पोप फ्राँसिस : युद्ध पर विजय पाने के लिए साहसी संवाद की आवश्यकता
वाटिकन न्यूज
"शांति के शब्द", शीर्षक किताब 1986 में असीसी में आयोजित अंतरधार्मिक शांति सम्मेलन से लेकर वर्तमान तक की लंबी यात्रा की गवाही देती है, जिसकी शुरुआत संत पोप जॉन पॉल द्वितीय ने की थी। वार्षिक सम्मेलन के ढांचे के भीतर प्रस्तुत अंद्रेया रिक्कार्दी की किताब के माध्यम से, वर्तमान समस्याओं, युद्ध के खतरों और शांति की उम्मीदों को समझा जा सकता है। इसके अलावा, धर्मों और विश्वासियों के बीच संवाद से उत्पन्न 'ऊर्जा' और उम्मीदों को भी समझा जा सकता है। ये ऐसी भावनाएँ हमें हमेशा इस बात से निराश नहीं होने में मदद करती हैं कि शांति संभव है।
संत पापा जॉन पौल द्वितीय की अंतर्दृष्टि जिसने विभिन्न धर्मों के लोगों को एक दूसरे के साथ प्रार्थना करने के लिए असीसी बुलाया और एक दूसरे के खिलाफ नहीं होने का आह्वान किया, साहसिक था। शीत युद्ध अभी भी जारी था, और समय ख़तरनाक लग रहा था। धर्म, एक तरफ शांति के लिए संसाधन प्रस्तुत कर सकते हैं, लेकिन दूसरी तरफ, संघर्षों को बढ़ावा भी दे सकते हैं।
असीसी की घटना ने अपनी नवीनता के कारण दुनिया को चकित कर दिया। जिन लोगों ने 27 अक्टूबर को असीसी को देखा, वे जानते हैं कि लोगों ने इसे दूर से भी ऐतिहासिक घटना के रूप में देखा। हालाँकि, ऐतिहासिक घटनाओं के साथ अक्सर होनेवाले विवाद भी थे। समस्या यह थी कि असीसी में हुई महान घटना के बाद उस रास्ते पर कैसे आगे बढ़ा जाए। जॉन पॉल द्वितीय ने बैठक के अंत में कहा था: "शांति प्राप्त करने की अदम्य इच्छा के बिना शांति नहीं मिलती। शांति अपने नबियों का इंतजार करती है" (जॉन पॉल द्वितीय, असीसी, 27 अक्टूबर, 1986)।
संत पापा ने लिखा, जैसा कि मैंने 30 सितम्बर, 2013 को रोम में अंतर्राष्ट्रीय शांति सभा के अंत में धार्मिक नेताओं से मुलाकात के दौरान कहा था, "असीसी एक अलग घटना नहीं रह सकती थी और न ही रहनी चाहिए:" "आपने इस मार्ग को जारी रखा है और सभी धर्मों के महत्वपूर्ण व्यक्तियों के साथ-साथ धर्मनिरपेक्ष और मानवतावादी प्रतिनिधियों को संवाद में शामिल करके इसकी गति को बढ़ाया है।"
"विशेष रूप से इन महीनों में, हमें लगता है कि दुनिया को उस भावना की आवश्यकता है जिसने उस ऐतिहासिक सभा को जीवंत कर दिया था। क्यों? क्योंकि इसे शांति की बहुत आवश्यकता है। नहीं! हम कभी भी सभी लोगों, युद्ध, दुःख और शोषण के बंधकों के दर्द को सहन नहीं कर सकते। 1986 के बाद के वर्षों में असीसी का मार्ग शांति के लिए प्रार्थना और संवाद में विश्वास का कार्य रहा है।"
इस मार्ग ने विभिन्न धार्मिक दृष्टिकोणों से व्यक्तियों को एकत्रित किया है; यह दुनिया भर में विभिन्न स्थानों की यात्रा कर चुका है। सबसे पहले, रोम के पड़ोस त्रास्तेवेरे में दो बार; फिर 1989 में वारसॉ में, जब दीवार गिरनेवाली थी; या बुखारेस्ट में। 1998 में, एक ऑर्थोडॉक्स देश में जब पोप जॉन पॉल द्वितीय की पहली प्रेरितिक यात्रा का मार्ग प्रशस्त हुआ। संवाद और मित्रता के अभ्यास में "असीसी की भावना" ने सदियों से दूर या शत्रुतापूर्ण रहे विभिन्न धर्मों के शांतिप्रिय पुरुषों और महिलाओं का निर्माण किया है।
हर साल अपनाया जानेवाला मार्ग “रास्ता दिखाता है: संवाद का साहस देता है”: धार्मिक नेताओं को सच्चे “संवादकर्ता” बनने के लिए प्रेरित करता है, ताकि वे बिचौलियों के रूप में नहीं, बल्कि सच्चे मध्यस्थ के रूप में शांति के निर्माण की दिशा में काम कर सकें। हममें से हर एक को शांति के कारीगर बनने, एकजुट होने और विभाजित न करने, नफरत को खत्म करने और संवाद के लिए रास्ते खोलने एवं नई दीवारें खड़ी न करने के लिए कहा जाता है!
दुनिया में संवाद और मुलाकात की संस्कृति स्थापित करने के लिए संवाद और सभाओं की आवश्यकता है। इस मार्ग पर चलते हुए, धार्मिक दुनियाएँ एक दूसरे के करीब आ गई हैं। हालाँकि कट्टरवाद के क्षेत्र और स्थितियाँ बनी हुई हैं, जो चिंताजनक हैं, 21वीं सदी में, विभिन्न धर्मों के विश्वासियों के बीच संबंधों में एक गहरा बदलाव आया है, जिन्होंने संवाद को निर्णायक मानना शुरू कर दिया है।
पोप लिखते हैं, “मैं विशेष रूप से विश्व शांति और साथ-साथ रहने के लिए मानव बंधुत्व पर दस्तावेज़ के बारे में सोचता हूँ, जिस पर मैंने 2019 में अल अजहर के ग्रैंड इमाम अहमद अल-तैयब के साथ हस्ताक्षर किए थे। हालाँकि, आज और अधिक संवाद की आवश्यकता है। विशेष रूप से, इस अवधि में, इतने सारे खुले संघर्षों और युद्धों के खतरों के साथ, हम महसूस करते हैं कि "बातचीत के बिना दुनिया घुटन महसूस करती है।" (पोप फ्राँसिस, 15 जून, 2014)।
खुले, स्पष्ट और निरंतर संवाद की आवश्यकता है। धर्म जानते हैं कि "संवाद और प्रार्थना एक साथ बढ़ते या मुरझाते हैं। मनुष्य और ईश्वर का संबंध मनुष्यों के साथ संवाद का स्कूल और पोषण है" (पोप फ्रांसिस, 30 सितंबर, 2013)। इस कारण से, असीसी की आत्मा में अपनाए गए मार्ग में, संत इजिदियो समुदाय के प्रोत्साहन के साथ, प्रार्थना हमेशा एक केंद्रीय आयाम रही है। हम वास्तव में प्रार्थना की विनम्र और कोमल शक्ति में विश्वास करते हैं।
संवाद, दोस्ती और प्रार्थना के मार्ग पर चलते हुए, हमने यह जागरूकता हासिल की है कि शांति पवित्र है और ईश्वर के नाम का लड़ाई या आतंक फैलाने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता! ऐसी जागरूकता व्यापक है और शांति चाहने वाले साधारण विश्वासियों में निहित है। उनकी और युद्ध से पीड़ित लोगों की प्रार्थना संवाद का समर्थन करती है।
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