लक्समबर्ग में संत पापा: सेवा, मिशन और आनंद सुसमाचार के केंद्र में हैं
वाटिकन न्यूज
लक्समबर्ग, शुक्रवार 27 सितंबर 2024 : संत पापा ने लक्समबर्ग के काथलिक समुदाय को संबोधित करते हुए इस शानदार गिरजाघर में उनके साथ मुलाकात करने की खुशी जाहिर की। संत पापा ने कहा, “मैं महामहिम ग्रैंड ड्यूक और उनके परिवार को उनकी उपस्थिति के लिए धन्यवाद देता हूँ; मैं कार्डिनल जीन-क्लाउड होलेरिक को उनके करुणा भरे शब्दों के लिए धन्यवाद देता हूँ, साथ ही डिओगो, क्रिस्टीन और सिस्टर मारिया पेरपेतुआ को उनकी गवाही के लिए धन्यवाद।”
संत पापा ने कहा कि उनकी मुलाकात एक महत्वपूर्ण माँ मरिया की जुबली के दौरान हुई है: लक्समबर्ग की कलीसिया पीड़ितों को सांत्वना देने वाली और इस देश की संरक्षिका माता मरिया के प्रति चार शताब्दियों की भक्ति का स्मरण कर रही है। इस मरियम वर्ष में आपके द्वारा इस यात्रा के लिए चुने गए विषय से अच्छी तरह मेल खाता है: "सेवा करना।" संत पापा ने कहा कि सांत्वना देना और सेवा करना वास्तव में उस प्रेम के दो मूलभूत पहलू हैं जो येसु ने हमें दिया है, वह प्रेम जिसे उसने हमारे मिशन के रूप में हमें सौंपा है (सीएफ योहन 13:13-17), और जिसे उसने पूर्ण आनन्द के एकमात्र मार्ग के रूप में दिखाया है (सीएफ प्रेरितचरित 20:35)। इस कारण से, मरियम वर्ष के उद्घाटन की प्रार्थना में, हम ईश्वर की माता से प्रार्थना करेंगे कि वे हमें “मिशनरी बनने में मदद करें, सुसमाचार के आनन्द का साक्ष्य देने के लिए तैयार रहें”, अपने हृदय को उनके हृदय के अनुरूप बनाएं ताकि “अपने जीवन को अपने भाइयों और बहनों की सेवा में लगा सकें।”
संत पापा फ्राँसिस ने तीन शब्दों पर चिंतन किया: सेवा, मिशन और आनन्द।
सेवा करने हेतु बुलायी गई कलीसिया
पहले शब्द, "सेवा" को संबोधित करते हुए, संत पापा फ्राँसिस ने कहा कि सेवा करना एक ऐसा कार्य है जो "सुसमाचार के मूल में है।" संत पापा फ्राँसिस ने इस बात पर प्रकाश डाला कि जरूरतमंद लोगों का स्वागत करने की लंबी परंपरा वाले देश में, आतिथ्य की बहुत बड़ी आवश्यकता है, उन्होंने कहा कि यह केवल दान का मामला नहीं है, "बल्कि न्याय का भी मामला है।" संत पापा ने कहा, इसलिए मैं आपको प्रोत्साहित करता हूँ कि आप अपनी विरासत, अपनी संपदा के प्रति विश्वस्त बने रहें, तथा अपने देश को उन लोगों के लिए एक मैत्रीपूर्ण घर बनाते रहें जो मदद और आतिथ्य की तलाश में आपके दरवाजे पर दस्तक देते हैं। संत पापा ने कहा, "सुसमाचार की भावना सभी के लिए स्वागत व खुलेपन की भावना है; यह किसी भी तरह के बहिष्कार को स्वीकार नहीं करता है।"
स्वागत करना और दान करने की आवश्यकता है, लेकिन सबसे पहले यह न्याय का मामला है, जैसा कि संत जॉन पॉल द्वितीय ने यूरोपीय संस्कृति की ख्रीस्तीय जड़ों को याद करते हुए कहा था। उन्होंने लक्समबर्ग के युवाओं को "एक ऐसे यूरोप के लिए रास्ता बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जो न केवल वस्तुओं से, बल्कि मूल्यों से भी चिह्नित हो।”
धर्मनिरपेक्ष समाज में कलीसिया का मिशन
संत पापा फ्राँसिस ने अपने संबोधन के दूसरे बिंदु में तेजी से धर्मनिरपेक्ष समाज में कलीसिया के मिशन पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “ कार्डिनल महाधर्माध्यक्ष ने अभी-अभी "धर्मनिरपेक्ष समाज में लक्समबर्ग की कलीसिया के विकास" के बारे में बात की। मुझे यह अभिव्यक्ति पसंद आई कि धर्मनिरपेक्ष समाज के भीतर कलीसिया को विकसित और परिपक्व होने की आवश्यकता है। हम खुद को दुख, त्याग या आक्रोश में बंद नहीं कर सकते। इसके विपरीत, हमें कलीसिया के शाश्वत मूल्यों के प्रति वफ़ादार रहते हुए चुनौती को स्वीकार करना चाहिए।”
उन्होंने लक्समबर्ग के काथलिकों को हमेशा समय की चुनौतियों का जवाब देते हुए "गतिशील" होने के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने कहा, यह "मिशनरी कलीसिया" बनकर किया जा सकता है। इसे ध्यान में रखते हुए, संत पापा फ्राँसिस ने सामुदायिक जीवन को मजबूत करने और सुसमाचार संदेश फैलाने के साधन के रूप में धर्मसभा की भावना को प्रोत्साहित किया।
सुसमाचार का आनंद
संत पापा फ्राँसिस ने जिस तीसरे विषय पर चर्चा की, वह था आनंद, जिसे उन्होंने "ख्रीस्तीय धर्म का अभिन्न अंग" बताया। उन्होंने विश्व युवा दिवस पर अपने आनंदमय अनुभव को साझा करने वाले एक युवा डिओगो की गवाही पर विचार किया। संत पापा फ्राँसिस ने कहा कि डिओगो का आनंद सुसमाचार संदेश का प्रतीक है। उन्होंने कहा, "हमारा विश्वास आनंद से भरा है, यह एक 'नृत्य' है, क्योंकि हम जानते हैं कि हम एक ऐसे ईश्वर की संतान हैं जो हमारा मित्र है।"
संत पापा ने लक्समबर्ग में अनोखे वसंत जुलूस के बारे में भी बात की। उन्होंने कहा कि यह जुलूस, जिसमें श्रद्धालु, तीर्थयात्रियों के साथ, संत विलिब्रोर्ड के मिशनरी प्रयासों की याद में सड़कों पर नृत्य करते हैं, "एक महान एकीकृत नृत्य बन जाता है।" संत पापा फ्राँसिस ने विश्वासियों को याद दिलाया कि उन्हें सौंपा गया मिशन "सुंदर" है।
उन्होंने अपने संबोधन को समाप्त करते हुए कहा, "आइए हम माँ मरियम के उदाहरण का अनुसरण करते हुए और उनकी मदद से सांत्वना दें और सेवा करें।"
सोने का गुलाब और मरियम वर्ष की शुरुआती प्रार्थना
संत पापा के भाषण के अंत में, पीड़ितों की सांत्वना माता मरियम की छोटी प्रतिमा, 1794 में गिरजाघर में स्वागत की गई एक चमत्कारी प्रतिमा, उनके पास लाई गई और एक पल शांत रहने के बाद, लक्समबर्ग के महाधर्माध्यक्ष ने मरियम जुबली की शुरुआती प्रार्थना का पाठ किया। प्रार्थना के अंत में कार्डिनल की सहायता से संत पापा फ्राँसिस ने माता मरियम की प्रतिमा के चरणों में "सोने का गुलाब" रखा, जो उस प्राचीन भाव को दोहराता है जिसके द्वारा संत पापा कुंवारी मरिया के प्रति अपनी भक्ति प्रदर्शित करते हैं।
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