्प्रदायों के ख्रीस्तीय धर्माधिकारी इस समय काथलिक कलीसिया के परमाध्यक्ष सन्त पापा फ्रांसिस तथा कैंटरबरी के एंगलिकन धर्मगुरु महाधर्माध्यक्ष जस्टीन वेल्बी के आदेश पर रोम और कैंटरबरी में आयोजित विश्वव्यापी शिखर सम्मेलन "ग्रोइंग टुगेदर" में भाग ले रहे हैं। सन्त पापा और महाधर्माध्यक्ष वेल्बी द्वारा धर्माध्यक्षों को "अपने संबंधित धर्मक्षेत्रों में "ईश्वर द्वारा निर्धारित एकता की गवाही देना जारी" रखने के लिए आमंत्रित किया गया था।
पड़ोसी प्रेम
गुरुवार को सान्ध्य वन्दना के अवसर पर प्रवचन करते हुए सन्त पापा फ्राँसिस ने स्मरण दिलाया कि विभाजन कभी भी ईश्वर की ओर से नहीं, बल्कि केवल शैतान की ओर से आता है। उन्होंने सन्त लूकस रचित सुसमाचार के 10 वें अध्याय के उस अंश पर विचार किया जिसमें कानून का एक विद्वान प्रभु येसु मसीह से प्रश्न करता है कि उसे अनन्त जीवन प्राप्त करने के लिए क्या करना चाहिए।
प्रभु येसु मसीह की इस पुष्टि के बाद कि व्यक्ति को ईश्वर और पड़ोसी से प्रेम करना चाहिये वह एक अनुवर्ती प्रश्न पूछता है: "और मेरा पड़ोसी कौन है?" इसके उत्तर में सन्त पापा ने कहा कि प्रभु येसु ने उसे भले समारी का दृष्टान्त सुनाया और उसके विभाजनकारी प्रश्न को नज़रअंदाज़ कर दिया। सन्त पापा ने स्मरण दिलाया कि येसु को विधर्मी कहनेवाले तत्कालीन पुरोहित एवं लेवी घायल व्यक्ति को देखकर भी कटकर निकल गये थे किन्तु उसकी सेवा को केवल एक समारी आगे आया था, वही उसका सच्चा पड़ोसी निकला।
सन्त पापा ने कहा, "केवल वह प्रेम जो अलग रहने या उंगली उठाने के लिए अतीत की ओर आकर्षित नहीं होता है, केवल वह प्रेम जो ईश्वर के नाम पर हमारे भाइयों और बहनों को हमारी अपनी धार्मिक संरचनाओं की लौह रक्षा से पहले रखता है, वही हमें एकजुट करेगा।"
येसु हमारी सच्ची धरोहर
सन्त पापा ने कहा कि इस विश्व में निवास करनेवाला प्रत्येक व्यक्ति हमारा भाई या हमारी बहन है, इसलिये यह पूछने के बजाय कि हमारा पड़ोसी कौन है हमें यह प्रश्न करना चाहिये कि "क्या मैं एक पड़ोसी की तरह व्यवहार करता हूँ?"
उन्होंने ख्रीस्त के अनुयायियों को इस बात पर विचार करने के लिए आमंत्रित किया कि क्या उनकी व्यक्तिगत और सामुदायिक आध्यात्मिकता स्व-हित में रहती है या मानवीय भाईचारे और येसु मसीह के शरीर की एकजुटता में स्थापित है।
सन्त पापा ने स्मरण दिलाया, "अनंत जीवन प्राप्त करने के लिए मुझे क्या करना चाहिए" येसु से यह प्रश्न करनेवाले कानून के विद्वान के विपरीत सन्त पौल अपने रूपान्तरण के समय बस यह पूछते हैं कि "मुझे क्या करना है, ईश्वर"। उन्होंने कहा कि उसी क्षण सन्त पौल ने विरासत के मुद्दे का परित्याग कर दिया क्योंकि वे जानते थे कि येसु ख्रीस्त ही उनकी एकमात्र सच्ची विरासत थी।
सन्त पापा ने कहा, अस्तु, "यदि ईश्वर हमारा खज़ाना है, तो हमारी कलीसियाई कार्य योजना निश्चित रूप से ईशइच्छा पूरी करने के लिये होनी चाहिये।"
एकता और शांति के लिये
सन्त पापा ने कहा, ख्रीस्तीय एकता की ओर यात्रा में हमारे प्रयासों को सन्त पौल के समान मार्ग का अनुसरण करना चाहिए, अपने स्वयं के विचारों से दूर जाना चाहिए और ईश्वर को हमारे दिलों को बदलने के लिए पहल करने का स्थान देना चाहिए।
सन्त पापा ने कहा, “यह हमारे सामने का मार्ग है: एक साथ यात्रा करना और एक साथ सेवा करना, प्रार्थना को प्राथमिकता देना, "क्योंकि जब ख्रीस्तानुयायी ईश्वर और पड़ोसी की सेवा में एकसाथ बढ़ते हैं, तो वे पारस्परिक समझ में भी विकसित होते हैं।"
सन्त पापा ने कहा कि एकता के लिये प्रार्थना करना एक पवित्र ज़िम्मेदारी है, क्योंकि इसका अर्थ है प्रभु ईश्वर के साथ पूर्ण सहभागिता में रहना, उन प्रभु के साथ जिन्होंने पिता से सब समय एकता के लिये प्रार्थना की। यूक्रेन तथा पवित्रभूमि में जारी युद्धों के अन्त के लिये भी प्रार्थना का सन्त पापा ने आग्रह किया और कहा "आइए हम अपनी थकी हुई दिनचर्या से येसु मसीह के नाम पर उठें और नए सिरे से आगे बढ़ें क्योंकि उनकी यही इच्छा है "कि दुनिया विश्वास कर सके'।"
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