ITALY-VATICAN-POPE-MASS ITALY-VATICAN-POPE-MASS  (AFP or licensor) संपादकीय

रोम के धर्माध्यक्ष की प्रधानता पर पुनर्विचार

रोम के धर्माध्यक्षः संत पापा की भूमिका, सिनोडलिटी और अन्य दूसरी कलीसियाओं पर एक चिंतन।

अन्द्रेया तोरनेल्ली

यह एक साझा यात्रा, सदियों की एकता के अलावे धार्मिक मतभेदों राजनीति द्वारा निर्धारित फूट, आपसी बहिष्कार, विभाजन और संघर्षों से निर्मित एक कहानी है। करीबन दो सहस्राब्दियों ख्रीस्तीय इतिहास के बाद, विभिन्न विश्वासों, पुराने और नए संकटों के बावजूद,  अंतरधार्मिक वार्ता यात्रा अपने में एक महत्वपूर्ण कदम उठा रही है। हाल ही में प्रकाशित दस्तावेज़ “रोम के धर्माध्यक्ष” इस बात की पुष्टि करता है कि कैसे संत पापा जोन पॉल द्वितीय द्वारा 1995 में अभिव्यक्त संत पेत्रुस की प्रधानता जो अपनी उपलब्धता और खुलेपन में विभिन्न उत्तरादायित्वों कार्यों की चर्चा करता है, एक मृत पत्र नहीं रह गया है। संवाद अपने में जारी है और कलीसियाई धर्मसभा के मार्ग जिसका अनुभव कलीसिया हर स्तर पर करती है,  इसका एक अहम हिस्सा है। वास्ताव में, काथलिक कलीसिया सिनोडलिटी की महत्वपूर्णता का अनुभव करते और गहराई से इस पर पुनर्विचार करते हुए, इसके ठोस रुप में कलीसियाई एकता स्वरुप जीते हैं- जो एक जागरूकता स्वरुप पहले से ही मौजूद है और अन्य ख्रीस्तीय परंपराओं द्वारा अनुभव की गई है।

इसके साथ ही, रोम के धर्माध्यक्ष की भूमिका और उनकी प्रधानता को अन्य ख्रीस्तीयों या विश्वव्यापी अंतरधार्मिक एकतावर्धक यात्रा एक बाधा या समस्या के रूप में नहीं देखी है: बल्कि, धर्मसभा हमेशा एक “प्रोटोस” पूर्वाधिकारी की उपस्थिति पर विचार करती है।

निसंदेह, दूसरी कलीसियाओं के लिए, संत पेत्रुस की प्रधानता अपने में अस्वीकार्य है जैसे कि यह संत पापाओं द्वारा द्वितीय सदी में उपयोग किया गया था और विशेष कर जैसे कि इसे प्रथम वाटिकन धर्मसभा में अनुमोदित किया गया था। यद्यपि इस संदर्भ में भी हम ख्रीस्तीय एकता हेतु प्रस्तावित परमधर्माध्यीय दस्तावेज में हम महत्वपूर्ण कदमों को पाते हैं- विश्वव्यापी अंतरधार्मिक एकतावर्धक वार्ता ने इस संबंध में लातीनी कलीसिया और रोम की कलीसिया, “प्रथम धर्मपीठ” पर अधिकार का प्रयोग करने वाले संत पापा की प्रधानता के बीच एक विशिष्ट सुझाव दिया है। यह “डाइकोनिया” की प्रधानता जो एक “सेवा” है को व्यक्त करती है न की शक्ति को। यह एकता की प्रधानता जिसे हम सिनोडालिटी के संबंध में पाते जो अन्य सभी धर्माध्यक्षों के संग सर्वसम्मति की चाह को व्यक्त करती है। 

यह इसीलिए या कम से कम ऐसा हो सकता है, कि संत पेत्रुस की प्रधानता के एक रूप अन्य कलीसियाओं को स्वीकार्य हो। यह वही है जिसे कुछ साल पहले कॉन्स्ताटिनोपल के विश्वव्यापी प्रधिधर्माध्यक्ष बार्थोलोम्यू ने प्रधानता स्वरूप वर्णित किया था, “विनम्रता और करुणा में प्रयोग की जाने वाली प्रधानता, न कि धर्माध्यक्षों के धर्माध्यक्षीय धर्मसम्मेलन में अन्य सदस्यों पर थोपी जाने वाली एक तरह की प्रधानता”, जो  “सांसारिक शक्ति के संदर्भ में नहीं, बल्कि प्रभु के क्रूस पर आर्पित प्रेम का एक सच्चा प्रतिबिंब है”: यह एक ठोस सपने को साकार करने की दिशा में एक कदम है जिसके बारे में लगभग करीब तीस साल पहले संत पापा जोन पॉल द्वितीय ने अपने विचार व्यक्त किया था। 

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13 June 2024, 17:19