खोज

प्रभु प्रकाश के मिस्सा बलिदान में संत पापा फ्रांसिस प्रभु प्रकाश के मिस्सा बलिदान में संत पापा फ्रांसिस  (ANSA)

संत पापाः मंजूषियों की भांति ईश्वर की खोज करें

संत पापा फ्रांसिस ने प्रभु प्रकाश पर्व का मिस्सा बलिदान अर्पित करते हुए तीन बातों- आँखें आकाश की ओर उठाने, यात्रा करने और हृदय से आराधना करने पर चिंतन किया।

वाटिकन सिटी

संत पापा फ्रांसिस ने 06 जनवरी को वाटिकन के संत पेत्रुस महागिरजाघर में प्रभु प्रकाश महोत्सव का मिस्सा बलिदान अर्पित किया।

संत पापा ने मिस्सा बलिदान के अपने प्रवचन में कहा कि मंजूषी जन्मे नये राजा की खोज के लिए निकल पड़ते हैं। वे विश्व के उन लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं जो ईश्वर की खोज के लिए यात्रा करते हैं, उन परदेशियों का जो ईश्वर के पर्वत की ओर जाते, सुदूर स्थानों के व्यक्तियों का जो मुक्ति की घोषणा को अब सुनते, उन सभी खोये हुए लोगों का जो मित्र भाव एक आवाज को सुनते हैं। क्योंकि बेतलेहेम के बालक स्वरुप राष्ट्रों के लिए ईश्वर की महिमा प्रकट हुई है जिसे सारी मानवता देखेगी। इस भांति हम सभी अपने में तीर्थयात्री समान हैं।

मंजूषियों की आँखें आकाश की ओर उठी थीं लेकिन उनके कदम जमीन में आगे बढ़ रहे थे और उनका हृदय आराधना में नतमस्तक था।

आखें उठायें

उनकी आंखें आकाश की ओर उठी थी। संत पापा ने कहा कि मंजूषियों में सर्वशक्तिमान को खोजने की तीव्र चाह थी अतः वे अंधेरी रात में तारे की ओर देखते हैं। वे तारे को देखने बिना अपना कदम नहीं बढ़ाते हैं। वे अपने पैरों को नहीं देखते हैं, वे दुनियावी क्षितिज में बंद नहीं होते न ही वे अपने पैरों को उदासी या शिकायत में घसीटते हैं। वे अपना सिर ऊपर की ओर उठाते और उस ज्योति की प्रतीक्षा करते हैं जो उनके जीवन के अर्थ को प्रकाशित करेगा, क्योंकि मुक्ति ऊपर से आती है। तब वे एक तारा देखते हैं, जो दूसरों से अलग चमकता है, वह उन्हें आकर्षित करता और वे एक यात्रा में निकल पड़ते हैं। यह हमारे लिए अपने जीवन के मूल अर्थ को व्यक्त करता है- जब हम दुनिया की छोटी चीजों में बंद होकर रह जाते हैं, यदि हमारा सिर झुका रहता, हम अपनी असफलताओं और दुःखों के गुलाम बनें रहते हैं, यदि हम दुनियावी चीजों में खोये रहते जो आज हैं कल नहीं रहेंगी, तो ज्योति को खोजने वालों के रुप में हम धीरे-धीरे अपने जीवन की चमक खो देते हैं। मंजूषी जो अपने में परदेशी थे जिन्होंने येसु को अब तक नहीं पाया था, हमें अपनी निगाहें ऊपर उठाने की शिक्षा देते हैं, वे हमें अपनी आंखों को स्वर्ग की ओर, पर्वतों की ओर उठाने का निमंत्रण देते हैं जहाँ से हमारे लिए मुक्ति आती है, क्योंकि हमारी सहायता ईश्वर आती है।

ईश्वर का प्रेम जरूरी है

प्रिय भाइयो एवं बहनों, संत पापा ने कहा आइए हम अपनी आँखें स्वर्ग की ओर उठायें। हमें अपनी निगाहों को ऊपर उठाने की जरुरत है जिससे हम अपनी सच्चाई को ऊपर से देख सकें। हमें अपने जीवन यात्रा में इसकी आवश्यकता है, हमें ईश्वरीय मित्रता की जरूरत है, उनके प्रेम की जो हमें पोषित करता है, और उनके वचन की जो अंधेरे में एक तारे की भांति हमारा मार्ग प्रदर्शन करता है। हमारे विश्वास की यात्रा में हमें इसकी जरुरत है जिससे यह केवल क्रियाकलाप या बाह्य आदत मात्र बन कर न रह जाये बल्कि हमारे अंदर जलने वाली एक आग बने जो हमें ईश्वर के चेहरे को खोजने हेतु जूनूनी बनाये और हम उनके सुसमाचार का साक्ष्य दे सकें। कलीसिया में आज हमें इसकी जरुरत है जहाँ हम अपने विचारों के अनुरूप दलों में विभाजित होने के बदले ईश्वर को अपना केन्द्र-बिन्दु बनायें। हमें विचारों की कलीसिया बनने के बदले बुलाहटीय कलीसिया बनने की जरुरत है। अपने विचारों या अपनी परियोजनाओं के बदले हमें ईश्वर को केन्द्र में रखने की जरुत है। हम ईश्वर में अपनी नयी शुरूआत करें, हम उनमें उस साहस की खोज करें जो हमें जीवन की कठिनाइयों में निराश नहीं होने देती है, वह शक्ति जो सभी बाधों से परे ले चलती जहाँ हम खुशी में एकतामय जीवनयापन करते हैं।

हम यात्रा करें

संत पापा ने कहा कि मंजूषियों केवल तारे को नहीं देखते बल्कि पृथ्वी पर अपनी यात्रा करते हैं। वे येरुसालेम की ओर निकलते और पूछते हैं, “यहूदियों के राजा का जन्म कहाँ हुआ हैॽ हमने उनका तारा उदित होते देखा है, और उनका दण्डवत करने आये हैं।” आकाश में चमकता तारा उन्हें दुनिया के मार्ग में चलने का संदेश देता है। अपनी आँखों को ऊपर उठाते हुए वे दुनिया की राह में निर्देशित किये जाते हैं। ईश्वर की खोज करते हुए वे उसे मानव में देखने को कहे जाते हैं, जो बालक के रुप में चरनी में लेटा है, क्योंकि ईश्वर ने अपनी दिव्यता को वहाँ एक अबोध बालक के रुप में, अत्यंत छोटे रुप में प्रकट किया है। ईश्वर के इस रहस्य को समझने हेतु हमें विवेक की आवश्यकता है।

विश्वास का सार दुनिया में चलना

संत पापा ने कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों, “हम दुनिया मे अपनी यात्रा जारी रखें। विश्वास का उपहार हमें आकाश की ओर देखने हेतु नहीं अपितु दुनिया के मार्ग में चलने को मिलता है जहाँ हम सुसमाचार का साक्ष्य देने हेतु बुलाये गये हैं। यह येसु हैं जो हमारे जीवन को ज्योतिमर्य करते हैं, यह हमें अपने रातों को गर्म बनाने हेतु नहीं बल्कि उनकी किरणों को उन स्थानों और समाजों में लेने को कहा जाता है जहाँ अंधेरा है। ईश्वर जो हमसे मिलते आते हैं हम उन्हें अपने अच्छे धार्मिक विचारों में नहीं लेकिन अपनी यात्रा में पाते हैं जहाँ हम उनकी उपस्थिति को विभिन्न निशानों में खोजने की कोशिश करते हैं, और विशेष रुप से हम उन्हें अपने भाई-बहनों के शरीर में पाते हैं। मंजूषी ईश्वर की खोज करने हेतु निकले और वे उन्हें एक बालक के रूप में पाते हैं। यह हमारे लिए महत्वपूर्ण है ईश्वर को हम हाँड़-मांस में मिलें, उन चेहरों में जिन्हें हम रोज दिन अपने जीवन में मिलते हैं, खास कर गरीबों में। मंजूषी हमें सदैव यह बलताते हैं कि ईश्वर से मिलन हमारे लिए एक बहृद आशा को खोलता है जो हमारे जीवन और हमारी दुनिया को परिवर्तित करता है। संत पापा बेनेदिक्त 16वें के शब्दों में “जब सच्ची आशा की कमी होती, जो हम खुशी को अंधकार में खोजते हैं, छिछली बातों में, अत्यधिकता में और इस भांति हम अपने को और विश्व को बिगाड़ते हैं। यही कारण है हमें लोगों की जरुरत है जो अपने में बड़ी आशा और बड़े साहस को वहन करते हैं। मंजूषियों का साहस जो तारा को देखते हुए अपनी एक लम्बी यात्रा करते हैं, वे बालक के आगे नतमस्तक होते और अपने कीमती उपहारों को अर्पित करते हैं।

संत पापा-ईश्वर की खोज करें

आराधना के भाव पोषित करें

अंत में मंजूषी अपने हृदय से दण्डवत करते हैं। वे आकाश में तारा देखते हैं लेकिन वे दुनियावी बातों में अपने को सलंग्न नहीं करते हैं। वे चल पड़ते हैं लेकिन वे खोते नहीं हैं, वे बिना किसी लक्ष्य पर्यटकों की तरह नहीं चलते हैं। वे बेतलेहम पहुंचते और जब वे बालक को देखते तो वे घुटने टेककर उनकी आराधना करते हैं। वे अपने कीमती उपहार सोना, लोबान और गंधरस उन्हें अर्पित करते हैं। अपने इन रहस्यमयी उपहारों के द्वारा वे अपने आराधना करने वाले की पहचान व्यक्त करते हैं। सोना उनके राजा होने को व्यक्त करता है, लोबान उनके ईश्वर होने की पहचान प्रस्तुत करता वहीं गंधरस यह व्यक्त करता है कि उनका मरण निर्धारित है। वे एक राजा हैं जो हमें बचाने आये, एक ईश्वर जो मानव बनें। इस रहस्य़ के आगे हम सभी अपने हृदय से नतमस्तक होकर उनका दण्डवत करने को बुलाये जाते हैं। हम ईशवर की आराधना करने को कहे जाते जो अति छोटे रुप में हमारे घरों में रहते जो प्रेम के कारण मरते हैं। ईश्वर जो अपने को आकाश में तारे के रुप में व्यक्त करते पाये जाते हैं...वे एक गरीब आश्रय में, कमजोर बालक की भांति कपड़े में लपेटे हुए हैं जो मंजूषियों के द्वारा आराधे जाते और दुष्ट के द्वारा भयभीत हैं। संत पापा ने कहा कि हमने आराधना के भाव को खो दिया है। हम अपने में आराधना के भाव पोषित करें। आइए हम येसु को अपना ईश्वर और प्रभु स्वीकार करें, उनकी आराधना करें जिसके लिए मंजूषी हमें निमंत्रण देते हैं।

साहस की कृपा

प्रिय भाइयो एवं बहनों संत पापा फ्रांसिस ने कहा मंजूषियों की भांति हम भी अपनी आंखें आसमान की ओर उठायें, हम ईश्वर की खोज करें, अपना हृदय आराधना में झुकायें। और हम ईश्वर से कभी हताश न होने वाले की कृपा मांगें जिससे हम उनके खोजकर्ता बनें, साहस के नर और नारियाँ जो धैर्य में दुनिया के मार्ग में चलते हैं। हम साहस के साथ ईश्वर की ओर देख सकें जो हर व्यक्ति को प्रकाशित करते हैं। ईश्वर हमें वह कृपा प्रदान करें जिससे हम उनकी आराधना करना सीख सकें। 

Thank you for reading our article. You can keep up-to-date by subscribing to our daily newsletter. Just click here

06 January 2024, 14:43