फातिमा में बीमार लोगों से मुलाकात करते संत पापा फ्राँसिस फातिमा में बीमार लोगों से मुलाकात करते संत पापा फ्राँसिस  (ANSA)

विश्व रोगी दिवस पर पोप का संदेश : बीमारी ठीक करने के लिए रिश्तों को ठीक करें

11 फरवरी को विश्व रोगी दिवस मनाया जाता है। इस दिवस के उपलक्ष्य में संत पापा फ्राँसिस ने एक संदेश प्रकाशित किया है। 32वें विश्व रोगी दिवस के लिए संत पापा के संदेश की विषयवस्तु है, “अकेला रहना मनुष्य के लिए अच्छा नहीं।” रिश्तों को ठीक करके बीमारों को चंगा करना।

वाटिकन न्यूज

वाटिकन सिटी, शनिवार, 13 जनवरी 2024 (रेई) : संत पापा ने अपने संदेश में कहा है कि “अकेला रहना मनुष्य के लिए अच्छा नहीं।” (उत्पति 2,18) शुरू से ही ईश्वर जो प्रेम हैं, हमें एक साथ रहने के लिए बनाया और हमें दूसरों के साथ संबंध बनाने की जन्मजात क्षमता प्रदान की। हमारा जीवन, तृत्वमय ईश्वर की छवि में प्रतिबिम्बित होता है, जिसका उद्देश्य रिश्तों, दोस्ती और प्यार, देने और लेने के माध्यम से पूर्णता प्राप्त करना है। हम अकेले नहीं एक साथ रहने के लिए बनाये गये हैं। खासकर, इसलिए क्योंकि मिलकर रहने की यह योजना मानव हृदय में इतनी गहराई से निहित है कि हम परित्याग और एकांत के अनुभव को भयावह, दर्दनाक और यहां तक कि अमानवीय के रूप में देखते हैं। यह दुर्बलता, अनिश्चितता और असुरक्षा के समय और भी अधिक स्पष्ट होता है, जो अक्सर किसी गंभीर बीमारी की शुरुआत का कारण बनता है।

इस संदर्भ में संत पापा ने कोविड -19 महामारी के समय की याद की जब कई लोगों को बहुत अधिक अकेलापन का अनुभव करना पड़ा। बीमारों को देखने कई नहीं पहुँचा किन्तु नर्स, डॉक्टर्स एवं स्वास्थ्यकर्मियों को भी काम के दबाव के कारण वाडों में अकेले समय बीताना पड़ा। निश्चय ही, हम उन लोगों को कभी नहीं भूल सकते जिन्हें अपनी मौत की अंतिम घड़ी, अपने परिवारों से दूर अकेले बितानी पड़ी।  

संत पापा ने अपने संदेश में उन लोगों की भी याद की है जो युद्ध और इसके दुखद परिणामों के कारण बिना किसी मदद के पीड़ा में अकेले छोड़ दिये जाते हैं। उन्होंने कहा, “मैं उनके दुःखों को साझा करता हूँ। युद्ध सामाजिक बीमारियों में सबसे भयानक है, और इसका सबसे अधिक प्रभाव उन लोगों पर पड़ता है जो सबसे अधिक असुरक्षित हैं।”

उदासीनता

उन्होंने इस बात पर भी गौर किया है कि जिन देशों में शांति और सुख- सुविधाओं के संसाधन मौजूद हैं वहाँ भी अक्सर बुजूर्ग और बीमार लोग एकाकीपन एवं परित्यक्त महसूस करते हैं। यह कठोरता खासकर, व्यक्तिवाद की संस्कृति का परिणाम है जो हर कीमत पर उत्पादकता को बढ़ाता, दक्षता का मिथक पैदा करता, और उदासीन, यहां तक कि संवेदनहीन साबित होता है, जब व्यक्तियों के पास गति बनाए रखने के लिए आवश्यक ताकत नहीं रह जाती।

फेंकने की संस्कृति

इस तरह फेंकने की संस्कृति उत्पन्न होती है जिसमें व्यक्ति का महत्व ही नहीं रह जाता कि उनका सम्मान और उनकी देखभाल की जाए। विशेषकर, “यदि वे गरीब अथवा विकलांग हैं, उपयोगी नहीं हैं या बूढ़े हो चुके हैं।”   

संत पापा ने खेद प्रकट किया कि कई बार इसी मानसिकता के साथ राजनीतिक निर्णय लिये जाते हैं जो मानव व्यक्ति की प्रतिष्ठा एवं उनकी आवश्यकता पर ध्यान नहीं देता और यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक रणनीतियों और संसाधनों को बढ़ावा नहीं दिया जाता है कि “हर इंसान को स्वास्थ्य का मौलिक अधिकार और स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच प्राप्त हो।”

ईश्वर ने कहा, “अकेला रहना मनुष्य के लिए अच्छा नहीं।” और इस तरह हमें मानव के लिए ईश्वर की योजना का गहरा अर्थ पता चलता है, लेकिन साथ ही, पाप का नश्वर घाव, जो भ्रम, मत-भेद, विभाजन और अंततः अलगाव पैदा करता है। पाप व्यक्ति और ईश्वर, पड़ोसी एवं अपने आप के साथ उसके रिश्ते पर हमला करता है। इस तरह यह हमें अकेला बना देता तथा प्रेम के आनन्द को छीन लेता है।

सहानुभूति एवं स्नेही सामीप्य

संत पापा ने रोगियों की अच्छी देखभाल करने की सलाह देते हुए कहा कि किसी प्रकार की बीमारी की देखभाल करने के लिए पहली आवश्यकता है सहानुभूति एवं प्रेमपूर्ण सामीप्य। इस प्रकार बीमारों की देखभाल करने का अर्थ है सबसे पहले उनके रिश्तों की देखभाल करना : ईश्वर के साथ, दूसरों के साथ - परिवार के सदस्यों, दोस्तों, स्वास्थ्यकर्मियों के साथ -, सृष्टि के साथ और स्वयं के साथ। संत पापा ने कहा कि हम सभी इसे संभव बनाने के लिए बुलाये गये हैं।

भले समारी के समान सेवा देने का प्रोत्साहन देते हुए संत पापा ने कहा कि वह रूका, घायल व्यक्ति के पास गया, प्रेम से उसे उठाया और उसे घावों पर मरहम पट्टी की।

मानव जीवन की सच्चाई

मानव जीवन की सच्चाई की याद दिलाते हुए संत पापा ने कहा, “हम संसार में आये क्योंकि किसी ने हमारा स्वागत किया; हम प्यार के लिए बने हैं; और हमें एकता और भाईचारे के लिए बुलाया गया है।” हमारे जीवन का यही पहलू हमें बल देता है, सबसे बढ़कर बीमारी और कमज़ोरी के समय में। “जिस समाज में हम रहते हैं उसकी बीमारियों को ठीक करने के लिए यह पहली चिकित्सा भी है जिसे हम सभी को अपनाना चाहिए।”

संत पापा ने बीमार लोगों से कहा, “निकटता और कोमलता की अपनी अभिलाषा से शर्मिंदा मत होईये! इसे छुपाइये नहीं और यह कभी मत सोचिए कि आप दूसरों पर बोझ हैं। बीमार लोगों की स्थिति हम सभी को खुद को फिर से देखने के लिए अपने जीवन की व्यस्त गति को धीमी करने हेतु प्रेरित करती है।

बीमार लोगों की देखभाल ख्रीस्त के प्रेम से करें

संत पापा ने ख्रीस्तीय भाई-बहनों को सम्बोधित कर कहा कि इस परिवर्तन कारी युग में हम येसु की करुणा भरी दृष्टि को अपनाने के लिए बुलाये जाते हैं। अतः आइये हम पीड़ित और एकाकीपन झेल रहे लोगों, हाशिये पर जीवनयापन करनेवालों एवं बहिष्कृत लोगों की देखभाल ख्रीस्त के प्रेम से करें। इस तरह, हम व्यक्तिवाद, उदासीनता और बर्बादी की संस्कृति का मुकाबला करने में सहयोग करेंगे और कोमलता और करुणा की संस्कृति के विकास को सक्षम बनायेंगे।

अंत में, संत पापा ने कहा, “बीमार, कमजोर और गरीब लोग ही कलीसिया के केंद्र में हैं, उन्हें मानवीय सहानुभूति एवं प्रेरितिक ध्यान के केंद्र में भी होना चाहिए। हम उन्हें कभी न भूलें।” उन्होंने रोगियों की स्वास्थ्य माता मरियम से प्रार्थना की कि वे हमारे लिए प्रार्थना करें और हमें निकटता एवं भाईचारे के कारीगर बनने में मदद करें।

 

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13 January 2024, 16:05