आमदर्शन समारोह में पोप : धर्मी और न्यायी लोगों को खुशी मिलेगी
वाटिकन न्यूज
वाटिकन सिटी, बुधवार, 3 अप्रैल 2024 (रेई) : बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर, 3 अप्रैल को, संत पापा फ्राँसिस ने, संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रागँण में एकत्रित, सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों के सामने, सदगुणों पर अपनी धर्मशिक्षा माला जारी रखते हुए, न्याय के सदगुण पर चिंतन किया।
संत पापा ने उपस्थित सभी लोगों को सम्बोधित कर कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, खुश पास्का पर्व, सुप्रभात।
“मौलिक सदगुणों में से दूसरे सदगुण पर चिंतन करते हुए : आज हम न्याय के बारे बात करेंगे। यह सर्वोत्कृष्ट सामाजिक सदगुण है। काथलिक कलीसिया की धर्मशिक्षा इसे इस प्रकार परिभाषित करती है: "नैतिक सदगुण जिसमें ईश्वर और दूसरों को वह देने की निरंतर और दृढ़ इच्छा होना है, जो उनके लिए उचित है" (न.1807) यही न्याय है। अक्सर, जब न्याय का उल्लेख किया जाता है, तो इसका प्रतिनिधित्व करनेवाले आदर्श वाक्य का भी हवाला दिया जाता है: "यूनिक्वीक्वे सूम - यानी, प्रत्येक को अपना।" यह कानून का गुण है, जो समानता के साथ लोगों के बीच संबंधों को विनियमित करना चाहता है।
इसे प्रतीकात्मक रूप से तराजू द्वारा दर्शाया गया है, क्योंकि इसका उद्देश्य लोगों के बीच "बराबर" करना है, खासकर, जब वे कुछ असंतुलन से विकृत होने के जोखिम में हैं।
समाज में शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के लिए न्याय आवश्यक
इसका उद्देश्य यह है कि समाज में सभी के साथ उनकी गरिमा के अनुसार व्यवहार किया जाए। लेकिन प्राचीन गुरुओं ने पहले ही सिखाया था कि इसके लिए अन्य सद्गुणी दृष्टिकोण भी आवश्यक हैं, जैसे परोपकार, सम्मान, कृतज्ञता, मिलनसारिता, ईमानदारी: ऐसे गुण जो लोगों के अच्छे सह-अस्तित्व में योगदान करते हैं। न्याय लोगों के अच्छे सह-अस्तित्व के लिए एक सदगुण है।
हम सभी समझते हैं कि समाज में शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के लिए न्याय कितना मौलिक है: अधिकारों का सम्मान करनेवाले कानूनों के बिना दुनिया एक ऐसी दुनिया होगी जिसमें रहना असंभव होगा, यह एक जंगल जैसा होगा।
न्याय के बिना शांति नहीं है। वास्तव में, जब न्याय का सम्मान नहीं किया जाता है, तभी संघर्ष उत्पन्न होते हैं। न्याय के बिना, कमजोरों पर ताकतवरों के दुरुपयोग का कानून स्थापित हो जाता है, और यह सही नहीं है।
हमारे दैनिक जीवन को विशिष्ठ बनाती
न्याय एक ऐसा सदगुण है जो बड़े और छोटे दोनों स्तर पर कार्य करता है: इसका संबंध न केवल अदालतों से है, बल्कि उस नैतिकता से भी है जो हमारे दैनिक जीवन को विशिष्ठ बनाती है। वह दूसरों के साथ ईमानदार संबंध स्थापित करता है: उसे सुसमाचार के सिद्धांत का एहसास दिलाता है, जिसके अनुसार ख्रीस्तीय बातचीत को : "हाँ की हाँ या नहीं की नहीं” होनी चाहिए; और इससे अधिक है वह बुराई से उत्पन्न होत है।" (मती. 5:37) अर्धसत्य, दोहरी बातचीत जो दूसरों को धोखा देना चाहता है, मौन जो वास्तविक इरादों को छिपाती है, न्याय के अनुरूप दृष्टिकोण नहीं हैं। सही आदमी ईमानदार, सरल और स्पष्टवादी होता है, वह मुखौटे नहीं पहनता, जो है वैसा ही प्रस्तुत करता है, और सच बोलता है। "धन्यवाद" शब्द अक्सर उसके होठों पर पाया जाता है: वह जानता है कि, हम चाहे कितना भी उदार बनने की कोशिश करें, हम हमेशा दूसरों के ऋणी रहेंगे। अगर हम प्यार करते हैं तो इसलिए क्योंकि हमें ही प्यार किया गया है।
न्यायप्रिय व्यक्ति
परंपरा में न्यायप्रिय व्यक्ति के अनगिनत वर्णन मिलते हैं। आइए, उनमें से कुछ पर गौर करें। न्यायप्रिय व्यक्ति कानूनों के प्रति श्रद्धा रखता है और उनका सम्मान करता है, यह जानते हुए कि कानून घेरे का निर्माण करते, जो असहाय लोगों को शक्तिशाली लोगों के अहंकार से बचाते हैं। सही व्यक्ति न केवल अपनी व्यक्तिगत भलाई का ख्याल रखता है, बल्कि वह पूरे समाज की भलाई चाहता है। इसलिए वह केवल अपने बारे में सोचने और अपने स्वयं के मामलों की चिंता करने के प्रलोभन में नहीं पड़ता, चाहे वे कितने भी वैध क्यों न हों, मानो कि वे ही एकमात्र ऐसी चीज़ हों जो दुनिया में मौजूद हों। न्याय का गुण यह स्पष्ट करता है कि मेरे लिए यह सही नहीं हो सकता यदि इसमें सबकी भलाई न हो।
इसलिए सही व्यक्ति अपने व्यवहार पर नजर रखता है ताकि वह दूसरों के प्रति हानिकारक न हो: यदि वह कोई गलती करता है, तो वह माफी मांगता है। सही आदमी हमेशा माफी मांगता है। कुछ स्थितियों में वह समुदाय को उपलब्ध कराने के लिए व्यक्तिगत भलाई का त्याग कर देता है। वह एक व्यवस्थित समाज चाहता है, जहां लोग पदों की गरिमा बनाये रखें, न कि पद उन्हें प्रतिष्ठा दें। वह गुण-कीर्तन से घृणा करता है और एहसान का सौदा नहीं करता। वह जिम्मेदारी पसंद करता है और वैधता के साथ जीने और उसे बढ़ावा देने में अनुकरणीय है।
भ्रष्टाचार की औषधि
इसके अलावा, धर्मी व्यक्ति बदनामी, झूठी गवाही, धोखाधड़ी, सूदखोरी, उपहास और बेईमानी जैसे हानिकारक व्यवहारों से दूर रहता है। न्यायी व्यक्ति अपनी बात रखता है, जो उधार लिया है उसे लौटाता है, सभी श्रमिकों के लिए सही वेतन देता है: जो व्यक्ति श्रमिकों के लिए सही वेतन की मंजूरी नहीं देता, वह न्यायपूर्ण नहीं है: वह अन्यायी है।
हममें से कोई नहीं जानता कि हमारी दुनिया में धर्मी लोग असंख्य हैं या बहुमूल्य मोतियों की तरह दुर्लभ हैं। लेकिन वे ऐसे व्यक्ति हैं जो स्वयं पर और जिस दुनिया में रहते हैं उस पर अनुग्रह और आशीर्वाद लाते हैं। धर्मी लोग नैतिकतावादी नहीं हैं जो सेंसर की भूमिका निभाते हैं, बल्कि ईमानदार लोग जो "न्याय के भूखे और प्यासे हैं" (मती. 5.6), सपने देखनेवाले हैं जो अपने दिल में सार्वभौमिक भाईचारे की इच्छा रखते हैं। और इस सपने की हम सबको, खासकर आज बहुत ज़रूरत है। हमें न्यायी पुरुष और महिला बनने की जरूरत है, और इससे हमें खुशी मिलेगी।
इतना कहने के बाद संत पापा ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की। तत्पश्चात् उन्होंने युवाओं, बीमारों, बुजुर्गों और नवविवाहितों की विशेष रूप से याद की और अंत में “हे हमारे पिता” प्रार्थना का पाठ करते हुए सभी को अपना प्ररितिक आशीर्वाद दिया।
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