संत पापाः पवित्र आत्मा आशा के उद्गम स्थल
वाटिकन सिटी
संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा पौल षष्ठम के सभागार में एकत्रित सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों सुप्रभात।
हम पवित्र आत्मा और कलीसिया पर अपनी धर्मशिक्षा माला के अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुके हैं। हम अपने इस अंतिम चिंतन को शीर्षक “पवित्र आत्मा और वधू”, “पवित्र आत्मा अपनी प्रजा का मार्गदर्शन करते हुए येसु हमारी आशा की ओर अग्रसर करते हैं” से अंत करेंगे जैसे की हमने इसका नामकरण किया है। हम इस शीर्षक को धर्मग्रँथ बाईबल, प्रकाशना ग्रँथ के अंतिम पदों में पाते हैं,“पवित्र आत्मा और वधू, आइए।” यह निमंत्रण किसके लिए दिया गया हैॽ यह पुनर्जीवित ख्रीस्त के लिए है। वास्तव में, संत पौलुस और दिदियाक, प्रेरितों के समय का एक लेख, जिसका उपयोग प्रथम ख्रीस्तीय धर्मविधि में एक पुकार स्वरुप की जाती थी, जो अरामाइक में “मारानाथा”, जिसका अर्थ विशिष्ट रूप में “आओ प्रभु” है, येसु के आने की एक प्रार्थना है।
येसु का द्वितीय आगमन
उस अतीत समय की पुकार का एक संदर्भ था जिसे आज हम येसु का पुनरागमन कहते हैं। वास्तव में, यह येसु ख्रीस्त के महिमा में पुनः आने की एक तीव्र प्रतीक्षा को घोषित करता है। इस पुकार और प्रतीक्षा को हम कलीसिया में कभी खत्म होता नहीं पाते हैं। आज भी, यूख्रारिस्तीय धर्मविधि में, बलि परिवर्तन के तुरंत बाद कलीसिया ख्रीस्त की मृत्यु और पुनरूत्थान की घोषणा करते हुए कहती है, “हम आशा में उनके पुनरागमन की बांट जोहते हैं।”
येसु और आत्मा को पुकारना
लेकिन मसीह के अंतिम आगमन की यह पहली और एकमात्र उम्मीद नहीं है। हम उनके इस आगमन की प्रतीक्षा को वर्तमान में और तीर्थयात्री कलीसिया की स्थिति में निरतंर पाते हैं। और उनके इस आने की प्रतीक्षा के बारे में कलीसिया सारी चीजों से बढ़कर विचार करती है, जब वह पवित्र आत्मा से प्रेरित होकर येसु को पुकारती है, “आओ।” संत पापा फ्राँसिस ने कहा कि हम इस पुकार में एक परिवर्तन या कहें कि इसमें एक विकास को पाते हैं जो कलीसिया इसे अर्थपूर्ण बनाती है। “आओ, हे प्रभु आओ।” यह आदतन केवल येसु को पुकारने हेतु प्रयोग में नहीं लगाया जाता बल्कि इसका उपयोग स्वयं पवित्र आत्मा के लिए भी किया जाता है। वह जो हमें पुकारते हैं, यह वे हैं जिन्हें अब हम पुकारते हैं। “आओ।” यह वह पुकार है जिसके द्वारा हम अपने गायन और कलीसिया की प्रार्थनाओं में पवित्र आत्मा को घोषित करते हैं। “आओ, हे पवित्र आत्मा” इसे हम “आओ हे सृजनहार” की प्रार्थना में कहते हैं, आओ, हे पवित्र आत्मा हम इस प्रार्थना को पेंन्तेकोस्त के दौरान प्रार्थना और अन्य दूसरी प्रार्थनाओं की कड़ी में कहते हैं। यह उचित है कि ऐसा हो, क्योंकि पुनरूत्थान के बाद हम पवित्र आत्मा को “आल्तर एगो” ख्रीस्त के सच्चे रुप में पाते हैं। वे उनका स्थान लेते हैं, वे उन्हें कलीसिया में उपस्थित करते और कलीसिया में अपने कार्यों को करते हैं। यह वे हैं जो “भविष्य के बारे में घोषित करते हैं, वे उन्हें पूरा करते और उनकी प्रतीक्षा करने को कहते हैं। यही कारण है कि हम ख्रीस्त और पवित्र आत्मा को अपने में अविभाज्य पाते हैं, जिसे कलीसिया मानव इतिहास में ईश्वरीय मुक्ति योजना की संज्ञा निरूपित करती है।
पवित्र आत्मा सदैव आशा के उद्गम स्थल
संत पापा ने कहा कि पवित्र आत्मा सदैव ख्रीस्तीय आशा के स्रोत रहे हैं। इस संदर्भ में हम संत पौलुस के इन बहुमूल्य वचनों को पाते हैं- “आशा का स्रोत, ईश्वर आप लोगों को विश्वास द्वारा प्रचुर आनंद और शांति प्रदान करे, जिससे पवित्र आत्मा के सामर्थ्य से आप लोगों की आशा परिपूर्ण हो।” इस भांति यदि कलीसिया अपने में एक नाव है तो पवित्र आत्मा उसके खेवनहार हैं जो उसे अपनी प्रेरणा में समुद्र के इतिहास में, पहले की तरह आज भी आगे ले चलते हैं।
आशा एक ईशशास्त्रीय गुण
संत पापा ने कहा कि आशा एक खाली शब्द नहीं है या हमारी अमूर्त चाह नहीं जहाँ हम चीजों के बेहतर होने की सोचते हैं, यह एक निश्चितता है क्योंकि यह ईश्वर की अपनी प्रतिज्ञाओं के प्रति वफ़ादारी पर स्थापित है। यही कारण है कि हम इस ईशशास्त्रीय गुण की संज्ञा देते हैं क्योंकि यह हमें ईश्वर के द्वारा प्राप्त होता है और इसके गारंटर, पूरा करने वाले ईश्वर हैं। यह एक निष्क्रिय गुण नहीं है जिसके अनुरुप हम चीजों के होने की प्रतीक्षा करते हों। यह हमारे लिए एक सर्वश्रेष्ट सक्रिय गुण है जो चीजों को घटित होने में मदद करता है। किसी एक व्यक्ति ने जो गरीब की मुक्ति हेतु लड़ाई लड़ी लिखते हैं, “पवित्र आत्मा गरीबों की रूदन की शुरूआत हैं। वे उन्हें शक्ति से पोषित करते जो शक्तिहीन हैं। वे उत्पीड़ित लोगों की मुक्ति और उसकी पूर्ण प्राप्ति हेतु संघर्ष का नेतृत्व करते हैं।”
एक ख्रीस्तीय का कार्य
ख्रीस्तीय आशा से केवल संतुष्ट नहीं रह सकता है, उसे चाहिए कि वह उस आशा को प्रसारित करे, आशा को बोने वाला एक व्यक्ति बने। यह एक अति सुन्दर उपहार है जिसे कलीसिया मानवता को प्रदान करती है, विशेषकर उन क्षणों में जहाँ हम सारी चीजों को अपने में डूबता हुआ पाते हैं।
संत पेत्रुस प्रथम ख्रीस्तियों को अपने इन शब्दों द्वारा संबोधित करते हैं, “अपने हृदय में प्रभु पर श्रद्धा रखें। जो लोग आपकी आशा के आधार के विषय में आप से प्रश्न करते हैं, उन्हें विनम्रता तथा आदर के साथ उत्तर देने के लिए सदा तैयार रहें।” वे यहाँ इस बात को जोड़ते हैं, “लेकिन आप विनम्रता और आदर से ऐसा करें।” क्योंकि हम अपने तर्क करने की शक्ति से लोगों को विश्वास नहीं दिलाता सकते हैं बल्कि प्रेम के द्वारा हम ऐसा करते हैं। यह हमारे लिए सबसे पहला और प्रभावी सुसमाचार प्रचार करने का स्वरुप है। और यह सभों के लिए खुला हुआ है।
पवित्र आत्मा हम सभों की हमेशा मदद करे कि हम “पवित्र आत्मा के आधार पर आशा में बढ़ते जायें।”
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