इबेरो-अमरीकी देशों के न्याय मंत्रियों से सन्त पापा फ्रांसिस
वाटिकन सिटी
वाटिकन सिटी, शुक्रवार, 20 सितम्बर 2024 (रेई, वाटिकन रेडियो): स्पानी भाषा में प्रकाशित "परिवर्ती न्याय का अतीत, वर्तमान और भविष्य: विश्व शांति के निर्माण में लातीनी अमरीकी अनुभव" शीर्षक से, स्पानी भाषा में प्रकाशित पुस्तक के विमोचन के अवसर पर सन्त पापा फ्रांसिस ने स्पेन तथा लातीनी अमरीका के न्याय मंत्रियों को एक सन्देश प्रेषित किया।
क्षतिपूर्ति और सुधार
सन्देश में परिवर्ती न्याय का अर्थ समझाते हुए सन्त पापा फ्राँसिस ने कहा कि “संघर्ष या दमन की स्थिति के बाद अपनाए गए कानूनी और राजनीतिक उपाय किये जाते हैं, जिनमें सुलह और लोकतंत्र को बढ़ावा देने के लिए मानवाधिकारों का बड़े पैमाने पर हुए उल्लंघन का अवलोकन किया जाता है; इसमें अभियोजन, सत्य आयोग, क्षतिपूर्ति कार्यक्रम और संस्थागत सुधार शामिल रहते हैं।"
सन्त पापा ने कहा कि अतीत से सीखना और प्रायः दर्दनाक अनुभवों की दोबारा जांच करना हमें वर्तमान चुनौतियों के लिए सुसंगत और सार्थक प्रतिक्रिया देने तथा शांति, स्वतंत्रता और न्याय के पथ पर प्रगति को मजबूत करने वाले तंत्र की तलाश करने के लिए आमंत्रित करता है।
सबसे पहले, सन्त पापा ने कहा कि यह स्मरण रखा जाना चाहिये कि इतिहास पीछे नहीं पलटता, चाहे वह हमारी अपनी बात हो या फिर अनेक देशों के दुखद इतिहास की बात हो, हमें इन स्थितियों से शुरुआत करनी चाहिए, बिना खुद को धोखा दिए कि सब कुछ उसी तरह वापस आ जाएगा जैसा पहले था।
एकता संघर्ष से श्रेष्ठ
सन्त पापा ने कहा कि अमरीका और यूरोप का मिलना तय था, इसलिए, इस प्रकार की घटनाएं, भले ही कठोर संकट के रूप में उभरी हों, फल अवश्य लाएँगी, और मानव होने के नाते यह हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम ऐसा करें। अपने विश्व पत्र एवान्जेली गाओदियुम के अंश को उद्धृत कर सन्त पापा ने कहा कि यह सच है कि ऐसी परिस्थितियाँ होती हैं जिनमें हिंसा का कोई औचित्य नहीं लगता है, लेकिन चाहे वह क्रांति हो, शासन परिवर्तन हो, आक्रमण हो, हम केवल शिकायत नहीं कर सकते, हालांकि ऐसा करना सही लग सकता है लेकिन बेकार है। हमें एक साथ मिलकर संकट, कठिनाई और हर चुनौती का सामना व्यापक रूप से करना होगा, क्योंकि एकता संघर्ष से श्रेष्ठ है।
सन्त पापा ने कहा कि संघर्ष के उभरते ही उसे समाप्त करने के प्रयासों में जुट जाना तथा समस्याओं का प्रभावशाली हल ढूँढ़ा जाना अनिवार्य है हालांकि ऐसा करना सब समय सरल नहीं होता है, तथापि न्याय और शांति की स्थापना के लिये इसका प्रयास ज़रूरी है।
सन्त पापा ने इस ओर ध्यान आकर्षित कराया कि नवागन्तुकों के आगमन और उनके समाज में एकीकरण के लिए जगह बनाने के लिए हमेशा ही मेज़बान देशों में तनाव बना रहा है, तथापि यह वास्तविकता हमें यह भी सिखाती है कि एक संधि, एक हस्ताक्षर, एक कानून, एक मृत पत्र बना रह सकता है यदि साधन पूर्वनिर्धारित न हों। उन्होंने कहा कि गंभीरता, सामान्य ज्ञान और धैर्य के साथ संधियों, समझौतों एवं कानून का पाठ किया जाये तथा उन्हें दयाभाव के साथ लागू किया जाये तब ही न्याय एवं शांति पर आधारित एक जीवन्त समाज का निर्माण सम्भव बन पड़ेगा।
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