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वेनिस की प्रेरितिक यात्रा में संत पापा वेनिस की प्रेरितिक यात्रा में संत पापा  (AFP or licensors)

संत पापाः युवाओं से उठो और जीवन के मार्ग में चलो

संत पापा फ्रांसिस ने वेनिस में युवाओं से मिलते हुए उन्हें उठने और जीवन में आगे चलने की चुनौती दी।

वाटिकन सिटी

संत पापा फ्रांसिस ने वेनिस की अपनी एकदिवसीय प्रेरितिक यात्रा के दौरान अच्छे स्वास्थ्य की संत मरियम महागिरजाघऱ के प्रांगण में युवाओं से भेंट की।

संत पापा ने युवाओं को संबोधित करते हुए कहा प्रिय भाइयो और बहनो सुप्रभात।

आप से मिलना कितना आश्चर्यजनक है। हमारा एक साथ होना, हम जो आश्चर्य के रुप में हैं उसे साझा करने में मदद करता है चाहे वह एक प्रार्थना, एक नजर और एक मुस्कान ही क्यों न हो। वास्तव में, हम सभों ने एक महान उपहार को पाया है, जो हमें ईश्वर की संतान बनाता है और हम ईश्वर के उस सपने को पूरा करने के लिए बुलाये गये हैं, उसका साक्ष्य देने और उस खुशी को जीने के लिए। इससे अच्छा और कुछ नहीं हो सकता है। संत पापा ने कहा कि क्या आप ने कभी कोई ऐसा अनुभव किया है जिसे आप अपने में सीमित नहीं रख सके बल्कि उसे दूसरों के संग साझा करने को उतावले हुएॽ यही कारण है कि हम सभी आज यहाँ हैं- ईश्वर में अपनी उस सुन्दरता को खोजने और उनके नाम में आनंदित होने के लिए, एक युवा ईश्वर युवाजनों को प्रेम करते हैं और हमें सदैव विस्मित करते हैं। हम उनके द्वारा आश्चर्यचकित होने के लिए हमेशा तैयार रहें।

मरियम की तत्परता

संत पापा ने कहा कि मित्रों वेनिस के इस सुन्दर शहर में, हम मिलन के एक सुन्दर क्षण को जीते हैं। आज रात जब आप अपने घरों में होंगे, और कल तथा आने वाले दिनों में, हम कहाँ से शुरू करें जिससे हम उस सुन्दरता का स्वागत और उसका आलिंगन कर सकेंॽ संत पापा ने इस संदर्भ में दो प्रायोगिक और भौतिक क्रियाओं का जिक्र किया, दो क्रियाएँ जो ईश्वर की माता और हमारी माँ युवा हृदय मरियम की गतिशीलता की ओर इंगित करती हैं। ईश्वर की खुशी को साझा करने और जरुरत में पड़े लोगों की सहायता हेतु वे “उठतीं और चल पड़ती हैं” लूका. 1.39)। हम इन दो क्रियाओं को न भूलें कि मरियम ने हमसे पहले इसे अपने जीवन में पूरा किया।

ईश्वर पिता, हम उनकी संतान

उठना और चलना, संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि सबसे पहले उठना पर प्रकाश डला। हम जमीन से उठें क्योंकि हम स्वर्ग के लिए बनाये गये हैं। हम अपनी उदासी से उठें और अपनी निगाहें ऊपर की ओर उठायें। हम जीवन जीने के लिए उठें, न कि आराम से बैठकर समय बीताये। क्या आप ने कभी इस बात पर विचार किया है कि कोई युवा जीवन भर आरामदायक सोफे में बैठकर रह सकता हैॽ आप इस बात पर विचार करें कि आज बहुत सारी आराम की कुर्सियाँ हैं जहाँ से हम उठने में अपने को असमर्थ पाते हैं। उठने का अर्थ ईश्वर से यह कहना है कि “मैं उपस्थित हूँ”, जो हम सभों पर विश्वास करते हैं। हम उठें जिससे हम अपने को उपहार स्वरूप देख सकें, पहचान सकें क्योंकि हम किसी भी चीज से पहले अपने में मूल्यवान और अतुल्य हैं। यह हमारे लिए एक सच्चाई है। अपने को पहचानना हमारे लिए पहला कदम लेना है यह उठकर प्रथम कदम आगे बढ़ाने की तरह है। आप अपने बिछावन से बाहर निकलें और अपने को एक उपहार की तरह स्वीकारें। आप उठें और किसी चीज को शुरू करने के पहले ईश्वर का धन्यवाद करते हुए इस बात को पहचाने की आप ईश्वर के एक उपहार हैं। संत पापा ने युवाओं से कहा कि आप कह सकते हैं, “मेरे ईश्वर, जीवन के लिए धन्यवाद। मेरे ईश्वर, मुझे अपने जीवन से प्रेम करना सीखा। मेरे ईश्वर, तू मेरा जीवन है।” इसके बाद आप हे पिता हमारे कि प्रार्थना कर सकते हैं जहाँ प्रथम शब्द “पिता” को हम खुशी के स्रोत स्वरुप पाते हैं, हम अपने को एक पुत्र और एक प्यारी पुत्री के रुप में पाते हैं। आप इस बात को याद करें कि आप कोई डिजिटल प्रोफाईल नहीं बल्कि ईश्वर की संतान हैं, हमारा एक पिता है जो स्वर्ग में है अतः हम सभी स्वर्ग की एक संतान हैं।

ईश्वर को उठाने दें

संत पापा ने कहा कि बहुधा हम अपने को एक नकारात्मक शक्ति से ग्रस्ति पाते हैं जो हमें नीचे खींचती है, एक नकारात्मक शक्ति जो सारी चीजों को धूमिल परछाई की तरह देखने को बाध्य करती है। यह कई बार हमारे साथ होता है, ऐसी परिस्थिति में हमें क्या करने की जरुरत हैॽ उठने के लिए हम यह न भूलें कि हमें सबसे पहले अपने को उठाने देने की आवश्यकता है। हम ईश्वर को अपना हाथ पकड़कर आगे ले जाने दें क्योंकि वे हमें कभी निराश नहीं करते हैं जो उन पर विश्वास करते हैं, लेकिन वे सदैव हमें उठाते और क्षमा करते हैं। हम कह सकते हैं, “मैं अपने में कमजोर हूँ, क्षणभंगुर हूँ, मैं पापी बहुधा गिर जाता हूँ”। जब आप इसका अनुभव करते हैं तो कृपया अपनी “मानसिकता” को बदले का प्रयास करें। आप अपने को अपनी आँखों से नहीं बल्कि ईश्वर की निगाहों से देखें। जब आप एक गलती करते और गिर जाते हैं तो वे आपके संग कैसे पेश आते हैंॽ वे वहाँ ठीक आप की बगल में खड़ा होते और मुस्कुराते हैं, वे आप को अपनी हाथों से उठाने के लिए तैयार रहते हैं। वे सदैव आप को उठाते हैं। इस संदर्भ में संत पापा ने एक सालह देते हुए कहा कि किसी व्यक्ति को नीच दृष्टि में देखना अच्छा नहीं है लेकिन जब हम सहायता की दृष्टिकोण से ऐसा करते तो यह हमारे लिए उचित है। जब हम गिर जाते तो येसु हमें उठाने के लिए ऐसा ही करते हैं। यह अपने में कितना सुन्दर है। क्या आप इस पर विश्वास करते हैंॽ हम सुसमाचार खोल कर इस बात को देख सकते हैं कि उन्होंने पेत्रुस के साथ, मगदलेना, जकेयुस और अन्यों से क्या किया, वे उनकी कमजोरी में चमत्कार करते हैं। ईश्वर जानते हैं कि सुंदर होने के अलावे हम अपने में कमजोर हैं और ये दो चीजें साथ-साथ चलती हैं। यह वेनिस के समान है जो अपने में अद्वितीय और साथ ही कोमल है। ईश्वर हमारी गलतियों को हमारे विरूध पकड़ कर नहीं रखते हैं बल्कि वे हमारे लिए अपने हाथों को बढ़ते हैं। संत पापा ने कहा कि हमारे पाप अपने में असंख्य हो सकते हैं लेकिन हम अपने को ईश्वर को हाथों में लेने दें। जब हम गिर जाते तो वे हमें ऊपर उठाते हैं न कि गलती करने वालों के रुप में सजा देते हैं। कृपया हम उन पर विश्वास करें।

जीवन में निरंतरता जरूरी है

एक बार जब हम उठते तो यह हमारे ऊपर निर्भरता करता है कि हम अपने पैरों पर खड़ा हों। हम अपने में बने रहें चाहे हमें बैठने का महसूस क्यों न होता हो, हम न छोड़ें या हताश न हों। यह सहज नहीं है लेकिन यही रहस्य है। हाँ, बड़ी उपलब्धियों का रहस्य अपने में निरंतर बने रहना है। यह सत्य है कि बहुत बार हमारी कमजोरियाँ हमें पीछे की ओर खींचती हैं लेकिन निरंतर हमें आगे बढ़ती है। आज हम अति शीघ्रता के मनोभावना, क्षणिक सुख की स्थिति में जीवनयापन करते हैं। इसके द्वारा हम आगे नहीं बढ़ते हैं। खिलाड़ी, यहाँ तक की कलाकार और वैज्ञानिकगण हमें इस बात को बतलाते हैं कि महान सफलता तुरंत या अति शीघ्र नहीं मिलती है। यदि यह खेल, कला और संस्कृति के संदर्भ में सही है तो यह हमारे जीवन की महत्वपूर्ण चीजों के लिए भी है जहाँ हम विश्वास और प्रेम को पाते हैं। यहाँ हमारे लिए जोखिम यह होता है कि हम सब कुछ को कामचलाऊ व्यवस्था पर छोड़ देते हैं। यदि मुझे मन लगता है तो मैं प्रार्थना करता हूँ, मैं मिस्सा जाता हूँ जब मुझे जाने का दिल करता है, मैं अच्छा कार्य करता हूँ जब मुझे इसकी रूचि होती है। ऐसा करने के द्वारा हम परिणाम की आशा नहीं कर सकते हैं। हमें रोज दिन अपने जीवन में निरंतरता को बनाये रखने की जरुरत है। हमें इसे एक साथ करने की जरुरत है। आप इसे एक साथ करें। संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि आप अपने को अलग न करें, लेकिन दूसरों की खोज करें, एक-दूसरे के संग ईश्वर का अनुभव करें, अपने लिए एक दल की खोज करें जिससे आप चलते हुए न थकें। आप कहेंगे लेकिन मेरी अगल-बगल में हर कोई अपने मोबाईल फोन में, सोशल मीडिया और वीडियो गेम में मस्त रहता है।” इसके बावजूद आप भयविहीन धारा के विपरीत जाने का साहस करें। आप जीवन को अपने हाथों में लें, इसमें सम्मिलित हों, दूरदर्शन को बंद करें और सुसमाचार को खोलें, फोन को छोड़ें और लोगों से मिलें। संत पापा ने कहा कि मोबाईल फोन संचार के लिए अच्छा है लेकिन यह लोगों से मिलन में बाधा बनता है। आप इसका उपयोग करें लेकिन लोगों से भी मिलें। हम जानते हैं कि एक आलिंगन, चुम्बन, हाथ मिलाने का अर्थ क्या है, हम इस बात को न भूलें।

धारा के विरूद्ध चलें

संत पापा ने कहा कि मैं आप लोगों में एक विरोध को सुनता हूँ। “यह सहज नहीं है, यह धारा के विरूद्ध तैरने की भांति है।” लेकिन वेनिस इसे स्वयं घोषित करता है कि आप धारा के विरूध जाते हुए निरंतर आगे बढ़ते हैं। खेने हेतु निरंतरता की जरुरत है, निरंतरता हमारे लिए उपहार लेकर आती है यद्यपि मार्ग हमारे लिए कठिन क्यों न हो। अतः युवाओं उठने का अर्थ अपने को हाथों के द्वारा येसु को लेने देना है जहाँ हम ईश्वर के संग एक साथ चलते हैं।

संत पापाः वेनिस में युवाओं से मिलन

जानाः अपने को दूसरों के लिए देना है

वहीं जाना अपने को दूसरों के लिए उपहार स्वरुप देना है, प्रेम करने की योग्यता जो अपने में एक सुन्दर चीज है, एक युवा यदि अपने में प्रेम करने में असमर्थ है तो उसमें कुछ कमी है। आप आगे बढ़ें, चलें और दूसरों से मिलें।

सुन्दर चीजें के निर्माता बनें

संत पापा ने कहा कि हम हमारे पिता के बारे में विचार करें जिन्होंने हमारे लिए सारी चीजों को बनाया है। हम उनके बच्चे, हम किनके लिए अच्छी चीजें बनाते हैंॽ हम अपने को मानव निर्मित चीजों में डूबा पाते हैं जो हमें उनकी सुन्दरता पर आश्चर्यचकित होने से वंचित करती हैं। फिर भी सृष्टि हमें अपने लिए सुंदर चीजों का निर्माण करने को निमंत्रण देती है, उन चीजों के निर्माता बनें जो पहले कभी नहीं बनाई गयीं है। हम सुन्दर चीजें के निर्माता बनें। माता-पिता बनने के द्वारा आप उस सुन्दरता के निर्माता बनते हैं जो पहले कभी नहीं हुआ। यह कितना अच्छा है आप अपने अन्दर के बच्चे के बारे में सोचते हैं जो आपको आगे ले चलती है। बाध्य करने वाली चीजों के व्यावसायिक न बनें, लेकिन नयी चीजों के सृजनकर्ता बनें। हृदय से की गई प्रार्थना, अपने बारे में लिखी गई बातें, एक सपना का पूरा होना, दूसरों के लिए प्रेम की एक निशानी जो हमें बदले में कुछ नहीं दे सकते- यह हमारे द्वारा ईश्वरीय शैली का अनुसरण करना है। यह कृतज्ञता की शैली है जो हमें "मेरे पास है" और "मैं कमाने के लिए काम करता हूँ" के शून्यवादी तर्क से बाहर निकालती है। हमें कार्य करने की जरुरत है लेकिन यह हमारे जीवन का केन्द्र न हो बल्कि कृतज्ञतापूर्ण हृदय हमारे जीवन का क्रेन्द-बिन्दु बनें। आप लाभ की चाह रखने वाली दुनिया में कृतज्ञता रूपी जीवन का संगीत लायें। ऐसा करने के द्वारा आप क्रांतिकारी होंगे। आप बाहर जाये और बिना भय से अपने को दूसरों के लिए दें।

युवाओं को चुनौती

संत पापा ने कहा कि युवा जो अपने जीवन को हाथों में लेना चाहता है, उठे। अपना हृदय ईश्वर के लिए खोले, उन्हें धन्यवाद दे, और अपने जीवन की सुन्दरता को धारण करते हुए अपने जीवन से प्रेम करे। वह बाहर निकले, दूसरों के साथ चलें, उनकी खोज करें जो अकेले में जीवनयापन करते हैं, दुनिया को अपने रचनात्मकता के रंग से भर दे। आप अपने जीवन के मार्ग को सुसमाचार के गुणों से रंग दें। संत पापा ने युवाओं को दुहराने का आहृवान किया, “उठो और चलो”(लूका. 17.19) आप ईश्वर की पुकार को सुनें, उसे अपने अंदर दुहराये और हृदय में संजोकर रखें, उठो और चलो।

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28 April 2024, 16:42