आमदर्शन समारोह : दृढ़ता के सदगुण पर चिंतन
वाटिकन न्यूज
वाटिकन सिटी, बुधवार, 10 अप्रैल 2024 (रेई) : बुधवारीय आमदर्शन समारोह में, संत पापा फ्राँसिस ने, संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रागँण में एकत्रित, सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों के सामने, सदगुणों पर अपनी धर्मशिक्षा माला जारी रखते हुए, दृढ़ता के सदगुण पर चिंतन किया।
संत पापा फ्राँसिस ने सभी का अभिवादन करते हुए कहा, “प्यारे भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात! आज की धर्मशिक्षा तीसरे प्रमुख सदगुण अर्थात् दृढ़ता को समर्पित है। आइए, हम काथलिक कलीसिया की धर्मशिक्षा में दिए गए विवरण से शुरु करें: “दृढ़ता वह नैतिक सदगुण है जो कठिनाइयों में दृढ़ता और अच्छाई की खोज में निरंतरता सुनिश्चित करता है। यह प्रलोभनों का विरोध करने और नैतिक जीवन में बाधाओं को दूर करने के संकल्प को मजबूत करता है। दृढ़ता का सदगुण व्यक्ति को भय, यहां तक कि मृत्यु के भय पर भी विजय पाने और इम्तहान एवं उत्पीड़न का सामना करने में सक्षम बनाता है।" (धर्मशिक्षा न.1808) काथलिक कलीसिया की धर्मशिक्षा दृढ़ता के सदगुण के बारे में यही कहती है।
संकल्प को मजबूत करता है, बाधाओं पर काबू पाता है
इस तरह, यह सद्गुणों में सबसे अधिक "जुझारू" सदगुण हैं। यदि प्रमुख सदगुणों में से पहला, अर्थात् विवेकशीलता, सबसे पहले मनुष्य के विवेक से जुड़ा; और न्याय ने इच्छा में अपना जगह बनाया; तब यह तीसरा सदगुण, दृढ़ता, अक्सर विद्वान लेखकों द्वारा उस चीज़ से जोड़ा जाता है जिसे प्राचीन लोग "चिड़चिड़ी भूख" कहते थे। प्राचीन सोच में एक व्यक्ति की कल्पना जुनून के बिना नहीं की जाती थी: या तो उसे एक पत्थर माना जाता था। और जुनून जरूरी नहीं कि पाप का परिणाम हो; लेकिन उन्हें शिक्षित किया जाना, प्रेरित किया जाना, बपतिस्मा के जल से शुद्ध किया जाना, या पवित्र आत्मा की आग से बेहतर होना चाहिए। संत पापा ने कहा, “एक ख्रीस्तीय जो बिना साहस के, जो अपनी शक्ति को अच्छाई में नहीं बदलता, जो किसी की परवाह नहीं करता, वह बेकार ख्रीस्तीय है।” हम इसपर गौर करें! येसु कोई उदासीन और तपस्वी ईश्वर नहीं हैं, जो मानवीय भावनाओं को न जानते हों। इसके विपरीत, अपने मित्र लाजरूस की मृत्यु पर, वे रो पड़ते हैं, और उनकी भावुक आत्मा उनकी कुछ अभिव्यक्तियों में स्पष्ट है, जैसे कि जब वे कहते हैं: "मैं पृथ्वी पर आग लेकर आया हूँ, और चाहता हूँ कि वह धधक उठे!" (लूका 12:49); और मंदिर में खरीद बिक्री करनेवालों के सामने, वे बलपूर्वक प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं (मती. 21: 12-13)। इस तरह येसु में जुनून है।
संत पापा ने सहनशीलता की उत्पति पर प्रकाश डालते हुए कहा, “आइए, अब हम इस महत्वपूर्ण सदगुण का अस्तित्वगत विवरण देखें जो हमें जीवन में फलदायी बनने में मदद करता है। प्राचीन - यूनानी दार्शनिकों और ख्रीस्तीय धर्मशास्त्रियों - दोनों ने सहनशीलता के गुण में दोहरे विकास को मान्यता दी: एक निष्क्रिय, दूसरा सक्रिय।
हमारे अंदर
पहला, हमारे भीतर निर्देशित है। कुछ आंतरिक शत्रु हैं जिन्हें हमें हराना है, जिन्हें चिंता, पीड़ा, भय, अपराधबोध के नाम से जाना जाता है: वे सभी ताकतें हमारे अंतरतम में हलचल मचाती हैं और कभी-कभी हमें पंगु बना देती हैं। कितने संघर्ष करनेवाले संघर्ष शुरू करने से पहले ही हार मान लेते हैं! क्योंकि उन्हें इन आंतरिक शत्रुओं का एहसास नहीं होता। सहनशीलता, सबसे पहले और सबसे बढ़कर स्वयं पर जीत है। हमारे भीतर उत्पन्न होनेवाले अधिकांश डर अवास्तविक होते हैं, और बिल्कुल भी सच नहीं होते। ऐसे समय में, पवित्र आत्मा का आह्वान करना और धैर्यपूर्वक दृढ़ता के साथ हर चीज का सामना करना बेहतर है: एक समय में एक समस्या का हल करना चाहिए, जैसा कि हम कर सकते हैं, लेकिन अकेले नहीं! प्रभु हमारे साथ हैं, यदि हम उनपर भरोसा रखते और ईमानदारी से अच्छाई की खोज करते हैं, तब हम हर स्थिति में हमारी रक्षा और कवच के लिए ईश्वर की कृपा पर भरोसा करेंगे।
सक्रिय आयाम
संत पापा ने कहा, इसके बाद सहनशीलता के सदगुण की दूसरी गति है, जो अधिक सक्रिय है। आंतरिक इम्तहान के साथ-साथ, बाहरी शत्रु भी हैं, जो जीवन के इम्तहान हैं, उत्पीड़न, कठिनाइयाँ, जिनकी हमें उम्मीद नहीं होती और जो हमें आश्चर्यचकित करती हैं। दरअसल, हम यह अनुमान लगाने की कोशिश करते हैं कि हमारे साथ क्या होगा, लेकिन काफी हद तक वास्तविकता, असंभव घटनाओं से बनी होती है, और इस समुद्र में कभी-कभी हमारी नाव लहरों से इधर-उधर हो जाती है।
बुराई के खिलाफ आवाज उठाता है
दृढ़ता हमें लचीला नाविक बनाती है, जो भयभीत या हतोत्साहित नहीं होते। दृढ़ता एक मौलिक सदगुण है क्योंकि यह दुनिया में बुराई की चुनौती को गंभीरता से लेता है। कुछ लोग दिखावा करते हैं कि इसका अस्तित्व ही नहीं है, कि सब कुछ ठीक चल रहा है, कि मानवीय इच्छा कभी-कभी अंधी नहीं होती है, कि मौत लानेवाली काली ताकतें इतिहास में छिपी नहीं रहती हैं। लेकिन उन नीच कामों को जानने के लिए इतिहास की एक किताब या दुर्भाग्य से अखबारों को पढ़ना ही काफी है, जिनके हम कुछ हद तक शिकार हैं और कुछ हद तक अपराधी: युद्ध, हिंसा, गुलामी, गरीबों पर अत्याचार, ऐसे घाव हैं जो कभी नहीं भरे और आज भी उनसे खून बहना जारी हैं। सहनशीलता का सदगुण हमें इन सब पर प्रतिक्रिया व्यक्त करने और ज़ोर से "नहीं" कहने के लिए प्रेरित करता है। हमारी आरामदायक पश्चिमी दुनिया में, जिसने हर चीज को कुछ हद तक कमजोर कर दिया है, जिसने पूर्णता की खोज को एक सरल जैविक विकास में बदल दिया है, जिसमें संघर्ष की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि सब कुछ एक जैसा दिखता है, हम कभी-कभी नबियों के लिए एक स्वस्थ विषाद महसूस करते हैं। लेकिन विघटनकारी, दूरदर्शी लोग बहुत कम होते हैं। हमें किसी ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता है जो हमें उस नरम जगह से जगा सके जहां हम पड़े हैं और हमें बुराई और उदासीनता की ओर ले जाने वाली हर चीज के प्रति दृढ़ता से अपना "नहीं" दोहराने पर मजबूर कर सके।
संत पापा ने कहा, बुराई और उदासीनता को “नहीं”; चलना को “हाँ” कहना है, चलना जो प्रगति लाता है, और इसके लिए संघर्ष करना जरूरी है।
इसलिए आइए हम सुसमाचार में यीशु की दृढ़ता को फिर से खोजें, और इसे संतों के साक्ष्य से सीखें। इतना कहने के बाद संत पापा ने अपनी धर्मशिक्षा समाप्त की।
और इसके बाद, उन्होंने युवाओं, बीमारों, बुजुर्गों और नवविवाहितों की याद की। एवं सभी को पास्का की शुभकामनाएँ देते हुए कामना की कि पास्का घोषणा की सांत्वना भरी रोशनी सभी के दिल में बढ़े, जो क्रूस पर चढ़ाये गये और पुनर्जीवित हुए येसु में हमारे विश्वास एवं आशा को मजबूत कर दे।
अंत में, संत पापा ने सभी के साथ हे हमारे पिता का पाठ किया एवं उन्हें अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।
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