इंडोनेशिया, पूर्वी तिमोर और सिंगापुर के येसु संघियों से पोप की बातचीत का विवरण
फादर अरुपे की भावना से शरणार्थियों के साथ काम करना। तीनों मुलाकातों में, पोप फ्राँसिस ने कई मौकों पर सोसाइटी ऑफ जीसस के पूर्व सुपीरियर जनरल फादर पेद्रो अरूपे के व्यक्तित्व और उनके आध्यात्मिक विरासत को याद किया, जिनकी मृत्यु 1991 में हुई।
संत पापा ने कहा, “फादर अरुपे चाहते थे कि जेसुइट्स शरणार्थियों के साथ काम करें। जो एक कठिन क्षेत्र है और उन्होंने सबसे पहले उनसे एक चीज़ मांगकर ऐसा किया: प्रार्थना, अधिक प्रार्थना करने की", क्योंकि "केवल प्रार्थना में ही हमें सामाजिक अन्याय से निपटने की शक्ति और प्रेरणा मिलती है।" और, उन्होंने आगे कहा कि "जिस तरह से फादर अरुपे ने लैटिन अमेरिकी येसु संघियों से सामाजिक न्याय के साथ मिश्रित विचारधारा के खतरे के बारे में बात की, वह महत्वपूर्ण है।" संत पापा के लिए, अरुपे "ईश्वर के व्यक्ति थे। मैं यह सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा हूँ कि वे वेदी तक पहुंचें।"
"राजनीतिक प्रतीकों का बचाव किया जाना चाहिए।" म्यांमार में "मुश्किल" स्थिति के बारे में येसु संघियों के साथ बात करते हुए, पोप फ्राँसिस ने कहा, "म्यांमार में आज हम चुप नहीं रह सकते, जरूर कुछ किया जाना चाहिए!"
और उन्होंने आगे कहा, “आप जानते हैं कि रोहिंग्या मुझे प्रिय हैं। मैंने श्रीमती आंग सान सू की से बात की, जो प्रधानमंत्री थीं और जो अब जेल में हैं।" संत पापा ने बताया कि उन्होंने "श्रीमती आंग सान सू की की रिहाई और उनके बेटे का रोम में स्वागत किये जाने की मांग की": "मैंने वाटिकन को हमारे क्षेत्र में उनका स्वागत करने की पेशकश की। इस समय महिला एक प्रतीक हैं और राजनीतिक प्रतीकों का बचाव किया जाना चाहिए।" संत पापा ने तब याद करते हुए कहा, "देश का भविष्य सभी की गरिमा और अधिकारों के सम्मान पर स्थापित शांति होनी चाहिए, एक लोकतांत्रिक व्यवस्था के सम्मान पर जो हर किसी को आमहित में अपना योगदान देने की अनुमति देती है।"
सताए गए ख्रीस्तीय : "विवेक और साहस के साथ गवाही देना।" एक भाई को जवाब देते हुए जिसने उन स्थितियों के बारे में सलाह मांगी थी जिनमें ख्रीस्तीयों को सताया जाता है, फ्राँसिस ने कहा, मुझे लगता है कि ख्रीस्तीय का मार्ग हमेशा "शहादत" का मार्ग है, यानी साक्ष्य का।
हमें विवेक और साहस के साथ गवाही देने की आवश्यकता है: वे दो तत्व हैं जो एक साथ चलते हैं, और यह प्रत्येक व्यक्ति पर निर्भर है कि वह अपना रास्ता स्वयं खोजे।" और उन्होंने अंत में कहा, "विवेक हमेशा जोखिम उठाता जब वह साहसी होता है।"
संस्कृति में सुसमाचार का प्रचार और सुसमाचार को संस्कृति के अनुरूप बनाना। पोप फ्राँसिस के लिए, फादर अरुपे ने "विश्वास को बढ़ावा देने और संस्कृति के प्रचार-प्रसार के लिए काम किया।" दो पहलू जो "धर्मसंघ के मौलिक मिशन" का प्रतिनिधित्व करते हैं, संत पापा के लिए, "विश्वास को संस्कृति से समन्यव करना चाहिए।" विश्वास जो संस्कृति का विकास नहीं करता वह धर्मान्तरण करनेवाला विश्वास है।"
सामाजिक न्याय, सुसमाचार का एक अनिवार्य हिस्सा है। पूर्वी तिमोर के येसु संघियों के सवालों का जवाब देते हुए, पोप फ्रांसिस ने सामाजिक न्याय को "सुसमाचार का आवश्यक और अभिन्न अंग" बताया। और उन्होंने निर्दिष्ट किया कि सामाजिक न्याय को तीन मानव भाषाओं को ध्यान में रखना चाहिए: मन की भाषा, हृदय की भाषा और हाथों की भाषा।
वास्तविकता से विमुख बुद्धिजीवी होना सामाजिक न्याय के लिए काम करने हेतु उपयोगी नहीं है; बुद्धि के बिना हृदय भी उपयोगी नहीं है; और बिना हृदय और बिना बुद्धि के हाथ की भाषा भी उपयोगी नहीं होती।"
पोप फ्राँसिस के लिए, सामाजिक न्याय की "इच्छा" ने पूरे इतिहास में "फल पैदा किया है": "जब संत इग्नासियुस हमें रचनात्मक होने के लिए कहते हैं, तो वे हमसे: स्थान, समय और लोगों को देखने के लिए कहते हैं। नियम, संविधान महत्वपूर्ण हैं, लेकिन हमेशा स्थान, समय और लोगों को ध्यान में रखते हुए। यह रचनात्मकता और सामाजिक न्याय की चुनौती है। सामाजिक न्याय की स्थापना इसी तरह होनी चाहिए, समाजवादी सिद्धांतों से नहीं। सुसमाचार की अपनी आवाज़ है।" अंत में, धर्मसंघ का जिक्र करते हुए, संत पापा कहते हैं: “मैं इसके एकजुट और साहसी होने का सपना देखता हूँ। मैं चाहूँगा कि सुरक्षित बने रहने के बजाय साहस करने की गलती करें। लेकिन कोई यह कह सकता है: "अगर हम लड़ाई वाले स्थानों पर हैं, सीमाओं पर हैं, तो फिसलने का खतरा हमेशा बना रहता है..."। और मैं उत्तर देता हूँ: "तो फिसलने दीजिए!"। जो लोग हमेशा गलतियाँ करने से डरते हैं वे जीवन में कुछ नहीं करते।”
Thank you for reading our article. You can keep up-to-date by subscribing to our daily newsletter. Just click here