मंगोलिया की प्रेरितिक यात्रा- कलीसिया संख्याओं पर आधारित नहीं
अन्द्रेया तोरनेल्ली
संत पापा फ्रांसिस मंगोलिया की प्रेरितिक यात्रा शुरू करने वाले हैं, एक यात्रा जो उनके लिए “बहुप्रतीक्षित” है, जिसकी शुरू संत पापा पॉल 6वें के समय में अधूरी रह गई, जो 1990 के शुरूआती सालों में प्रेरितों की उपस्थिति में एक ख्रीस्तीय समुदाय की पुनः शुरूआत की। इस यात्रा के दौरान संत पेत्रुस के उत्तराधिकारी एशिया की कलीसिया को अपने आलिंगन में लेंगे, जो “अल्प संख्या में है, किन्तु विश्वास और करूणा के कार्यों में महान है।” संत पापा अपनी इस यात्रा में देश के न केवल 1500 ख्रीस्तीयों से मुलाकात करेंगे, बल्कि “ख्याति प्राप्त” और “ज्ञानियों” से भेंट करेंगे जो महान बौद्ध धार्मिक परंपरा से संबंधित हैं।
संत पापा क्योंकि मंगोलिया की यात्रा करेंगेॽ वे ऐसे छोटे समुदाय के लिए क्यों पांच दिनों की यात्रा करेंगे (दो दिनों की यात्रा और तीन दिनों का निवासन)ॽ क्या “भौगोलिक राजनीति” का कुछ ताल्लुकात इस यात्रा से हैं चूंकि आप उस देश की यात्रा करेंगे जो रूसी संघ और लोक गणतंत्र चीन की सीमाओं से सटा है। वास्तव में, काथलिक कलीसिया के महाधर्मगुरू की ऐशियाई तीर्थयात्रा का उद्देश्य निश्चित रुप से “भौगोलिक राजनीति” से उत्प्रेरित नहीं है।
मंगलवार, 30 नवम्बर 1970 को संत पापा पॉल 6वें ने एक लम्बी यात्रा करते हुए प्रशांत महासागर के सामोवा प्रद्वीय पहुंचे। उपोलु द्वीप के उत्तर-पश्चिमी तट पर, लेउलुमोएगा तुई गांव में यूखारिस्तीय समारोह के दौरान, संत पापा मोंतिनी ने राजसी शब्द “हम” का इस्तेमाल करते हुए कहा, “यह यात्रा करने का आनंद नहीं है और न ही यह मेरी रूचि है जो मुझे आपके पास ले आई है, मैं आप सभों के पास आता हूँ क्योंकि हम सभी भाई हैं, या बेहतर रुप में कहें तो हम सभी पुत्र और पुत्रियाँ हैं, और यह उचित है कि एक परिवार के पिता स्वरूप, वह परिवार जो काथलिक कलीसिया है, मैं हर एक को प्रेम प्रदर्शित करना चाहता हूँ जो प्रत्येक जन का समान अधिकार है। क्या आप जानते है कि काथलिक कलीसिया का अर्थ क्या हैॽ इस अर्थ यही है कि यह पूरे विश्व के लिए बनी है, अर्थात यह सभों के लिए है, इसमें कोई परदेशी नहीं है, हर मानव, चाहे किसी भी देश, जाति, आयु या शिक्षण का हो, इसमें अपने लिए जगह पाता है।”
कलीसिया में सभों के लिए एक स्थान है। कलीसिया की प्राथमिकता संख्या नहीं है और यहाँ कोई भी अपरिचित नहीं है, चाहे वह किसी भी भाषा, संस्कृति, लोग या राष्ट्र का हो। कलीसिया सभी के लिए “पारा तोदोस” है, जिसके बारे में संत पापा फ्रांसिस ने फिलहाल ही लिस्बन में कहा था। विश्व युवा दिवस के उपरांत एक महीने से भी कम समय में, रोम के धर्माध्यक्ष पुनः अपनी यात्रा में निकलते और अपनों से कहते हैं “मंगोलियाई भाइयो और बहनों” कि वे “आप सभों के बीच एक भाई स्वरुप यात्रा करना खुशी की बात है।”
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