चौथा प्रवचन- एम्माऊस की राह में मन परिवर्तन
वाटिकन सिटी
हम मित्रता के संग धर्मसभा के मार्ग में चलने हेतु बुलाये गये हैं। ऐसा नहीं होता तो हम कहीं नहीं पुहंचेंगे। हमारी मित्रता ईश्वर और एक-दूसरे से, यह हमारी खुशी में बनने रहने से होती है वहीं हमें इसमें शब्दों की जरुरत होती है। कैसेरिया फिल्लिपी वार्ता का सिलसिला टूट गया। येसु ने पेत्रुस को “शैतान” कहा। पर्वत में, वह नहीं जानता की क्या कहे लेकिन वे उन्हें सुनना शुरू करते हैं और इस भांति पुनः वार्ता शुरू होती और वे येरुसालेम के मार्ग में आगे बढ़ते हैं।
मार्ग में शिष्यों के बीच एक युद्ध शुरू हो जाता है, वे येसु को गलत समझते और अंततः उन्हें छोड़ देते हैं। पुनः उनके मध्य शांति कायम होती है। लेकिन पुनर्जीवित येसु उन्हें दिखाई देते और उन्हें चंगाई के शब्द प्रदान करते हैं जिससे वे एक-दूसरे से बातें करने लगते हैं। हमें भी उपचारात्मक शब्दों की आवश्यकता है जो छलांग लगाकर उन सीमाओं को पार कर जाएं जो हमें विभाजित करती हैं: पक्ष और विपक्ष की वैचारिक सीमाएं, सांस्कृतिक सीमाएँ जो एक महाद्वीप को दूसरे से विभाजित करती हैं, तनाव जो कभी-कभी पुरुषों और महिलाओं को विभाजित करते हैं। साझा किये गये शब्द हमारी कलीसिया की जीवनधारा है। हमें अपनी दुनिया के खातिर उन्हें ढूंढने की ज़रूरत है, जिसमें मानवता को सुनने की असमर्थता के कारण हिंसा को बढ़ावा मिलता है। वार्ता हमें परिवर्तन हेतु आगे ले चलती है।
हमारी वार्ता की शुरूआत कैसी होॽ उत्पत्ति ग्रंथ में मानव के पतन उपरांत, हम एक भयंकर खामोशी को पाते हैं आदम वाटिका की यह खमोशी शर्म के कारण है। आदम और हेवा अपने में छुप जाते हैं। ईश्वर खाई में कैसे पहुंच सकते हैंॽ वे धैर्य में उनकी प्रतीक्षा करते हैं जब तक वे वस्त्रों से अपने शर्म को नहीं छुपा लेते। अब वे धर्मग्रंथ में ईश्वर से प्रथम वार्ता हेतु तैयार होते हैं। यह खामोशी एक साधारण सवाल से टूटती है। “तुम कहाँ होॽ” यह कोई सूचना देना वाला सवाल नहीं है। यह ईश्वर के सामने ज्योति में खड़ा अपने को दृश्यमान करने का सवाल है।
शायद यह हमारे लिए प्रथम सवाल है जिसके द्वारा हम अपनी चुप्पी तोड़ते हैं जो हमें एक-दूसरे से अलग करती है। “आप क्यों धर्मविधि के संबंध में इस तरह के मजाकिये धारणाओं को अपने में वहन करते हैं। या आप एक विधर्मी या पितृसत्तात्मक बृहृदकाय क्यों हैं? या आप मुझे क्यों नहीं सुनते हैंॽ लेकिन आप कहाँ हैंॽ आप किस बात को लेकर चिंतित हैंॽ मैं अपने में ऐसा हूँ। आदम और हेवा को ईश्वर अपनी नजरों के सामने बुलाते हैं। यदि हम भी प्रकाश में बाहर आते और अपने को दूसरों के द्वारा देखने देते हैं चाहे हम जैसे भी क्यों न हों, तो हम एक-दूसरे के लिए शब्दों को पाते हैं। इस धर्मसभा की तैयारी में, एक याजकीय वर्ग है जो बहुधा अपने को ज्योति में लाने हेतु आना-कानी करता है जहाँ वे अपनी चिंताओं और शंकाओं को साझा करें। हम अपने नंगेपन को देखे जाने से भयभीत होते हैं। हम कैसे एक-दूसरे को प्रोत्साहित कर सकते हैं जिससे हम अपने नंगेपन से भयभीत न हों।
पुनरूत्थान के बाद, क्रब की खमोशी पुनः सवालों से तोड़ी जाती है। संत योहन के सुसमाचार में, “आप क्यों रोती हैंॽ” संत लूकस में, “आप जीवित को मृतकों के बीच में क्यों खोजती हैंॽ जब शिष्य एम्माऊस की ओर भाग रहे होते, तो वे अपने को क्रोध और निराशा से भरा पाते हैं। नारियाँ येसु को देखना की बात कहती हैं, लेकिन वे केवल स्त्रियाँ हैं। जैसे की आज भी हम कभी-कभी पाते हैं, जिन्हें महत्व नहीं दिया जाता है। शिष्य कलीसिया रुपी समुदाय से अपने को अलग करते हैं, जैसे कि आज बहुत से लोग कर रहे हैं। येसु उन्हें नहीं रोकते या उन्हें दोष नहीं देते हैं। वे उनसे पूछते हैं, “तुम किस विषय में बातें कर रहे होॽ” तुम्हारे हृदय में कौन-सी आशाएं और निराशा के भाव उथल-पुथल हो रहे हैंॽ शिष्य अपने में क्रोधित बातें करते हैं। यूनानी में यह शब्दिक अर्थ में, “आप एक-दूसरे पर क्यों पत्थर फेंक रहे हैंॽ अतः येसु उन्हें अपने क्रोध को साझा करने का निमंत्रण देते हैं। वे आशा कर रहे थे कि येसु इस्रराएल का उद्धार करेंगे, लेकिन वे गलत थे। वे असफल हो गये। अतः वे अपने को उनके लिए खोलते और उनके क्रोध और भय में साथ चलते हैं।
हमारी दुनिया गुस्से से भरी है। हम क्रोध से भरी राजनीति की बात करते हैं। हाल ही में अमेरिकन रेज नाम से एक पुस्तक प्रकाशित हुई है। यह क्रोध हमारी कलीसिया को भी संक्रमित करता है। बच्चों के यौन शोषण पर गुस्सा जायज है। कलीसिया में महिलाओं की स्थिति पर गुस्सा। उन भयानक रूढ़िवादियों या अति उदारवादियों पर गुस्सा। क्या हम, येसु की तरह, एक-दूसरे से पूछने का साहस करते हैं: “आप किस बारे में बात कर रहे हैंॽ आप क्रोधित क्यों हैंॽ” क्या हम उत्तर सुनने का साहस करते हैं? कभी-कभी मैं इन सारे क्रोध को सुनकर उब जाता हूँ। मैं और अधिक सुनना सहन नहीं कर सकता। लेकिन मुझे येसु की तरह सुनना चाहिए जिसे वे एम्माऊस की राह में चलते हुए करते हैं।
बहुत से लोगों को आशा है कि इस धर्मसभा में उनकी आवाज़ सुनी जायेगी। वे उपेक्षित और स्वरविहीन होने का अनुभव करते हैं। वे सही हैं। लेकिन हमारे पास आवाज केवल तब होगी जब हम पहले सुनेंगे। ईश्वर लोगों को नाम लेकर बुलाते हैं। इब्राहीम, इब्राहीम; मूसा, सामुएल। वे ईब्रानी सुंदर शब्द हिनेनी के साथ उत्तर देते हैं, “मैं यहाँ हूँ।” हमारे अस्तित्व की नींव यह है कि ईश्वर हममें से प्रत्येक को नाम लेकर बुलाते हैं, और हम सुनते हैं। हम कार्तेशियन नहीं कि “मैं सोचता हूँ इसलिए मैं हूँ” बल्कि मैं सुनता हूँ इसलिए मैं हूँ। हम यहाँ ईश्वर और एक-दूसरे को सुनने के लिए हैं। जैसा कि वे कहते हैं, हमारे पास दो कान हैं लेकिन केवल एक ही मुँह है। केवल सुनने के बाद ही वचन आता है।
हम सिर्फ यह नहीं सुनते कि लोग क्या कह रहे हैं बल्कि वह भी सुनते हैं कि वे क्या कहने की कोशिश कर रहे हैं। हम अनकहे शब्दों को सुनते हैं, जिन्हें वे खोजते हैं। एक सिसिलियन कहावत है- “ला मिग्लिओर पेरोला ए क्वेला के नॉन सी दीचे” “सबसे अच्छा शब्द वह है जो बोला नहीं जाता है।” हम सुनते हैं कि वे कितने सही हैं, उनकी सच्चाई क्या है, भले ही वे जो कहते हैं वह गलत हो। हम आशा के साथ सुनते हैं, अपमान के साथ नहीं। दोमेनिकन धर्मसंघ की धर्मसभा में हमारा एक नियम था। भाइयों ने जो कहा वह कभी बेतुका नहीं है। यह ग़लत सूचना हो सकती है, अतार्किक और वास्तव में ग़लत हो सकती है। लेकिन उनके गलत शब्दों में कहीं न कहीं एक सच्चाई है जिसे मुझे सुनने की जरूरत है। हम सत्य के भिक्षुक हैं। सबसे पहले भाइयों ने संत दोमेनिक के बारे में कहा था कि “वह अपनी बुद्धि की विनम्रता से सब कुछ समझता था”।
शायद धर्मसंघों को चाहिए की वे कलीसिया को बातचीत की कला के बारे में कुछ शिक्षा दे। संत बेनेदिक्त हमें सर्वसम्मति प्राप्त करना सिखाते हैं; संत दोमेनिक को तर्क-वितर्क करना, सिएना की संत कैथरीन को बातचीत में आनंद आता है, और लोयोला के संत इग्नासियुस को आत्मपरख की कला पसंद थी। संत फिलिप नेरी, अमोद-प्रमोद की भूमिका पंसद करते थे।
यदि हम सही रूप में सुनते हैं, तो हमारे बने-बनाये उत्तर वाष्पित हो जाते हैं। हम अपने में शांति और वचनों में खो जाते हैं जैसे कि हम जाकरियस को ईश महिमा गान के पहले पाते हैं। यदि मैं यह नहीं जानता कि अपने भाई-बहनों को उनके दुःख या आश्चर्य की घड़ी में किस तरह उत्तर देने की जरुरत है, तो मुझे ईश्वर की ओर अभिमुख होते हुए शब्दों की मांग करनी है। ऐसे करने से वार्ता की शुरूआत हो सकती है।
वार्ता हमें एक काल्पिक रुप में दूसरे के अनुभव में प्रवेश करने की मांग करती है। यह हमें उनकी आंखों से देखने और कानों से सुनने को अग्रसर करती है। हमें अपने को उनके स्थान में रखने की जरुर है। उनके शब्दों की निकासी कहाँ से होती हैॽ वे कौन-सा दुःख और आशा को वहन करते हैंॽ वे किस मार्ग में आगे बढ़ रहे हैंॽ
दोमेनिकन आमसभा में उपदेश देने की प्रकृति पर गरमागरम बहस हुई, यह दोमेनिकनों के लिए हमेशा एक चर्चा का विषय रहा है। आमसभा में प्रस्तावित दस्तावेज़ में उपदेश को संवाद के रूप में समझा गया: हम वार्ता में प्रवेश करके हुए अपने विश्वास की घोषणा करते हैं। लेकिन कुछ अभिजात्य इसपर दृढ़ता से असहमत थे, उन्होंने इसका सापेक्षतावाद पर आधारित तर्क दिया। उन्होंने कहा, “हमें साहसपूर्वक सच्चाई का प्रचार करने की जरुरत है।” धीरे-धीरे यह स्पष्ट हो गया कि झगड़ने वाले भाई बिल्कुल अलग-अलग अनुभवों के बारे में बोल रहे थे।
यह दस्तावेज़ पाकिस्तान में कार्यरत एक धर्मबंधु द्वारा लिखा गया था, जहाँ ईसाई धर्म स्वयं को इस्लाम के साथ निरंतर संवाद में पाता है। एशिया में संवाद के बिना कोई उपदेश नहीं है। दस्तावेज़ के ख़िलाफ़ कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करने वाले धर्मबंधुगण मुख्य रूप से पूर्व सोवियत संघ से थे। उनके लिए, उन लोगों से वार्ता का विचार, जिन्होंने उन्हें कैद किया था, कोई मतलब का नहीं था। असहमति से परे जाने के लिए तर्क-विर्तक आवश्यक तो था लेकिन पर्याप्त नहीं। आपको कल्पना करनी होगी कि दूसरा व्यक्ति इस तरह का दृष्टिकोण क्यों रखा है। किस अनुभव ने उन्हें इस दृष्टिकोण की ओर अग्रसर कियाॽ उनके क्या घाव हैंॽ उनका आनंद क्या है?
यह हमें पूरी कल्पना के साथ सुनने की मांग करता है। प्रेम सदैव कल्पना की विजय है, जैसे घृणा कल्पना की विफलता है। नफरत अमूर्त है। प्रेम विशेष है। ग्राहम ग्रीन के उपन्यास द पावर एंड द ग्लोरी में, नायक, एक गरीब कमजोर पुजारी, कहता है: “जब आपने आंखों के कोनों पर रेखाएं देखते, मुंह का आकार देखते, बाल कैसे बढ़ते, तो नफरत करना असंभव था। नफरत सिर्फ कल्पना की विफलता थी।”
हमें न केवल पक्ष और विपक्ष या सांस्कृतिक सीमाओं, बल्कि पीढ़ीगत सीमाओं को भी पार करना होगा। मुझे युवा दोमेनिकन लोगों के साथ रहने का सौभाग्य मिला है जिनकी विश्वास की यात्रा मेरी यात्रा से अलग है। मेरी पीढ़ी के कई धार्मिक और पुरोहित कट्टर काथलिक परिवारों में पले-बढ़े। विश्वास हमारे रोजमर्रा के जीवन में गहराई से प्रवेश कर गया। द्वितीय वाटिकन परिषद् का साहसिक कार्य पूरे विश्व में पहुँचना था। फ़्रांसीसी पुरोहित कारखानों में काम करने जाते थे। हमने अपने परिधान का परित्याग किया और खुद को दुनिया में डुबो दिया। एक क्रोधित बहन, मुझे मेरे परिधान पहने देखकर भड़क उठी: “तुम अभी भी वह पुरानी चीज़ क्यों पहने हुए होॽ”
आज कई युवा - विशेष रूप से पश्चिम में और हर जगह तेजी से बढ़ रहे हैं - एक धर्मनिरपेक्ष, अज्ञेयवादी या यहां तक कि नास्तिक दुनिया की ओर। उनका साहसिक कार्य सुसमाचार, कलीसिया और परंपरा की खोज करना है। वे खुशी-खुशी इसका अभ्यास करते हैं। हमारी यात्राएँ विपरीत हैं लेकिन विरोधाभासी नहीं। येसु की तरह, मुझे उनके साथ चलना चाहिए, और सीखना चाहिए कि उनके दिलों को क्या उत्साहित करता है। “आप किस बारे में बात कर रहे हैंॽ” आप कौन-सी फिल्में देखते हैं? आपको कौन-सा संगीत पसंद है? ऐसा होने पर हम एक एक-दूसरे के संग वार्ता में बढ़ते हैं।
मुझे कल्पना करनी चाहिए कि वे मुझे कैसे देखते हैं। उनकी नजर में मैं कौन हूँॽ एक बार मैं युवा वियतनामी दोमेनिकन छात्रों की भीड़ के साथ साइगॉन के आस-पास साइकिल चला रहा था। यह पर्यटकों के लिए आम होने से बहुत पहले की बात है। हम चारों ओर घूमे और वहाँ पश्चिमी पर्यटकों का एक समूह था। वे बहुत बड़े और मोटे और अजीब बदसूरत रूपों में दिख रहे थे। कितने अजीब लोग हैं। तब मुझे एहसास हुआ कि मैं भी वैसा ही दिखता था।
जैसे कि शिष्य एम्मुउस की ओर चलते हैं, वे उस अजनबी की बात सुनते हैं जो उन्हें मूर्ख कहता है और उनका खंडन करता है। वह भी गुस्से में है। परन्तु वे उसकी बातों से प्रसन्न होने लगते हैं। उनका हृदय उनके अंदर उदीप्त होने लाता है। धर्मसभा के दौरान क्या हम असहमति के परमआनंद से सीख सकते हैं जो अंतर्दृष्टि की ओर ले जाता हैॽ ह्यूगो रानर, कार्ल रानर के छोटे भाई ने होमो लुडेंस, चंचल मानवता पर एक किताब लिखी। आइए हम एक दूसरे से खेल-खेल में बातें करना सीखें। जैसा कि येसु और सामरी महिला को हम संत योहन के सुसमाचार आध्यय 4 में पाते हैं।
आज का पहला पाठ समय की परिपूर्ण के बारे में कहता है। “शहर युवक और युवतियों के भर जायेगा जो गलियों में खेलेंगे” (जाक. 8.5)। सुसमाचार हमें बच्चों की तरह होने का आहृवान करता है। “आमेन, मैं तुम से कहता हूँ, जब तक कोई इस छोटे बच्चों की भांति नहीं होता, वह स्वर्गराज में प्रवेश नहीं करेगा (मत्ती. 18.3)।” हम दिल्लगी करते हुए अपने को स्वर्गराज के लिए तैयार करते हैं, बच्चों की तरह न की बचकाने में। कभी-कभी हम कलीसिया के ढ़ीले-ढ़ाले व्यवहार, खुशी की कमी से प्रभावित होते हैं, इसमें कोई आश्चर्य नहीं की लोग अपने में ऊबाऊ महसूस करते हैं।
नई सहस्राब्दी की रात, जब मैं अंगोला के लिए उड़ान पकड़ने के लिए कोटे डी आइवर में इंतजार कर रहा था, मैं अपने दोमेनिकन छात्रों के साथ अंधेरे में बैठ, एक बियर पी रहा था और हमें अपने सबसे प्रिय विषय पर बातें कर रहे थे। हम अलग-अलग होने, अलग-अलग कल्पनाएँ करने में आनंदित थे। विभिन्न का आनंद। मुझे डर था कि मेरा विमान छूट जाएगा, लेकिन उसमें तीन दिन की देरी हो चुकी थी। अंतर उर्वर है, उत्पादक है। हममें से प्रत्येक पुरुष और महिला के बीच अद्भुत अंतर का फल है। यदि हम अंतर से भागते हैं, तो हम अपने घरों और अपने कलीसिया में बंजर और निःसंतान होंगे। पुनः, हम इस धर्मसभा में सभी अभिभावकों को धन्यवाद देते हैं। परिवार कलीसिया को मतभेदों से निपटने के संबंध में बहुत कुछ सीखा सकती है। माता-पिता सीखते हैं कि उन्हें बच्चों तक कैसे पहुंचा जाए जो समझ से परे विकल्प चुनते हैं और फिर भी यह जानते हैं कि उनके पास अभी भी घर है।
यदि हम यह कल्पना करने के आनंद को पाते कि हमारी बहनें और भाई हमारे विचारों को अजीब क्यों मानते हैं, तो कलीसिया में एक नया वसंत शुरू हो जाएगा। पवित्र आत्मा हमें अन्य भाषाएँ बोलने का वरदान देंगे।
हम इस बात को देखें कि येसु वार्ता को नियंत्रित करने की कोशिश नहीं करते हैं। वे पूछते हैं कि वे किस विषय पर बातचीत कर रहे हैं, वे वहाँ जाते जहाँ वे जाते हैं, न कि जहाँ वे जाने की चाह रखते हैं, वे उनका आतिथ्य स्वीकार करते हैं। एक सच्ची वार्ता नियंत्रित नहीं की जा सकती है। एक व्यक्ति अपने को इसकी दिशा में ढ़ाल लेता है। हम इस बात का पता नहीं लगा सकते कि यह हमें कहाँ ले जायेगा, एम्माऊस या येरुसालेम। धर्मसभा कलीसिया को कहाँ ले जायेगी। यदि हमें पहले से पता होता तो इसके आयोजन का कोई औचित्य नहीं रह जाता। आईए हम अपने को आश्चर्यचकित होने दें।
सच्ची वार्ता अपने में जोखिम भरी है। यदि हम अपने को दूसरों से सच्ची वार्ता हेतु खोलते हैं तो हमें चुनौती मिलेगी। प्रत्येक गहरी दोस्ती मेरे जीवन और पहचान को एक ऐसे आयाम और अस्तित्व में लाती है जो पहले कभी नहीं था। मैं वह बन गया हूँ जो मैं पहले कभी नहीं था। मैं एक अद्भुत रूढ़िवादी काथलिक परिवार में पला-बढ़ा। जब मैं दोमेनिकन बना तो मेरी दोस्ती एक अलग पृष्ठभूमि, बिल्कुल अलग राजनीति के लोगों से हो गई, जो मेरे परिवार को परेशान करने वाला था। जब मैं अपने परिवार के साथ रहने के लिए घर गया तो मैं कौन थाॽ मैंने उस व्यक्ति के साथ कैसे सामंजस्य स्थापित किया जो मैं उनके साथ था और वह व्यक्ति जब मैं दोमेनिकनों साथ बना रहता थाॽ
हर साल मुझे अलग-अलग विश्वासों और दुनिया को अलग-अलग विचारों वाले नये दोमेनिकन लोगों से मिलने और उन्हें जाने का मौका मिलता है। अगर मैं दोस्ती में खुद को उनके सामने खोल दूँ, तो मैं क्या बन जाऊंगाॽ मेरी ढलती उम्र में भी, मेरी पहचान खुली रहनी चाहिए। संयुक्त राज्य अमेरिका में चीनी प्रवासियों के बारे में मेडेलीन थिएन के अपने उपन्यास, डू नोट से वी हैव नथिंग में, एक पात्र कहता है,“कभी भी केवल एक चीज, एक अखंड इंसान बनने की कोशिश मत करो।” यदि इतने सारे लोग आपसे प्यार करते हैं, तो हम एक ठोस पहचान वाले व्यक्ति नहीं रहेंगे। यदि हम इस धर्मसभा में एक-दूसरे के लिए खुद को खोलें, तो हम सभी बदल जायेंगे। यह थोड़ी-सी मृत्यु और पुनरुत्थान होगा।
एक फिलिपिनो दोमेनिकन नवशिष्यालय अधिकारी के दरवाजे पर एक नोटिस था: “मुझे माफ करें। मैं एक कार्य में हूँ।” ईश्वर के राज्य में सुसंगति को आगे पाते हैं। तब हममें से प्रत्येक के अंदर भेड़िया और मेमना एक दूसरे के साथ शांति से रहेंगे। यदि हम अपने में बंद हैं और अपनी को पत्थर में अंकित किया है, तो हम कभी भी नई मित्रता के रोमांच को नहीं जान पाएंगे जो हमारे अस्तित्व के नए आयामों को उजागर करती है। हम प्रभु की विशाल मित्रता के लिए खुले नहीं रहेंगे।
जब वे एम्माऊस पहुंचते तो येरुसालेम का जहाज रुकता है। येसु इस तरह पेश आते मानों वे आगे जाने की चाह रखते हैं, वे अपनी महिमा विडम्बना में उन्हें अपने साथ रहने को निमंत्रण देते हैं। “हमारे साथ रह जाइए, क्योंकि शाम हो चली है और रात होने को है (लूका.24.29)। येसु उनके आतिथ्य को स्वीकारते हैं मानों उत्पत्ति ग्रंथ में तीन अतिथि का आब्रहम स्वागत करता हो। ईश्वर हमारे मेहमान हैं। हम नम्रता में उनका स्वागत करें। जर्मन प्रस्तुतिकरण में कहा गया कि हमें “उन लोगों को आरामदायक स्थिति छोड़ देनी चाहिए जो आतिथ्य सत्कार करते हैं ताकि हम उन लोगों को जीवन में स्वागत कर सकें जो मानवता की यात्रा में हमारे साथी हैं।”
द्वितीय वाटिकन धर्मसभा के आचार्य, मैरी-डोमिनिक चेनू ओपी, अस्सी वर्ष की उम्र में भी ज्यादातर शाम को बाहर जाते थे। वह ट्रेड यूनियन नेताओं, शिक्षाविदों, कलाकारों, परिवारों को सुनने और उनका आतिथ्य स्वीकार करने के लिए निकलते। शाम को हम बीयर के लिए मिलते और वे पूछते, “आज तुमने क्या सीखाॽ आप किसकी मेज़ पर बैठेॽ आपको क्या उपहार प्राप्त हुआॽ” प्रत्येक महाद्वीप की कलीसिया के पास सार्वभौमिक कलीसिया के लिए उपहार है। एक उदाहरण, लैटिन अमेरिका में मेरे भाइयों ने मुझे गरीबों, विशेषकर हमारे प्यारे भाई गुस्तावो गुतिरेज़ की बातों पर ध्यान देना सिखाया। क्या हम उन्हें इस महीने अपनी बहसों में सुनेंगेॽ हम एशिया और अफ़्रीका में अपने भाइयों और बहनों से क्या सीखेंगे?
“जब वह उनके साथ भोजन करने बैठे, तो उन्होंने रोटी ली, आशीर्वाद दिया, और उसे तोड़कर उन्हें दिया। तब उनकी आंखें खुल गईं, और उन्होंने उसे पहचान लिया और वे उनकी आंखों से ओझल हो गये।” (लूका 24:29)। उनकी आंखें खुल गयीं। पिछली बार हमने इस वाक्यांश को तब सुना था जब आदम और हेवा ने जीवन के वृक्ष का फल खाया था, और उनकी आँखें खुली थीं और उन्हें पता चला कि वे नंगे थे। यही कारण है कि कुछ प्राचीन टिप्पणीकारों ने शिष्यों को क्लियोपास और उसकी पत्नी, एक विवाहित जोड़े, एक नए आदम और हेवा के रूप में देखा। अब वे जीवन की रोटी खाते हैं।
जब येसु उनकी आंखों से ओझल हो जाते तो वे कहते हैं,“जब वे मार्ग में हमसे बातें कर रहे थे, तो क्या हमारे हृदय उदीप्त नहीं हो रहे थेॽ” मानो वे इस बात का अनुभव सिर्फ बाद में कहते हैं। संत जोन हेनरी न्यूमैन कहते हैं कि जब हम अपने जीवन में पीछे मुड़कर देखते तो हम ईश्वर की उपस्थिति से अपने को वाकिफ पाते हैं, जो सदैव हमारे साथ थे। मैं आशा करता हूँ कि यह हमारी अनुभूति हो।
धर्मसभा के दौरान, हम उन शिष्यों की भांति होंगे। कभी-कभी हमें ईश्वर की उपस्थिति और उनकी कृपा का एहसास नहीं होगा, हममें यह भी विचार आयेगा की सारी चीजें व्यर्थ की हैं। लेकिन मैं प्रार्थना करता हूँ कि पीछे मुढ़कर देखने पर हम इस बात का एहसास करेंगे ईश्वर सब समय हमारे साथ हैं, और हमारे हृदय अपने में उदीप्त होंगे।
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