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क्लेमेंटीन सभागार में आदिवासियों से मुलाकात करते संत पापा फ्राँसिस क्लेमेंटीन सभागार में आदिवासियों से मुलाकात करते संत पापा फ्राँसिस  (Vatican Media)

जलवायु संकट से निपटने के लिए आदिवासी प्रज्ञा को पोप का बढ़ावा

संत पापा फ्राँसिस ने बृहस्पतिवार को "आदिवासी लोगों के ज्ञान और विज्ञान: लचीलेपन के लिए कमजोरियों और समाधानों पर ज्ञान और विज्ञान का संयोजन” कार्याशाला के प्रतिभागियों से वाटिकन के क्लेमेंटीन सभागार में मुलाकात की और उन्हें वर्तमान जलवायु और पर्यावरण संकट से निपटने के लिए आदिवासी प्रज्ञा को सुरक्षित रखने और महत्व देने की आवश्यकता पर बल दिया।

वाटिकन न्यूज

वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 14 मार्च 24 (रेई) : कार्याशाला का आयोजन विज्ञान और सामाजिक विज्ञान के लिए गठित परमधर्मपीठीय अकादमी के तत्वधान में किया गया है। जिसका उद्देश्य है “जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता की हानि और खाद्य एवं स्वास्थ्य सुरक्षा के खतरों सहित कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर अधिक व्यापक, समृद्ध और मानवीय दृष्टिकोण के लिए ज्ञान के इन दो रूपों को जोड़ना।”

जलवायु परिवर्तन से निपटने में आदिवासियों के ज्ञान से सहयोग

संत पापा ने पहल को समर्थन देने हेतु परमधर्मपीठीय अकादमी को धन्यवाद देते हुए कहा, “यह आदिवासियों के ज्ञान के महान मूल्य को स्वीकार करने और समग्र एवं सतत मानव विकास को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान देता है।”

संत पापा ने गौर किया कि तीन साल पहले संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) ने आदिवासी खाद्य प्रणालियों पर अध्ययन दिवस आयोजित किए थे। उसी ने एक ऐसे मंच को जन्म दिया जिसने आदिवासी लोगों की खाद्य प्रणालियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से बातचीत को आगे बढ़ाने हेतु आदिवासी और गैर-आदिवासी वैज्ञानिकों, छात्रों और विशेषज्ञों को एक साथ लाया है। पोप के अनुसार कार्यशाला इसी मंच को योगदान देना है।

एक -दूसरे को सुनने का अवसर

संत पापा ने कार्यशाला को आपस में “एक-दूसरे को सुनने में वृद्धि करने का अवसर” बताया : “आदिवासी लोगों को सुनना, उनके ज्ञान और उनकी जीवनशैली से सीखना, और साथ ही वैज्ञानिकों को सुनना ताकि उनके शोध से लाभ उठाया जा सके।”

कार्याशाला इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके माध्यम से सरकारी अधिकारियों एवं अंतरराष्ट्रीय संगठनों को एक संदेश मिलेगा कि वे “वृहद मानव परिवार के भीतर समृद्ध विविधता को स्वीकार करने और उसका सम्मान करने के लिए प्रोत्साहित करें।” संत पापा ने विभिन्न संस्कृतियों, परम्पराओं, आध्यात्मिकताओं और भाषाओं की रक्षा करने का प्रोत्साहन दिया क्योंकि इन चीजों का खोना हम सभी के लिए ज्ञान, पहचान और स्मृति की दरिद्रता का प्रतीक है। यही कारण है, उन्होंने कहा कि “वैज्ञानिक अनुसंधान की परियोजनाओं और तदनुसार निवेश को मानव भाईचारे, न्याय और शांति को बढ़ावा देने के लिए निर्णायक रूप से निर्देशित किया जाना चाहिए, ताकि हमारे आमघर पृथ्वी और लोगों के परिवारों के सामने आनेवाली तत्काल चुनौतियों का जवाब देने के लिए संसाधनों का समन्वय और आवंटन किया जा सके।”

संत पापा ने कहा कि कार्याशाला इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि आदिवासी ज्ञान एवं विज्ञान, पूर्वजों की प्रज्ञा और विज्ञान के बीच खुली वार्ता, जल, जलवायु परिवर्तन, भूखमरी और जैव विविधता जैसे गंभीर मुद्दों का सामना, नये, समग्र और अधिक प्रभावशाली तरीके से करने में मदद कर सकती है। उन्होंने कहा, “जैसा कि हम अच्छी तरह जानते हैं, ये सभी मुद्दे आपस में जुड़े हुए हैं।”

संघर्षपूर्ण विश्व में वैकल्पिक दृष्टिकोण

संत पापा ने इस दिशा में सकारात्मक चिन्ह के लिए संतोष व्यक्त किया क्योंकि “सतत् विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान दशक के मुख्य घटक के रूप में संयुक्त राष्ट्र ने आदिवासी ज्ञान को भी शामिल किया है।” उन्होंने कहा, “इस चिन्ह को एकजुट होकर प्रोत्साहन और समर्थन देना चाहिए। आदिवासी ज्ञान और विज्ञान के बीच संवाद में, हमें यह स्पष्ट रूप से ध्यान में रखना होगा कि ज्ञान की इस संपूर्ण विरासत को अहिंसक तरीके से संघर्षों पर काबू पाने और गरीबी एवं गुलामी के नए रूपों का सामने करने के साधन के रूप में नियोजित किया जाना चाहिए।” “ईश्वर, जो सभी मनुष्यों और अस्तित्व में मौजूद हर चीज के निर्माता और पिता हैं, आज हमें सार्वभौमिक भाईचारा, स्वतंत्रता, न्याय, संवाद, आपसी मुलाकात, प्रेम और शांति के लिए हमारे मानवीय बुलाहट को जीने और साक्ष्य देने; तथा नफरत, आक्रोश, विभाजन, हिंसा और युद्ध को हवा देने से बचने के लिए बुलाते हैं।

हम ग्रह के मालिक नहीं

संत पापा ने याद दिलाया कि ईश्वर ने हमें ग्रह के मालिक नहीं बनाया बल्कि उसकी देखरेख करने की जिम्मेदारी दी है। अतः हमें संसाधनों को बर्बाद करने, असमानता, शोषण एवं विनाश को बढ़ाने के बजाय, आमघर की सेवा में प्रतिबद्ध होना चाहिए जिससे कि हमारी भावी पीढ़ी के जीवन की रक्षा की जा सके।

अंत में संत पापा ने आदिवासी समुदायों के प्रतिनिधियों को उनके प्रयासों के लिए धन्यवाद दिया एवं आदिवासियों को कलीसिया के समर्थन का आश्वासन देते हुए, प्रोत्साहन दिया कि वे अपने पूर्वजों की प्रज्ञा एवं वैज्ञानिक शोध के परिणामों से प्रेरित होकर, सच्चाई, स्वतंत्रता, वार्ता, न्याय और शांति की सेवा में सहयोग देते रहें।

उन्होंने कहा, “मैं अपनी प्रार्थनाओं में आपके साथ हूँ और प्रत्येक के दृढ़ विश्वास के सम्मान में, मैं आपके लिए ईश्वर के आशीर्वाद का आह्वान करता हूँ। कृपया, मेरे लिए प्रार्थना करें। धन्यवाद।”

 

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14 March 2024, 17:06