पोप : धर्मसंघी जीवन दूसरों के माध्यम से ईश्वर को अपना पूर्ण उपहार है
वाटिकन न्यूज
यह मुलाकात पोप द्वारा 18 मई, 2024 को 12वीं सदी के फ्रांसीसी धर्मसंघी को “धन्य” की उपाधि प्रदान करने के बाद हुई, उन्हें उन्होंने गरीबों के “विनम्र और विनीत सेवक” कहा है।
गुरूवार को कैनोनेस धर्मबहनों से मुलाकात करते हुए पोप ने उनके मिशन को याद किया जो “खुद को मुख्य रूप से गरीबों की देखभाल और सेवा के लिए समर्पित करती हैं।”
उन्होंने कहा कि धन्य गुए दी मोंटपेलियर ने पवित्र तृत्व के नाम पर समुदाय की शुरूआत की और पोप इनोसेंट तृतीया द्वारा आह्वान किये गए धार्मिक जीवन के सुधार का जवाब देने की कोशिश की। पोप ने कहा, "यह देखना दिलचस्प है कि ईश्वर की योजना हृदय की 'रसोई' में कैसे परिपक्व होती, और कैसे स्वाद एवं रंग धीरे-धीरे जीवन के नियमों में व्याप्त होते हैं, अंततः पूरी कलीसिया में अपनी खुशबू फैलाते हैं।"
सुसमाचारी निर्धनता जो एकता पैदा करती
पोप फ्राँसिस ने एकता, निर्धनता और सेवा के महत्व के साथ-साथ उनके बीच के संबंध पर भी प्रकाश डाला। कैनोनेस धर्मबहनें निर्धनता का व्रत लेती हैं जिसके तहत उन्हें व्यक्तिगत चीज के बिना रहना पड़ता है।
पोप ने कहा कि यह शपथ एक कठोर संयमित और अलग जीवन की आधुनिक समझ से परे है। उन्होंने कहा, “इसका अर्थ यह स्वीकार करना है कि हम पवित्र तृत्व के घर में एक अतिथि हैं जो हमारा स्वागत करते और अपना निवास उन गरीबों के साथ साझा करते हैं जिनकी सेवा करने के लिए हमें बुलाया गया है।”
उन्होंने कहा कि “निर्धनता का व्रत सहभागिता से बहुत करीबी से जुड़ा है, और इसमें “बिना किसी शर्त के अपने भाइयों और बहनों के माध्यम से खुद को पूरी तरह ईश्वर को समर्पित करना” शामिल है।
पोप ने कहा, “सांसारिक सुरक्षा के छिपे कक्षों में ‘अपनी खुद की’ किसी भी चीज को छिपाए बिना - चाहे वह हमारे कमरों, जेबों या इससे भी बदतर, हमारे दिलों में छिपी हो।” “केवल इस स्वतंत्रता में ही हम एक साझा परियोजना शुरू कर सकते हैं जो ईश्वर द्वारा हमें बुलाए जानेवाले शाश्वत निवास स्थानों की ओर यात्रा का एक युगांतकारी संकेत बन जाती है।”
सेवक जो उदारता में गरीबों का स्वागत करते हैं
अंत में, पोप फ्राँसिस ने सैक्सोनी में पवित्र आत्मा की कैनोनेस धर्मबहनों को अपने दिलों और समुदायों को पवित्र तृत्व के जीवंत मंदिर बनाने हेतु काम करने के लिए आमंत्रित किया।
उन्होंने कहा, धर्मसंघी जीवन, "पवित्र आत्मा द्वारा प्रेरित होकर ईश्वर की ओर यात्रा है, जिसमें हम उद्धारक मसीह के अनुयायी बनते हैं - जो 'सेवा कराने नहीं, बल्कि सेवा करने आए थे' - और जीवन के शिक्षक बनते हैं, यदि हम स्वयं को छोटा और सभी के सेवक बना सकें, गरीबों का स्वागत कर सकें और उन्हें अपनी उदारता प्रदान कर सकें।"
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