कार्डिनल परोलिन: पोप एशिया और ओशिनिया में निकटता एवं शांति लायेंगे
मसिमिलियानो मेनिकेत्ती
वाटिकन सिटी, सोमवार, 2 सितंबर 2024 (रेई) : वाटिकन के राज्य सचिव कार्डिनल पिएत्रो परोलिन ने पोप फ्राँसिस की 45वीं प्रेरितिक यात्रा की पूर्व संध्या पर वाटिकन मीडिया के सामने पोप के परमधर्मपीठ में निकटता की केंद्रीयता को दोहराया और रेखांकित किया कि युद्धों और हिंसा से आहत दुनिया में शांति, मुलाकात, ईमानदारी के साथ रिश्तों में प्रवेश करने और स्वार्थ को तोड़ने के माध्यम से बनाई जाती है।
चार देश पोप का इंतजार कर रहे हैं जो ईसा मसीह की रोशनी लाने के लिए 2 से 13 सितंबर तक एशिया और ओशिनिया के बीच रहेंगे। वह भाईचारापूर्ण और सहायक वास्तविकता के निर्माण के लिए बातचीत की गवाह बनेंगे। कार्डिनल आज पोप विमान से नहीं जाएंगे क्योंकि मंगलवार 3 सितंबर को वे अपनी माँ अदा का अंतिम संस्कार सम्पन्न करेंगे, जिनकी 31 अगस्त को 96 वर्ष की आयु में विंचेनसा प्रांत के शियावोन में मृत्यु हो गई। यह इंटरव्यू 27 अगस्त को आयोजित किया गया था।
प्रश्न : महामहीम, पोप अपने परमाध्यक्षीय काल की सबसे लंबी यात्रा पर निकलने की तैयारी कर रहे हैं: वे इंडोनेशिया, पापुआ न्यू गिनी, तिमोर-लेस्ते और सिंगापुर का दौरा करेंगे। पोप फ्राँसिस की क्या उम्मीदें हैं?
कार्डिनल परोलिन: पोप फ्राँसिस अपने दिल में जो पहली उम्मीद रखते हैं, वह है मुलाकात। जिन देशों का वे दौरा करेंगे वहाँ के लोगों से व्यक्तिगत रूप से मिलना। दूसरे शब्दों में, यह एक बार फिर निकटता व्यक्त करने की बात है, वह निकटता जो उनके प्रशासन की शैली की विशेषता है, और जिनकी प्रेरितिक यात्रा की प्रासंगिक अभिव्यक्ति है : सुनने की निकटता, कठिनाइयों का सामना करने की निकटता, लोगों की पीड़ा और अपेक्षाओं, सभी के लिए सुसमाचार की खुशी, सांत्वना और आशा लाने की निकटता। संत पापा पॉल षष्ठम का हवाला देते हुए, मैं कहूँगा कि भौगोलिक दृष्टि से वे जितने दूर देशों में जाते हैं, संत पापा अपने दिल में इस आवश्यकता को उतना ही अधिक महसूस करते हैं।
प्रश्न : इंडोनेशिया दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाला मुस्लिम देश है: यहाँ कलीसिया बहुलवादी वास्तविकता में भाईचारे को मजबूत करने के लिए प्रतिबद्ध है, जो सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं का भी सामना करती है। क्या पेत्रुस के उत्तराधिकारी की उपस्थिति एकता के इस मार्ग में मदद कर पाएगी?
कार्डिनल परोलिन: पोप जिन क्षेत्रों का दौरा करेंगे वे विभिन्न संस्कृतियों, संप्रदायों और धार्मिक परंपराओं की विशेषता वाले क्षेत्र हैं। वे वास्तव में बहुलवादी वास्तविकताएँ हैं! मैं विशेष रूप से इंडोनेशिया के बारे में सोच रहा हूँ। पंचशील सिद्धांत के लिए भी धन्यवाद, जिन पांच सिद्धांतों पर राष्ट्र आधारित है, अब तक विभिन्न समूहों के बीच संबंध जो मूल रूप से, दूसरों की स्वीकृति, संवाद, संयम, पारस्परिक सम्मान के बैनर तले हैं। इस स्थिति को बदलने की किसी भी प्रवृत्ति और दुर्भाग्य से दुनिया के हर हिस्से में मौजूद कट्टरवाद के किसी भी प्रलोभन के खिलाफ, संत पापा के शब्द और उनके इशारे इस मार्ग को न छोड़ने के लिए एक मजबूत और दृढ़ निमंत्रण एवं समर्थन में योगदान देंगे जो भाईचारे को प्रोत्साहित करेंगे, जैसा कि वे कहना पसंद करते है, विविधता में एकता है। इस महान द्वीपसमूह को चुनौती देनेवाली सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं को भी इस सिद्धांत के प्रकाश में संबोधित किया जाना चाहिए।
प्रश्न : पापुआ न्यू गिनी में पोप फ्राँसिस एक प्राचीन परंपरा, एक मजबूत आस्था वाले लोगों से मिलेंगे। संसाधनों से भरपूर और बेहद गरीब इस जगह पर, जहां प्रकृति दूषित नहीं है, जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ शोषण और भ्रष्टाचार की चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है। पोर्ट मोरेस्बी को दुनिया के सबसे खतरनाक शहरों में से एक माना जाता है। क्या पोप की यात्रा नई दिशा ला पायेगी?
कार्डिनल पारोलिन: हाँ, पापुआ न्यू गिनी में भी विरोधाभास के संकेतों की कोई कमी नहीं है: संसाधनों की असाधारण संपत्ति अक्सर अन्याय, भ्रष्टाचार, राजनीतिक और आर्थिक असमानताओं के कारण होनेवाली अत्यधिक गरीबी से असंतुलित हो जाती है, जिस प्रकार सृष्टि की प्राचीन सुंदरता को जलवायु परिवर्तन के नाटकीय परिणामों और प्रकृति की वस्तुओं के अंधाधुंध दोहन से निपटना होगा। पोप फ्राँसिस का मकसद न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण और निरंतर प्रतिबद्धता के अर्थ में, परिवर्तन की छलांग लगाने के लिए - राजनीतिक संस्थानों, धर्मों की ओर से, प्रत्येक व्यक्ति की जिम्मेदारी की अपील करके - सभी संभावित प्रयासों को बढ़ावा देने, सबसे गरीबों पर ध्यान देने और आमघर की देखभाल का है।
प्रश्न : पोप की यात्रा का तीसरा गंतव्य तिमोर-लेस्ते होगा। 25 साल पहले आजादी मिलने तक यहाँ वर्षों तक पीड़ा का सामना करना पड़ा। देश अगले साल दक्षिण - पूर्वी एशियाई राष्ट्र संघ में शामिल हो जाएगा, लेकिन परिधि और केंद्र के बीच मजबूत असंतुलन बना हुआ है। पोप फ्राँसिस इस स्थान पर क्या संदेश लाएंगे जहां आस्था और इतिहास अविभाज्य रूप से जुड़े हुए हैं?
कार्डिनल परोलिन: जिन वर्षों में मैं राज्य सचिवालय का अधिकारी था, उन वर्षों में तिमोर लेस्ते का व्यक्तिगत रूप से अनुसरण करने के बाद, मैं उस पीड़ा का प्रत्यक्ष गवाह था जिसने इसके इतिहास को चिह्नित किया है। ऐसा महसूस हो रहा था कि यह पूरी तरह से बंद, अवरुद्ध स्थिति थी। इसलिए, 25 साल पहले स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ जो हुआ, उसे मैंने हमेशा एक प्रकार का "चमत्कार" माना है। ईसाई धर्म, जो तिमोर लेस्ते को एशिया का पहला काथलिक देश बनाता है इस लक्ष्य की दिशा के प्रयासों में निर्णायक भूमिका निभाई है। मैं अब सोचता हूँ कि वही विश्वास, अधिक गहन आध्यात्मिक गठन के माध्यम से, तिमोरियों को समाज के परिवर्तन, विभाजनों पर काबू पाने, असमानताओं और गरीबी एवं युवा समूहों के बीच हिंसा और महिलाओं की गरिमा के उल्लंघन जैसी नकारात्मक घटनाओं का मुकाबला करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। संत पापा की उपस्थिति निश्चित रूप से इस अर्थ में एक निर्णायक प्रेरणा प्रदान करेगी।
प्रश्न : इस यात्रा का अंतिम पड़ाव सिंगापुर का प्रमुख शहर होगा, एक ऐसा स्थान जहां विभिन्न धर्म सद्भाव के साथ रहते हैं। पोप अंतरधार्मिक संवाद को कैसे आगे बढ़ा सकते हैं और देश में विभिन्न समुदायों के बीच संबंधों को मजबूत कर सकते हैं?
कार्डिनल परोलिन: सिंगापुर, लंबी यात्रा का अंतिम पड़ाव, आज के बहुसांस्कृतिक और बहु-धार्मिक समाज में शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का एक उदाहरण प्रस्तुत करता है। हम खुद को एक ऐसे शहर में पाते हैं जो दुनियाभर के लोगों की मेजबानी करता है, जो विभिन्न संस्कृतियों और धार्मिक एवं आध्यात्मिक परंपराओं का मिश्रण है। पोप फ्राँसिस विशेष रूप से अंतरधार्मिक संवाद में लगे युवाओं से मिलेंगे और उन्हें इस मार्ग का भविष्य सौंपेंगे, ताकि वे अधिक भाईचारे और शांतिपूर्ण दुनिया के नायक बन सकें।
प्रश्न : क्या एशिया की यह यात्रा अन्य सेतुओं को खोल सकती है और परमधर्मपीठ एवं एशियाई देशों के बीच संबंधों को और मजबूत कर सकती है?
कार्डिनल परोलिन: इस सवाल के जवाब में, मैं सिंगापुर से शुरुआत करता हूँ, जिसकी आबादी ज्यादातर चीनी है और जो, चीनी संस्कृति और सामान्य रूप से लोगों के साथ बातचीत के लिए एक विशेषाधिकार प्राप्त स्थान है। इंडोनेशिया, जैसा कि कहा गया है, सबसे अधिक आबादी वाला मुस्लिम देश है: जकार्ता की यात्रा इस्लाम के एशियाई घटक के साथ आगे की मुलाकात के लिए एक अनुकूल अवसर प्रदान कर सकती है, लेकिन केवल यही नहीं। पोप की यात्रा में शामिल दो - जल्द ही तीन – देश, दक्षिण - पूर्वी एशियाई राष्ट्र संघ के सदस्य हैं, एक ऐसा समुदाय जिसमें वियतनाम और म्यांमार जैसे क्षेत्र के अन्य महत्वपूर्ण देश भी शामिल हैं।
प्रश्न : युद्धों के कारण विशेष रूप से यूक्रेन और मध्य पूर्व में बड़े अंतरराष्ट्रीय तनाव के इस क्षण में, यह यात्रा वास्तव में आशा, संवाद और भाईचारे का बीज है। हम अंतरराष्ट्रीय समुदाय में जागरूकता कैसे बढ़ा सकते हैं और रसातल की ओर जा रही दुनिया में शांति का ठोस निर्माण कैसे कर सकते हैं?
कार्डिनल परोलिन: मैं ऊपर उल्लिखित सामीप्य और निकटता की अवधारणा पर लौटता हूँ। शांति स्थापित करने के लिए स्वयं को उन दृष्टिकोणों को अपनाने के लिए बाध्य करना आवश्यक है जो प्रत्येक प्रेरितिक यात्रा प्रस्तावित करती है: मिलना, एक-दूसरे की आँखों में देखना और एक-दूसरे से ईमानदारी से बात करना। प्रत्यक्ष मुलाकात, अगर आमहित की खोज से प्रेरित हो, न कि स्वार्थी हितों से, तो यह सबसे असंवेदनशील और कठोर दिलों में भी जगह बना सकती है और एक सम्मानजनक और रचनात्मक संवाद को संभव बना सकती है।
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