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2022.11.24 इन्डोनेशिया में माता मरियम का स्वर्गोद्ग्रहण महागिरजाघर 2022.11.24 इन्डोनेशिया में माता मरियम का स्वर्गोद्ग्रहण महागिरजाघर  संपादकीय

युद्ध की सुरंगों से बंधुत्व की सुरंग तक

जब संत पापा फ्राँसिस अपने परमाध्यक्षीय काल की सबसे लंबी प्रेरित यात्रा पर निकलते हैं, जो उन्हें एशिया और ओशिनिया ले जाती है, तो हमारे संपादकीय निदेशक जकार्ता में एक सुरंग की प्रतीकात्मक छवि पर विचार करते हैं जो एक मस्जिद और एक काथलिक गिरजाघऱ को जोड़ती है।

अंद्रेया तोर्निएली - प्रधान संपादक

वाटिकन सिटी, सोमवार 02 सितंबर 2024 वाटिकन न्यूज़ : यहां युद्ध और आतंक की सुरंगें हैं, जिनका उपयोग सैनिकों, लड़ाकों और बंधकों को छिपाने के लिए किया जाता है। और विभिन्न धर्मों के लोगों को मित्रता में एकजुट करने के लिए सुरंगें बनाई गई हैं। जकार्ता में, इस्तिकलाल मस्जिद, जो दक्षिण पूर्व एशिया में सबसे बड़ी है और माता मरियम का स्वर्गोद्ग्रहण काथलिक महागिरजाघर एक-दूसरे के सामने खड़े हैं, करीब हैं लेकिन तीन लेन की सड़क से अलग किये गये हैं। एक पुराने सुरंग का जीर्णोद्धार किया गया है, जिसे कला के कार्यों से सजाया गया है और मुसलमानों के प्रार्थना स्थल को उस स्थान से जोड़ने के लिए "बंधुत्व सुरंग" में बदल दिया गया है, जहां ख्रीस्तीय यूखरिस्तीय समारोह मनाते हैं।

जलती हुई दुनिया में जहां मीडिया द्वारा रिपोर्ट किए गए और भूले हुए युद्ध लड़े जा रहे हैं, जहां हिंसा और नफरत व्याप्त है, हमें दोस्ती के रास्ते खोजने होंगे, बातचीत और शांति पर दांव लगाना होगा क्योंकि हम "सभी भाई" हैं। पुल बनाने वाले संत पेत्रुस के उत्तराधिकारी हमें यही गवाही देते हैं। आज संत पापा फ्राँसिस अपने परमाध्यक्षीय काल की सबसे लंबी यात्रा एशिया और ओशिनिया के लिए सीधी उड़ान पर निकल रहे हैं - दुनिया का सबसे बड़ा मुस्लिम देश - इंडोनेशिया से पापुआ न्यू गिनी तक, फिर पूर्वी तिमोर और अंत में सिंगापुर से वापस लौटेंगे।

ख्रीस्तियों के करीब रहने की एक तीर्थयात्रा जहां "छोटे झुंड", जैसे इंडोनेशिया में; या जहां वे लगभग पूरी आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं, जैसे कि पूर्वी तिमोर में सभी से मिलने और यह पुष्टि करने की यात्रा कि हम दीवारों, बाधाओं, घृणा और हिंसा के लिए अभिशप्त नहीं हैं, क्योंकि विभिन्न धर्मों, जातीय समूहों और संस्कृतियों की महिलाएं और पुरुष अलग-अलग होते हुए सह-अस्तित्व में रहें, एक-दूसरे का सम्मान करें, सहयोग करें। हालाँकि यह यात्रा चार साल पहले योजना बनाई गई थी और फिर महामारी के कारण स्थगित कर दी गई, लेकिन एशिया और ओशिनिया की यात्रा आज एक भविष्यसूचक महत्व रखती है।

 रोम के धर्माध्यक्ष, असीसी के संत की शैली के साथ, जिसका नाम उन्होंने लिया है, विजय प्राप्त करने या धर्मांतरण करने के लिए नहीं आते हैं, बल्कि केवल सुसमाचार की सुंदरता को देखने की इच्छा के साथ आते हैं।

उनकी यात्रा उन्हें प्रशांत महासागर के तट पर नौ हज़ार लोगों की आबादी वाले एक छोटे से शहर वानिमो तक ले जाएगी। इसी भावना ने उनके पूर्ववर्ती, संत पापा पॉल षष्टम को प्रेरित किया, जिन्होंने 29 नवंबर, 1970 को कुछ सौ द्वीपवासियों के लिए लेउलुमोएगा में एक छोटी, अस्थायी वेदी पर पवित्र मिस्सा समारोह मनाने के लिए स्वतंत्र समोआ के अपिया के लिए उड़ान भरी।

इसी बात ने संत पापा जॉन पॉल द्वितीय को दुनिया के इस क्षेत्र में कई बार आने के लिए प्रेरित किया, जिसके कारण उन्होंने 20 नवंबर, 1986 को सिंगापुर में येसु की शिक्षाओं के "सच्चे सार" के बारे में कहा: "प्रेम गरीबों की ज़रूरतों को उदारता से पूरा करता है और यह दुःख में पड़े लोगों के प्रति करुणा से पहचाना जाता है। प्रेम आतिथ्य प्रदान करने में तत्पर रहता है और परीक्षण के समय में दृढ़ रहता है। यह हमेशा क्षमा करने, आशा रखने और अभिशाप के बदले आशीर्वाद देने के लिए तैयार रहता है। 'प्रेम का अंत नहीं होता।' (1 कुरिं 13:8)। प्रेम करने की आज्ञा सुसमाचार का हृदय है।"

 

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02 September 2024, 16:45