बुधवारीय आमदर्शन में संत पापा  फ्रांसिस बुधवारीय आमदर्शन में संत पापा फ्रांसिस  (ANSA)

संत पापा- आलस्य से लड़ें और विजयी हों

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह में अवगुण आलस्य पर धर्मशिक्षा दी।

वाटिकन सिटी

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह में सहभागी हो रहे विश्व भर के सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो,सुप्रभात।

सभी बड़े अवगुणों में, एक ऐसा अवगुण है जिसके बारे में हम अपने में चुपचाप रहते हैं, हम इसके बारे में बातें नहीं करते हैं, शायद इसके नाम के कारण जिसे बहुत से लोग समझने में कठिनाई का अनुभव करते हैं। संत पापा ने कहा कि मैं निष्क्रियता के बारे में कहा रहा हूँ। अतः अवगुणओं की सूची में हम इसे दूसरे सामान्य नामों सुस्तीपन या आलस्य से जानते हैं। वास्तव में, आलस्य एक कारण से अधिक अपने में एक प्रभाव है। जब कोई व्यक्ति अपने में व्यर्थ, बिना काम, उदासीन रहता तो हम उसे आलसी की संज्ञा देते हैं। लेकिन प्राचीन मरूभूमि के आचार्यों की शिक्षा में हम आलस्य यूनानी भाषा से आने वाला शब्द है जिसका अर्थ “देख-रेख की कमी” है। निष्क्रियता या आलस्य का अर्थ यूनानी भाषा में “देख-रेख का अभाव” है। यह अपने में एक पाप है।

आलस्य एक प्रलोभन

संत पापा ने कहा कि यह एक खतरनाक प्रलोभन है हम इसे सहज से नहीं ले सकते हैं। वे जो इसका शिकार होते मानो वे अपने लिए मृत्यु की चाह रखते हैं, उन्हें हर चीज से विरक्ति होती है। ईश्वर के संग उनका संबंध उबाऊ हो जाता है। यहाँ तक की सबसे नेक कार्यों जिनके द्वारा अतीत में उनका हृदय उद्दीप्त होता था अब उन्हें पूरी तरह व्यर्थ प्रतीत होता है। व्यक्ति अपने बीते समय के लिए खेद व्यक्त करता है जहाँ वह अपने युवाकाल को पुनः प्राप्त नहीं कर सकता है।

आलस्य “दुपहरी शैतान”

संत पापा ने कहा कि आलस्य को “दुपहरी शैतान” के रुप में परिभाषित किया गया है। यह हमें दिन के बीच में अपना शिकार बनाता है जब हम थकान को अपनी चरम पर पाते हैं और जहाँ आगे का बचा हुआ समय हमारे लिए निरस लगता है जिसे व्यतीत करना हमारे लिए असंभव होता है। एक प्रसिद्ध व्याख्या में, मठवासी एवाग्रियस इस परीक्षा के बारे में कहते हैं, “सुस्ती व्यक्ति की आंखें सदैव खिड़की की ओर टिकी रहती हैं, और वह अपने मन में आगंतुकों के बारे सोचता रहता है... जब वह पढ़ाई करता है, तो सुस्ती व्यक्ति बहुत बार जम्हाई लेता है और निंदा का शिकार हो जाता है, वह अपनी आँखें मलता है, अपने हाथों को रगड़ता है, उसकी नजरें किताब से दूर चली जाती हैं, वह दीवारों की ओर निहारता, वह पुनः किताब की ओर देखता, थोड़ा पढ़ता... और अंत में अपना सिर झुका लेता है, वह अपनी पुस्तक नीचे रख देता है, और नींद में झपकी लेता है, भूख में जब उसकी नींद खुलती तो वह अपनी जरूरों की पूर्ति में जाता है, संक्षेप में, “सुस्ती व्यक्ति उत्सुकता में ईश्वर के कार्यों को पूरा नहीं करता है।”

आलसी व्यक्ति के मनोभाव

समकालीन पाठकगण इस व्याख्या में अवसाद की बुराई को पाते हैं, जो मनोवैज्ञानिक और शारीरिक दोनों  दृष्टिकोणों में होता है। वास्तव में, वे जो आलस्य से ग्रस्ति होते वे जीवन के महत्व को खो देते हैं, प्रार्थना उनके लिए उबाऊ लगता है, हर छोटा संघर्ष उनके लिए अर्थहीन लगता है। यदि युवावस्था में हम जुनूनी थे, लेकिन वे अब तर्कहीन लगते हैं, वे सपने हमें खुशी प्रदान नहीं करते हैं। अतः हम अपने को छोड़ देते और ध्यान भटकाना, विचारहीनता ही हमारे लिए एकमात्र मार्ग के रुप में दिखाई देता है- इस भांति व्यक्ति अपने में संवेदनहीन, बिना किसी सोच के रहने की चाह रखता है...यह अपने में समय से पहले मरने की भांति है। यह अवगुण अपने में बुरा है।

संत पापा का आलस्य पर धर्मशिक्षा

धैर्य में विश्वासी बने रहें

इस अवगुण का सामना करते हुए जिसे हम अपने लिए बहुत खतरनाक पाते हैं, आध्यात्मिक गुरूओं ने हमारे लिए कई उपचारों को सुझाया है। संत पापा ने कहा कि मैं उनमें से एक का जिक्र करना चहूँगा जो मुझे अति महत्वपूर्ण लगता है, मैं इसे धैर्य में विश्वास की संज्ञा देता है। यद्यपि आलस्य से ग्रस्ति व्यक्ति कहीं और रहने की चाह रखता है, वह सच्चाई से भागने की सोचता है, ऐसी स्थिति में व्यक्ति को चाहिए कि ऐसा करने के बदले वह साहस में बना रहे, “अभी और यहाँ” ईश्वर की उपस्थिति का स्वागत करें, चाहे स्थिति कैसी भी क्यों न हो। मठवासीगण कहते हैं कि छोटा कमरा उनके लिए एक बेहतर जीवन के शिक्षक की भांति है क्योंकि यह स्थान ठोस रुप में रोज दिन ईश्वर के संग हमार प्रेम कहानी की बातें कहती है। आलस्य का भूत मुख्य रूप से इस साधारण कृतज्ञता में सच्चाई, यहाँ और इस समय मिलने वाली हमारी खुशी को नष्ट करने की कोशिश करता है। वह हमें इन सारी चीजों को व्यर्थ बताने की कोशिश करता है, कि कोई भी चीज अर्थपूर्ण नहीं है, किसी का या किसी की चिंता करना कोई भी महत्व का नहीं है। हम अपने जीवन में लोगों से मिलते हैं जो अपने में आलस्य के शिकार हैं। उनके बारे में हम कहते हैं, “यह व्यक्ति बेकार है” मुझे उसके संग रहना अच्छा नहीं लगता है, उसके मनोभाव हमें प्रभावित करते हैं। यह हमारे लिए आलस्य है।

आलस्य से संघर्ष करें

संत पापा ने कहा कि कितने ही लोग हैं जो आलस्य की चपेट में आकर, बेचैनी से प्रेरित मूर्खतापूर्ण ढ़ंग से अपने अच्छे जीवन का परित्याग कर दिया है, जिसकी शुरूआत उन्होंने की थी। आलस्य से संघर्ष करना और किसी भी कीमत पर उसमें विजय पाना हमारे लिए जरुरी है। इस संघर्ष से संतगण भी अछूते नहीं रहे, बहुतों की पुस्तिका में हम इसकी चर्चा पाते हैं जहाँ उन्होंने अपने जीवन को अंधकार में पाया। वे हमें धैर्य में, विश्वास की दरिद्रता को स्वीकारते हुए अंधकार से परे जाने की शिक्षा देते हैं। वे हमें आलस्य के क्षणों में भी छोड़े रुप में ही निष्ठावान बने रहने की प्रेरणा देते हैं। वे हमें येसु की ओर झुकते हुए धैर्य में बने रहने की सलाह देते हैं क्योंकि वे हमें प्रलोभनों में कभी नहीं छोड़ते हैं।

आलस्य से विश्वास का दीप न बुझे

विश्वास जो आलस्य के द्वारा प्रताड़ित किया जाता है, अपने मूल्य को नहीं खोता है। इसके विपरीत यह सच्चा विश्वास है, मानवीय विश्वास, जो सारी चीजों को, जो अंधकार के स्थिति में हमें अंधा बना देता, नम्रता में विश्वास करता है। यह वह विश्वास है जो हृदय में रहता है, जैसे राख के नीचे अंगारे रहते हैं। यह सदैव बना रहता है। हममें से कोई यदि इस बुराई में या आलस्य में पड़ता है, तो वह अपने भीतर झाँकने का प्रयास करें और विश्वास के अंगारों की रक्षा करें। इस भांति हम जीवन में आगे बढ़ते हैं। ईश्वर हमें सभों को अपना आशीर्वाद प्रदान करें। 

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14 February 2024, 13:18
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