इंडोनेशिया में ख्रीस्तयाग में पोप : भ्रातृत्व का सपना देखने का साहस करें
वाटिकन न्यूज
जकार्ता, बृहस्पतिवार, 5 सितम्बर 2024 (रेई) : लाल गेट से गेलोरा बंग कर्णो स्टेडियम में प्रवेश करने से पहले, पोप ने स्टेडियम से सटे स्टेडियम मड्या ए में उपस्थित विश्वासियों के बीच खुली कार से भ्रमण कर उनका अभिवादन किया। लातीनी और इंडोनेशियाई भाषा में अर्पित ख्रीस्तयाग में करीब 1,00,000 विश्वासियों ने भाग लिया।
संत पापा ने उपदेश में कहा, “येसु के साथ मुलाकात हमें दो आधारभूत मनोभावों को जीने का निमंत्रण देता है, जो हमें उनका शिष्य बनाता : ईश वचन को सुनना एवं ईश वचन को जीना।”
पहले, सुनना, क्योंकि सब कुछ सुनने से आता है, स्वयं को उसके प्रति खोलने से, उसकी मित्रता के अनमोल उपहार का स्वागत करने से। उसके बाद ईश वचन को जीना जिसको हमने ग्रहण किया है, ताकि हमारा सुनना व्यर्थ न हो एवं हम खुद को धोखा न दें। वास्तव में, जो लोग केवल अपने कानों से सुनने का जोखिम उठाते हैं, वे वचन के बीज को अपने हृदय में उतरने नहीं देते और इस प्रकार अपने सोचने, महसूस करने और कार्य करने के तरीके को बदलने नहीं देते। जबकि सुनने के माध्यम से, दिया गया और प्राप्त किया गया वचन, हमारे अंदर जीवन लाना, हमें बदलना और हमारे जीवन का भाग बनना चाहता है।
वचन को सुनना और जीना
सुसमाचार पाठ पर चिंतन करते हुए संत पापा ने कहा, “सुसमाचार पाठ जिसकी घोषणा हमने अभी-अभी की, हमें उन दो महत्वपूर्ण मनोभावों - वचन को सुनने और वचन को जीने- पर चिंतन करने में मदद करता है।”
सुसमाचार लेखक बताते हैं कि बहुत से लोग येसु के पास आए और “ईश्वर का वचन सुनने के लिए भीड़ उनपर गिरी पड़ती थी।” (लूक.5:1) वे ईश्वर के वचन को खोज रहे थे, उसके लिए भूखे एवं प्यासे थे और उन्होंने इसे येसु के शब्दों में गूँजते हुए सुना।
संत पापा ने कहा, “यह दृश्य, सुसमाचार में कई बार दोहराया गया है, जो हमें बताता है कि मानव हृदय हमेशा एक सत्य की खोज में रहता है जो उसकी खुशी की चाह को पूरा कर सके। इसलिए हम केवल मानवीय शब्दों, इस दुनिया की सोच और सांसारिक निर्णयों से संतुष्ट नहीं हो सकते।”
हमें हमेशा ऊपर से एक प्रकाश की आवश्यकता है जो हमारे कदमों को आलोकित करे; जीवन जल जो हमारी निर्जन आत्मा की प्यास बुझाये; सांत्वना जो निराश नहीं करती क्योंकि यह स्वर्ग से आती है न कि इस दुनिया की क्षणभंगुर चीज़ों से। मानवीय शब्दों की उलझन और व्यर्थता के बीच, ईश्वर के वचन की आवश्यकता है, जो हमारी यात्रा के लिए एकमात्र सच्चा दिशासूचक है, जो अकेले ही हमें इतनी चोट और उलझन के बीच जीवन के सच्चे अर्थ की ओर ले जाने में सक्षम है।
शिष्य का पहला काम
संत पापा कहा, “हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि शिष्य का पहला काम बाहरी तौर पर पूर्ण धार्मिकता का वस्त्र पहनना, असाधारण काम करना या भव्य उपक्रमों में शामिल होना नहीं है। इसके बजाय, पहला कदम यह जानना है कि उद्धार करनेवाले एकमात्र शब्द, येसु के वचन को कैसे सुनना है। हम इसे सुसमाचार के दृश्य में देख सकते हैं, जब गुरु किनारे से खुद को थोड़ा दूर करने के लिए पतरस की नाव में चढ़ते हैं और इस तरह लोगों को बेहतर ढंग से उपदेश देते हैं।” (लूक. 5:3)
इस प्रकार, हमारे विश्वास के जीवन की शुरूआत तब होती है जब हम अपने जीवन रूपी नाव पर येसु का स्वागत करते हैं, उनके लिए जगह बनाते, उनका वचन सुनते और खुद को उनसे प्रश्न पूछे जाने, चुनौती दिये जाने और बदलने की अनुमति देते हैं।
साथ ही, प्रभु का वचन हमें उसे ठोस रूप से आत्मसात करने के लिए कहता है, ताकि हम वचन के अनुसार जीवन जी सकें। दरअसल, नाव से भीड़ को उपदेश देने के बाद, येसु पेत्रुस की ओर मुड़ते हैं और उसे उस वचन पर दांव लगाने का जोखिम उठाने की चुनौती देते हैं, "गहरे पानी में जाओ और मछलियाँ पकड़ने के लिए अपने जाल डालो।" (पद 4)
खुद को बदलने देना
प्रभु का वचन एक अमूर्त विचार बनकर नहीं रह सकता या केवल एक क्षणिक भावना को जगा नहीं सकता। यह हमें अपनी दृष्टिकोण बदलने और अपने हृदय को ख्रीस्त के हृदय की छवि में बदलने के लिए कहता है। यह हमें सुसमाचार के जाल को साहसपूर्वक संसार के समुद्र में फेंकने के लिए कहता है, उस प्रेम को जीने का जोखिम उठाते हुए जिसे उन्होंने पहले जिया और हमें भी जीना सिखाया। प्रभु, अपने वचन की प्रज्वलित शक्ति के साथ, हमें समुद्र में जाने, बुरी आदतों, भय और औसत के स्थिर किनारों से दूर जाकर, एक नया जीवन जीने का साहस करने के लिए कहते हैं।
बेशक, इस आह्वान को नकारने के लिए हमेशा बाधाएँ और बहाने होते हैं। आइए, हम पतरस के व्यवहार पर फिर से नजर डालें। वह कुछ भी न पकड़ पाने की एक कठिन रात के बाद किनारे पर आया था। वह थका हुआ और निराश था, और फिर भी, उस खालीपन से स्तब्ध रहने या अपनी खुद की विफलता से बाधित होने के बजाय, वह कहता है: "गुरूवर, रातभर मेहनत करने पर भी हम कुछ नहीं पकड़ सके, परन्तु आपके कहने पर, मैं जाल डालूँगा।"(पद 5) तभी, कुछ अप्रत्याशित घटना घटती है, नाव मछलियों से भर जाना और डूबने को हो जाता है। संत पापा ने कहा कि यही चमत्कार है। हमारे दैनिक जीवन में, हम भी अनेक जिम्मेदारियों को पूरा करते हुए, जैसे अधिक न्यायपूर्ण समाज के निर्माण तथा शांति और संवाद के मार्ग पर आगे बढ़ने के आह्वान के साथ, जो इंडोनेशिया में लंबे समय से चल रहा है, हम कभी-कभी अपर्याप्त महसूस करते हैं।
प्रभु पर भरोसा रखकर कोशिश जारी रखना
हम कभी-कभी अपनी प्रतिबद्धता और समर्पण का बोझ महसूस करते हैं जो हमेशा फल नहीं देता, या हमारी गलतियाँ जो हमारी यात्रा में बाधा डालती हैं। हमसे भी कहा जाता है कि हम अपनी असफलताओं के कैदी न बने रहें या अपनी आँखें केवल अपने खाली जालों पर ही टिकाए रखें, बल्कि, पतरस की तरह ही विनम्रता और विश्वास के साथ, येसु की ओर देखें और उन पर भरोसा करें। यहाँ तक कि जब हम असफलता की रात और निराशा के दौर से गुज़र रहे हों, जब हमने कुछ भी हासिल न किया हो, तब भी हम हमेशा समुद्र में जाकर अपने जाल फिर से डालने का जोखिम उठा सकते हैं।
कलकत्ता की संत तेरेसा, जिनकी स्मृति में आज हम जश्न मना रहे हैं और जिन्होंने अथक रूप से सबसे गरीब लोगों की देखभाल की और शांति और संवाद को बढ़ावा दिया, कहा करती थीं, "जब हमारे पास देने के लिए कुछ न हो, तो हम उस कुछ नहीं को ही दें। और याद रखें, भले ही आप कुछ भी न काटें, लेकिन बोने से कभी न थकें।"
संत पापा ने कहा, “भाइयो और बहनो, मैं आपसे, इस देश से, इस अद्भुत और विविधतापूर्ण द्वीपसमूह से यह भी कहना चाहूँगा कि आप अपने जहाज़ चलाने और जाल बिछाने से न थकें, सपने देखने और शांति की सभ्यता को फिर से बनाने से न थकें! हमेशा भाईचारे का सपना देखने की हिम्मत रखें! प्रभु के वचन से प्रेरित होकर, मैं आपको प्यार के बीज बोने, आत्मविश्वास के साथ संवाद के मार्ग पर चलने, अपनी खास मुस्कान के साथ अपनी अच्छाई और दयालुता दिखाने और एकता एवं शांति के निर्माता बनने के लिए प्रोत्साहित करता हूँ। इस तरह, आप अपने आस-पास आशा की खुशबू फैलाएँगे।
देश के धर्माध्यक्षों ने हाल ही में एक इच्छा व्यक्त की है जिसे मैं भी सभी इंडोनेशियाई लोगों तक पहुँचाना चाहूँगा: कलीसिया और समाज की भलाई के लिए एक साथ चलें! आशा के निर्माता बनें, सुसमाचार की आशा, जो निराश नहीं करती (रोमियों 5:5) बल्कि इसके बजाय हमारे लिए अनंत आनंद के द्वार खोलती है।
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