संत पापाः हम सदैव आशा में खुशी के संदेशवाहक बनें
संत पापा फ्रांँसिस ने फ्रांस के द्वीप आजाशियो की एक दिवसीय प्ररेतिक यात्रा की वहाँ की कलीसिया के लिए यूखरीस्तीय बलिदान अर्पित किया।
संत पापा ने अपने उपदेश में कहा कि भीड़ योहन बपतिस्ता से पूछती थी, “उन्हें क्या करना चाहिए?” हमें इस सवाल को ध्यान से सुनने की जरुरत है, क्योंकि यह एक आध्यात्मिक नवीनीकरण और एक बेहतर जीवन की चाह व्यक्त करता है। योहन एक बहुप्रतीक्षित मसीह के आने की घोषणा करते हैं और जो उनके प्रवचन को सुनते वे उनसे मिलने हेतु तैयारी करने की सोचते हैं।
परिवर्तन की इच्छा
लूकस का सुसमाचार हमें बतलाता है कि वे लोग जो इस परिवर्तन की इच्छा जाहिर करते हैं वे सब बाहरी हैं। ये फरीसी और नियमों के ज्ञाता नहीं बल्कि नाकेदार और सिपाही हैं जो यह पूछते हैं कि उन्हें क्या करने की जरुरत है? वे जो अपने को धर्मी समझते उनमें नयापन नहीं आता है। वहीं दूसरी ओर वे जो अपने को पापी समझते वे अपने बेईमानी और हिंसा भरे पुराने जीवन का परित्याग करने की सोचते और नये जीवन की शुरूआत करना चाहते हैं। जब कभी ख्रीस्त आते दूर रहनेवाले उनके निकट आ जाते हैं। योहन नाकेदारों और सिपाहियों को उत्तर देते हुए कहते हैं कि वे न्याय, ईमानदारी औ सही व्यवहार करें। ख्रीस्त के आने की घोषणा चेतना को उद्वेलित करता है। यह विशेषकर गरीबों और परित्यक्त लोगों के लिए क्योंकि वे उन्हें दण्ड देने नहीं आते बल्कि उन्हें बचाने आते हैं।
हम अपने में पूछें
प्रिय भाइयो एवं बहनो आज हम भी भीड़ की तरह अपने लिए योहन बपतिस्ता से पूछे गये सवालों पर चिंतन कर सकते हैं। यह आगमन काल है अतः हम साहस के साथ भयभीत हुए बिना अपने लिए पूछें, “हमें क्या करना चाहिए?” जिससे हम ईश्वर के आगमन में अपने हृदय को नम्र और विश्वासी बना सकें।
सुसमाचार जिसे हमने आज सुना हमें मसीह के इंतजार के दो अलग रूपों को प्रस्तुत करता है, हम संदेह में या खुशी में मुक्ति के आने की आशा देख सकते हैं। हम इन दो आध्यात्मिक मनोभावओं पर चिंतन करें।
संदेह के मनोभाव
संदेह के मनोभाव पर चिंतन प्रस्तुत करते हुए संत पापा ने कहा कि यह अविश्वास और चिंता से भरा है। जब हम अपने बारे में और अपनी जरूरतों के बारे में सोचते हैं तो हम खुशी के मनोभाव को खो देते हैं। आशा में भविष्य की चिंता करने के बदले हम इसे उदासीनता में देखते हैं। हम दुनियावी बातों में पड़ जाते हैं, हम ईश्वर के दिव्य कार्यों के लिए खुला नहीं रह जाते हैं। संत पौलुस के कथन इसमें हमारी सहायता करते हुए हमें अपने सुस्तीपन से उठने में मदद कर सकते हैं, “आप किसी चीज की चिंता न करें।” उदास, निराश या दुःखी न हों। ये सारी आध्यात्मिक बुराइयाँ विशेषकर भौतिकता से भरे स्थलों में बनी रहती हैं। ऐसे समाज अपने में बूढ़ी होती जाती है, वे असंतोष के शिकार होते हैं क्योंकि वे देना नहीं जानते हैं। यदि हम अपने लिए जीते हैं तो हम अपने में कभी खुश नहीं हो सकते हैं।
चिंता न करें
प्रेरित इसके लिए एक प्रभावकारी सुझाव प्रस्तुत करते हैं, “किसी बात की चिंता न करें। हर जरूरत में प्रार्थना करें और विनय तथा धन्यवाद के साथ ईश्वर के सामने अपने निवेदन प्रस्तुत करें।” ईश्वर में विश्वास हमें आशा प्रदान करती है। अजाशियो में खत्म हुए सम्मेलन हमारे लिए विश्वास की महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध लोकधार्मिकता की प्रंशसा करता है। उदाहरण के लिए रोजरी माला की विन्ती। जब हम रोजरी लेकर अच्छी तरह प्रार्थना करते हैं, तो यह हमारे हृदयों को ईश्वर की ओर क्रेन्दित रखने में मदद करता है जिसके द्वारा हम मरियम की ओर चिंतन भरी निगाहें फेरते हैं। हम पारंपरिक भाईचारे के बारे में भी सोच सकते हैं, जो हमें आध्यात्मिक और शारीरिक दया के कार्यों के माध्यम अपने पड़ोसियों की उदारतापूर्वक सेवा करने के बारे में शिक्षा देती है। विश्वासियों के ये संगठन, जिनका इतिहास बहुत समृद्ध है, सक्रिय रूप से धर्मविधि और कलीसिया की प्रार्थना में भाग लेते हैं, जिसे वे लोकप्रिय गीतों और भक्ति से समृद्ध करते हैं। मैं संघ के सदस्यों को प्रोत्साहित करता हूँ कि वे और अधिक सक्रिय रुप में, विशेष रूप से अधिक जरूरतमंदों के लिए कार्य करें, और यह पुण्य कार्यों के माध्यम से विश्वास का अभ्यास होगा।
खुशी में आशावान बने रहें
संत पापा ने दूसरे मनोभाव खुशी में आशावान बने रहने की ओर चिंतन करते हुए कहा कि ख्रीस्तीय खुशी छिछली या क्षणभंगुर नहीं होती है। इसके विपरीत, यह एक ऐसी खुशी है जो हृदय में जड़ित और अपने में मजबूत आधार है। इस अर्थ में नबी सफान्या अपने सुननेवालों को आनंदित होने को कहते हैं, “तेरा ईश्वर तेरे बीच है, वह विजयी योद्धा है।” ईश्वर का आना हमारे लिए मुक्ति लेकर आता है जो हमारे लिए खुशी का कारण है। धर्मग्रंथ हमें बतलाता है कि ईश्वर शक्तिशाली हैं। वे हमारे जीवन में मुक्ति लाते हैं क्योंकि वे अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करते हैं। हमारी सांत्वना अपने में विलुप्त नहीं होती जो हमारे जीवन के दुःखों को भुलने में मदद करती हो। यह पवित्र आत्मा का फल है जो ख्रीस्त हमारे मुक्तिदाता में विश्वास से उत्पन्न होता है, जो हमारे हृदय के द्वार को खटखटाते और हमें दुख और थकान के मुक्त करते हैं। हमारे बीच ईश्वर की उपस्थिति हमारे लिए आनंद का कारण बनती है, यह हर एक भविष्य को आशा से भर देता है। येसु की उपस्थिति में हम जीवन जीने की सच्ची खुशी को प्राप्त करते हैं और हम ईश्वर उपस्थिति की निशानी दुनिया के लिए बनते हैं जो इसकी खोज करती है।
इसकी पहली निशानी शांति है। वे जो आनेवाले हैं वे हमारे संग रहनेवाले ईश्वर एम्मनुएल है, जो अपने लोगों को शांति प्रदान करते हैं। आगमन के इस काल में जैसे हम येसु का स्वागत करने की तैयारी कर रहे हैं, हमारे समुदाय एक दूसरे का साथ देने की योग्यता में विकास करे, विशेषकर युवाओँ को बपतिस्मा और दूसरे संस्कारों को ग्रहण करने की तैयारी कर रहें है। संत पापा ने कोर्सिका में युवाओं की अच्छी संख्या के लिए ईश्वर का धन्यवाद किया। इस मार्ग में आप बढ़ते जाये- कलीसिया अपने खुश रहने में फलहित होती है। खुशी हमारे सुसमाचार प्रचार की “शैली” है जो सभों के लिए ईश्वर की शांति और विश्वास की ज्योति लेकर आती है।
आज दुनिया की स्थिति
संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि खेद के साथ कहना पड़ता है कि आज की दुनिया में उदासी और निराशा के बहुत से कारण हैं-अत्यधिक गरीबी, युद्धें, भ्रष्टचार और हिंसा। फिर भी, ईश वचन हमें प्रेरणा प्रदान करने में असफल नहीं होता है। दुःखों के बावजूद जिनसे देश और लोग प्रभावित हैं, कलीसिया अपने में एक अदम्य आशा को घोषित करती है, हमें कभी निराश नहीं होने देती है क्योंकि येसु आते और हमारे बीच निवास करते हैं। उनके आने में हम अपने न्याय और शांति स्थापना हेतु प्रयास में अथक शक्ति का अनुभव करते हैं।
संत पापा ने कहा कि हर समय और हर दुःख भरी स्थिति में येसु हमारी खुशी के स्रोत बनते हैं। इस खुशी को हरएक के लिए और हर स्थान में लाने हेतु हमें चाहिए कि हम इसे अपने हृदयों में निरंतर पोषित होने दें। ऐसा करने के द्वारा हम आशा के साक्षी होंगो जो हमें निराश होने नहीं देता है।
Thank you for reading our article. You can keep up-to-date by subscribing to our daily newsletter. Just click here