कोर्सिका में पोप : ‘लोकप्रिय धर्मनिष्ठता सुसमाचार प्रचार और समुदाय को बढ़ावा देती है’
वाटिकन न्यूज
पोप फ्राँसिस ने कोर्सिका प्रेरितिक यात्रा के दौरान अपने पहले भाषण में कहा कि लोकप्रिय धर्मनिष्ठा आज एक अप्रचलित लोककथात्मक अभिव्यक्ति होने के बजाय सुसमाचार प्रचार का एक शक्तिशाली साधन हो सकती है, जो समुदाय और अपनेपन को बढ़ावा देती है।
"भूमध्यसागर में लोकप्रिय धर्मपरायणता पर सम्मेलन" के समापन पर अज़ासियो के पैलेस देस कांग्रेस एत दी एक्सपोज़िशन में बोलते हुए, पोप ने कहा, “मुझे अजाशियो में, भूमध्यसागर में लोकप्रिय धर्मनिष्ठा पर आयोजित इस सम्मेलन के समापन पर आपसे मिलकर खुशी हो रही है, जिसमें फ्रांस और अन्य देशों से अनेक विद्वान और धर्माध्यक्ष एकत्रित हुए हैं। भूमध्यसागर से घिरे इस क्षेत्र का इतिहास बहुत पुराना है और यह कई उच्च विकसित सभ्यताओं का उद्गम स्थल रहा है। ग्रेको-रोमन और यहूदी-ख्रीस्तीय सभ्यताएँ तीन महाद्वीपों के बीच में स्थित इस विशाल “झील” के सांस्कृतिक, धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व को प्रमाणित करनेवाले उदाहरणों के रूप में हैं, यही अनोखा सागर, भूमध्यसागर है।
पोप ने दोहराया कि विश्वास की इन अभिव्यक्तियों की “सक्रिय सुसमाचार प्रचार शक्ति” को हमारे धर्मनिरपेक्ष समाजों में कम करके नहीं आंका जाना चाहिए, और उन्होंने ख्रीस्तीय और संसार की अन्य संस्कृतियों के बीच रचनात्मक संवाद का आह्वान किया।
ख्रीस्तीय एवं अन्य संस्कृतियों के बीच संवाद
अपने भाषण की शुरुआत में, संत पापा फ्राँसिस ने याद किया कि कैसे भूमध्यसागर, "कई उच्च विकसित सभ्यताओं का उद्गम स्थल", ऐतिहासिक रूप से संस्कृतियों, विचारों, कानूनी और संस्थागत रूपरेखाओं के लिए एक चौराहे के रूप में कार्य करता रहा है, जो आधुनिक दुनिया को अब भी प्रभावित कर रहा है, और यह वह स्थान है जहाँ ईश्वर और मानवता के बीच संवाद येसु ख्रीस्त के शरीरधारण में अपनी पूर्णता तक पहुँचा।
उन्होंने कहा, “भूमध्यसागर और नियर ईस्ट के बीच, एक अद्वितीय धार्मिक अनुभव का जन्म हुआ, जो इस्राएल के ईश्वर से जुड़ा था, जिसने खुद को मानवता के सामने प्रकट किया और अपने लोगों के साथ निरंतर संवाद शुरू किया। यह संवाद ईश्वर के पुत्र येसु में पूर्ण हुआ, जिसने पिता के चेहरे को, ... हमारे लिए, एक निश्चित रूप में प्रकट किया, और ईश्वर एवं मनुष्यों के बीच व्यवस्थान को पूरा किया।
संत पापा ने गौर किया कि सदियों से ख्रीस्तीय विश्वास ने कैसे लोगों के जीवन और उनके राजनीतिक संगठनों को प्रभावित किया है हालाँकि आज लोग ईश्वर की उपस्थिति और उसके वचन के प्रति “अधिक उदासीन” होते जा रहे हैं, “ख़ासकर यूरोपीय देशों में।”
हालाँकि, इससे “जल्दबाजी में विचार और निर्णय नहीं होने चाहिए, जो हमारे समय में भी ख्रीस्तीय संस्कृति और दुनिया की अन्य संस्कृतियों को एक दूसरे के खिलाफ खड़ा कर दें।” इसके बजाय, पोप ने टिप्पणी की, “इन दो क्षितिजों के बीच आपसी खुलेपन को स्वीकार करना महत्वपूर्ण है”, इस तथ्य को भी ध्यान में रखना है कि गैर-विश्वासी या जिन्होंने खुद को धार्मिक अभ्यास से दूर कर लिया है, “सत्य, न्याय और एकजुटता की खोज से अजनबी नहीं हैं।”
उन्होंने कहा, “भले ही वे किसी भी धर्म से संबंधित न हों, लेकिन उनके दिल में एक बड़ी प्यास, अर्थ की खोज होती है, जो उन्हें जीवन के रहस्य पर विचार करने और आम भलाई के लिए मूल मूल्यों की खोज करने के लिए प्रेरित करती है।"
लोकप्रिय भक्ति की सुसमाचार प्रचार और समुदाय निर्माण की शक्ति
इस पृष्टभूमि पर संत पापा ने कहा कि हम लोकप्रिय भक्ति की सुन्दरता एवं महत्व की सराहना करते हैं जो लोगों को, चाहे वे गहरे विश्वास वाले हों अथवा कम विश्वास रखते हों, उनके आध्यात्मिक मूल से जोड़ती है।
पोप ने तर्क दिया कि साधारण हावभाव और लोगों की संस्कृति में निहित प्रतीकात्मक भाषा के माध्यम से विश्वास व्यक्त करके, "लोकप्रिय भक्ति इतिहास के जीवित शरीर में ईश्वर की उपस्थिति को प्रकट करती है, कलीसिया के साथ संबंधों को मजबूत करती और अक्सर मुलाकात, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और उत्सव का अवसर बन जाती है।"
"लोकप्रिय भक्ति हमें यह देखने में मदद करती है कि कैसे विश्वास, एक बार प्राप्त होने के बाद, एक संस्कृति में सन्निहित हो जाता है और लगातार आगे बढ़ता है, और परिणामस्वरूप, यह एक सक्रिय सुसमाचार प्रचार शक्ति बन जाता है जिसे हमें कम नहीं आंकना चाहिए: उसे कम आंकना पवित्र आत्मा के कार्य को पहचानने में विफल होना होगा।"
प्रेरितिक आत्मपरख की आवश्यकता
हालांकि संत पापा ने लोकप्रिय भक्ति को केवल एक बाह्य या लोककथा संबंधी अनुष्ठान तक सीमित करने के खतरे के खिलाफ "सावधानीपूर्वक धार्मिक और प्रेरितिक आत्मपरख के माध्यम से" सतर्कता बरतने का आह्वान किया।
समाज में लोकप्रिय भक्ति का साकारात्मक प्रभाव
अपने भाषण में आगे बढ़ते हुए संत पापा ने समाज पर लोकप्रिय भक्ति के साकारात्मक प्रभाव पर प्रकाश डाला। जो समग्र रूप से एक "प्रामाणिक" आस्था को बढ़ावा देता है जो "निजी मामला तक सीमित नहीं है", बल्कि "मानव विकास, सामाजिक प्रगति और सृष्टि की देखभाल" को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने तर्क दिया कि लोकप्रिय धर्मनिष्ठता समाज के सांप्रदायिक ताने-बाने को मजबूत करती है और "रचनात्मक नागरिकता" का पोषण करती है, जिससे "गरीबों से शुरू करके प्रत्येक व्यक्ति की सेवा में, समग्र मानव विकास और पर्यावरण की देखभाल के लिए" धर्मनिरपेक्ष, नागरिक और राजनीतिक संस्थानों के साथ सहयोग संभव होता है।
एक स्वस्थ धर्मनिर्पेक्षता को बढ़ावा देना
उन्होंने कहा, नागरिक और कलीसियाई अधिकारियों के बीच निर्माणात्मक एवं सम्मानपूर्ण सहयोग, पूरे समुदाय के लिए लाभदायक होता है। जो इस बात का उदाहरण है जिसको संत पापा बोनेडिक्ट 16वें ने एक “स्वस्थ सांसारिकता” कहा है जो धर्म के राजनीतिकरण को रोकता है, साथ ही यह सुनिश्चित करता है कि राजनीति नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों से प्रेरित हो।
सुसमाचार एवं आमहित के लिए नवीकृत प्रतिबद्धता
अपने भाषण के अंत में संत पापा ने कोर्सिका के काथलिक समुदाय को प्रोत्साहन दिया कि वे अपनी गहरी धार्मिक परंपराओं को विकसित करें तथा कलीसिया तथा नागरिक और राजनीतिक संस्थाओं के बीच विद्यमान संवाद को जारी रखें।
उन्होंने कोर्सिका के युवाओं को भी प्रोत्साहन दिया कि वे ठोस आदर्शों और आम भलाई के लिए जुनून से प्रेरित” होकर सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक जीवन में अधिक रचनात्मक रूप से शामिल हों, तथा कलीसिया के धर्मगुरूओं एवं राजनीतिक नेताओं से “लोगों के करीब” रहने, उनकी जरूरतों और आकांक्षाओं के प्रति चौकस रहने का आह्वान किया।
अंततः पोप ने आशा जतायी कि लोकप्रिय धर्मनिष्ठा पर सम्मेलन, सुसमाचार एवं आमहित के प्रति नवीकृत प्रतिबद्धता हेतु प्रेरित करेगा जो विश्वास एवं सेवा पर आधारित होगी।
उन्होंने कहा, “यह मेरी आशा है कि लोकप्रिय धर्मनिष्ठा पर सम्मेलन आपके विश्वास के मूल को पुनः खोजने में मदद करे और कलीसिया एवं नागरिक समाज में, सुसमाचार की सेवा और सभी नागरिकों की सार्वजनिक भलाई के लिए नई प्रतिबद्धता का फल प्राप्त करें।”
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