संत पापा फ्रांसिस आमदर्शन समारोह में संत पापा फ्रांसिस आमदर्शन समारोह में 

संत पापाः पवित्र आत्मा के उपहार सेवा और एकता हेतु

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह में पवित्र आत्मा के करिश्माई कार्यों पर अपनी धर्मशिक्षा दी जो जनसामान्य की भलाई हेतु हमें निमंत्रण देता है।

वाटिकन सिटी

संत पापा फ्राँसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह में विश्व के विभिन्न देशों से आये हुए विश्वासियों और तीर्थयात्रियों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों सुप्रभात।

पिछले तीन धर्मशिक्षा मालाओं में हमने पवित्र आत्मा के पवित्रिकरण के कार्य की चर्चा की जिसे वे संस्कारों, प्रार्थना और ईशमाता के अनुसरण में करते हैं। लेकिन हम द्वितीय वाटिकन महासभा की प्रसिद्ध बातों को सुनें, “पवित्र आत्मा ईशप्रजा का पवित्रिकरण और गुणों में समृद्धि संस्कारों और कलीसियाई प्रेरिताई के माध्यम से केवल नहीं, बल्कि हरएक को अपनी इच्छा के अनुरूप दिये जाने वाले उपहारों के माध्यम से भी करता है।” संत पापा ने कहा कि पवित्र आत्मा ने हममें से हरएक को व्यक्तिगत रुप में अपने वरदानों से विभूषित किया है।

करिश्माई कार्यः जनसामान्य की भलाई हेतु

अतः, हम कलीसिया में पवित्र आत्मा के एक दूसरे कार्य करने के तरीके का जिक्र करेंगे जो हमारे लिए उनका करिश्माई कार्य है, उन्होंने कहा कि इसे शब्दों में व्याख्या करना कठिन है। फिर भी इस करिश्माई कार्य को दो रूपों में परिभाषित किया जा सकता है- पहला करिश्मा जो हमारे लिए एक उपहार है जिसके द्वारा “जनसामान्य की भलाई” होती है, सभों के हित में उपयोगी। दूसरे शब्दों में यह मुख्यतः और सामान्यतः व्यक्ति के पवित्रीकरण पर आधारित नहीं है, लेकिन इसके द्वारा समुदाय की “सेवा” होती है। दूसरा करिश्मा एक उपहार है जो “किसी एक के लिए” या “कुछेक” के लिए विशेष रुप में दिया गया है, यह सभों के लिए एक समान नहीं है, और यही तथ्य इसे कृपा से पवित्रीकरण, ईशशास्त्रीय गुणों और संस्कारों से अलग स्थापित करता है, जो वास्तव में, सभों के लिए बराबर और सामान्य है। करिश्मा किसी विशेष व्यक्ति या समुदाय के लिए होता है। यह एक उपहार है जो ईश्वर हमें प्रदान करते हैं।

कृपा, गहनों का रुप  

द्वितीय वाटिकन धर्मसभा भी इसकी व्याख्या करती है। पवित्र आत्मा, “अपनी विशेष कृपाओं को विश्वासियों के लिए प्रदान करते हैं। अपने इन उपहारों के द्वारा वे उन्हें अपने विशेष कार्य हेतु योग्य बनाते और तैयार करते हैं जो कलीसिया की नवीनता और उसके निर्माण हेतु अग्रसर करता है, प्रेरित संत पौलुस के शब्दों में “वह प्रत्येक को वरदान देता है, जिससे वह सबों के हित के लिए पवित्र आत्मा को प्रकट करे।”

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि करिश्मे “गहनों” या अभूषणों की भांति हैं जिसे पवित्र आत्मा येसु ख्रीस्त की वधू को और अधिक सुन्दर होने के लिए प्रदान करते हैं। इस संदर्भ में कोई भी वाटिकन द्वितीय धर्मसभा की बातों को समझने के योग्य होता है,“ये करिश्मे वे चाहे अपने में अद्वितीय हों या एकदम साधारण और विस्तृत, कृतज्ञता और उचित मनोभावों के साथ स्वीकार किया जाना चाहिए क्योंकि वे कलीसिया की जरूरतों की पूर्ति हेतु पूरी तरह से उपयुक्त और उपयोगी हैं।”

संत पापा बेनेदिक्त 16वें इस बात की पुष्टि करते हुए कहते हैं, “जो कोई भी युग के इतिहास पर विचार करता है वह सच्चे नवीकरण की प्रक्रिया को पहचान सकता है, जो अप्रत्याशित ढ़ंग से जीवित आंदोलनों का रुप धारण किया और जिसने पवित्र कलीसिया की असीम जीवन शक्ति को लगभग मूर्त बना दिया, और यह लोगों के एक समूह का करिश्मा है, व्यक्ति विशेष का करिश्मा।

संत पापाः पवित्र आत्मा के उपहार गहनों की भांति हैं

करिश्मों की पुनः खोज करें

संत पापा ने कहा कि हमें करिश्मों के पुनः खोजने की जरुरत है क्योंकि यह हम लोकधर्मियों के विकास को सुनिश्चितता प्रदान करती है विशेषकर नारियों के संबंध में जो केवल एक संस्थागत और समाजशास्त्रीय तथ्य तक ही सीमित नहीं हैं  बल्कि उन्हें धर्मग्रंथ और आध्यात्मिक आयाम के आधार पर भी समझा जाता है। लोकधर्मी अपने में आखरी नहीं हैं, वे अपने में एक तरह से बाह्य सहयोगी नहीं, न ही धर्मविधि में सहायक भीड़ ही। उनके अपने करिश्मे और उपहार हैं जो कलीसिया की प्रेरिताई में हाथ बंटाते हैं।

प्रेम में साधारण चीजें असाधरण बनती

संत पापा ने आगे कहा कि हम एक और चीज को जोड़ें- जब हम करिश्मा की बातें करते हैं तो हमें तुरंत इस नसमझी को अपने से दूर करने की जरुरत है कि हम शानदार या असाधारण उपहार और क्षमताएं के धारक हैं, इसके बदले हमारी सोच यह हो कि वे साधारण उपहार हैं जो पवित्र आत्मा की प्रेरणा और जीवन के प्रेमपूर्ण स्थितियों में हमारे लिए असाधरण बन जाते हैं। संत पापा ने कहा कि हममें से हर कोई करिश्मा है। करिश्मों के संबंध में ऐसा भाव रखना महत्वपूर्ण है क्योंकि बहुत से ख्रीस्तीय करिश्मों के बारे में जिक्र करने पर उदासी और निराशा का अनुभव करते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि वे अपने में कुछ नहीं हैं, और इस तरह वे अपने को अलग करते या अपने को दोयाम दर्जे के ख्रीस्तीय समझते हैं। संत आगुस्टीन अपने समय में एक अति सुंदर तुलना करते हुए अपने लोगों से कहते हैं, “यदि तुम प्रेम करते हो, तो तुम्हारे पास मानो थोड़ा कुछ है, लेकिन यदि आप एकता से प्रेम करते हैं, तो वह सब कुछ जो किसी के पास है, आपके पास भी है। हमारे शरीर में केवल आंख देखता है, लेकिन क्या वह केवल अपने लिए ही देखता हैॽ वह हाथ-पैर और पूरे शरीर के अंगों के लिए देखता है।”

संत पापा ने कहा कि यह हमारे लिए प्रेम के मर्म को परिभाषित करता है जो अपने में “अद्वितीय मार्ग” है। यह मुझे कलीसिया को प्रेम करने हेतु अग्रसर करता है या उस समुदाय को जिसमें मैं एकता में रहता हूँ, सारे करिश्माओं को न की सिर्फ एक “मेरे” करिश्मा को। यद्यपि वह अपने में छोटा क्यों न लगे वह सभों के हित, सबकी भलाई हेतु है। प्रेम हमारे करिश्मे को बढ़ता है, यह किसी एक के करिश्मे को सभों का करिश्मा बनाता है।

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20 November 2024, 15:25