धर्मसभा ब्रीफिंग के मुख्य अंश: कलीसिया गरीबों के साथ
वाटिकन न्यूज़
वाटिकन सिटी, सोमवार 23 अक्टूबर 2023 : संचार विभाग के प्रीफेक्ट और धर्मसभा सूचना आयोग के अध्यक्ष पावलो रुफीनी ने वाटिकन प्रेस कार्यालय में आयोजित पत्रकारों के साथ शनिवार की ब्रीफिंग में बताया कि शनिवार को शाम नौ बजे संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में विश्व शांति के लिए रोजरी प्रार्थना होगी। शुक्रवार को धर्मसभा हॉल में एक विशेष अपील शुरू की गई थी, "मध्य पूर्व में, जहां खून बह रहा है, युवा लोगों की मदद करें, आशा न खोएं और भविष्य के लिए उनका एकमात्र दृष्टिकोण पीड़ा सहना या अपना देश छोड़ना न हो।" "कलीसिया और चरवाहे के रूप में इन युवाओं को शांति तक पहुंचने के साधन प्रदान करना।"
डॉ. रुफीनी ने कहा, शुक्रवार दोपहर को हुए पंद्रहवीं आम सभा की विशेषता "मध्य पूर्व, अमेज़ॅन और उससे आगे यूक्रेन, जैसे युद्ध या पीड़ा वाले स्थानों से कुछ बहुत मजबूत, भावुक और गहन साक्ष्य थे।" इन "आवाज़ों" की पूरी सभा ने भातृभाव से सराहना की (सभा में 329 सदस्य उपस्थित थे)।
शनिवार की सुबह, बारहवें सत्र के अंत में, इंस्ट्रुमेंटम लाबोरिस के मॉड्यूल बी3 के संबंध में 35 कार्य समूहों की रिपोर्ट सामान्य सचिवालय को दी गई।
इस कार्य में 310 प्रतिभागी शामिल थे और उसी समय संश्लेषण दस्तावेज़ तैयार करने के लिए एक बैठक आयोजित की गई। डॉ. रुफीनी ने कहा कि सोमवार, 23 अक्टूबर को सुबह 8:45 बजे, धर्मसभा के प्रतिभागी संत पेत्रुस महागिरजाघर में संत पेत्रुस के सिहासन की बलि वेदी पर पवित्र मिस्सा समारोह के लिए एकत्रित होंगे, जिसकी अध्यक्षता म्यांमार में यांगून के महाधर्माध्यक्ष कार्डिनल चार्ल्स माउंग बो करेंगे।
प्रेस क्रॉन्फ्रेंस में संचार विभाग के प्रीफेक्ट डॉ. रुफीनी के साथ सूचना आयोग की सचिव शीला पीरेस, पेरु- हुआनकायो के महाधर्माध्यक्ष और अमेज़ॅन की कलीसियाई कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष पेरूवियन जेसुइट कार्डिनल पेद्रो रिकार्दो बैरेटो जिमेनो, जर्मनी स्थित एसेन के धर्माध्यक्ष फ्रांज-जोसेफ ओवरबेक, फ्राँस स्थित ग्रेनोबल-विएने के धर्माध्यक्ष जीन-मार्क आइचेन और एक भारतीय धर्मबहन, अपोस्टोलिक कार्मेल धर्मसमाज की जनरल सुपीरियर और भारत में धर्मसमाजियों के सम्मेलन की अध्यक्ष सिस्टर मारिया निर्मलिनी ने पत्रकारों को संबोधित किया।
डॉ. रुफीनी: संत पापा के साथ सहभागिता में
प्रीफेक्ट ने कहा कि धर्मसभा हॉल में दिए गए संबोधनों में, उन्होंने "अधिकारियों और सह-जिम्मेदारी के बीच निर्णय लेने के संबंधों में विवेक के मुद्दे" को एक विशेष तरीके से संबोधित किया। यह नोट किया गया कि धर्मसभा "उत्तरदायित्व को खत्म नहीं करती बल्कि उसे प्रासंगिक बनाती है।" "उत्तरदायित्व की आवश्यकता" को याद करते हुए और "चर्चा करने या असहमति में होने से डरने की नहीं है।" उन्होंने "पवित्र आत्मा जो संघर्ष के स्थानों को मार्ग के स्थानों में बदल देता है" पर भरोसा करते हुए बातचीत के साथ आगे बढ़ने को प्रोत्साहित किया।
सभी के द्वारा एक दूसरे को सुनने की प्राथमिकता पर भी ध्यान दिया गया। उन्होंने हर किसी की बात सुनने के महत्व पर जोर दिया, "उन लोगों से शुरू करना जो महसूस करते हैं कि कलीसिया में उनका स्वागत नहीं किया जा सकता है या उन्हें बताया गया है कि वे कलीसिया से संबंधित नहीं हैं," जैसे "अन्य धर्मों से संबंधित प्रवासी," गरीब, भेदभाव के शिकार, विकलांग लोग या मूलवासी जो संवाद करना सिखा सकते हैं। प्रीफेक्ट ने कहा कि एलजीबीटीक्यू व्यक्तियों के संबंध में, बैठक में स्वागत और "उनके खिलाफ किसी भी प्रकार की हिंसा को अस्वीकार करने" के कर्तव्य को याद किया गया।
संबोधनों में उठाया गया एक और महत्वपूर्ण मुद्दा था "संत पापा के साथ संवाद।" जैसा कि कहा गया है, जो लोग संत पेत्रुस (उतराधिकारी) के साथ मौलिक सामंजस्य में नहीं थे, उन्होंने "मसीह के शरीर, जो कि कलीसिया है, को घायल कर दिया।" प्रीफेक्ट ने निष्कर्ष निकाला, समन्वय सबसे अच्छा संदेश है जो ध्रुवीकरण, ज़ेनोफोबिया और युद्ध से चिह्नित दुनिया को दिया जा सकता है।
पीरेस: गरीबों वाली कलीसिया के लिए
सूचना आयोग की सचिव शीला पीरेस ने इस बात पर प्रकाश डालते हुए ब्रीफिंग जारी रखी कि हॉल में चर्चा किए गए विषयों में महिलाओं और समर्पित व्यक्तियों की भूमिका थी, जिसमें निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में उनकी आवाज सुनने की संभावना पर विशेष जोर दिया गया था।
सुश्री पीरेस ने बताया कि चल रहे प्रशिक्षण की सिफ़ारिशों के साथ याजकवाद एक बार फिर से चिंतन के केंद्र में था जो दुर्व्यहार के मुद्दे को संबोधित करने की भी अनुमति देता है। दुर्व्यवहार से निपटने के लिए उपयुक्त संरचनाओं की आवश्यकता पर जोर दिया गया और दुर्व्यवहार की त्रासदी को संबोधित करने के लिए नई संरचनाओं की शुरुआत के लिए संत पापा को धन्यवाद दिया गया। सभी व्यक्तियों, कमजोर वयस्कों और बच्चों दोनों की सुरक्षा के लिए हर स्तर पर पहल को बढ़ावा देने के महत्व पर जोर दिया गया। गरीबों की सेवा करने की कलीसिया के मिशन की पुन: पुष्टि की गई थी, इस जागरूकता के साथ कि प्रभु हमारा न्याय इस आधार पर करेंगे कि हमने अपने बीच सबसे कमजोरों को किस आधार पर प्यार कैसे किया है।
कार्डिनल बैरेटो जिमेनो: विविधता में एकता
हुआनकायो के महाधर्माध्यक्ष और अमेज़ॅन की कलीसियाई कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष पेरूवियन जेसुइट कार्डिनल पेद्रो रिकार्दो बैरेटो जिमेनो ने यह याद करते हुए शुरुआत की कि धर्मसभा "दो वर्षों में तैयार की गई थी, पहले पल्लियों में और फिर धर्मप्रांत में, राष्ट्रीय और महाद्वीपीय स्तर पर। हम कुछ भी आविष्कार नहीं कर रहे हैं," उन्होंने पुष्टि की, "लेकिन पवित्र आत्मा ने कलीसिया को जो बताया है हम उसे इकट्ठा कर रहे हैं और हम धर्माध्यक्ष, एक क्षेत्र के लिए जिम्मेदार हैं और साथ ही विश्व्यापी कलीसिया के लिए संत पापा फ्राँसिस के साथ सह-जिम्मेदार हैं। अधिकांश धर्माध्यक्षों की ओर से भाग ले रहे हैं; वास्तव में, हम धर्माध्यक्षों की एक धर्मसभा का अनुभव कर रहे हैं। लेकिन इसमें धर्मसंघी, लोकधर्मी और पुरोहित भी हैं।"
कार्डिनल बैरेटो ने "जीवित अनुभव को इकट्ठा करने के साथ-साथ विश्वव्यापी कलीसिया के जीवन को छोटे पैमाने पर अनुभव करने के अवसर की सराहना की: नस्लों, संस्कृतियों, भाषाओं की विविधता, लेकिन सभी एक आत्मा में एकजुट हैं, एक आत्मा जिसका स्रोत पवित्र त्रित्व है ईश्वर समन्वय, मिशन और भागीदारी है; इस प्रकार, यह धर्मसभा अनुभव हमें ईश्वर की एकता में विविधता के क्षितिज तक खोलता है।"
अपने 52 साल के पुरोहिताई और 23 साल के धर्माध्यक्षीय कार्यकाल का हवाला देते हुए, उन्होंने आशावाद के साथ निष्कर्ष निकाला कि "कलीसिया, आंतरिक और बाहरी दोनों तरह की कठिनाइयों के बीच, मसीह और मानवता की सेवा के लिए आगे बढ़ रही है।"
धर्माध्यक्ष ओवरबेक: पश्चाताप और नवीनीकरण
जर्मनी के सैन्य ऑर्डिनरी और एसेन के धर्माध्यक्ष फ्रांज-जोसेफ ओवरबेक ने जर्मनी में काथलिक कलीसिया के धर्मसभा यात्रा के अनुभव के बारे में बात की, जो 2018 में शुरू हुआ और पिछले साल समाप्त हुआ।
उन्होंने कहा, "हमारे इस रास्ते पर चलने का कारण देश में बड़ी संख्या में पाए जाने वाले यौन दुर्व्यवहार के मामले थे।" यह कार्य जर्मन काथलिकों की केंद्रीय समिति के सहयोग से किया गया, जिसमें कलीसिया के विभिन्न पेशेवर समूहों के प्रतिनिधि शामिल हैं। धर्माध्यक्ष ने समझाया, "पश्चाताप और नवीनीकरण का यह मार्ग" कलीसिया के काम की आत्म-आलोचनात्मक जांच करने की आवश्यकता को शामिल करता है, ताकि कलीसियाई जीवन के नवीनीकरण के लिए तत्काल आवश्यक मुद्दों को संबोधित किया जा सके। इसके लिए "बाइबिल और काथलिक परंपरा की गवाही से शुरू कर, विद्वानों के धर्मशास्त्र के निष्कर्षों के माध्यम से, विश्वासियों के विश्वास और ख्रीस्तीय उद्घोषणा को विश्वसनीय बनाने के लिए सुसमाचार के संकेतों की रोशनी में व्याख्या किए जाने वाले धार्मिक ज्ञान के स्रोतों की ओर लौटने की आवश्यकता है।"
उन्होंने कहा, "यदि धर्मशास्त्र, मजिस्टेरियम, या परंपरा और समय के संकेतों में अविभाज्य और असंगत विरोधाभास हैं, तो यह किसी को भी आश्वस्त नहीं करेगा और काथलिकों को मार्गदर्शन नहीं दे सकता है," जो जर्मनी में केवल 30 प्रतिशत हैं, जबकि 30 प्रतिशत प्रोटेस्टेंट हैं, और 40 प्रतिशत अविश्वासी हैं।
उन्होंने चिंतन के चार क्षेत्रों की रूपरेखा तैयार की: शक्ति, पुरोहिताई, महिलाओं की भूमिका और यौन नैतिकता। इन मुद्दों का अध्ययन करने और इनपर की जाने वाली कार्रवाइयों की एक सूची प्रदान करने के लिए फ्रैंकफर्ट में पांच प्रमुख सम्मेलन आयोजित किए गए। परिणाम जर्मन धर्माध्यक्षीय सम्मेलन द्वारा दस्तावेजों की एक श्रृंखला में प्रकाशित किए गए थे।
अंत में, धर्माध्यक्ष ओवरबेक, जो एडवेनियाट के अध्यक्ष भी हैं, ने अमेज़ॅन के कलीसियाई सम्मेलन के अनुभव के मूल्य पर जोर दिया, जहां धर्माध्यक्ष, पुरोहित,धर्मबहनें और लोकधर्मी सृष्टि और स्थानीय आबादी की सुरक्षा के मुद्दों पर एक साथ काम करते हैं। उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि यह आवश्यक है कि "आदतों और परंपरावाद से चिपके बिना, येसु को हमेशा आस्था के केंद्र में रखा जाए, जिनकी जब आलोचनात्मक जांच की जाती है, तो सत्य के पदानुक्रम में कोई प्राथमिकता नहीं होती है।"
धर्माध्यक्ष आइचेन: "फ़्रेंच अमेज़ॅन" में
फ्रांस में ग्रेनोबल-विएन के धर्माध्यक्ष जीन-मार्क आइचेन ने टूलूज़ के दक्षिणी भाग में अपने अनुभव के बारे में बात करते हुए अपनी प्रस्तुति शुरू की, जो कि "फ्रांसीसी अमेज़ॅन" के रूप में जाना जाता है। यह क्षेत्र बड़े पैमाने पर गरीबी से चिह्नित है, लेकिन यह मसीह और सुसमाचार की आध्यात्मिक खोज को भी प्रोत्साहित करता है।
उन्होंने बताया कि वे वहां 150,000 निवासियों वाले एक क्षेत्र से कैसे विभिन्न आर्थिक और सामाजिक स्थितियों वाले दस लाख निवासियों के अपने वर्तमान धर्मप्रांत में चले गए, लेकिन कई समानताएं थीं क्योंकि चुनौतियां समान थीं। उन्होंने जोर देकर कहा कि मुख्य चुनौती सह-जिम्मेदारी है। इसलिए, "सिनॉडालिटी पर धर्मसभा का अर्थ है एक साथ चिंतन करना और यह देखना कि कलीसिया इस अवधारणा को कैसे अपना सकती है," कुछ जिम्मेदार व्यक्तियों वाली कलीसिया से ऐसी कलीसिया की ओर बढ़ना जहां हर कोई मसीह और सुसमाचार की घोषणा के लिए जिम्मेदार है, एक ऐसी कलीसिया जो वास्तव में मसीह का शरीर जहां हर कोई अंतिम निर्णय के लिए अपनी राय व्यक्त करता है जो सभी से संबंधित है।"
धर्माध्यक्ष आइचेन ने जेलों में अपने अनुभव के बारे में भी बात की। "हम कैदियों के पास जाते हैं और एक जगह मिलते है फिर ईश्वर का वचन पढ़ते हैं और हर कोई सुसमाचार पर टिप्पणी करता है। उनमें से कई अनपढ़ हैं, लेकिन ऐसा भी होता है कि पढ़े गए अंश के बारे में सबसे ज्ञानवर्धक शब्द इन व्यक्तियों से आते हैं।"
धर्माध्यक्ष ने इस बात पर जोर दिया कि सह-जिम्मेदारी का अर्थ है "वास्तविक धर्मसभा का अनुभव।" यह वैसा ही है जैसा वे अभ्यास करते हैं "जब कोई नया पल्ली पुरोहित उनके धर्मप्रांत में आता है: ऐसे अवसरों पर, वे इस बात पर जोर देने के लिए पैर धोने की रस्म करते हैं कि वह एक सेवक है।"
उन्होंने बताया कि समुदाय में आदेश देने वाला एक व्यक्ति नहीं है, बल्कि युवा लोगों, बुजुर्गों, विकलांगों से बना एक 'हम' है, जो प्रतीकात्मक रूप से दिखा रहा है कि सामान्य जिम्मेदारी है।" इसके अलावा, छोटी धर्मप्रांतीय टीमों में, "हमने महिला उपस्थिति को भी शामिल किया है जो विकार जनरल का पद संभालती है, जो समुदाय से संबंधित निर्णयों में धर्माध्यक्षों का समर्थन करती है।"
सिस्टर निर्मलिनी: एक सतत "यात्रा"
एक भारतीय धर्मबहन, अपोस्टोलिक कार्मेल कांग्रेगेशन की जनरल सुपीरियर और भारत में धर्मसमाजियों के सम्मेलन की अध्यक्ष सिस्टर मारिया निर्मलिनी ने सभा को संबोधित किया। वे जिस सम्मेलन की अध्यक्षता कर रही हैं वे 130,000 से अधिक सदस्यों के साथ दुनिया में काथलिक धर्मबहनों के सबसे बड़े समूह का प्रतिनिधित्व करता है।
सिस्टर निर्मलिनी, जो इंटरनेशनल यूनियन ऑफ सुपीरियर जनरल की टीम में हैं, ने भारत में अपने साथी समर्पित व्यक्तियों की प्रार्थनाओं और समर्थन पर जोर दिया, जो इस "सुंदर अनुभव और अद्भुत यात्रा" यानी धर्मसभा में उनके साथ हैं। उन्होंने बताया कि कैसे प्रत्येक प्रतिभागी ने, संस्कृति और पृष्ठभूमि में अंतर के बावजूद, बिना किसी डर या दबाव के कार्डिनलों, धर्माध्यक्षों, धर्मशास्त्रियों, युवा धर्मसंघियों, लोकधर्मियों और अपने जैसे व्यक्तियों के साथ अपने अनुभव और विचारों को स्वतंत्र रूप से साझा किया।
सिस्टर निर्मलिनी ने कहा कि धर्मसभा यात्रा एक सतत प्रक्रिया है जिसमें "समुदायों के सभी सदस्य शामिल होंगे।"
उन्होंने शांति, प्रवासियों और शरणार्थियों के लिए साझा करने और प्रार्थना करने के हर पल के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने निष्कर्ष निकाला, "हमारी उत्पत्ति के बावजूद, हम सभी ईश्वर के परिवार के सदस्य हैं।"
बुलाहटों की वास्तविकता
महिला उपयाजकों के मुद्दे और विवाहित उपयाजकों की "पुरोहिताई" भूमिका की संभावना के बारे में एक सवाल का जवाब देते हुए, कार्डिनल बैरेटो जिमेनो ने याद किया कि यह धर्मसभा अमेज़ॅन असेंबली में समाप्त होने वाले अनुभव का परिणाम है, जो 7,500 वर्ग किलोमीटर, 33 का क्षेत्र है। 30 लाख मूल निवासियों सहित दस लाख निवासी, नौ देशों में फैले हुए हैं।
एक महत्वपूर्ण पहलू अमेज़ॅन (सीमा) के कलीसियाई सम्मेलन का निर्माण था, जिसमें सभी बपतिस्मा प्राप्त लोग शामिल थे। इसलिए, इस अनुभव को बताना आवश्यक है, जो कलीसिया के इतिहास में पहला है।
धर्माध्यक्ष ओवरबेक ने कहा कि यौन दुर्व्यवहार के मुद्दे सहित जर्मन धर्मसभा प्रक्रिया में उठाए गए सभी प्रश्न, एक उत्तर-धर्मनिरपेक्ष देश के संदर्भ में उठे, जहां लोगों को अब इस बात का स्पष्ट विचार नहीं है कि येसु मसीह कौन हैं और धर्म का भी कोई स्पष्ट विचार नहीं है। दैनिक जीवन में संदर्भ. जर्मनी में आधे प्रोटेस्टेंट पादरी महिलाएं हैं। स्थायी उपयाजक 1968 से अस्तित्व में है, और उपयाजकों में महिलाओं की भूमिका और उनके भविष्य की उपस्थिति के बारे में सवाल उठाए जा रहे हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि स्थायी उपयाजक महत्वपूर्ण है और यह एक बुलाहट है, सिर्फ एक अधिकार नहीं।
उनसे वर्तमान धर्मसभा पर जर्मन सिनॉडल यात्रा के प्रभाव और जर्मनी में इसके प्रभाव के बारे में भी पूछा गया था। धर्माध्यक्ष ओवरबेक के अनुसार, धारणा यह है कि जर्मनी में कलीसिया की धर्मसभा यात्रा में किए गए हर काम का समाज पर प्रभाव पड़ा है। उन्होंने उभरते प्रश्नों के समाधान में संस्कृतिकरण और धर्मशास्त्र की भूमिका पर चिंतन की आवश्यकता पर ध्यान दिया। विवाहित पुरुषों के पुरोहिताभिषेक की संभावना के बारे में, धर्माध्यक्ष ने बताया कि कई वर्षों में कदम उठाए गए हैं: वहाँ लगभग कोई भी सेमिनारियन नहीं हैं और चुनौती न केवल कलीसिया के पवित्र जीवन को बचाने की है, बल्कि इसे जीने की भी है।
Thank you for reading our article. You can keep up-to-date by subscribing to our daily newsletter. Just click here