संत पापाः विश्वास हमारे लिए पहला उपहार
वाटिकन सिटी
संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा पौल षष्ठम के सभागार में एकत्रित सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो सुप्रभात।
आज मैं विश्वास रुपी गुण के बारे में जिक्र करना चाहूँगा। प्रेम और आशा के साथ यह गुण हमारे लिए ईशशास्त्रीय गुण कहलाती है। हम तीन ईशशास्त्रीय गुणों को पाते हैं, विश्वास, भरोसा और प्रेम। वे क्यों ईशशास्त्रीय गुण कहते जाते हैंॽ क्योंकि वे हमें जीवन जीने में मदद करते हैं जिसके लिए हम ईश्वर के प्रति सिर्फ कृतज्ञता प्रकट कर सकते हैं। ये तीन ईशशास्त्रीय गुण हमारे लिए ईश्वर की महान कृपा है जिस वे हमारी नैतिक योग्यता हेतु प्रदान करते हैं। उनके बिना हम सौम्य, न्यायी, मजबूत और धैर्य में बने रह सकते हैं लेकिन उनके बिना हमारे लिए वे आंखें नहीं रह जायेंगी जिनकी सहायता से हम अंधेरे में देख सकते हैं, हममें प्रेम के लिए एक हृदय नहीं रह जायेगा जिसकी बदौलत प्रेम नहीं किये जाने पर भी हम प्रेम करते हैं, हमारे लिए एक आशा नहीं रह जयेगी जो सभी निराशाओं की स्थिति में भी हमें आगे ले चलती है।
विश्वास एक कार्य है
संत पापा ने कहा कि विश्वास क्या हैॽ इस सवाल के बारे में काथलिक कलीसिया की धर्मशिक्षा व्याख्या करते हुए हमें कहती है कि विश्वास एक कार्य है जिसके द्वारा मानव स्वतंत्र रुप से अपने को ईश्वर के हाथों में समर्पित करता है (1814)। इस विश्वास में, हम अब्राहम को महान पिता के रुप में देखते हैं। जब वह अपनी पैतृक भूमि को छोड़ने के लिए राजी होता और ईश्वर के द्वारा बतलाई भूमि की ओर निकलने की सोचता है, तो उसे पागल समझा गया होगा- ज्ञात को छोड़कर अज्ञात की ओर, निश्चितता को छोड़कर अनिश्चिचता की ओर क्यों जाना। वह ऐसा क्यों करता हैॽ कोई सिरफिरा ही ऐसा कर सकता हैं। लेकिन अब्राहम निकल पड़ता है मानो वह अदृश्य को देख लिया हो। धर्मग्रंथ हमें इसका वृतांत प्रस्तुत करता है। यह अपने में कितना अच्छा और सुन्दर है। इससे बढ़कर यह उसके लिए अदृश्य ही है जो उसे अपने पुत्र इसाहक के साथ, जो उसकी एकलौटी संतान है पर्वत के ऊपर ले चलता है, जो केवल अंतिम समय में बलि चढ़ाये जाने से बचाया जाता है। इस विश्वास के कारण अब्राहम विश्वास का पिता बनता है जिसकी असंख्य संतति होती हैं। यह विश्वास है जो उसे फलहित करता है।
मूसा और मरियम का विश्वास
मूसा एक विश्वास भक्त व्यक्ति था, अपने ईश्वर की आवाज को सुनने में एक संदेह उसे अपने में हिला सकता था लेकिन वह अपने विश्वास में दृढ़ बने रहता है और वह अपने लोगों की रक्षा करता है जो बहुत बार अपने में विश्वास की कमी को पाते हैं।
कुंवारी मरियम विश्वास की एक नारी रहीं जब स्वर्गदूत ने उन्हें आनंद का संदेश सुनाया, जिसे बहुतों ने जोखिम और कठिन कार्य कहते हुए अस्वीकार किया होता। लेकिन वे कहती हैं, “देख मैं प्रभु की दासी हूँ, तेरा कथन मुझ में पूरा हो”। एक विश्वास और भरोसे से भरा हृदय लिये वह उस मार्ग में निकल पड़ती हैं जिसमें आने वाले जोखिमों और दिशा के बारे में उसे कुछ भी ज्ञान नहीं था।
विश्वास ख्रीस्तीय का निर्माता है
विश्वास वह गुण है जो ख्रीस्तीय का निर्माण करता है। क्योंकि ख्रीस्तीय होना सबसे पहले एक संस्कृति को उसके गुणों के साथ स्वीकारना नहीं है जो हमें आगे ले चलती है, वहीं यह एक संबंध का स्वागत और मूल्यों का स्वागत करना नहीं जो हमारे संग चलते हैं बल्कि ईश्वर के संग एक संबंध का स्वागत करना और उसका आनंद उठाना है। ईश्वर और मैं, मैं और ईश्वर का मित्रत्व चेहरा। यह हमें ख्रीस्तीय बनता है।
जीवन के तूफान, विश्वास की परीक्षा
संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि विश्वास के संदर्भ में सुसमाचार का एक दृश्य हमारे मन में उभर कर आता है। येसु के शिष्यगण झील पार कर रहे थे और वे तूफान के द्वारा आश्चर्यचकित हुए। वे सोचते हैं कि वे अपने हाथों की शक्ति से, अपने अनुभव के आधार पर पार कर लेंगे। लेकिन नाव पानी से भर जा रहा था और वे अपने को भयभीत पाते हैं। वे इस बात का अनुभव नहीं करते हैं कि उनके पास उनकी आंखों के सामने सामाधान है। येसु नाव में उनके साथ हैं, सुसमाचार हमें बतलाता है कि वे तूफानों के बीच सो रहे होते हैं। अंततः जब वे भयभीत और क्रोधित उन्हें नींद से उठाते मानो वे उन्हें मरने के लिए छोड़ दिये हैं, येसु उन्हें फटकारते हैं, “तुम डरते क्यों होॽ क्या तुम विश्वास नहीं करतेॽ” (मरकूस 4.40)।
भय विश्वास का शत्रु है
यह इस भांति विश्वास का सबसे बड़ा शत्रु, बुद्धिमत्ता नहीं है, यह तर्क नहीं है, बल्कि यह निश्चित रुप में भय है जिसे कुछ निरंतर आहें भरते और दुहराते हैं। यही कारण है, कि विश्वास वह पहला उपहार जिसके लिए हमें रोज दिन विनय करते हुए उसका स्वागत करने की जरुरत है, जिससे यह हमें नवीकृत करता रहे। यह हमारे लिए छोटे उपहार के रूप में लगता है यद्यपि यह हमारे लिए एक महत्वपूर्ण बात है। जब हम बपतिस्मा के लिए लाये गये, हमारे माता-पिता ने, हमारे चुने गये नामों की घोषणा उपरांत पुरोहित के द्वारा पूछे जाने पर, “आप ईश्वर की कलीसिया से क्या चाहते हैंॽ” वे जवाब देते हैं, “विश्वास, बपतिस्मा।”
संत पापा ने कहा कि ख्रीस्तीय माता-पिता के लिए, इस कृपा की सजगता में जो उन्हें मिलता है उस विश्वास के उपहार को वे अपनी संतान के लिए मांगते हैं। इसके द्वारा, माता-पिता जानते हैं, यहाँ तक की जीवन की कठिनाइयों में भी उनकी संतान भय में नहीं डूबेगा। इसके साथ ही वे इस बात को जानते हैं कि जब बच्चे के माता-पिता इस दुनिया में नहीं रहेंगे, तो वह स्वर्गीय पिता को निरंतर अपने लिए पायेगा, जो उसका परित्याग कभी नहीं करेंगे।
विश्वास के लिए ईर्ष्या स्वीकार्य
संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि निश्चित रुप से जैसे कि प्रेरित कहते हैं कि विश्वास सभों के लिए नहीं है (2 थेस.3.2) और हम भी जो विश्वासीगण हैं, बहुधा इस बात से वाकिफ है कि हमारा विश्वास भी छोटा है। येसु कई बार हमें “अपने छोटे विश्वास के लिए” फटकारते हैं, जैसे कि उन्होंने अपने शिष्यों को किया। लेकिन यह सबसे अधिक खुशी का उपहार है, केवल इस गुण के लिए हमें ईर्ष्या करने की अनुमति है। क्योंकि वे जो विश्वास करते हैं वे अपने को एक शक्ति से पोषित पाते हैं जो कि मानवीय नहीं है। वास्तव में, विश्वास हममें कृपा को उद्वेलित करता और हमारे मन को ईश्वर के रहस्य के लिए खोलता है। येसु ने एक बार कहा, “यदि तुम्हारा विश्वास राई के दाने के बराबार भी होता और तुम शहतूत के इस पेड़ से कहते, उखड़ कर समुद्र में लग जा” तो यह तुम्हारी बात मान लेता” (लूका. 17.6) इस भांति हम भी शिष्यों की भांति दुहरायें, प्रभु हमारे विश्वास को बढ़ाइए। संत पापा फ्रांसिस ने इसे सुन्दर प्रार्थना को सभों को मिलकर दुहराने का आग्रह किया, “प्रभु हमारे विश्वास को बढ़ाइए”। और इतना कहने के बाद अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और सभों के संग हे पिता हमारे प्रार्थना का पाठ करते हुए सभों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।
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