लक्समबर्ग शांति के लिए सहयोग का एक मॉडल बन सकता है, पोप फ्राँसिस
लक्समबर्ग, बृहस्पतिवार, 26 सितम्बर 2024 (रेई) : संत पापा फ्राँसिस अपनी 46वीं प्रेरितिक यात्रा पर बहस्पतिवार को लक्समबर्ग पहुँचे। उन्होंने इस यात्रा में अपने कार्यक्रमों की शुरूआत लक्समबर्ग के सरकारी अधिकारियों, राजनयिकों और नागर समाज के प्रतिनिधियों से मुलाकात करते हुए की।
लक्समबर्ग की अपनी आठ घंटे की यात्रा के पहले आधिकारिक भाषण में पोप फ्राँसिस ने यूरोपीय एकता और शांति को बढ़ावा देने में यूरोप के केंद्र स्थित इस छोटे राष्ट्र की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला तथा फिर से उभर रहे राष्ट्रवाद और युद्धों की निंदा की।
करीब 300 अधिकारियों एवं प्रतिनिधियों को सम्बोधित कर संत पापा ने कहा, “मुझे लक्समबर्ग के ग्रैंड डची की यात्रा करते हुए खुशी हो रही है, और मैं शाही नेता एवं प्रधानमंत्री को मेरा सौहार्दपूर्ण स्वागत करने के लिए हार्दिक धन्यवाद देता हूँ।”
विभिन्न भाषाई और सांस्कृतिक क्षेत्रों की सीमा पर स्थित अपनी विशेष भौगोलिक स्थिति के कारण, लक्समबर्ग अक्सर खुद को यूरोप की सबसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं के चौराहे पर पाता है। पिछली सदी के पहले भाग में इसे दो बार आक्रमण का सामना करना और अपनी स्वतंत्रता एवं स्वायत्तता से वंचित होना पड़ा।
यूरोपीय शांति और एकता में लक्समबर्ग की ऐतिहासिक भूमिका
संत पापा ने कहा, “द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद से, आपके देश ने अपने इतिहास से प्रेरणा ली है तथा एक एकीकृत और भाईचारे वाले यूरोप के निर्माण के लिए अपनी प्रतिबद्धता में खुद को प्रतिष्ठित किया है, जिसमें प्रत्येक देश, चाहे वह बड़ा हो या छोटा, हरेक की अपनी भूमिका होती है, तथा जहाँ राष्ट्रवाद और घातक विचारधाराओं के कारण उत्पन्न विभाजन, झगड़े और युद्ध पीछे छूट सकते हैं।”
यह भी स्वीकार किया जाना चाहिए कि जब टकराव और हिंसक विरोध का तर्क प्रबल होता है, तो परस्पर विरोधी शक्तियों के बीच सीमा पर स्थित क्षेत्र उनकी इच्छा के विरुद्ध उलझ जाते हैं। लेकिन जब वे बुद्धिमानी से तरीक फिर से खोज लेते हैं, और विरोध की जगह सहयोग ले लेता है, तो सीमा पर स्थित वही क्षेत्र शांति के नए युग की जरूरतों और चलने के रास्तों की पहचान करने के लिए सबसे उपयुक्त बन जाते हैं।
वास्तव में, लक्समबर्ग इस सिद्धांत का अपवाद नहीं है, क्योंकि यह यूरोपीय संघ और उसके पूर्ववर्ती समुदायों का संस्थापक सदस्य था। यह यूरोपीय संघ के न्यायालय, यूरोपीय लेखा परीक्षक न्यायालय और यूरोपीय निवेश बैंक सहित कई यूरोपीय संस्थानों का भी घर है।
धन में सबसे कमजोर लोगों के प्रति जिम्मेदारी
इसके अलावा, संत पापा ने कहा, “आपके देश की ठोस लोकतांत्रिक संरचना, जो मानव व्यक्ति की गरिमा और मौलिक स्वतंत्रता की रक्षा को संजोती है, लक्समबर्ग को महाद्वीपीय संदर्भ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की अनुमति दी है। वास्तव में, क्षेत्र का आकार या निवासियों की संख्या किसी राष्ट्र के लिए अंतरराष्ट्रीय मंच पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाने या उसके आर्थिक और वित्तीय केंद्र बनने के लिए अपरिहार्य शर्तें नहीं हैं। इसके बजाय, यह बुद्धिमान संस्थानों और कानूनों का धैर्यपूर्वक निर्माण है, जो निष्पक्षता और कानूनी शासन के सम्मान के मानदंडों के अनुसार नागरिकों के जीवन को विनियमित करके, व्यक्ति और आमहित को केंद्र में रखते हैं, भेदभाव और बहिष्कार के खतरों को रोकते और उनका प्रतिकार करते हैं।
इस संबंध में, 1985 में लक्समबर्ग की अपनी यात्रा के दौरान संत जॉन पॉल द्वितीय द्वारा कहे गए शब्द आज भी प्रासंगिक हैं: "आपका देश, संस्कृतियों के इस महत्वपूर्ण चौराहे पर, लगातार बढ़ती संख्या में देशों के बीच गहन आदान-प्रदान और सहयोग का स्थान बनने के अपने आह्वान के प्रति वफादार बना हुआ है। मुझे पूरी उम्मीद है कि एकजुटता की यह इच्छा राष्ट्रीय समुदायों को और अधिक एकजुट करेगी और दुनिया के सभी देशों, विशेष रूप से सबसे गरीब देशों तक फैलेगी" (स्वागत समारोह में संबोधन, 15 मई 1985)। पोप फ्राँसिस ने कहा, “इन कथनों को अपनाते हुए, मैं विशेष रूप से लोगों के बीच भाईचारे की स्थापना के लिए अपने आह्वान को नवीनीकृत करता हूँ, ताकि सभी लोग समग्र विकास की एक संगठित प्रक्रिया में भागीदार हो सकें और मुख्य पात्र बन सकें।
कलीसिया का सामाजिक सिद्धांत ऐसी प्रगति की विशेषताओं और इसे प्राप्त करने के तरीकों पर प्रकाश डालता है। संत पापा ने इसे ध्यान में रखते हुए अपने भाषण में दो प्रमुख विषयों पर विस्तार से चर्चा की: सृष्टि की देखभाल और भाईचारा।
उन्होंने कहा, “वास्तव में, विकास को प्रमाणिक और समग्र बनाने के लिए, हमें अपने आमघर को लूटना या नीचा नहीं दिखाना चाहिए। हमें हाशिये पर पड़े लोगों या सामाजिक समूहों को नहीं छोड़ना चाहिए। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि धन रखने में जिम्मेदारी भी शामिल है। इस प्रकार, मैं निरंतर सतर्कता बरतने को आग्रह करता हूँ ताकि सबसे वंचित राष्ट्रों की उपेक्षा न की जाए, तथा उन्हें उनकी दरिद्रतापूर्ण स्थिति से उभरने में सहायता दी जाए। यह उन लोगों की संख्या में कमी सुनिश्चित करने का एक तरीका है, जिन्हें अक्सर अमानवीय और खतरनाक परिस्थितियों में प्रवास के लिए मजबूर होना पड़ता है।” संत पापा ने उम्मीद जताते हुए कहा कि अपने विशेष इतिहास और विशेष भौगोलिक स्थिति के साथ, जहाँ लगभग आधे निवासी यूरोप और व्यापक दुनिया के अन्य भागों से आते हैं, लक्समबर्ग प्रवासियों और शरणार्थियों का स्वागत करने और उन्हें एकीकृत करने में आगे बढ़ने का मार्ग दिखाने में सहायक और उदाहरण बन सकता है।
सुसमाचार के मूल्य शांति स्थापना के मापदण्ड
देश की स्थिति पर गौर करते हुए संत पापा ने आध्यात्मिकता पर ध्यान देने की सलाह देते हुए कहा, “इस खतरनाक बीमारी के लक्षण को ठीक करने के लिए, जो राष्ट्रों को गंभीर रूप से बीमार बनाता है, उन्हें शोषण के शिकार बनाता एवं नरसंहार लाता है; हमें अपनी निगाहें ऊपर उठाने की आवश्यकता है। हमें लोगों और उनके नेताओं के दैनिक जीवन को महान और गहन आध्यात्मिक मूल्यों से प्रेरित करने की जरूरत है। यह तर्क मूर्खता के आगे झुकने और हमें अतीत की उन गलतियों को करने से रोकेगा, जो अब मानव के पास मौजूद अधिक तकनीकी शक्ति द्वारा और भी बदतर बना दी गई है।
प्रेरित संत पेत्रुस के उत्तराधिकारी और कलीसिया के प्रतिनिधि के रूप में संत पापा ने कहा, “मैं यहाँ यह प्रमाणित करने आया हूँ कि सुसमाचार जीवन का स्रोत और व्यक्तिगत एवं सामाजिक नवीनीकरण की हमेशा ताज़ा शक्ति है। यह केवल येसु ख्रीस्त का सुसमाचार है जो मानव आत्मा को गहराई से बदलने में सक्षम है, यह सबसे कठिन परिस्थितियों में भी अच्छा करने, घृणा को खत्म करने और संघर्ष में लगे पक्षों को समेटने में समर्थ है। प्रत्येक व्यक्ति, प्रत्येक पुरुष और महिला, पूर्ण स्वतंत्रता के साथ, येसु के सुसमाचार को जाने, जिन्होंने अपने व्यक्तित्व में ईश्वर और मानवता को मिला दिया है, तथा जो मानव हृदय में व्याप्त चीजों को जानते और उसके घावों को ठीक कर सकते हैं।
संत पापा ने लक्समबर्ग के अधिकारियों को सम्बोधित कर कहा, “लक्समबर्ग सभी लोगों को युद्ध की भयावहता के विपरीत शांति के लाभ, प्रवासियों के पृथक्करण के विपरीत उनके एकीकरण और संवर्धन, कठोर रुख के हानिकारक परिणामों और अपने हितों के स्वार्थ तथा अदूरदर्शी या यहाँ तक कि हिंसक खोज के विपरीत राष्ट्रों के बीच सहयोग के लाभ दिखा सकता है।”
उन्होंने कहा, वास्तव में, सत्ता में बैठे लोगों के लिए मतभेदों को सुलझाने हेतु ईमानदारी से बातचीत में दृढ़ता और धैर्य के साथ शामिल होने की बड़ी आवश्यकता है, साथ ही, हममें सम्मानजनक समझौता करने की इच्छा भी होनी चाहिए, जिससे किसी भी चीज को नुकसान न पहुंचे और इसके बजाय सभी के लिए सुरक्षा और शांति का निर्माण हो सके।
सेवा करना
लक्समबर्ग की प्रेरितिक यात्रा के आदर्शवाक्य, “सेवा करना” की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए संत पापा ने कहा, “यह मेरे यहाँ आने का आदर्शवाक्य है और यह सीधे तौर पर कलीसिया के मिशन को संदर्भित करता है। प्रभु ख्रीस्त, जो सेवक बने, संसार में पिता द्वारा भेजे गये थे। कृपया यह भी याद रखें कि हम सभी के लिए यह “सेवा करना” बड़प्पन का सर्वोच्च पद है, प्रमुख कार्य है, जीवन जीने का तरीका है जिसको हर दिन जीया जाना चाहिए।
लक्समबर्ग और दुनिया की संरक्षिका माता मरियम अपने पुत्र येसु से हमारे लिए शांति एवं हर अच्छाई को वहन करने में मदद करे। ईश्वर लक्समबर्ग को आशीष दें।
अधिकारियों से मुलाकात के उपरांत संत पापा खुली कार पर सवार होकर धर्माध्यक्षीय आवास गये। धर्माध्यक्षीय आवास जाने के रास्ते पर सड़क के दोनों किनारे भारी संख्या में जमा होकर लोगों ने गर्मजोशी से पोप का स्वागत किया।
लक्समबर्ग में संत पापा का अगला कार्यक्रम नोट्रडम महागिरजाघर में वहाँ के काथलिक समुदाय से मुलाकात करना है। उसके बाद वे ब्रसेल्स के लिए प्रस्थान करेंगे।
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