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संत पापा फ्रांसिस आमदर्शन समारोह में संत पापा फ्रांसिस आमदर्शन समारोह में  (ANSA)

संत पापाः स्तोत्र येसु की प्रार्थना, सर्वकालीन प्रार्थना

संत पापा फ्राँसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर स्तोत्र ग्रंथ की महत्वपूर्ण का जिक्र करते हुए इसके संग प्रार्थना करने का आग्रह किया।

वाटिकन सिटी

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में एकत्रित सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए कहा,प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।

आने वाले जयंती हेतु निमंत्रण देते हुए मैंने 2024 को प्रार्थना का एक “स्वरसंगीत” वर्ष के रुप में घोषित किया है। आज की धर्मशिक्षा माला में मैं इस बात की याद दिलाना चाहूँगा कि कलीसिया पवित्र आत्मा में अपने को प्रार्थना के इसी “स्वरसंगीत” में पाती है जिसके संगीतकार पवित्र आत्मा हैं जैसे कि यह इसे स्तोत्र ग्रँथ में अभिव्यक्त पाते हैं।

प्रार्थना के स्वर

जैसे की किसी भी संगीत में हम विभिन्न तरह के लयों को पाते हैं अर्थात कि प्रार्थना के कई प्रतिरूपः प्रशंसा, कृतज्ञता के भाव, निवेदन, शोक, विवरण, विवेकपूर्ण चिंतन और अन्य दूसरे जिन्हें हम व्यक्तिगत और लोगों की विभिन्न अभिव्यक्ति के रुप में पाते हैं। ये हमारे लिए पवित्र आत्मा के राग हैं जिसे वे वधू कलीसिया की होंठों में अंकित करते हैं। धर्मग्रँथ की सारी पुस्तकें जैसे कि मैंने पिछली बार कहा, पवित्र आत्मा की प्रेरणा से लिखी गई हैं, वहीं स्तोत्र ग्रंथ की पुस्तिका को हम   पवित्र आत्मा की प्रेरणा से काव्य स्वरुप लिखित पाते हैं।

स्तोत्र के मनोभाव अनेक 

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि स्तोत्र ग्रंथ को हम नये व्यवस्थान में एक महत्वपूर्ण स्थान में पाते हैं। वास्तव में, हम स्तोत्र ग्रंथ के दूसरे संस्करणों को पाते हैं जो नये विधान और स्त्रोत को एक साथ अपने में सम्माहित करते हैं। सभी स्तोत्रों को और न ही कोई एक स्तोत्र को हर ख्रीस्तीय दुहराते हुए अपने जीवन का अंग बना सकता है, न ही कोई आधुनिक व्यक्ति ही। वे अपने में एक समय, इतिहास की परिस्थिति और एक धार्मिक मनोभावना को व्यक्त करते हैं जो हमारे अपने नहीं हैं। इसका मतलब यह नहीं कि वे प्रेरित नहीं हैं, लेकिन वे एक निश्चित रुप में एक परिस्थिति और एक रहस्यमय प्रकटीकरण से संयुक्त हैं।

येसु और कलीसिया का प्रार्थना

संत पापा ने कहा कि ये स्तोत्र को हम येसु, मरिय़म, प्रेरितों के अलावे सारी ख्रीस्तीय पीढ़ियों की प्रार्थनाओं के रुपों में पाते हैं। जब हम इसका पठन-पाठन करते हैं, ईश्वर उन्हें दिव्य “संगीत” स्वरूप संतों के समुदाय में सुनते हैं। येसु, जैसे की हम इब्रानियों के नाम पत्र में पढ़ते हैं,“हे ईश्वर, देख मैं तेरी इच्छा पूरी करने आया हूँ।” वहीं संत लूकस के सुसमाचार के अनुसार हमें उन्हें यह घोषित करते हुए इस धरती से विदा होता पाते हैं,“हे पिता, मैं अपनी आत्मा तेरे हाथों में सौंप देता हूँ।

नये विधान में स्तोत्र का अनुसरण कलीसिसा के आचार्य और पूरी कलीसिया करती हैं जो उन्हें यूख्रारीस्त और दैनिक प्रार्थना में एक निश्चित स्थान प्रदान करती है। “सभी पवित्र ग्रंथ ईश्वर की अच्छाई को उजागर करते हैं,” संत आब्रोस लिखते हैं, “लेकिन इसमें विशेष रूप से स्तोत्र हमारे लिए एक मधुर पुस्तिका है।”

संत पापाः स्तोत्र सर्वकालीन प्रार्थना

स्तोत्र के लेखक बनें

लेकिन हम अपने अतीत की विरासत के अनुरूप जीवन नहीं जी सकते हैं, हमें स्तोत्र को अपनी प्रार्थना का जरूरी अंग बनाने की आवश्यकता है। ऐसा लिखा गया है, कि एक निश्चित अर्थ में हम स्वयं स्तोत्र के “लेखक” होने के लिए बुलाये गये हैं, जिन्हें हम अपना बनाते हुए उनके द्वारा प्रार्थना कर सकें। यदि वे स्तोत्र या पद मात्रा हैं जो हमारे हृदय की बातों को घोषित करते हैं, तो यह उचित है कि हम उन्हें दुहराते हुए दिन में प्रार्थना करें। स्तोत्र “सर्वकालीन प्रार्थना” है, इसके लिए किसी विशेष मनोस्थिति या सर्वोत्म शब्दों की जरुरत नहीं होती है। अन्य दूसरी प्रार्थनाओं की तरह ही स्तोत्र अपनी प्रभावकारिता को बारंबार दुहराने से नहीं खोती है बल्कि इसके विपरीत इसमें बढ़ोतरी होती है। क्योंॽ क्योंकि वे ईश्वर की आत्मा से प्रेरित होते हैं और उनमें ईश्वर की “सांसें” होती हैं जिसमें हर समय विश्वास के भाव व्यक्त होते हैं। संत पापा कहा ने पूछा, “क्या आप कभी स्तोत्र से प्रार्थना करते हैं।” उदाहरण के लिए जब आप उदास हैं तो आप स्तोत्र 50 पढ़ सकते हैं। बहुत से स्तोत्र हैं जो हमें जीवन में आगे बढ़ने को मदद करते हैं। आप इसका अभ्यास करें और आप को अंतत खुशी की अनुभूति होगी। 

विभिन्न स्थितियों के लिए स्तोत्र

संत पापा ने कहा कि यदि हम अपने में दुःख या ग्लानि से दबे हैं क्योंकि हम पापी हैं,  तो हम दाऊद की प्रार्थना को दुहरा सकते हैं, “अपनी करूणा में, मुझ पर दया कर, हे ईश्वऱ”। यदि हम ईश्वर से संग अपने व्यक्तिगत संबंध की घनिष्टता को व्यक्त करने की चाह रखते हैं तो हम कह सकते हैं, “हे ईश्वर, तू मेरा ईश्वर है, मैं सुबह से लेकर तुझे खोजता हूँ, मेरी आत्मा तेरी प्यासी है, जल के लिए सूखी संतप्त भूमि की तरह मैं तेरे दर्शनों के लिए तरसता हूँ।” रविवारीय धर्मविधि और महोत्सवों में हम इन स्तोत्रों को यूं ही दुहराये जाते हुए नहीं सुनते हैं। यदि आप भय से ग्रस्ति हैं तो ये आश्चर्यजनक शब्द हमारी सहायता करते हैं, “प्रभु मेरा चरवाहा है, अंधेरी घाटी से होकर मुझे क्यों न गुजरना पड़े, मुझे किसी बात का भय नहीं।”

स्तोत्र हमारी प्रार्थनाओं को केवल निवेदन के रुप में सीमित नहीं करते जहाँ हम मुझे दे... हमें दे... की घोषणा करते हों। हम हे पिता हमारे प्रार्थना से सीखते हैं जहाँ रोटी मांगने के पूर्व हम उनके नाम की महिमा करते हैं, “तेरा नाम पवित्र किया जाये, तेरा राज्य आवे, तेरी इच्छा पूरी हो.. स्तोत्र हमारी सहायता करते हैं जहाँ हम अपने को स्वार्थ से परे पाते हुए- प्रशंसा की प्रार्थना, महिमागान, कृतज्ञता की प्रार्थना करते हैं जो हमें सृष्टि का अंग होने में मदद करते हैं।

प्रिय भाइयो एवं बहनो, पवित्र आत्मा जिन्होंने अपनी वधू कलीसिया को प्रार्थना करने हेतु शब्द दिये जिससे वह दिव्य वर से विनय करे, वे हमें इसे कलीसिया में ध्वनित होने में मदद करें, जो जयंती वर्ष की तैयारी हेतु हमारे लिए प्रार्थना का एक सुगम संगीत बनेगा।  

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19 जून 2024, 11:54

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