लम्पेदूसा त्रासदी के 11 साल
मस्सीमिलियानो मनिकेत्ती
यूरोप और पूरी दुनिया, जो अभी भी युद्ध, गरीबी और हिंसा से त्रस्त है, प्रवासन और विभाजन पर बहस जारी है, अक्सर यह भूल जाती है कि यह मुद्दा अमूर्त संख्याओं के बारे में नहीं है – यह वास्तविक लोगों, वास्तविक चेहरों, सच्ची कहानियों की है, जो बहुधा दर्द और पीड़ा से भरी होती हैं। दीवारों से बनी सीमाएँ, अक्सर उन लोगों के लिए दुर्गम होती हैं जो संघर्ष के भय से भाग रहे हैं या बेहतर जीवन की तलाश कर रहे हैं। हज़ारों लोग रेगिस्तान में पार करने की कोशिश में मर जाते हैं, हिरासत केंद्रों में तड़पते हैं, या समुद्र में समा जाते हैं, ठीक वैसे ही जैसे 11 साल पहले हुआ था।
3 अक्टूबर, 2013 को 543 लोगों की उम्मीदें दुःस्वप्न में बदल गईं थी। जिस मछली पकड़नेवाली नाव पर वे सवार थे, वह पलट गई और लम्पेदूसा से लगभग आधा मील दूर डूब गई। ये प्रवासी - मुख्य रूप से इथियोपिया और इरीट्रिया के थे – जो दो दिन पहले, लीबिया के मिसराता से 20 मीटर लंबे जहाज पर सवार होकर निकले थे। यह 21वीं सदी में भूमध्यसागर की सबसे घातक समुद्री त्रासदियों में से एक बन गई: 368 लोगों की मौत की पुष्टि हुई, 155 लोग जीवित बचे और 20 लापता हो गये।
उसी वर्ष जुलाई में, लाम्पेदूसा में पहली यात्रा पर, पोप फ्रांसिस ने समुद्र में हुई एक और त्रासदी के लिए गहरा दुःख व्यक्त किया जो पास में ही हुई थी। उन्होंने उस समय "उदासीनता के वैश्वीकरण" की बात की जो हम सभी को "जिम्मेदार" बनाता है। उन्होंने चेतावनी दी कि "हम अब उस दुनिया पर ध्यान नहीं दे रहे हैं जिसमें हम रहते हैं; हम उसकी परवाह नहीं करते हैं, न ही उनकी चिंता करते हैं जिन्हें ईश्वर ने हमारी देखभाल के लिए बनाया है।"
पिछले कुछ वर्षों में, तीन विश्वपत्रों, सैकड़ों सार्वजनिक अपीलों, दौरों और यात्राओं के माध्यम से, पोप फ्राँसिस मानवता की अंतरात्मा तक पहुंचे हैं, लोगों से स्वार्थ, उदासीनता और शोषण पर काबू पाने का आग्रह किया है। उनका सपना एक ऐसे विश्व का है जो स्वागत करनेवाला, दयालु, भाईचारापूर्ण और शांतिमय हो। फिर भी, भूमध्य सागर, जो कभी सभ्यता का उद्गम स्थल था, एक दूर, खामोश कब्रिस्तान बन गया है। अन्य महासागरों की स्थिति भी अलग नहीं है।
एक ऐसी दुनिया में, जहाँ सोशल मीडिया हावी है और कृत्रिम बुद्धिमत्ता से चमत्कार एवं तबाही दोनों की संभावना है, सब कुछ नजरअंदाज करना, अनदेखा करना और भूल जाना बहुत आसान लगता है। लेकिन कुछ चीज़ें भूलना मुश्किल होता है - जैसे 2015 की वह तस्वीर जिसने लाखों लोगों को झकझोर कर रख दिया था: एलेन, एक बेजान सीरियाई बच्चा, जिसका चेहरा रेत में दबा हुआ था, तुर्की के एक समुद्र तट पर बहकर आया था।
पोप फ्राँसिस आज भी राजनीतिक और कूटनीतिक प्रयासों को प्रोत्साहित करना जारी रखते हैं, ताकि वे उस घाव को भर सकें जिसे वे "हमारी मानवता में खुला घाव" कहते हैं। वे उन लोगों की प्रशंसा भी करते हैं जो प्रवासियों को बचाने, उनका स्वागत करने और उनकी सहायता करने के लिए अथक प्रयास करते हैं। "समाधान लोगों को वापस भेजना नहीं है," उन्होंने 2023 में मार्सिले में "भूमध्यसागरीय बैठक" के समापन सत्र में कहा, "लेकिन जितना संभव हो, कानूनी और सुरक्षित प्रवास के लिए अधिक अवसर प्रदान करना है।"
पोप फ्राँसिस के लिए, महत्वपूर्ण बात है दूसरों से मिलना, जोखिम उठाना, प्यार दिखाना, साथ चलना और साझा समाधान खोजना। इसके लिए हममें से हर एक को अपना दृष्टिकोण बदलना होगा - “मैं” से “हम” की ओर जाना होगा, याद रखना और स्पष्ट रूप से देखना होगा, ताकि हम दूसरों में येसु के दयालु चेहरे को पहचान सकेंगे।
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