सन्त पापा फ्राँसिस इण्डोनेशिया में
वाटिकन सिटी
जकार्ता, मंगलवार, 3 सितम्बर 2024 (रेई, वाटिकन रेडियो): रोम से लगभग 13 घंटों की विमान यात्रा के उपरान्त मंगलवार को सन्त पापा फ्राँसिस इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता पहुँचे, जहाँ से वे अपनी 45 वीं एवं सर्वाधिक लम्बी प्रेरितिक यात्रा शुरु कर रहे हैं। 03 से 13 सितम्बर तक जारी रहनेवाली सन्त पापा की यह यात्रा उन्हें इन्डोनेशिया से, पापुआ न्यू गिनी, तिमोर लेस्ते और फिर सिंगापुर ले जायेगी।
एशिया और ओशिनिया में सन्त पापा फ्राँसिस की 45वीं प्रेरितिक यात्रा का शुभारम्भ करते हुए ईटा एयरवेज़ का विमान रोम से लगभग 13 घण्टों की यात्रा पूरी कर मंगलवार को जकार्ता में सोकार्नो-हट्टा अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर स्थानीय समयानुसार प्रातः लगभग 11 बजकर 20 मिनट पर इन्डोनेशिया पहुँचा। सोमवार दोपहर स्थानीय समयानुसार शाम 5:30 बजे सन्त पापा फ्राँसिस रोम के अन्तरराष्ट्रीय हवाईअड्डे फ्यूमीचीनो से रवाना हुए थे।
विमान में सवार होकर, सन्त पापा फ्राँसिस ने अपने साथ आए प्रेस और मीडिया कर्मियों का व्यक्तिगत रूप से अभिवादन किया।
जकार्ता पहुंचने पर हवाईअड्डे पर ही सन्त पापा फ्राँसिस का गर्मजोशी से स्वागत किया गया। मंगलवार का दिन सन्त पापा विश्राम कर व्यतीत करेंगे जबकि बुधवार को राजधानी जकार्ता में अपने विविध कार्यक्रमों से वे एशिया और ओसियाना की 12 दिनों वाली लम्बी यात्रा का शुभारम्भ करेंगे।
दक्षिण पूर्व एशिया की यह प्रेरितिक यात्रा एक ऐसी यात्रा है जिसका सन्त पापा फ्रांसिस कोविद महामारी आने से पहले से ही अनुमान लगा रहे थे।
जकार्ता में सन्त पापा तीन दिन रहेंगे और तदोपरान्त अपने परमाध्यक्षीय काल की सर्वाधिक लम्बी यात्रा को पूरा करते हुए पापुआ न्यू गिनी, तिमोर लेस्ते और सिंगापुर का रुख करेंगे। प्रत्येक देश में सन्त पापा फ्राँसिस का स्वागत वहाँ के वरिष्ट कलीसियाई और प्रशासनिक उच्चाधिकारियों द्वारा किया जायेगा।
इन्डोनेशिया
लगभग 17,000 द्वीप, कई जनजातियों, जातीय समूहों, भाषाओं और संस्कृतियों से समृद्ध इंडोनेशिया, विश्व का सर्वाधिक विशाल आबादी वाला मुस्लिम बहुल राष्ट्र है। सन्त पापा फ्राँसिस से पहले, काथलिक कलीसिया के दो अन्य शीर्ष यानि सन् 1970 में सन्त पापा पौल षष्टम तथा सन् 1989 में सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय ने इन्डोशिया की प्रेरितिक यात्राएँ की थीं।
इंडोनेशिया को व्यापक रूप से सहिष्णुता और सह-अस्तित्व के एक आदर्श देश रूप में देखा जाता है, अस्तु, ऐसा अनुमान है कि यहाँ सन्त पापा फ्राँसिस अपने विश्व पत्र फ्रातेल्ली तूती का सन्देश जारी रखते हुए मानव बंधुत्व और अंतरधार्मिक संवाद को बढ़ावा देना जारी रखेंगे।
भले ही इन्डोनेशिया में काथलिक धर्मानुयायी मुख्य रूप से मुस्लिम आबादी का लगभग 3 प्रतिशत हिस्सा हैं, तथापि देश की 28 करोड़ की आबादी में से काथलिकों की संख्या लगभग 80 लाख है। सन्त पापा फ्राँसिस जकार्ता में तीन दिन व्यतीत कर रहे हैं, जहां वे राष्ट्र के वरिष्ठ सरकारी, प्रशासनिक और नागर अधिकारियों तथा राजनयिक कोर के गणमान्य व्यक्तियों को सबोधित करेंगे, काथलिक धर्माध्यक्षों, पुरोहितों, धर्मसमाजियों एवं धर्मसंघियों से मुलाकात करेंगे, फिर जकार्ता स्थित इस्तिकलाल मस्जिद में एक अंतरधार्मिक समारोह का नेतृत्व करेंगे तथा राष्ट्र के काथलिक धर्मानुयायियों के लिये पवित्र ख्रीस्तयाग अर्पित करेंगे।
वाटिकन न्यूज़ के साथ एक साक्षात्कार में, जकार्ता के कार्डिनल इग्नेशियस सुहारियो हार्डजोआटमोडजो ने बताया कि काथलिक और मुस्लिम जैसे विभिन्न धर्मों के पुरुषों और महिलाओं के बीच देश में विवाह बहुत आम बात है, जैसा कि प्रायः अन्य मुस्लिम-बहुल देशों में नहीं होता है। उन्होंने यह भी बताया कि प्रायः पुरोहित ऐसे परिवारों से आते हैं जहाँ माता या पिता मुस्लिम या बौद्ध धर्मानुयायी होते हैं। इन सभी कारणों से, सन्त पापा फ्रांसिस की इन्डोनेशियाई यात्रा का आदर्श वाक्य 'विश्वास, बंधुत्व, करुणा' चुना गया है।
एशिया की एक झलक
एशियाई धर्माध्यक्षीय सम्मेलनों के संघ (एफएबीसी) के अध्यक्ष कार्डिनल चार्ल्स माउंग बो ने वाटिकन न्यूज को बताया कि एशिया में रहने वाले श्रद्धालुओं को सन्त पापा कई बार एक दूरस्थ, 'सामाजिक' उपस्थिति की तरह प्रतीत होते हैं, इसलिए सन्त पापा का एशिया आगमन बहुत मायने रखता है।
उन्होंने कहा कि एशियाई लोग राजनीतिक उत्पीड़न, ग़रीबी और जलवायु विनाश के विभिन्न स्तरों के साथ-साथ धार्मिक उत्पीड़न या धार्मिक स्वतंत्रता की कमी से पीड़ित हैं। उन्होंने बताया कि इसके परिणामस्वरूप, वे अक्सर दूसरे देशों में चले जाते हैं, जहाँ वे अपने विश्वास को जीवित रखकर एक तरह से 'मिशनरी' बन जाते हैं, क्योंकि वे अपने इन "नए घरों" में नई उम्मीद और उत्साह का संचार करते हैं।
पपुआ न्यू गिनी
1984 में सन्त पापा सन्त जॉन पॉल द्वितीय ने पापुआ न्यू गिनी की प्रेरितिक यात्रा की थी और अब, ठीक 40 साल बाद, सन्त पापा फ्रांसिस उनके पदचिन्हों पर पुनः लौट रहे हैं।
प्रशांत महासागर के दक्षिण-पश्चिम में स्थित पापुआ न्यू गिनी में न्यू गिनी का पूर्वी क्षेत्र और उसके द्वीप शामिल हैं। विशाल जैविक और सांस्कृतिक विविधता इस देश की विशेषता है तथा यह अपने समुद्र तटों और मूंगा चट्टानों लिए प्रसिद्ध है। इसके अलावा, अंतर्देशीय क्षेत्र में सक्रिय ज्वालामुखी, ग्रेनाइट माउंट विल्हेम सहित घने वर्षावन हैं। यहाँ की स्थानीय जनजातियों में विभिन्न भाषाएँ बोली जाती हैं।
पापुआ न्यू गिनी एक बहुसंख्यक ईसाई राष्ट्र है, जहाँ लगभग तीन में से एक व्यक्ति काथलिक धर्मानुयायी है। लगभग 20 लाख काथलिकों के प्रति अपनी व्यक्तिगत निकटता लाने के अलावा, सन्त पापा फ्राँसिस प्राकृतिक आपदाओं से पीड़ित लोगों के प्रति भी अपना सामीप्य व्यक्त करेंगे, जो मुख्य रूप से जलवायु संकट और ग़रीबी से उत्पन्न हुए हैं। स्मरण रहे कि सन्त पापा फ्रांसिस ने 25 मार्च 2024 को 6.9 तीव्रता के विनाशकारी भूकंप से पीड़ित प्रशांत द्वीप राष्ट्र की मदद करने के लिए कई अपीलें जारी की थीं।
पापुआ न्यू गिनी की राजधानी पोर्ट मोरेस्बी में, कार्यक्रम के मुख्य आकर्षणों में ख्रीस्तयाग अर्पण और कारितास कल्याणकारी संगठन के तकनीकी सेकेंडरी स्कूल की भेंट तथा सड़क पर जीवन यापन करनेवालों के बीच प्रेरिताई में संलग्न कार्यकर्त्ताओ के साथ मुलाकात है।
एशिया की अपनी दस दिनों की प्रेरितिक यात्रा के दौरान सन्त पापा प्रत्येक देश की राजधानी में रहेंगे। पापुआ न्यूगिनी में रहते हुए, वे वानिमो तटीय शहर का भी रुख करेंगे, जहाँ वे मिशनरियों और स्थानीय विश्वासियों के साथ व्यक्तिगत तौर पर मिलेंगे।
तिमोर लेस्ते
पापुआ न्यू गिनी के उपरान्त सन्त पापा फ्राँसिस तिमोर लेस्ते जायेंगे, जो एशिया का सर्वाधिक विशाल काथलिक देश है। पूर्व पुर्तगाली उपनिवेशी देश तिमोर लेस्ते की कुल आबादी का 96 प्रतिशत काथलिक धर्मानुयायी है।
सन् 1989 में जब सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय ने तिमोर लेस्ते की यात्रा की थी तब वह 'इंडोनेशियाई कब्जे' के अधीन था। 2002 में यह देश पूरी तरह से आज़ाद हुआ। 'विश्वास आपकी संस्कृति हो' के आदर्श वाक्य के साथ, सन्त पापा फ्राँसिस देश में सामूहिक प्रार्थना करेंगे, विकलांग बच्चों से विशेष मुलाकात करेंगे और अपने साथी जेसुइट्स भाइयों से मिलेगे।
डिलि के कार्डिनल विर्जिलियो दो कार्मो दा सिल्वा ने वाटिकन न्यूज को बताया कि गरीबी और बेरोजगारी के कारण युवा लोग देश को छोड़ कर चले जाते हैं, जिसपर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि कलीसिया इस बात का अध्ययन कर रही है कि "उन लोगों को सहायता कैसे प्रदान की जाए, जिन्होंने अपनी मातृभूमि छोड़ दी है।"
सिंगापुर
प्रेरितिक यात्रा के अन्तिम चरण में सन्त पापा फ्राँसिस आमतौर पर एक अंतर्राष्ट्रीय व्यापार केंद्र के रूप में देखे जानेवाले देश सिंगापुर की यात्रा करेंगे। इससे पूर्व सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय ने 1986 में सिंगापुर की यात्रा की थी। काथलिकों की संख्या राष्ट्र में कुल आबादी का छः प्रतिशत यानि कि तीन लाख 95 हज़ार है। सिंगापुर के कार्डनल विलियम गो का कहना है कि यद्यपि काथलिकों की संख्या कम है फिर भी वे "काफी शक्तिशाली ताकत” हैं।
उन्होंने स्वीकार किया कि वहाँ बहुत अधिक बुलाहटें नहीं हैं, क्योंकि वहाँ अधिकांश युवाओं में व्यवसाय की ओर आकर्षित होने की प्रवृत्ति है और जनसंख्या के सदस्यों के बीच व्यापक समृद्धि है। उन्होंने कहा कि काथलिक धर्मानुयायी सुशिक्षित हैं तथा अपनी-अपनी पल्लियों द्वारा जो कुछ भी पेश किया जाता है, विशेष रूप से प्रवचनों के मामले में उच्च मानक रखते हैं। सिंगापुर में, सन्त पापा फ्राँसिस वरिष्ठ सरकारी एवं नागर अधिकारियों से मुलाकात करेंगे, काथलिक धर्मानुयियों के लिये नेशनल स्टेडियम में ख्रीस्तयाग अर्पित करेंगे तथा काथलिक जूनियर कॉलेज में युवा लोगों के साथ एक अंतरधार्मिक बैठक का नेतृत्व करेंगे।
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