पोप : हम बढ़नेवाली कलीसिया बन सकें, सुसमाचार का आनन्द बांट सकें
वाटिकन सिटी, रविवार, 27 अक्टूबर 2024 (रेई) : संत पापा फ्राँसिस ने वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर में रविवार 27 अक्टूबर को समारोही ख्रीस्तयाग के साथ सिनॉडालिटी पर धर्मसभा का समापन किया।
इस अवसर पर अपने धर्मोपदेश में संत पापा ने सुसमाचार पाठ पर चिंतन करते हुए कहा, "सुसमाचार हमें बरतिमेयुस के बारे में बताता है, जो एक अंधा व्यक्ति था जिसे सड़क के किनारे भीख मांगने के लिए मजबूर किया जाता था, वह एक निराश व्यक्ति था, हालांकि, जब वह येसु को गुजरते हुए सुनता है, तो उन्हें पुकारना शुरू कर देता है। उसके पास बस इतना ही बचा है: अपना दर्द रोना और अपनी दृष्टि वापस पाने की इच्छा येसु के पास लाना। और जब उसके चिल्लाने से परेशान होकर, हर कोई उसकी निंदा करता है तो येसु रुक जाते हैं।"
संत पापा ने कहा, “क्योंकि ईश्वर सदैव गरीबों की पुकार सुनते हैं और उनके सामने कोई भी दर्द की पुकार अनसुनी नहीं होती।” उन्होंने कहा, आज, धर्माध्यक्षों की धर्मसभा की महासभा के समापन पर, हम जो कुछ साझा कर सकते थे उसके लिए हमारा दिल कृतज्ञ है।
सुसमाचार पाठ में वर्णित व्यक्ति पर गौर करते हुए संत पापा ने कहा, शुरुआत में, "वह भीख मांगने के लिए सड़क पर बैठा था।"(मार. 10,46), जबकि अंत में, येसु द्वारा बुलाए जाने और दृष्टि वापस पाने के बाद, उसने सड़क पर उनका अनुसरण किया।( 52)
अपने अंधेपन को महसूस करना
बरतिमेयुस के बारे सुसमाचार हमें पहली बात बताता है कि वह भीख मांगने के लिए बैठा था। उनकी स्थिति उस व्यक्ति की तरह थी जो अपने दर्द में डूबा हो, सड़क के किनारे बैठा हो ताकि पास्का के अवसर पर जेरिको शहर से गुजरने वाले तीर्थयात्रियों से कुछ प्राप्त कर सके, इसके अलावा वह कुछ नहीं कर सकता था।
लेकिन, जैसा कि हम जानते हैं, वास्तव में जीने के लिए आप शांत नहीं बैठ सकते हैं: जीना हमेशा आगे बढ़ना, बाहर निकलना, सपने देखना, योजना बनाना, भविष्य के लिए खुलना है।
संत पापा ने कहा, अंधा बरतिमेयुस, उस आंतरिक अंधेपन का भी प्रतिनिधित्व करता है जो हमें रोकता है, हमें शांत बैठा देता है, हमें जीवन के किनारे कर देता है, और कोई आशा नहीं रह जाती है।
और यह हमें न केवल अपने व्यक्तिगत जीवन के बारे में, बल्कि हमारे प्रभु की कलीसिया होने के बारे में भी सोचने पर मजबूर करता है। रास्ते में, कई चीजें हमें अंधा बना सकती हैं, प्रभु की उपस्थिति को पहचानने में असमर्थ, वास्तविकता की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार नहीं, कभी-कभी यह जानने में अपर्याप्त होते कि कई सवालों का जवाब कैसे दिया जाए, जैसा कि बरतिमेयुस येसु के साथ करता है। तथापि, आज की महिलाओं और पुरुषों के सवालों, हमारे समय की चुनौतियों, धर्म प्रचार की आवश्यकता और मानवता को पीड़ित करनेवाले कई घावों का सामना करते हुए, हम गतिहीन नहीं रह सकते।
एक बैठी हुई कलीसिया, जो लगभग बिना एहसास किए ही जीवन से दूर हो जाती और खुद को वास्तविकता के हाशिये तक सीमित कर लेती है, वह एक ऐसी कलीसिया है जो अंधी होने और अपनी ही असुविधा में उलझे रहने की जोखिम उठाती है। और यदि हम अपने अंधेपन में बैठे रहेंगे, तो हम अपनी प्रेरितिक आवश्यकताओं और दुनिया जिसमें हम रहते हैं उसकी समस्याओं को नहीं देख पाएंगे।
प्रभु को पुकारना
संत पापा ने इसके लिए पवित्र आत्मा से प्रार्थना करने का आह्वान किया, ताकि हम अपने अंधेपन में न बैठ रहें, एक ऐसा अंधापन जिसे सांसारिकता कहा जा सकता है, जिसे सुविधा कहा जा सकता है, जिसे एक बंद दिल कहा जा सकता है। अतः हम अपने अंधेपन में बैठे नहीं रहें।
इसके बजाय हम याद रखें कि प्रभु गुजरते हैं, प्रभु हर दिन गुजरते हैं, प्रभु हमेशा गुजरते हैं और हमारे अंधेपन को चंगा करने के लिए रुकते हैं। और क्या उनके गुजरने का एहसास मुझे हो पाता है? क्या मुझमें प्रभु के कदमों को सुनने की क्षमता है? क्या मुझमें यह जानने की क्षमता है कि प्रभु कब गुज़रेंगे? और यह सुंदर है अगर धर्मसभा हमें बरतिमेयुस की तरह कलीसिया बनने के लिए प्रेरित करती है: शिष्यों का एक ऐसा समुदाय, जो प्रभु को पास से गुजरते हुए महसूस करता है, मुक्ति की खुशी का अनुभव करता है, खुद को सुसमाचार की शक्ति से जागृत होने देता और उन्हें पुकारना शुरू करता है। यह पृथ्वी की सभी महिलाओं और पुरुषों का पुकारना है: उन लोगों का, जो सुसमाचार के आनंद की खोज करना चाहते हैं और उनका जो दूर चले गए हैं; जो उदासीन हैं उनकी मूक पुकार; जो पीड़ित हैं, गरीबी और हाशिये पर पड़े लोगों की, बाल श्रमिकों की, दासों की, जो काम के लिए दुनिया के कई हिस्सों में गुलाम बनाए गए हैं; टूटी हुई आवाज। किसी ऐसे व्यक्ति की टूटी हुई आवाज सुनना जिसके पास अब ईश्वर को पुकारने की ताकत भी नहीं है, क्योंकि उसके पास कोई आवाज नहीं है या उन्होंने खुद ही इस्तीफा दे दिया है।
हमें ऐसी कलीसिया की जरूरत नहीं है जो बैठ जाए और हार मान ले, बल्कि ऐसी कलीसिया की जरूरत है जो दुनिया की पुकार सुने, एक ऐसी कलीसिया जो प्रभु की सेवा करने के लिए अपने हाथ गंदे करती है।
संत पापा ने बरतिमेयुस के दूसरे पहलू चिंतन करते हुए कहा, शुरुआत में बरतिमेयुस बैठा था, लेकिन अंत में, वह रास्ते पर येसु का अनुसरण करता है। यह सुसमाचार की एक विशिष्ट अभिव्यक्ति है जिसका अर्थ है: वह येसु का शिष्य बन गया, वह उनका अनुसरण करने लगा। उसके पुकारने पर येसु रुक गये और उसे बुलाया। बरतिमेयुस जो बैठा था, उछल पड़ा और तुरंत उसकी दृष्टि वापस आ गई। अब, वह प्रभु को देख सकता है, वह अपने जीवन में ईश्वर के कार्य को पहचान सकता है, और वह अंततः उसके पीछे चल सकता है।
प्रभु के पीछे चलना
उसी तरह, हम भी, जब बैठे और आराम से हैं, जब एक कलीसिया के रूप में ताकत, साहस और शक्ति नहीं पाते हैं, उठने और यात्रा फिर से शुरू करने के लिए आवश्यक धैर्य महसूस नहीं करते हैं, प्रभु की ओर लौटें, सुसमाचार की ओर लौटें। हमेशा और बार-बार, जैसे ही वे हमारे पास से गुजरते हैं, हमें उनकी पुकार सुननी चाहिए, जो हमें वापस अपने पैरों पर खड़े करते हैं और हमें अंधेपन से बाहर लाते हैं। और फिर रास्ते में उनके साथ चलते हुए दोबारा उनका अनुसरण करना शुरू करें।
संत पापा ने कहा, बरतिमेयुस के बारे में सुसमाचार कहता है कि वह "मार्ग में उनके पीछे हो लिया।" उन्होने कहा, यह धर्मसभा कलीसिया की एक छवि है: प्रभु हमें बुलाते हैं, जब हम बैठे होते हैं या गिर जाते हैं तो हमें उठाते हैं, हमें नई दृष्टि प्रदान करते हैं, ताकि सुसमाचार के प्रकाश में हम दुनिया की चिंताओं और पीड़ाओं को देख सकें; और इस प्रकार, प्रभु हमें अपने पैरों पर वापस खड़ा करते हैं, और हम रास्ते में उनके पीछे चलने की खुशी महसूस करते हैं। हम मार्ग में प्रभु का अनुसरण करते हैं, अपनी सुख-सुविधाओं में बंद होकर या अपने विचारों के भूलभुलैये में उनका अनुसरण नहीं करते।
सुसमाचार की ज्योति फैलाना
संत पापा ने येसु के पीछे चलने की सलाह देते हुए कहा, हम हमेशा याद रखें: अपने दम पर या दुनिया के मानदंडों के अनुसार नहीं, बल्कि रास्ते पर एक साथ, उनके पीछे और उनके साथ चलें। उन्होंने कहा, भाइयो और बहनो: एक बैठी हुई कलीसिया नहीं, बल्कि खड़ा हुई कलीसिया; एक मूक कलीसिया नहीं, बल्कि एक ऐसी कलीसिया बनें जो मानवता की पुकार सुनती है। कोई अंधी कलीसिया नहीं, बल्कि ख्रीस्त के प्रकाश से प्रकाशित कलीसिया दूसरों तक सुसमाचार का प्रकाश पहुंचा सकती है। एक स्थिर कलीसिया नहीं, बल्कि एक मिशनरी कलीसिया ही, दुनिया की सड़कों पर प्रभु के साथ चल सकती है।
और आज, जब हम उस यात्रा के लिए प्रभु को धन्यवाद दे रहे हैं जिसको हमने एक साथ तय की है, हम संत पेत्रुस की प्राचीन कुर्सी के अवशेष को देखने और उसका सम्मान करने में सक्षम होंगे, जिसे सावधानीपूर्वक बहाल किया गया है। विश्वास के आश्चर्य के साथ इस पर चिंतन करते हुए, आइए याद रखें कि यह प्रेम की कुर्सी है, यह एकता की कुर्सी है, और दया की कुर्सी है, उस आदेश के अनुसार जो येसु ने प्रेरित पेत्रुस को दूसरों पर हावी होने नहीं, बल्कि उदारता पूर्वक उनकी सेवा करने के लिए दिया था।
संत पापा ने महागिरजाघर की वेदी के ऊपर बर्निनी की छतरी की प्रशंसा करते हुए, कहा कि यह पहले से कहीं अधिक शानदार हो गया है जो संपूर्ण महागिरजाघर का असली केंद्र बिंदु है, यानी पवित्र आत्मा की चमक। यह सिनॉडल कलीसिया है: एक समुदाय जिसकी प्रधानता आत्मा के वरदान में है, जो हम सभी को मसीह में भाई-बहन बनाता और हमें उनकी ओर बढ़ाता है।
उन्होंने विश्वासियों का आह्वान करते हुए कहा, “बहनो एवं भाइयो, आइए हम आत्मविश्वास के साथ मिलकर अपनी यात्रा जारी रखें। आज हमारे लिए भी ईश्वर का वचन दोहराया जाता है, जैसा कि बरतिमेयुस को कहा गया था: "साहस रखो, उठो, वे तुम्हें बुला रहे हैं।"
चिंतन हेतु प्रेरित करते हुए उन्होंने कहा, “क्या मुझे बुलावा महसूस होता है? क्या मैं कमज़ोर महसूस कर रहा हूँ और उठ नहीं पा रहा हूँ? क्या मैं मदद माँगता हूँ?”
अंत में संत पापा ने कहा, “आइए, हम इस्तीफे का लबादा उतार दें, और अपने अंधेपन को प्रभु को सौंप दें। हम खड़े हों और सुसमाचार का आनंद लेकर जाएँ, इसे दुनिया की सड़कों पर ले जाएँ।
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