पोप : कलीसिया को ख्रीस्त पर केंद्रित सिनॉडालिटी पर ईशशास्त्रीय चिंतन की जरूरत है
वाटिकन न्यूज
परमधर्मपीठीय ईशशास्त्रीय आयोग की आमसभा के दौरान संत पापा ने नैसिन की परिषद के प्रेरितों के धर्मसार पर प्रकाश डालने के लिए, एक दस्तावेज में उनके कार्य की सराहना की।
2025 की जयंती पहली विश्वव्यापी महासभा की 1,700वीं वर्षगांठ है, जिसने नैसिन के प्रेरितों का धर्मसार विकसित किया था, जिसमें कहा गया था कि पुत्र पिता के साथ एक है।
उन्होंने गुरुवार को प्रतिभागियों के साथ मुलाकात के दौरान कहा, "इस तरह का एक दस्तावेज, जयंती वर्ष के दौरान, विश्वासियों के विश्वास को पोषित करने और गहरा करने के लिए और येसु के व्यक्तित्व के आधार पर, मसीह की मानवता से प्रेरित एक नए सांस्कृतिक और सामाजिक प्रतिमान के लिए उपयोगी अंतर्दृष्टि और प्रतिबिंब प्रदान करने के लिए अमूल्य साबित हो सकता है।"
ईशशास्त्र को ‘येसु के हृदय के करीब’ रखा जाना चाहिए
इसी भावना से पोप फ्रांसिस ने सभी ईशशास्त्रियों को हमेशा ख्रीस्त को अपने अध्ययन के केंद्र में रखने के लिए आमंत्रित किया, साथ ही सिनॉडालिटी के ईशशास्त्र को भी विकसित करने के लए प्रेरित किया। पोप ने कहा कि पवित्र वर्ष ख्रीस्त के चेहरे को फिर से खोजने का अवसर प्रदान करता है। उनहोंने कहा, ईशशास्त्रियों को अपना सिर “येसु के हृदय के करीब” रखने की आवश्यकता है, जैसा कि प्रेरित संत जॉन ने अंतिम भोज में किया था।
उन्होंने कहा, "प्रभु के हृदय के करीब रहने से आपका ईशशास्त्र स्रोत से आएगा और कलीसिया तथा दुनिया में फल देगा।"
पोप ने कहा कि ईशशास्त्र को सभी विश्वासियों के लिए मसीह के साथ मुलाकात को बढ़ावा देने का प्रयास करना चाहिए, यहाँ तक कि उन लोगों को भी जिन्होंने उच्च अध्ययन नहीं किया है।
उन्होंने कहा, “येसु में हम ईश्वर के चेहरे को जानते हैं, साथ ही मानवता के चेहरे को भी और इस तरह हम महसूस करते हैं कि पुत्र में बेटे और बेटियाँ हैं एवं एक दूसरे के भाई और बहन हैं।”
उन्होंने कहा कि यह भाईचारा ख्रीस्तीयों को शांति और न्याय को बढ़ावा देने के लिए मार्गदर्शन देना चाहिए, विशेष रूप से संघर्ष से ग्रस्त हमारी दुनिया में।
विनोदी भावना के साथ मिशनरी कलीसिया
पोप फ्राँसिस ने ईशसभा द्वारा निरंतर शोध के आह्वान को याद करते हुए, ईशशास्त्रियों से सिनॉडालिटी के निहितार्थों का पता लगाने का आग्रह किया।
उन्होंने उन्हें कलीसिया के मिशनरी उद्देश्य पर विशेष ध्यान देते हुए धर्मसभा की कलीसिया संबंधी आयाम पर विचार करने के लिए आमंत्रित किया।
उन्होंने कहा, "समय आ गया है, एक साहसी कदम आगे बढ़ाने और सिनॉडालिटी के ईशशास्त्र को विकसित करने का, एक ईशशास्त्रीय चिंतन जो धर्मसभा प्रक्रिया में मदद कर सके, उसे प्रोत्साहित कर सके और साथ दे सके, एक नए, अधिक रचनात्मक और साहसी मिशनरी चरण के लिए, जो घोषणा से प्रेरित हो और जिसमें कलीसिया के जीवन के हर घटक को शामिल किया जाए।"
अंत में, पोप फ्रांसिस ने ईशशास्त्रियों को याद दिलाया कि वे अपनी विनोदी भावना को न खोएं, भले ही वे प्रतिदिन महत्वपूर्ण अध्ययन कर रहे हों।
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