परमधर्मपीठ: प्रवासी सिर्फ संख्या नहीं हैं
माग्रेट सुनीता मिंज-वाटिकन सिटी
जिनेवा, सोमवार 27 जून 2022 (वाटिकन न्यूज) : परमधर्मपीठ ने एक बार फिर दोहराया है कि कई देशों द्वारा किए गए पुशबैक प्रथाओं की निंदा करते हुए, मूल मानवाधिकारों और प्रवासियों के सम्मान को "किसी भी राजनीतिक विचारों से परे" संरक्षित किया जाना चाहिए।
शुक्रवार को, जिनेवा में मानवाधिकार परिषद में बोलते हुए संयुक्त राष्ट्र में वाटिकन के स्थायी पर्यवेक्षक, महाधर्माध्यक्ष फ़ोर्टुनातुस नवाचुकु ने टिप्पणी की कि "ऐसी प्रथाएं अक्सर मानव व्यक्ति के एक बुनियादी विचार की भी अनदेखा करती हैं, जो प्रवासियों की सुरक्षा और गरिमा को सुनिश्चित करने में विफल करती हैं।
"हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि प्रवासी केवल संख्या नहीं हैं, बल्कि वे हमारी बहनें और भाई हैं जिन्हें पीछे नहीं छोड़ा जा सकता है।"
स्वागत, सुरक्षा, बढ़ावा और एकीकरण
वाटिकन के स्थायी पर्यवेक्षक ने समकालीन प्रवासन से उत्पन्न चुनौतियों का समाधान करने के लिए संत पापा फ्राँसिस द्वारा सुझाई गई चार प्रमुख क्रियाओं को याद किया: "स्वागत, रक्षा, बढ़ावा और एकीकरण।"
इस संबंध में, उन्होंने स्वीकार किया कि एकीकरण एक दोतरफा प्रक्रिया है।
उन्होंने कहा, "प्रवासियों के पास उस समुदाय के मूल्यों, परंपराओं और कानूनों का सम्मान करने की जिम्मेदारी है जो उन्हें अपने देश में स्वीकार करते हैं," और मेजबान समुदायों को उस लाभकारी योगदान को स्वीकार करने के लिए कहा जाता है जो प्रत्येक आप्रवासी पूरे समुदाय के लिए कर सकता है।
महाधर्माध्यक्ष नवाचुकु ने "गैर-रिफाउलमेंट के सिद्धांत के लिए पूर्ण सम्मान में, सुरक्षित, नियमित और स्वैच्छिक प्रवास और पुनर्वास के लिए वैकल्पिक मार्गों की संख्या और सीमा के विस्तार के महत्व पर जोर दिया।" उन्होंने कहा,"प्रवास के संदर्भ में अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों का अंतिम लक्ष्य यह सुनिश्चित करना होना चाहिए कि प्रवास सुरक्षित, कानूनी और व्यवस्थित हो।"
शरण प्रक्रियाओं को बाहरी बनाना
महाधर्माध्यक्ष ने विशेष रूप से शरण प्रक्रियाओं के बाहरीकरण के हालिया "अस्थायी" अभ्यास और प्रॉक्सी द्वारा, नए आने वाले प्रवासियों को स्वीकार करने की जिम्मेदारी सौंपने के लिए विशेष रूप से संदर्भित किया।
उन्होंने संत पापा फ्राँसिस की हालिया अपील को याद करते हुए अपने बयान को समाप्त किया, "दूसरे लोगों के लिए प्रवास के मुद्दे को पारित करना बंद करें, जैसे कि यह किसी के लिए मायने नहीं रखता और यह केवल किसी और को वहनकरने का एक व्यर्थ बोझ है।"
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