विभाजन और संघर्ष से चिह्नित दुनिया में आशा के साक्षी बनें, संत पापा फ्राँसिस
वाटिकन न्यूज
वाटिकन सिटी, सोमवार 20 मई 2024 : संत पापा फ्राँसिस ने परमाध्यक्षों के भवन में लोयोला विश्वविद्यालय, शिकागो के न्यासी बोर्ड के अध्यक्ष और सदस्यों का अभिवादन किया जो उन स्थानों की तीर्थयात्रा पर हैं जहाँ संत इग्नासियुस लोयोला का जन्म हुआ और वे बड़े हुए। संत पापा ने कहा, "यात्रा पर निकलना पारंपरिक रूप से जीवन में अर्थ की हमारी मानवीय खोज से जुड़ा हुआ है, हमेशा अपने अंदर यात्रा पर जाने, तीर्थयात्रा पर जाने की इच्छा को जीवित रखें। संत इग्नासियुस के जीवन और आध्यात्मिकता को आकार देने वाले स्थानों पर जाने के आपके अनुभव ने निश्चित रूप से आपको शैक्षणिक और व्यक्तिगत निर्माण के मार्ग पर समृद्ध और प्रेरित किया है। यह आपकी जड़ों की यात्रा रही है।”
गतिशील जड़ें
संत पापा ने कहा कि आगे बढ़ने के लिए, हमें हमेशा अपनी जड़ों की ओर लौटना चाहिए। संत पापा ने कहा कि उनकी संस्था की जड़ें संस्थापक, संत इग्नासियस के अनुभव में निहित हैं, जिन्होंने हमेशा ईश्वर को सबसे पहले रखा और ईश्वर की इच्छा की तलाश में लगे रहे। इसका परिणाम सेवा के लिए उनके परिश्रमी प्रयास में हुआ।
संत पापा ने कहा, “न्याय के प्रति विवेक और प्रतिबद्धता से चिह्नित उनका आध्यात्मिक मार्ग आपके जीवन और गतिविधि को प्रेरित और निर्देशित करता रहे।”
संघर्ष से चिह्नित दुनिया में आशा के साक्षी
संत पापा ने बताया कि वास्तव में, लोयोला विश्वविद्यालय विवेक और कार्य पर आधारित येसु समाजियों की परंपरा से प्रेरित है। यह परंपरा उन्हें गहन चिंतन, ध्यानपूर्वक सुनने और साहसी कार्य के माध्यम से सत्य की खोज करने का आह्वान देती है। संत पापा ने उन्हें इस मार्ग पर दृढ़ रहने के लिए प्रोत्साहित किया, ताकि वे विभाजन और संघर्ष से चिह्नित दुनिया में आशा के साक्षी बन सकें और आलोचनात्मक समझ, विवेक की क्षमता और वैश्विक चुनौतियों के प्रति संवेदनशीलता विकसित कर सकें। संत पापा ने उन्हें हमेशा खुद से यह सवाल पूछने को कहा: हमारा विश्वविद्यालय हमारी दुनिया को एक बेहतर जगह बनाने में कैसे योगदान दे सकता है?
शिक्षा केवल ज्ञान का हस्तांतरण नहीं
संत पापा ने कहा कि इतिहास के ऐसे दौर में जब तेजी से बदलाव और जटिल चुनौतियां सामने आ रही हैं, शैक्षणिक संस्थानों की भूमिका बहुत जरूरी है। संत पापा ने कहा कि उनका काम न केवल अच्छे दिमागों का निर्माण करना है, बल्कि हर व्यक्ति की गरिमा के प्रति चौकस उदार हृदय और विवेक का विकास करना भी है। शिक्षा केवल ज्ञान का हस्तांतरण नहीं है, बल्कि ऐसे लोगों का निर्माण करने की प्रतिबद्धता है जो अपने जीवन के हर पहलू में सामंजस्य और न्याय के मूल्यों को अपनाने में सक्षम हों। दिमाग को इस तरह से बनाया जाना चाहिए कि दिल उदार हो सके, वास्तविकता और समय की मांगों से जुड़ने में सक्षम हो और हाथ सक्रिय रूप से काम करने में सक्षम हों। संत पापा ने उनसे कहा कि वे कड़ी मेहनत करने का सपने देखने वालों का निर्माण करें! और इसके लिए उन्हें सबसे पहले खुद भी ऐसा बनना होगा।
दूसरों की सेवा में अपने कौशल का उपयोग
संत पापा ने उन्हें संत इग्नासियुस की विरासत को आगे बढ़ाते हुए, अपनी बौद्धिक जिज्ञासा, सहयोग की भावना और समकालीन समय की चुनौतियों के प्रति अपनी संवेदनशीलता को विकसित करने हेतु प्रोत्साहित किया। संत पापा ने कहा, “हमें ऐसे पुरुषों और महिलाओं की आवश्यकता है जो दूसरों की सेवा में अपने कौशल का उपयोग करने के लिए तैयार हों, एक ऐसे भविष्य के लिए काम करें जिसमें प्रत्येक व्यक्ति अपनी क्षमता को प्राप्त कर सके और सम्मान एवं गरिमा के साथ रह सके, और जिसमें दुनिया को शांति मिल सके।” संत पापा ने इस बात पर भी गौर किया कि वैश्विक व्यवस्था में संकट के बीच एक संभावित भविष्य के बारे में सोचना कम होता दिख रहा है।
अपने संदेश के अंत में संत पापा ने कहा, “मैं आपको विशेष रूप से विभिन्न परंपराओं, संस्कृतियों और विश्वदृष्टि के बीच आपसी समझ, सहयोग और पुलों के निर्माण को बढ़ावा देने के साधन के रूप में अंतर-सांस्कृतिक और अंतर-धार्मिक संवाद की सलाह देता हूँ। ईश्वर आपको आशीर्वाद दें और ज्ञान और सेवा की आपकी यात्रा में हमेशा आपका साथ दें।”
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