अधिकारियों से पोप : शांति के पुल बनाने के लिए यूरोप को बेल्जियम की जरूरत है
वाटिकन न्यूज
बेल्जियम, शुक्रवार, 27 सितंबर 2024 (रेई) : संत पापा फ्राँसिस ने शुक्रवार को बेल्जियम के लाईकेन दूर्ग में वहाँ के प्रधानमंत्री, सरकारी अधिकारियों, धर्माध्यक्षों एवं समाज के प्रतिनिधियों से मुलाकात की।
उन्हें सम्बोधित कर संत पापा ने कहा, “आपके सहर्ष स्वागत के लिए धन्यवाद। मैं बेल्जियम की यात्रा करके बहुत खुश हूँ। जब मैं इस देश के बारे में सोचता हूँ, तो मेरे दिमाग में एक छोटी सी लेकिन महान चीज़ याद आती है; पश्चिम में एक ऐसा देश जो केंद्र में भी है, जैसे कि बेल्जियम एक विशाल जीव का धड़कता हुआ दिल हो।”
वास्तव में, किसी देश की गुणवत्ता को उसके भौगोलिक आकार से आंकना एक गलती होगी। बेल्जियम भले ही एक बड़ा राष्ट्र न हो, फिर भी इसका विशेष इतिहास प्रभावशाली रहा है। द्वितीय विश्व युद्ध के तुरंत बाद, यूरोप के थके हुए और निराश लोगों ने शांति, सहयोग और एकीकरण की गहन प्रक्रिया की शुरुआत करते हुए, बेल्जियम को प्रमुख यूरोपीय संस्थानों की स्थापना के लिए एक प्राकृतिक स्थान के रूप में देखा।
ऐसा इसलिए था क्योंकि बेल्जियम जर्मन और लैटिन दुनिया के बीच की दरार रेखा पर था, जो फ्रांस और जर्मनी के बीच में था, ये दो ऐसे देश थे जिन्होंने संघर्ष के मूल में विरोधी राष्ट्रवादी आदर्शों को सबसे अधिक मूर्त रूप दिया था। हम बेल्जियम को, महाद्वीप और ब्रिटिश द्वीपों के बीच, जर्मन और फ्रेंच भाषी क्षेत्रों के बीच, दक्षिणी और उत्तरी यूरोप के बीच एक पुल के रूप में वर्णित कर सकते हैं। एक ऐसा पुल जो सद्भाव को फैलाने और विवादों को कम करने में सक्षम है। एक ऐसा पुल जहाँ सभी लोग, अपनी-अपनी भाषाओं, सोचने के तरीकों और विश्वासों के साथ एक-दूसरे से मिल सकते हैं और बातचीत, संवाद और साझा करने को आपसी बातचीत के साधन के रूप में चुन सकते हैं।
एक ऐसा पुल जहाँ सभी अपनी पहचान को प्रतिमा या अवरोध नहीं, बल्कि एक स्वागत योग्य स्थान बनाना सीख सकें, जहाँ से शुरुआत की जा सके और फिर वापस लौटा जा सके; मूल्यवान व्यक्तिगत आदान-प्रदान को बढ़ावा देने, साथ मिलकर नई सामाजिक स्थिरता की तलाश करने और नए समझौते बनाने का स्थान। एक ऐसा पुल जो व्यापार को बढ़ावा देता है, संस्कृतियों को जोड़ता है और संवाद में लाता है। युद्ध को अस्वीकार करने और शांति स्थापित करने के लिए यह एक अपरिहार्य पुल है।
कलीसिया की भूमिका
इस प्रकार यह देखना आसान है कि छोटा बेल्जियम वास्तव में कितना महान है! यूरोप को बेल्जियम की कितनी जरूरत है, ताकि उसे याद दिलाया जा सके कि उसके इतिहास में लोग और संस्कृतियाँ, गिरजाघर और विश्वविद्यालय, मानवीय प्रतिभा की उपलब्धियाँ, लेकिन कई युद्ध और वर्चस्व की इच्छाएँ भी शामिल हैं, जो कभी-कभी उपनिवेशवाद और शोषण का कारण बनती हैं।
यूरोप को अपने लोगों के बीच शांति और भाईचारे के मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए बेल्जियम की आवश्यकता है। वास्तव में, बेल्जियम सभी अन्य लोगों को याद दिलाता है कि जब राष्ट्र सीमाओं की अवहेलना करते हैं या सबसे विविध और अस्थिर बहाने बनाकर संधियों का उल्लंघन करते हैं, और जब वे वास्तविक कानून को “शक्ति ही अधिकार है” के सिद्धांत के साथ बदलने के लिए हथियारों का उपयोग करते हैं, तो वे पंडोरा बॉक्स खोलते हैं, हिंसक तूफान लाते हैं जो घर को तहस-नहस कर देता और उसे नष्ट करने की धमकी देता।
संत पापा ने कहा, “इसके अलावा, शांति और सद्भाव कभी भी एक बार में नहीं जीते जा सकते। इसके विपरीत, वे एक कर्तव्य और एक मिशन हैं जिन्हें निरंतर, बहुत सावधानी और धैर्य के साथ पूरा किया जाना चाहिए। क्योंकि जब मनुष्य अतीत की यादों और उसके मूल्यवान सबकों को भूल जाता है, तो वह एक बार फिर पीछे की ओर गिरने का ख़तरनाक जोखिम उठाता है, भले ही वह आगे बढ़ गया हो, पिछली पीढ़ियों द्वारा चुकाए गए दुःख और भयावह कीमत को भूल गया हो।
इस संबंध में, यूरोपीय महाद्वीप की स्मृति को जीवित रखने के लिए बेल्जियम पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। वास्तव में, यह एक समयबद्ध और निरंतर सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक आंदोलन विकसित करने के लिए एक अकाट्य तर्क प्रदान करता है, जो एक ही समय में साहसी और विवेकपूर्ण दोनों है। एक ऐसा आंदोलन जो भविष्य से युद्ध के विचार और अभ्यास को एक व्यवहार्य विकल्प के रूप में, इसके सभी विनाशकारी परिणामों के साथ बाहर करता है।
इसके अलावा, इतिहास अक्सर अनसुना किया जानेवाला शिक्षक है और बेल्जियम का इतिहास यूरोप को अपने मार्ग पर लौटने, अपनी वास्तविक पहचान को पुनः खोजने, तथा जनसांख्यिकीय शीत और युद्ध की पीड़ाओं पर काबू पाकर जीवन और आशा के लिए खुद को खोलकर भविष्य में एक बार फिर निवेश करने का आह्वान करता है!
पुनर्जीवित ख्रीस्त में अपने विश्वास की गवाही देते हुए, काथलिक कलीसिया एक ऐसी उपस्थिति बनना चाहती है जो व्यक्तियों, परिवारों, समाजों और राष्ट्रों को एक ऐसी आशा प्रदान करे जो प्राचीन और हमेशा नई हो। एक ऐसी उपस्थिति जो सभी को चुनौतियों और कठिनाइयों का सामना करने में मदद करे, तुच्छ उत्साह या निराशाजनक निराशावाद के साथ नहीं, बल्कि इस निश्चितता के साथ कि ईश्वर द्वारा प्यार की गई मानवता, शून्य में गिरने के लिए नहीं है, बल्कि हमेशा अच्छाई और शांति के लिए बुलाई जाती है।
येसु पर अपनी निगाहें टिकाए हुए, कलीसिया हमेशा खुद को एक शिष्य के रूप में पहचानती है जो अपने गुरु का अनुसरण भय और कांपते हुए करती है। जबकि जानती है कि वह पवित्र है, क्योंकि वह प्रभु द्वारा स्थापित की गई है, वह उसी समय अपने सदस्यों की कमज़ोरियों और कमियों का अनुभव करती है, जो कभी भी उन्हें सौंपे गए कार्य को पूरी तरह से पूरा नहीं कर पाते क्योंकि यह हमेशा उनकी क्षमता से परे होता है।
कलीसिया सुसमाचार का प्रचार करती है जो हमारे दिलों को खुशी से भर सकती है। परोपकार के कामों और अपने पड़ोसी के लिए प्यार के अनगिनत उदाहरणों के ज़रिए, कलीसिया उस प्यार के ठोस और भरोसेमंद संकेत पेश करना चाहती है जो उसे प्रेरित करता है। फिर भी, वह हमेशा एक खास संस्कृति में रहती है, एक निश्चित युग की सोच के भीतर जिसे वह कभी-कभी आकार देने में मदद करती है और कभी-कभी उसके अधीन होती है; जहाँ उसके सदस्य हमेशा सुसमाचार के संदेश को उसकी शुद्धता और पूर्णता नहीं समझ सकते और जी सकते हैं।
प्रकाश और छाया के इस चिरस्थायी सह-अस्तित्व में, कलीसिया अपने मिशन को पूरा करती है, अक्सर महान उदारता और हार्दिक समर्पण के उदाहरणों के साथ, लेकिन दुःख की बात है कि कभी-कभी दर्दनाक प्रतिगवाही के उभरने के साथ। मैं बाल दुर्व्यवहार के दुखद उदाहरणों का उल्लेख करता हूँ, जो एक ऐसा अभिशाप है जिसे कलीसिया दृढ़ता से और निर्णायक रूप से संबोधित कर रही है, पीड़ितों की बात सुनकर और उनका साथ देकर, और दुनिया भर में एक रोकथाम कार्यक्रम लागू करके।
इतिहास से सीख
इस संबंध में, मुझे "जबरन गोद लेने" की प्रथा के बारे में जानकर दुःख हुआ जो 1950 और 1970 के दशक के बीच बेल्जियम में भी हुई थी। उन मार्मिक कहानियों में, हम देखते हैं कि कैसे गलत काम और अपराध का कड़वा फल दुर्भाग्य से उस समय समाज के सभी हिस्सों में प्रचलित दृष्टिकोण के साथ मिला हुआ था। यह इतना अधिक था कि कई लोग अपने विवेक में इसे यह मानते थे कि वे बच्चे और माँ दोनों के लिए कुछ अच्छा कर रहे थे।
अक्सर, परिवार और समाज के अन्य लोगों, जिनमें कलीसिया के लोग भी शामिल हैं, ने सोचा कि उस समय अविवाहित माताओं पर दुर्भाग्य से पड़नेवाले कलंक से बचने के लिए, बच्चे और माँ दोनों के लिए बेहतर होगा कि बच्चे को गोद दे दिया जाए। ऐसे मामले भी थे जिनमें कुछ महिलाओं को अपने बच्चों को रखने या उन्हें गोद देने के बीच चयन करने का विकल्प नहीं दिया गया था।
संत पापा ने कहा, प्रेरित संत पेत्रुस के उत्तराधिकारी के रूप में, मैं प्रभु से प्रार्थना करता हूँ कि कलीसिया हमेशा अपने भीतर स्पष्टता लाने की शक्ति प्राप्त करे और कभी भी प्रमुख संस्कृति के अनुरूप कार्य न करे, तब भी जब वह संस्कृति, चालाकी से, सुसमाचार से प्राप्त मूल्यों का उपयोग करती है, तथा उनसे अप्रामाणिक निष्कर्ष निकालती है जो पीड़ा और बहिष्कार का कारण बनते हैं।
मैं प्रार्थना करता हूँ कि राष्ट्रों के नेता बेल्जियम और उसके इतिहास को देखकर उससे सीख सकें। इस तरह, वे अपने लोगों को अंतहीन दुर्भाग्य और दुःख से बचा सकते हैं। मैं सरकारी पदों पर आसीन लोगों के लिए भी प्रार्थना करता हूँ कि वे जान सकें कि शांति की जिम्मेदारी, जोखिम और सम्मान का निर्वाहण कैसे किया जाना है, युद्ध के खतरे, अपमान और मूर्खता से कैसे बचना है। मैं यह भी प्रार्थना करता हूँ कि वे विवेक, इतिहास और ईश्वर के निर्णय से डरें, ताकि उनके दिल और दिमाग हमेशा आम भलाई को प्राथमिकता देने के लिए परिवर्तित हो जाएँ।
संत पापा ने अधिकारियों को सम्बोधित कर कहा, आपके देश की मेरी यात्रा का आदर्शवाक्य, "रास्ते पर, आशा के साथ" है। तथ्य यह है कि आशा को बड़े अक्षर से लिखा गया है, जिससे मुझे यह सोचने पर मजबूर होना पड़ता है कि आशा केवल यात्रा के दौरान सामान के रुप में ले जानेवाली कोई चीज़ नहीं है।
इसके विपरीत, आशा ईश्वर प्रदत्त एक उपहार है जिसे हमें अपने दिलों में संजोकर रखना की जरुरत है। मैं आपको और बेल्जियम में रहनेवाले सभी लोगों को यही शुभकामना देना चाहता हूँ: आप हमेशा पवित्र आत्मा से इस वरदान की माँग करें और जीवन एवं इतिहास के मार्ग पर आशा के साथ चलने के लिए इसका स्वागत करें।
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