इसराएल हमास युद्ध के एक साल इसराएल हमास युद्ध के एक साल   (AFP or licensors) संपादकीय

अक्टूबर 07 स्वर्ग की ओर शांति हेतु पुकार

जैसे कि सद्भावना की चाह रखने वाले लोग 07 अक्टूबर को विश्व शांति हेतु ईश्वर से प्रार्थना और उपवास कर रहे हैं, हमारे संपादकीय निदेशक इजरायल पर हमास के क्रूर हमले की प्रथम वर्षगांठ और उसके बाद पूरे मध्य पूर्व में हुई सैन्य वृद्धि पर विचार कर रहे हैं।

आद्रेया तोरनेल्ली

एक वर्ष पहले, हमास द्वारा किया गया अमानवीय आतंकवादी हमला, जो  इज़रायली नागरिकों के विरूध हुआ, जिनमें अधिकतर- बच्चे, युवा, बुजुर्ग, पूरे परिवार के लोग शिकार हुए-विश्व को तीसरे विश्व युद्ध के एक कदम और करीब लेकर आया है।

यूक्रेन में रूस की आक्रामकता और विश्व के कई अन्य भागों में युद्धों का आतंक, और दुनिया की ऐसी स्थिति ने कभी न बुझने वाली इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष के नाटकीय स्थिति को पुनः भड़कते देखा।

नरसंहार के उस दिन की दुखद क्षति, जिसमें एक हजार से अधिक लोगों की जान चली गई, बंधकों की हृदय विदारक स्थिति और अभी भी अनसुलझी पीड़ा, जिनमें से कई को अगले महीनों में मार दिया गया।

इजरायल की प्रतिक्रिया का नतीजा भी उतना ही दुखद है, जिसके कारण गाजा में भारी तबाही हुई और हजारों बच्चों सहित लगभग 42,000 लोगों की जानें चली गई है। लाखों लोग अपने घर खो चुके और विस्थापित हो गए हैं, वे अनिश्चित परिस्थितियों में जीवन गुजार रहे हैं, इसकी आस में युद्ध विराम हो, लेकिन इस परिस्थिति में और अगला बम या हत्यारे ड्रोन से आक्रमण का भय सदा बना रहता है जिसका अर्थ है निर्दोष नागरिकों की मौत।

बमबारी द्वारा लक्षित हत्याएं, लेबनान से हिजबुल्लाह द्वारा और बाद में ईरान द्वारा इजरायल पर मिसाइल दागे जाना, इजरायली सेना द्वारा लेबनान पर आक्रमण: ये घटनाएं एक ऐसे भयावह नजारों को प्रस्तुत करती हैं जिसका वर्तमान में कोई अंत नहीं है। सरकारें मध्य पूर्व में नरसंहार को समाप्त करने में असमर्थ हैं, साथ ही यूक्रेन को तबाह करने वाले खूनी युद्ध को भी।

हथियारों की होड़ पर भारी रकम खर्च किया जाना, लेकिन कूटनीति अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य से गायब है। राजनीति खामोश है और “वार्ता” और “संवाद” जैसे शब्द अवर्णनीय हो गए हैं। कोई भी अभूतपूर्व हिंसा के इस चक्र को रोकने में सक्षम नहीं लगता है। 07 अक्टूबर, 2023 को हुए नरसंहार की पहली वर्षगांठ पर, जिस दिन रोजरी की माता मरियम के गिरजाघऱ में खुशियाँ मनायी जा रही थी, उसी दिन को संत पापा फ्रांसिस ने शांति हेतु प्रार्थना और उपवास के लिए एक विशेष दिन निश्चित किया। इन महीनों के दौरान, रोम के धर्माध्यक्ष ने युद्धविराम और शांति की मांग करते हुए अपनी गुहार जारी रहती है जो निरंतर अनसुनी की गई है।

 आज, यह पुकार और भी सामूहिक हो गई है जो स्वर्ग की ओर निर्देशित है, इस उम्मीद में कि इतिहास का ईश्वर राष्ट्रों के नेताओं के हृदय खोलेंगे, जिससे युद्ध के पागलपन की समाप्ति “ईमानदारपूर्ण वार्ता” और “सम्मानजनक समझौते” में हो सके। क्योंकि सबसे अपूर्ण और नाजुक शांति भी युद्ध की भयावहता से बेहतर है, यहाँ तक कि उस युद्ध से भी जिसे सबसे “न्यायसंगत” घोषित किया जाता है।

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07 October 2024, 15:35