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क्रिज्मा मिस्सा अर्पित करते संत पापा फ्राँसिस और रोम धर्मप्रांत के पुरोहित क्रिज्मा मिस्सा अर्पित करते संत पापा फ्राँसिस और रोम धर्मप्रांत के पुरोहित  (Vatican Media)

क्रिज्मा मिस्सा में पोप : प्रिय पुरोहितो, दुःख आपको पवित्र करे

पुण्य बृहस्पतिवार को वाटिकन में क्रिस्मा मिस्सा के दौरान, पोप फ्राँसिस ने पुरोहितों को साहस के साथ साक्ष्य देने के लिए धन्यवाद दिया और आग्रह किया कि वे गलतियों, कमजोर और कठोर दिलों को ख्रीस्त के करीब आने एवं पुनः शुरू करने के अवसर में बदलें।

वाटिकन न्यूज

संत पापा ने मिस्सा के दौरान अपने उपदेश में कहा, "प्रिय पुरोहितो, आपके खुले और विनम्र हृदयों के लिए धन्यवाद। आपकी कड़ी मेहनत और आपके आंसुओं के लिए शुक्रिया। धन्यवाद, क्योंकि आप आज की दुनिया में हमारे भाइयों और बहनों के लिए ईश्वर की दया का चमत्कार लाते हैं। प्रभु आपको सांत्वना दें, आपको मजबूता दें और पुरस्कृत करें।"

अपने उपदेश में, पोप ने इस बात पर चिंतन किया कि संत पेत्रुस कैसे, हमारा कलीसिया के पहले चरवाहे, ने ईसा मसीह की दृष्टि खो दी थी और उन्हें तीन बार नकार दिया था। पोप ने याद किया, कि पश्चाताप में, पेत्रुस की आँखों में आँसुओं की बाढ़ आ गई थी, जिसने उन्हें "एक घायल दिल से उठाकर, उनकी झूठी धारणाओं और आत्म-आश्वासन से मुक्त कर दिया।"

पोप फ्राँसिस ने कहा, "उन कड़वे आंसुओं ने उनका जीवन बदल दिया।"

उन्होंने कहा, "प्रिय पुरोहित भाइयो, पेत्रुस के दिल की चंगाई, प्रेरित की चंगाई, चरवाहे की चंगाई तब हुई, जब दुःखी और पश्चाताप करते हुए, उन्होंने खुद को येसु से माफ करने दिया।" उन्होंने कहा कि उन्हें चंगाई आंसुओं और फूट-फूट कर रोने में मिली, जिससे नए सिरे से प्यार पैदा हुआ।

संत पापा ने कहा, इस वर्ष के पुण्य बृहस्पतिवार को वे अपने साथी पुरोहितों के साथ, आध्यात्मिक जीवन के एक पहलू पर चिंतन साझा करना चाहते हैं, जिसे, कुछ हद तक उपेक्षित किया गया है, फिर भी आवश्यक है। "यहाँ तक कि मैं जिस शब्द का प्रयोग करने जा रहा हूँ वह कुछ हद तक पुराने जमाने का है, फिर भी चिंतन करने योग्य है, वह शब्द है पश्चाताप।"

पश्चाताप, 'हृदय में छेदा जाना'

पोप ने कहा, पश्चाताप शब्द में एक दर्दनाक "हृदय का छेदन" शामिल है, जो पश्चाताप के आँसू पैदा करता है, जैसा कि संत पेत्रुस के लिए हुआ था।

उन्होंने स्पष्ट किया, यह अपराध की भावना नहीं है जो हमें हतोत्साहित करती हो या हमारी अयोग्यता से ग्रस्त हो, बल्कि यह एक लाभकारी "छेदन" है जो हृदय को शुद्ध और स्वस्थ करती है।

एक बार जब हम अपने पाप को पहचान लेते हैं, तो पोप ने कहा, "हमारे दिल पवित्र आत्मा के कार्य के लिए खोले जा सकते हैं, जो जीवित जल के स्रोत हैं जो हमारे भीतर बहता है और हमारी आँखों में आँसू लाता है।" उन्होंने कहा, जो लोग "बेपर्दा" होने और ईश्वर की नजर को अपने दिल में घुसने देने के इच्छुक हैं, उन्हें उन आंसुओं का उपहार मिलता है, बपतिस्मा के बाद सबसे पवित्र जल के रूप में।

फिर भी, उन्होंने जोर देकर कहा, हमें यह स्पष्ट रूप से समझने की जरूरत है कि अपने लिए रोने का मतलब क्या है।

"इसका मतलब आत्म-दया में रोना नहीं है, जैसा कि हम अक्सर ऐसा करने के लिए प्रलोभित होते हैं।" उन्होंने स्पष्ट किया, अपने लिए रोने का अर्थ है, "अपने पापों से ईश्वर को दुखी करने के लिए गंभीरता से पश्चाताप करना; यह स्वीकार करना कि हम हमेशा ईश्वर के ऋणी बने रहते हैं, यह स्वीकार करना कि हम उस व्यक्ति के प्रेम के प्रति पवित्रता और निष्ठा के मार्ग से भटक गए हैं जिसने अपना जीवन दे दिया।"

अपनी कृतघ्नता और अनिश्चय पर पश्चाताप करना

पोप ने कहा, इसका अनुभव करने का अर्थ है, "अपने भीतर झाँकना और अपनी कृतघ्नता और अस्थिरता पर पश्चाताप करना," एवं "दुःख के साथ हमारे दोहरेपन, बेईमानी और पाखंड को स्वीकार करना।"

क्रूस पर चढ़ाए गए प्रभु की ओर एक बार फिर हमारी नजरें घुमाते हुए, और खुद को उनके प्रेम के स्पर्श से छूने देते हुए, जो हमेशा क्षमा करते हैं और ऊपर उठाते हैं, उन्होंने कहा, "उन लोगों के विश्वास को कभी निराश नहीं करते जो उन पर आशा रखते हैं।"

पोप फ्राँसिस ने कहा कि जो आँसू उमड़ते हैं और हमारे गालों पर बहते हैं, वे हमारे हृदय को शुद्ध करने के लिए उतरते हैं, क्योंकि भले ही पश्चाताप प्रयास की मांग करती, यह शांति प्रदान करती है।

"यह चिंता का स्रोत नहीं है, बल्कि आत्मा का उपचार है, क्योंकि यह पाप के घावों पर मरहम के रूप में कार्य करता है, हमें स्वर्गीय चिकित्सक का दुलार प्राप्त करने के लिए तैयार करता है, जो "टूटे हुए" को बदल देते हैं। पश्चातापी दिल,"आंसुओं से नरम हो जाता है।"

बच्चों जैसा बनना

पोप ने याद किया कि आध्यात्मिक जीवन के गुरू, पश्चाताप के महत्व पर जोर देते हैं, क्योंकि सभी आंतरिक नवीनीकरण हमारे मानवीय दुःख और ईश्वर की दया के बीच मिलन से पैदा होते हैं, और आत्मा की दीनता के माध्यम से विकसित होते हैं, जो पवित्र आत्मा को हमें समृद्ध करने की अनुमति देता है।

पोप ने पुरोहितों से आग्रह करते हुए कहा, "पुरोहित भाइयो, आइए हम खुद को देखें और खुद से पूछें कि अंतःकरण की जांच और हमारी प्रार्थनाओं में पश्चाताप और आँसू क्या भूमिका निभाते हैं," और विशेष रूप से, क्या वर्ष बीतने के साथ, हमारे आँसू बढ़ते हैं।

उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि हम जितने बड़े होते जाते हैं, उतना कम रोते हैं, इसके बजाय, "हमें बच्चों की तरह बनना चाहिए।"

संत पाप ने चेतावनी दी, "यदि हम रो नहीं सकते हैं, तो हम पिछड़ जाते हैं और भीतर से बूढ़े हो जाते हैं," जबकि "जिनकी प्रार्थना सरल और गहरी होती है, वे ईश्वर की उपस्थिति में आराधना और आश्चर्य में डूब जाते हैं," उन्होंने कहा, "बढ़ें और परिपक्व बनें।"

उन्होंने कहा, "वे स्वयं से कम और ख्रीस्त से अधिक संयुक्त हो जाएँ।"

ख्रीस्त से लगाव

पोप ने करुणा के दूसरे पहलू के रूप में एकजुटता पर चर्चा की।

उन्होंने कहा, "एक हृदय जो विनम्र है, धन्यता की भावना से मुक्त है, स्वाभाविक रूप से दूसरों के लिए प्रश्चाताप का अभ्यास करने के लिए प्रवृत्त हो जाता है। हमारे भाइयों और बहनों की विफलताओं पर क्रोध और लांछन महसूस करने के बजाय, वह उनके पापों के लिए रोता है।"

संत पापा ने याद दिलाया कि प्रभु, "सबसे बढ़कर, उन लोगों को खोजते हैं जो उनके लिए समर्पित हैं, जो कलीसिया और दुनिया के पापों के लिए शोक मनाते, और सभी की ओर से मध्यस्थ बनते हैं।"

कलीसिया में वीर गवाह

उन्होंने आश्चर्य किया "कलीसिया में कितने वीर गवाह हैं, जिन्होंने हमें यह रास्ता दिखाया है!"

"हम पूर्व और पश्चिम में मरूस्थल के भिक्षुओं के बारे में सोचते हैं; नारेक के संत ग्रेगरी की कराह और आंसुओं में निरंतर मध्यस्थता; एकतरफा प्यार के लिए फ्राँसिसी चढ़ावा; और उन कई पुरोहितों के बारे में, जो आर्स के पुरोहित की तरह जीते थे दूसरों की मुक्ति के लिए जीवन भर की तपस्या किये," उन्होंने याद करते हुए कहा, "यह कविता नहीं है, बल्कि पौरोहित्य है!"

पोप ने पुरोहितों को बताया कि किस प्रकार प्रभु हमसे, अपने चरवाहों से, कठोरता नहीं बल्कि प्रेम चाहते हैं, और जो भटक गए हैं उनके लिए आँसू चाहते हैं।

उन्होंने कहा, अगर उनके दिल में पश्चाताप की भावना महसूस होती है, तो निंदा के साथ नहीं, बल्कि दृढ़ता और दया से प्रत्युत्तर दें।

पोप ने कहा, "कितनी बड़ी बात है," हमें कठोरता और आरोप-प्रत्यारोप, स्वार्थ और महत्वाकांक्षा, कठोरता और हताशा से मुक्त होने की जरूरत है, ताकि हम खुद को पूरी तरह से ईश्वर को सौंप सकें, और उनमें उस शांति को पा सकें जो हमें बचाती है। हमारे चारों ओर चल रहे तूफान से बचाता है!"

"आइए हम प्रार्थना करें, मध्यस्थता करें और दूसरों के लिए आँसू बहाएँ," उन्होंने आग्रह करते हुए कहा, "इस तरह, हम प्रभु को चमत्कार करने की अनुमति देंगे। और हमें डरने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि वे निश्चित रूप से हमें आश्चर्यचकित करेंगे!"

प्रार्थना में मांगी जानेवाली कृपा

उन्होंने समझाया, कि पश्चाताप हमारा काम नहीं है, बल्कि एक अनुग्रह है इसलिए प्रार्थना में मांगा जाना चाहिए।

पश्चाताप की ओर मुड़ते हुए, जिसे उन्होंने ईश्वर का उपहार और पवित्र आत्मा का कार्य कहा, संत पापा ने पश्चाताप की भावना विकसित करने के लिए दो सुझाव दिए।

"आइए हम अपने जीवन और अपनी बुलाहट को दक्षता और तत्काल परिणामों के संदर्भ में देखना और वर्तमान जरूरतों और अपेक्षाओं में फंसे रहना बंद करें; इसके बजाय हमें चीजों को अतीत और भविष्य के बड़े क्षितिज पर देखना चाहिए।"

उन्होंने उनसे "ईश्वर की निष्ठा को याद करते हुए, उनकी क्षमा के प्रति सचेत रहकर और उनके प्रेम में दृढ़ता से स्थिर रहकर" और "उस शाश्वत लक्ष्य को देखते हुए अतीत पर विचार करने का आग्रह किया, जिसके लिए हम बुलाए गए हैं, उन्होंने हमारे जीवन के अंतिम उद्देश्य" पर विचार करने का आग्रह किया।"

उन्होंने कहा, हमारे क्षितिज को व्यापक बनाने से हमारे दिलों का विस्तार करने, ईश्वर के साथ समय बिताने और करुणा का अनुभव करने में मदद मिलती है।

दूसरा, पोप ने पुरोहितों से प्रार्थना को विकसित करने की आवश्यकता को फिर से खोजने का आह्वान किया "जो अनिवार्य और कार्यात्मक नहीं है, बल्कि स्वतंत्र रूप से चुनी गई, शांत और लंबे समय तक चलनेवाली है।"

उन्होंने कहा, "आइए हम आराधना और हृदय की प्रार्थना की ओर लौटें।"

'येसु, ईश्वर के पुत्र, मुझ पापी पर दया कर'

पोप ने पुरोहितों को यह दोहराने के लिए आमंत्रित किया, 'येसु, ईश्वर के पुत्र, मुझ पापी पर दया कर।'

पोप ने आह्वान किया, "आइए हम अपने पापों पर चिंतन करते हुए भी ईश्वर की महिमा को महसूस करें, और अपने दिलों को उनकी दृष्टि की चंगाई शक्ति के लिए खोलें," यह पुरोहितों को "हमारी प्रार्थना शुरू करने में पवित्र कलीसिया का प्रज्ञा को फिर से खोजने में सक्षम बनाएगा।" उस दीन व्यक्ति के शब्दों में जो रोते हुए कहता है: ईश्वर, मेरी सहायता करने आइये!"

संत पेत्रुस और उनके आंसुओं की ओर लौटते हुए, पोप ने कहा, "जिस वेदी को हम उनकी कब्र के ऊपर देखते हैं, वह हमें उस समय के बारे में सोचने पर मजबूर करती है जब हम पुरोहित - जो प्रतिदिन कहते हैं: 'इसे लो और खाओ, यह मेरा शरीर है, जो तुम्हारे लिए दिया जाएगा' - उस व्यक्ति को निराश और दुःखी किया है जो हमसे इतना प्यार करते हैं कि हमारे हाथों को अपनी उपस्थिति का साधन बना दिया।"

पोप फ्राँसिस ने कहा, "तब हम उन प्रार्थनाओं को मौन में दुहराते हुए अच्छा करते हैं: 'विनम्र मन और पश्चातापी दिल से प्रभु हमें आपके द्वारा स्वीकार किया जाए और 'हे प्रभु, मुझे मेरे अधर्म से धो डाल' और मुझे मेरे पाप से शुद्ध कर।''

धन्यवाद, प्रिय पुरोहितो

संत पापा ने आश्वासन देते हुए कहा, “यदि किसी का दिल टूट गया है, निश्चित रूप से येसु उसपर पट्टी बांध सकते और ठीक कर सकते हैं।

पोप ने कहा, "धन्यवाद प्रिय पुरोहितो, आपके खुले और विनम्र हृदयों के लिए... आपकी सारी मेहनत और आपके आंसुओं के लिए," और "क्योंकि आप आज की दुनिया में हमारे भाइयों और बहनों के लिए ईश्वर की दया का चमत्कार लाते हैं।"

पोप फ्राँसिस ने प्रार्थना करते हुए अंत में कहा कि प्रभु अपने वफादार पुरोहितों को सांत्वना दें, उन्हें मजबूत करें और पुरस्कृत करें।

क्रिज्मा मिस्सा अर्पित करते संत पापा फ्राँसिस

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28 March 2024, 17:03