संत घोषणा समारोह में पोप : 'सेवा ही ख्रीस्तीय जीवन पद्धति है'
वाटिकन न्यूज
वाटिकन सिटी, रविवार, 20 अक्टूबर 2024 (रेई) : संत पापा फ्राँसिस ने रविवार 20 अक्टूबर को 14 नये संतों की घोषणा कर उन्हें कलीसिया का सर्वोच्च सम्मान प्रदान किया।
फादर मानुएल रूइज और उनके सात साथी (फ्रायर माइनर); फ्राँसिस, मूती और रफाएल मस्साबकी (मरोनाइट लोकधर्मी); फादर जोसेफ अलामानो (सांत्वाना के मिशनरी धर्मबंधु और सांत्वना के मिशनरी धर्मबहनों के समान के संस्थापक); सिस्टर मरिये लेवनीए परादीस (पवित्र परिवार की छोटी धर्मबहनों के धर्मसंघ की संस्थापिका); और सिस्टर एलेना ग्वेरा (पवित्र आत्मा के ओब्लेट धर्मसंघ की संस्थापिका) को संत पापा फ्राँसिस ने रविवार को संत घोषित किया जिन्होंने विरोचित सदगुणों का आदर्श प्रस्तुत करते हुए अद्वितीय बुलाहट में पवित्रता का साक्ष्य दिया है।
विश्व मिशन रविवार के दिन वाटिकन के संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में संत घोषणा समारोह के अवसर पर संत पापा ने कहा कि इन नये संतों ने येसु के रास्ते, सेवा को जीया।
संत पापा ने उपदेश में पाठ पर चिंतन करते हुए कहा, “तुम क्या चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिये करूँ?” (मार. 10:36) इसके तुरन्त बाद वे बल देकर पूछते हैं: “जो प्याला मैं पीनेवाला हूँ, क्या तुम उसे पी सकते हो, या जो बपतिस्मा मैं लेने को हूँ, क्या तुम उसे ले सकते हो?” येसु प्रश्न पूछते हैं और ऐसा करने से हमें आत्मपरख करने में मदद मिलती है, क्योंकि प्रश्न हमें यह जानने का अवसर देते हैं कि हमारे भीतर क्या है, और वे हमारे हृदय की इच्छाओं पर प्रकाश डालते हैं।
“क्या तुम मेरा प्याला पी सकते हो?”
संत पापा ने अपने आप पर गौर करने हेतु प्रेरित करते हुए कहा, “आइए, हम कल्पना करें कि वे हम में से हरेक जन से पूछ रहे हैं: “तुम चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिए क्या करूँ?”; “क्या तुम मेरा प्याला पी सकते हो?”
इन सवालों के जरिए, येसु अपने और शिष्यों के बीच के संबंधों को प्रकट करते हैं, साथ ही उनसे उनकी अपेक्षाओं को, किसी रिश्ते के सभी पहलुओं के साथ व्यक्त करते हैं। याकूब और योहन निश्चय ही येसु से जुड़े हुए थे, लेकिन उनकी कुछ माँगें भी थीं। वे उनके निकट रहने की इच्छा व्यक्त करते हैं, लेकिन केवल सम्मान का स्थान पाने, एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने के लिए, “आपकी महिमा में एक आपके दाहिने और एक बाएँ बैठें।” (मार. 10:37) वे निश्चय ही येसु को एक विजयी और गौरवशाली मसीहा के रूप में देखते हैं और उनसे अपेक्षा करते हैं कि वे अपनी महिमा उनके साथ साझा करें। वे येसु में मसीहा को देखते हैं, लेकिन उन्हें ताकत की श्रेणी में रखते हैं। येसु शिष्यों के शब्दों पर ही नहीं रुकते, बल्कि गहराई से सोचते हैं, उनके दिलों को सुनते और पढ़ते हैं। फिर, बातचीत में, दो सवालों के ज़रिए, उनके अनुरोधों के पीछे छिपी इच्छा को प्रकट करने की कोशिश करते हैं।
येसु पहला सवाल करते हैं, “क्या चाहते हो? मैं तुम्हारे लिए क्या करूँ?” एक ऐसा प्रश्न जो उनके हृदय के विचारों को प्रकट करता है, तथा उन छिपी हुई अपेक्षाओं और महिमा पाने के स्वप्नों को प्रकाश में लाता है जिन्हें शिष्य गुप्त रूप से विकसित कर रहे थे। ऐसा लगता है जैसे येसु पूछ रहे हों: “तुम क्या चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिए बनूँ?” इस तरह, वे उनकी असली चाह को उजागर करते हैं, वे वास्तव में एक शक्तिशाली और विजयी मसीहा के लिए की कामना कर रहे थे जो उन्हें सम्मान का स्थान दे सके।
एक राजा जो सेवा करने आये
अपने दूसरे सवाल में, येसु मसीहा की इस छवि का खंडन करते हैं और इस प्रकार उन्हें अपना दृष्टिकोण बदलने में मदद करते हैं, अर्थात् मन-परिवर्तन करने में: "क्या तुम वह प्याला पी सकते हो जो मैं पीता हूँ, या वह बपतिस्मा ले सकते हो जो मैं लेनेवाला हूँ?" इस प्रकार, वे प्रकट करते हैं कि वे ऐसे मसीहा नहीं है जिसे वे समझते थे; वे प्रेम के ईश्वर हैं, जो नीचे गिरे हुए व्यक्ति तक पहुँचने के लिए नीचे झुकते हैं; जो कमज़ोर लोगों को उठाने के लिए स्वयं को कमज़ोर बनाते हैं, जो युद्ध के लिए नहीं बल्कि शांति के लिए काम करते हैं, जो सेवा करने आये, न कि सेवा कराने। प्रभु जो प्याला पीयेंगे वह उनके जीवन का उपहार है, जिसे वे हमें प्रेम के कारण, मृत्यु तक, और क्रूस की मृत्यु तक देंगे।
इसके अतिरिक्त, उनके दाहिने और बाएँ दो डाकू होंगे, जो उनके समान क्रूस पर लटके होंगे, सामर्थ्य के सिंहासन पर बैठे नहीं; दो डाकू जो ख्रीस्त के साथ पीड़ा में कीलों से ठोंके गए होंगे, महिमा के सिंहासन पर नहीं बैठे होंगे। क्रूसित राजा, दोषी ठहराये गये धर्मी व्यक्ति जो सभी के दास बन गये: वास्तव में ईश्वर के पुत्र हैं! (मार. 15:39) जो लोग हावी होते हैं वे जीतते नहीं, बल्कि जीतते वे हैं जो प्रेम से सेवा करते हैं। इब्रानियों को लिखे पत्र में भी हमें याद दिलाया गया है : “हमारे महायाजक हमारी दुर्बलताओं में हमसे सहानुभूति रख सकते हैं, क्योंकि पाप के अतिरिक्त अन्य सभी बातों में उनकी परीक्षा हमारी ही तरह ली गयी है।” (इब्रा. 4:15)
इस बिंदु पर, येसु अपने शिष्यों को मन-परिवर्तन करने, उनकी मानसिकता बदलने में मदद करते हैं: तुम जानते हो कि जो संसार के अधिपति माने जाते हैं, वे अपनी प्रजा पर निरंकुश शासन करते हैं और सत्ताधारी लोगों पर अधिकार जताते हैं।” (मार. 10:42) लेकिन जो लोग ईश्वर, जो अपने प्रेम से सभी तक पहुँचने के लिए सेवक बन गये, उनका अनुसरण करनेवालों के लिए ऐसा नहीं होना चाहिए। जो लोग मसीह का अनुसरण करते हैं, अगर वे महान बनना चाहते हैं, तो उन्हें उनसे सीखकर सेवा करनी चाहिए।
संत पापा ने विश्वासियों को सम्बोधित करते हुए कहा, “येसु हमारे हृदय के विचारों, इच्छाओं और योजनाओं को प्रकट करते हैं, तथा कभी-कभी महिमा, प्रभुत्व और शक्ति की हमारी अपेक्षाओं को उजागर करते हैं। वे हमें संसार के मानदण्डों के अनुसार नहीं, बल्कि ईश्वर के मार्ग के अनुसार सोचने में सहायता करते हैं, जो सबसे निचले बन गये ताकि निम्न समझे जानेवाले लोगों को ऊपर उठा सकें। यद्यपि येसु के ये प्रश्न, सेवा पर उनकी शिक्षा के साथ, हमारे लिए अक्सर समझ से परे होते हैं, फिर भी उनका अनुसरण करके, उनके पदचिन्हों पर चलकर और उनके प्रेम के उपहार को स्वीकार करके, हम भी ईश्वर की सेवा के मार्ग पर चलना सीखते हैं।
संतों का उदाहरण
हमें सत्ता नहीं, बल्कि सेवा की लालसा करनी चाहिए। सेवा ख्रीस्तीय जीवन जीने का तरीका है। यह कामों की सूची नहीं है, जिसको पूरा कर लेने पर हम अपना काम खत्म मान लें; जो लोग प्यार से सेवा करते हैं वे यह नहीं कहते: “अब किसी और की बारी है।” इस तरह कर्मचारी सोचते हैं, साक्ष्य देनेवाले नहीं। सेवा प्रेम से उत्पन्न होती है, और प्रेम की कोई सीमा नहीं होती, वह कोई हिसाब-किताब नहीं करता, वह खर्च करता है और देता है। यह केवल परिणाम के लिए कार्य नहीं करता, यह कभी-कभार की जाने वाली सेवा नहीं है, बल्कि यह हृदय से उत्पन्न होता है, एक ऐसा हृदय जो प्रेम से और प्रेम में नवीनीकृत है।
जब हम सेवा करना सीखते हैं, तो हमारे ध्यान और देखभाल का हर भाव, कोमलता की हर अभिव्यक्ति, दया का हर काम ईश्वर के प्रेम का प्रतिबिंब बन जाता है। और इस तरह हम दुनिया में येसु के काम को जारी रखते हैं।
संत पापा ने उन संतों का उदाहरण देते हुए जिन्हें संत घोषित किया गया कहा, “इस बात के आलोक में, हम सुसमाचार के उन शिष्यों को याद करते हैं जिन्हें आज संत घोषित किया जा रहा है। मानवता के संकटपूर्ण इतिहास के दौरान, वे वफादार सेवक बने रहे, जिन्होंने फादर मैनुएल रुइज़ लोपेज़ और उनके साथियों की तरह शहादत और खुशी में सेवा की। वे फादर जोसेफ अलामानो, सिस्टर मेरी लियोनी परादिस और सिस्टर एलेना गुएरा जैसे उत्साही पुरोहित और धर्मसमाजी थे, जो मिशनरी जुनून से भरे हुए थे। इन नए संतों ने येसु के तरीके से सेवा का जीवन जिया। उन्होंने जो विश्वास और प्रेरिताई की, उससे उनकी सांसारिक इच्छाएँ और सत्ता की भूख तृप्त नहीं हुई, बल्कि इसके विपरीत, उन्होंने स्वयं को अपने भाइयों और बहनों का सेवक बनाया, भलाई करने में रचनात्मक बने, कठिनाइयों में दृढ़ रहे और अंत तक उदार बने रहे।
संत पापा ने अंत में कहा, “हम विश्वास के साथ उनसे प्रार्थना करते हैं ताकि हम भी मसीह का अनुसरण कर सकें, उनकी सेवा में उनका अनुसरण कर सकें और विश्व के लिए आशा के गवाह बन सकें।”
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