यांगून के महाधर्माध्यक्ष कार्डिनल चार्ल्स माउंग बो यांगून के महाधर्माध्यक्ष कार्डिनल चार्ल्स माउंग बो  

कार्डिनल बो: संत पापा की यात्रा एशियाई लोगों में विश्वास का संचार करेगी

संत पापा फ्राँसिस की आगामी एशिया प्रेरित यात्रा से पहले एक विस्तृत साक्षात्कार में, एशियाई धर्माध्यक्षीय सम्मेलनों के संघ के अध्यक्ष कार्डिनल चार्ल्स माउंग बो ने वाटिकन मीडिया को आगामी यात्रा के महत्व के बारे में जानकारी दी।

वाटिकन न्यूज

यांगून, शनिवार 17 अगस्त 2024 : "यह देखना काफी है कि रविवारीय मिस्सा के दौरान हमारे कई गिरजाघर भरे रहते हैं। आप देखेंगे कि कई एशियाई लोग जो दूसरे देशों में प्रवास करते हैं, वे अपना विश्वास जीवित रखते हैं।"

वाटिकन मीडिया के साथ एक विस्तृत साक्षात्कार में, कार्डिनल चार्ल्स माउंग बो, यांगून, म्यांमार के महाधर्माध्यक्ष और एशियाई धर्माध्यक्षीय सम्मेलनों के संघ (एफएबीसी) के अध्यक्ष ने एशिया और ओशिनिया का वर्णन किया, जहाँ संत पापा फ्राँसिस 2 से 13 सितंबर तक अपनी प्रेरितिक यात्रा के दौरान इंडोनेशिया,  पापुआ न्यू गिनी, तिमोर-लेस्ते और सिंगापुर जाएँगे, जो उनकी 45वीं विदेश प्रेरितिक यात्रा होगी और एशिया की उनकी कई यात्राओं में से एक होगी।

साक्षात्कार में कार्डिनल बो ने जीवंत और विविधतापूर्ण कलीसिया के बारे में विस्तार से बताया कि राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, पर्यावरणीय और सांस्कृतिक चुनौतियों के बावजूद, तथा इस तथ्य के बावजूद कि "एशिया के कुछ भागों में ख्रीस्तीय धर्म को जीना हमेशा आसान नहीं होता है," "यह न केवल जीवंत बना हुआ है, बल्कि विभिन्न तरीकों से गतिशील भी है।"

प्रश्नः संत पापा फ्राँसिस अपनी पिछली विदेश यात्रा, जो सितंबर 2023 में हुई थी, के बाद एशिया और ओशिनिया की अपनी 45वीं प्रेरितिक यात्रा कर रहे हैं। आप इस यात्रा के महत्व का मूल्यांकन कैसे करते हैं?

कार्डिनल चार्ल्सः एशिया के बहुत से लोग संत पापा के बारे में सिर्फ़ सुनते हैं और आज पहले से ज़्यादा, वे डिजिटल मीडिया की मदद से उन्हें देख पाते हैं। हालाँकि, आम लोगों के लिए संत पापा कुछ हद तक "दूर" हैं।

संत पापा का एशिया आना न सिर्फ़ उत्साह पैदा करता है, बल्कि विश्वास के लिए एक नया जोश भी पैदा करता है और एशियाई लोगों को विश्वास की एक नई भावना देता है, क्योंकि यह दर्शाता है कि एशियाई लोग संत पापा के दिलो-दिमाग से दूर नहीं हैं।

इससे ज़्यादा उत्साहजनक बात यह है कि संत पापा फ्राँसिस ने एशिया की अपनी यात्रा में पापुआ न्यू गिनी और तिमोर लेस्ते जैसे दुनिया के कम जाने-पहचाने छोटे देशों का दौरा करने का विकल्प चुना है, जिससे दुनिया को इन देशों की कलीसियाओं को जानने का मौक़ा मिलता है। लोगों में न सिर्फ़ इसलिए उत्साह है क्योंकि वे संत पापा को व्यक्तिगत रूप से देख पायेंगे, बल्कि मुझे यकीन है कि स्थानीय कलीसियाओं के जीवन और विश्वास में एक नयापन आएगा।

प्रश्नः एफएबीसी के अध्यक्ष के रुप में एशियाई देशों की विविधता इस यात्रा को किस तरह विशेष रूप से महत्वपूर्ण बनाती है? उदाहरण के लिए, सिंगापुर की समृद्धि, पापुआ न्यू गिनी की गरीबी, मुस्लिम बहुल इंडोनेशिया और पूर्व पुर्तगाली उपनिवेश तिमोर-लेस्ते के कैथोलिक बहुल बहुमत के बारे में सोचें। यहाँ क्या ध्यान देने योग्य है?

कार्डिनल चार्ल्सः एशिया की विशिष्टता संस्कृतियों, धर्मों और परंपराओं की विविधता है। एशिया के अधिकांश देशों में ख्रीस्तीय अल्पसंख्यक हैं, फिलीपींस और तिमोर-लेस्ते को छोड़कर, हम बढ़ते हुए विश्वास को देखते हैं।

एशियाई कलीसिया छोटी होते हुए भी जीवंत और क्रियाशील हैं। संत पापा एशिया में कलीसियाओं की गतिशील विविधता और इसके लोगों की आस्था को प्रत्यक्ष रुप से देखेंगे। चाहे अमीर हो या गरीब, बहुसंख्यक हो या अल्पसंख्यक, लोगों की आस्था विभिन्न देशों में चुनौतियों की विविधता के बावजूद दृढ़ है।

प्रश्न: विश्वव्यापी कलीसिया एशिया की कलीसिया से क्या सीख सकती है?

कार्डिनल चार्ल्सः तीन शब्द दिमाग में आते हैं: शांति और सद्भाव, और वह जो शांति और सद्भाव को वास्तविकता बनाता है, वह है संवाद। एशिया में कलीसिया के सामने आने वाली कई चुनौतियों के बावजूद, हमारा लक्ष्य शांति और सद्भाव की तलाश करना है। हर कोई शांति और सद्भाव चाहता है और यही कारण है कि, जब राजनीतिक उत्पीड़न, गरीबी, जलवायु विनाश और कई अन्य का सामना करना पड़ता है, तो कलीसिया को उन लोगों के जीवन में शांति और सद्भाव बहाल करने के लिए दूसरों के साथ साझेदारी करनी पड़ती है जो सीधे प्रभावित होते हैं।

एशिया में हम सहयोग करना, संवाद करना और एक-दूसरे का सम्मान करना सीखते हैं। लेकिन सबसे बढ़कर, हमने कठिनाइयों के बावजूद भाई-बहनों के रूप में सह-अस्तित्व बनाना सीखा है। मेरा मानना ​​है कि संवाद के माध्यम से शांति और सद्भाव के मार्ग वही हैं जो एशिया विश्वव्यापी कलीसिया को दे सकती है।

प्रश्न: एशिया में कलीसिया की गवाही के बारे में आप हमें क्या बता सकते हैं?

कार्डिनल चार्ल्सः एशिया में कलीसिया जीवंत और क्रियाशील हैं। यह देखना काफी है कि रविवारीय मिस्सा के दौरान हमारे कई गिरजाघऱ भरे रहते हैं। आप देखेंगे कि दूसरे देशों में प्रवास करने वाले कई एशियाई लोग अपने विश्वास को जीवित रखते हैं। वे इन प्राचीन कलीसियाओं के लिए हमारे मिशनरी हैं। वे अपने इन "नए घरों" में नई उम्मीद और उत्साह लेकर आते हैं।

हम एशिया भर में कई सताए गए कलीसियाओं के भी गवाह हैं। एशिया के कुछ हिस्सों में ख्रीस्तीय धर्म को जीना हमेशा आसान नहीं होता। इन चुनौतियों के बावजूद, जो राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक हैं, उनका विश्वास न केवल जीवित है बल्कि विभिन्न तरीकों से गतिशील है।

2027 में संत पापा की म्यांमार की प्रेरितिक यात्रा
2027 में संत पापा की म्यांमार की प्रेरितिक यात्रा

प्रश्न: संत पापा बांग्लादेश जाने से पहले म्यांमार में आपसे मिलने आए थे, और इसी तरह, हम महामारी से पहले जापान और थाईलैंड की यात्रा के लिए एशिया में वापस आने पर उनकी भावना को याद कर सकते हैं। एशिया की यह यात्रा किस तरह से नई यादें बनाने जा रही है?

कार्डिनल चार्ल्सः संत पापा की हर यात्रा अनोखी और ताज़ा दोनों होती है। मुझे यकीन है कि संत पापा के पास इस यात्रा में एशिया के लिए एक संदेश है, जैसा कि उन्होंने पिछली यात्राओं में किया था और मुझे यकीन है कि यादें स्वाभाविक रूप से और उचित समय पर उनके प्रभावों का अनुभव करने के लिए आएंगी।

हालांकि, मेरी अपनी आशा है कि संत पापा की यात्रा एशियाई ख्रीस्तियों के जीवन और विश्वास में नवीनीकरण लाएगी ताकि वे हमारे संपन्न कलीसिया के जीवित गवाह बन सकें।

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17 August 2024, 15:40