इंडोनेशिया के धर्मसमाजियों से मुलाकात करते संत पापा फ्राँसिस इंडोनेशिया के धर्मसमाजियों से मुलाकात करते संत पापा फ्राँसिस  (ANSA)

संत पापा ने इंडोनेशिया के धर्मसमाजियों को पुनरूत्थान के साक्षी बनने का निमंत्रण दिया

इंडोनेशिया में अपनी प्रेरितिक यात्रा के प्रथम दिन संत पापा फ्राँसिस ने जकार्ता स्थित कुँवारी मरियम के स्वर्गोदग्रहण महागिरजाघर में, देश के धर्माध्यक्षों, पुरोहितों, उपयाजकों, धर्मसमाजियों, सेमिनरी छात्रों एवं प्रचारकों से मुलाकात की।

वाटिकन न्यूज

इंडोनेशिया में कुल 50 धर्माध्यक्ष, 5.903 पुरोहित, 7 स्थायी उपयाजक, 9,658 धर्मबहनें और 21,932 प्रचारक हैं। जकार्ता में कुँवारी मरियम का स्वर्गोदग्रहण महागिरजाघर, काथलिकों का मुख्य महागिरजाघर है जो मर्डेका प्राँगण के पास और इस्तिकलाल मस्जिद के सामने स्थित है।

महागिरजाघर में संत पापा के सम्बोधन से पहले एक पुरोहित, एक धर्मबहन, एक प्रचारक एवं एक प्रचारिका ने अपना साक्ष्य प्रस्तुत किया। संत पापा हरेक साक्षी से मिले और उनकी प्रेरिताई के लिए धन्यवाद दिया।

इंडोनेशिया में पोप फ्राँसिस की प्रेरितिक यात्रा का आदर्शवाक्य है, विश्वास, बंधुत्व, करुणा।

संत पापा ने अपने संदेश में आदर्शवाक्य पर गौर करते हुए कहा, “मैं समझता हूँ कि ये तीनों सदगुण हैं जो एक कलीसिया के रूप में आपकी यात्रा तथा एक ऐसे लोगों के रूप में आपके चरित्र को अच्छी तरह से व्यक्त करते हैं, जो जातीय और सांस्कृतिक रूप से विविध हैं। साथ ही, आपमें एकता और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के लिए एक सहज प्रयास की विशेषता है, जैसा कि पंचशील के पारंपरिक सिद्धांतों से देखा जा सकता है।”

आगे संत पापा ने विश्वास, बंधुत्व और करुणा के शब्दों पर चिंतन किया।

विश्वास

विश्वास के सदगुण पर प्रकाश डालते हुए संत पापा ने कहा, पहला है विश्वास। इंडोनेशिया एक विशाल देश है, जिसमें पेड़-पौधे, वन्य जीव, ऊर्जा स्रोत, कच्चा माल आदि अनेक प्राकृतिक संसाधन मौजूद हैं। यदि सतही तौर पर देखा जाए, तो इतनी बड़ी संपत्ति घमंड या अहंकार का कारण हो सकती है, लेकिन जब खुले दिमाग और दिल से देखा जाए, तो यह धन ईश्वर की याद दिलाता है, ब्रह्मांड में और हमारे जीवन में उनकी उपस्थिति का, जैसा कि धर्मग्रंथ हमें सिखाता है। (उत्पति 1) वास्तव में, ईश्वर ही हैं जो हमें ये सब देते हैं। अद्भुत इंडोनेशियाई भूभाग का एक इंच भी, और इसके लाखों निवासियों के जीवन का एक भी क्षण ऐसा नहीं है जो ईश्वर की ओर से उपहार न हो, पिता के रूप में उनके निःस्वार्थ और चिरस्थायी प्रेम का चिन्ह न हो। हमें जो कुछ भी दिया गया है, उसे बच्चों की विनम्र नजरों से देखने से हमें विश्वास करने, खुद को छोटा और प्रिय मानने में मदद मिलती है तथा कृतज्ञता एवं जिम्मेदारी की भावना आती है।

पहले साक्ष्य अग्नेस का हवाला देते हुए संत पापा ने कहा कि उनका साक्ष्य हमें सृष्टि और अपने भाइयों और बहनों, विशेषकर सबसे अधिक जरूरतमंदों के साथ अपने रिश्ते को सम्मान, शिष्टता और मानवता के साथ-साथ संयम एवं फ्रांसिस्कन उदारता से चिह्नित एक व्यक्तिगत और सामुदायिक जीवनशैली के माध्यम से जीने के लिए आमंत्रित करता है।

बंधुत्व

आदर्शवाक्य के दूसरे शब्द बंधुत्व पर गौर करते हुए संत पापा ने कहा, “बीसवीं सदी के एक कवि ने इस दृष्टिकोण का वर्णन करने के लिए एक बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति का इस्तेमाल किया है। उन्होंने लिखा कि भाई-बहन होने का मतलब है एक-दूसरे को “पानी की दो बूंदों की तरह अलग” पहचानकर एक-दूसरे से प्यार करना।”

पानी की दो बूँदें एक जैसी नहीं होतीं, न ही दो भाई या बहनें, यहाँ तक कि जुड़वाँ बच्चे भी पूरी तरह से एक जैसे नहीं होते। इसलिए भाईचारे के साथ जीने का मतलब है एक-दूसरे को स्वीकार करना, विविधता में एक-दूसरे को समान मानना।

यह भी इंडोनेशियाई कलीसिया के लिए एक प्रिय सदगुण है और यह उस खुलेपन के माध्यम से प्रकट होता है जिसके साथ वे सांस्कृतिक, जातीय, सामाजिक और धार्मिक स्तर पर सामना की जानेवाली विभिन्न आंतरिक और बाहरी वास्तविकताओं को संबोधित करते हैं। विशेष रूप से, उनकी स्थानीय कलीसिया सभी के योगदान को महत्व देती है और हर परिस्थिति में उदारतापूर्वक सहायता प्रदान करती है। यह महत्वपूर्ण है, क्योंकि सुसमाचार का प्रचार करने का अर्थ अपने विश्वास को थोपना या दूसरों के विश्वास के विरोध में खड़ा करना नहीं है, बल्कि ख्रीस्त से मुलाकात का आनंद देना और बांटना है। (1 पेत्रुस 3:15-17)

संत पापा ने कहा, “हमेशा सभी के प्रति बहुत सम्मान और भाईचारापूर्ण स्नेह रखें। मैं आपको हमेशा सभी के प्रति खुले और मैत्रीपूर्ण रहने के लिए आमंत्रित करता हूँ... एकता के पैगम्बर बनें, एक ऐसे विश्व में जहां एक दूसरे को विभाजित करने, थोपने और भड़काने की प्रवृत्ति लगातार बढ़ती जा रही है।” दूसरी साक्षी सिस्टर रीना के शब्दों का समर्थन करते हुए संत पापा ने कहा, “सभी तक पहुंचने का प्रयास करना महत्वपूर्ण है।” इस संदर्भ में संत पापा ने गौर किया कि ईश वचन के साथ-साथ कलीसिया की धर्मशिक्षा को भी बहासा इंडोनेशिया में अनुवाद किये जाने की उम्मीद है।

निकोलस ने प्रचारक के मिशन की तुलना एक सेतु से की जो जोड़ता है। संत पापा ने कहा, “यह बात मेरे मन में कौंधी, और मुझे महान इंडोनेशियाई द्वीपसमूह के एक अद्भुत दृश्य के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया, जिसमें हजारों "हृदय के सेतु" सभी द्वीपों को एक साथ जोड़ते हैं, और इससे भी अधिक ऐसे लाखों "सेतुओं" के बारे में, जो वहाँ रहनेवाले सभी लोगों को एक साथ जोड़ते हैं!” भाईचारे की एक और खूबसूरत छवि प्रेम के धागों की एक विशाल टेपेस्ट्री होगी जो समुद्र को पार करती है, बाधाओं को पार करती है और सभी विविधताओं को गले लगाती है, जिससे हर कोई "एक दिल और आत्मा" बन जाता है। (प्रे.च. 4:32)

करुणा

तीसरे सदगुण : करुणा पर चिंतन करते हुए संत पापा ने कहा कि यह बंधुत्व के साथ नजदीकी से जुड़ा है। हम जानते हैं कि करुणा का मतलब जरूरतमंद भाइयों और बहनों को दान देना, अपनी सुरक्षा और सफलता के “टावर” से उन्हें नीचे देखना, नहीं है। इसके विपरीत, इसका मतलब है हमें एक दूसरे के करीब आना, हर उस चीज को दूर करना जो हमें जमीन पर पड़े लोगों को छूने, उन्हें ऊपर उठाने और उन्हें उम्मीद देने से रोक सकती है। (फ्रतेल्ली तूत्ती, 70) इसके अलावा, इसका अर्थ है स्वतंत्रता और न्याय के लिए उनके सपनों एवं इच्छाओं को अपनाना, उनकी देखभाल करना, उनका समर्थन करना और साथ ही दूसरों को शामिल करना, प्रेम की महान गतिशीलता बनाने के लिए “जाल” और सीमाओं को चौड़ा करना।

ऐसे लोग भी हैं जो करुणा से डरते हैं क्योंकि वे इसे कमज़ोरी मानते हैं। इसके बजाय, वे उन लोगों की चतुराई का समर्थन करते हैं, जैसे कि यह एक गुण हो, जो हर किसी से दूरी बनाए रखकर, किसी भी चीज या किसी व्यक्ति द्वारा खुद को “छूने” न देकर अपने हितों की सेवा करते हैं, इस प्रकार वे सोचते हैं कि वे अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में अधिक स्पष्ट और स्वतंत्र हैं। संत पापा ने इसे वास्तविकता को देखने का यह एक गलत तरीका कहा। और बतलाया कि दुनिया को चलानेवाले स्वार्थी लोग नहीं हैं, जो आम तौर पर सृष्टि को नष्ट करते और समुदायों को विभाजित करते हैं, बल्कि यह दूसरों को दान देने से चलती है। करुणा जीवन के सच्चे दृष्टिकोण को धुंधला नहीं करती। इसके विपरीत, यह हमें प्रेम के प्रकाश में चीजों को बेहतर ढंग से देखने में मदद करती है।

संत पापा ने अपने संदेश का समापन संत पापा जॉन पौल द्वितीय के शब्दों करते हुए कहा, “असंख्या द्वीप आनन्द मनाओ।” (भजन 96:1) उन्होंने सभी सुननेवालों को “पुनरुत्थान के आनन्द की गवाही देने और इसे अपने जीवन में व्यवहार में लाने के लिए आमंत्रित किया, ताकि सबसे दूर के द्वीप भी सुसमाचार सुनकर ‘आनन्दित’ हो सकें, जिसके आप प्रामाणिक प्रचारक, शिक्षक और गवाह हैं।”

पोप फ्राँसिस ने कहा, “मैं भी इस आह्वान को दोहराता हूँ, और मैं आपको विश्वास में मजबूत होकर, भाईचारे में सभी के लिए खुले रहकर और करुणा में एक दूसरे के करीब रहते हुए अपने मिशन को जारी रखने के लिए प्रोत्साहित करता हूँ। मैं आपको आशीर्वाद देता हूँ और हर दिन आपके द्वारा किए जाने वाले सभी अच्छे कामों के लिए धन्यवाद देता हूँ! मैं आपके लिए प्रार्थना करूँगा और आपसे अनुरोध करूँगा कि कृपया मेरे लिए भी प्रार्थना करें। धन्यवाद।

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04 September 2024, 15:36