सिनॉड ब्रीफिंग – 16वाँ दिन : अंतिम दस्तावेज पर आत्मपरख
वाटिकन न्यूज
सिनॉडालिटी या एक साथ चलनेवाली कलीसिया पर धर्मसभा की महासभा के अंत के ये दिन प्रस्तावित अंतिम दस्तावेज के संबंध में आत्मपरख का समय है, जिसमें प्रतिभागी मसौदा दस्तावेज में संशोधन का प्रस्ताव रख रहे हैं; साथ ही युद्ध के लिए 'एक मजबूत और स्पष्ट 'नहीं' के प्रस्ताव के साथ दुनिया में मौजूदा स्थिति पर भी ध्यान दे रहे हैं।
दैनिक धर्मसभा प्रेस ब्रीफिंग के आरंभ में, हमेशा की तरह, धर्मसभा के प्रतिभागियों के कार्यों का विवरण महासभा के सूचना आयोग के अध्यक्ष डॉ. पाओलो रूफिनी और आयोग की सचिव शीला पीरेस ने दिया।
‘मोदी’ (दस्तावेज में संशोधनों के लिए ठोस प्रस्ताव) का विस्तार
डॉ. रूफिनी ने बतलाया कि मंगलवार दूसरी बेला और बुधवार सुबह, मोदी के छोटे समूहों द्वारा अंतिम दस्तावेज के मसौदे के विस्तार के लिए समर्पित होंगे।" उन्होंने कहा कि "पहली बेला के अंत में, विशेष सचिव, फादर जाकोमो कोस्ता ने काम के इस नए चरण की प्रक्रियाओं के बारे में विस्तार से बताया।"
विशेष रूप से, रूफिनी ने बताया कि "मोदी" दस्तावेज में "संशोधनों के लिए ठोस प्रस्ताव हैं", चाहे वे हटाने, जोड़ने या प्रतिस्थापन के माध्यम से हों।" इसके अलावा, उन्होंने कहा, प्रस्तावित संशोधन या तो व्यक्तियों द्वारा या धर्मसभा प्रतिभागियों के समूहों द्वारा प्रस्तुत किए जा सकते हैं: सामूहिक मोदी वे हैं जिन्हें भाषा समूहों में अपनाया जाता है। प्रत्येक प्रस्तावित संशोधन पर धर्मसभा के पूर्ण सदस्यों द्वारा अलग से मतदान किया जाएगा, जिसमें संशोधन को अपनाने के लिए पूर्ण बहुमत आवश्यक है।
इसका उद्देश्य सामूहिक संशोधनों पर पहुंचना है जो समूह की समझ को व्यक्त करता है। इसके अलावा, डॉ. रूफिनी ने आगे कहा, "सामूहिक मोदी को बुधवार सुबह तक वितरित किया जाना चाहिए।
प्रत्येक सदस्य धर्मसभा के महासचिव को व्यक्तिगत प्रस्ताव भी भेज सकते हैं; हालाँकि, मोदी स्वाभाविक रूप से "अधिक वजनदार होगा।"
दस्तावेज का यूक्रेनी और चीनी अनुवाद
अंत में, डॉ. रूफिनी ने बताया कि "अंतिम दस्तावेज का मसौदा आधिकारिक भाषा के रूप में इतालवी में किया गया है, लेकिन अनौपचारिक अनुवादों के साथ यथासंभव अधिक से अधिक भाषाओं में इसका अनुवाद किया गया है। ऐसा विभिन्न सदस्यों की समझ को सुविधाजनक बनाने के लिए किया गया है।" उन्होंने कहा कि जिन भाषाओं में दस्तावेज का अनुवाद किया गया था, उनमें यूक्रेनी और चीनी भी शामिल हैं, जिसकी धर्मसभा में मौजूद दो चीनी धर्माध्यक्षों ने "बहुत सराहना" की।
युवाओं की अपील ‘हम आपके साथ चलना चाहते हैं’
डॉ. पीरेस ने बतलाया कि मंगलवार को महासभा के दौरान सभागार में कुल 343 सदस्य थे जिसमें पोप फ्राँसिस भी उपस्थित थे।
सोमवार को अंतिम दस्तावेज के मसौदे की प्रस्तुति के बाद छोटे समूह की बैठकों के बाद, मंगलवार को सभी मुक्त भाषण मसौदा दस्तावेज पर केंद्रित थे। दस्तावेज के संतुलन, गहराई, घनत्व के लिए सराहना की गई और साथ ही, प्रस्ताव भी रखे गए।"
पीरेस ने गौर किया कि “सिनॉडालिटी से संबंधित विभिन्न विषयों पर कुल 40 हस्ताक्षेप थे। उन्होंने स्पष्ट करते हुए कहा, "इनमें युवाओं का विषय भी शामिल थे: धर्मसभा के सबसे युवा सदस्यों में से एक ने धर्मसभा के बाद के घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए धर्मसभा के धर्माचार्यों और प्रतिभागियों से अपील की: 'कृपया युवाओं को अकेला न छोड़ें, बल्कि हमारे साथ चलें; हम आपके साथ चलना चाहते हैं।'"
कलीसिया में विभिन्न भूमिकाएँ
डॉ. पीरेस ने जानकारी दी कि अन्य हस्ताक्षेपों में कलीसिया में महिलाओं की भूमिका पर उनके मौलिक महत्व; फिर लोकधर्मियों, धर्माध्यक्षीय सम्मेलन, पुरोहित, धर्मसंघी और छोटे ख्रीस्तीय समुदायों की भूमिका की पुष्टि की गई।”
सूचना आयोग की सचिव ने यह बताते हुए निष्कर्ष निकाला कि चल रही विश्व की खबरें धर्मसभा हॉल में पहुंच गईं हैं, जिसमें कलीसिया को युद्ध के लिए “एक मजबूत और स्पष्ट ‘नहीं’” दोहराने का निमंत्रण दिया गया। हॉल में कहा गया कि “हमें इन संघर्षों को समाप्त करने के लिए लगातार आग्रह और अपील करना चाहिए; अन्यथा कोई भी मनुष्य जीवित नहीं बचेगा जो इस दस्तावेज़ को पढ़ सके।”
नये तरीके की कलीसिया बनने की कल्पना
मंगलवार की ब्रीफिंग में कार्डिनल फ्रिडोलिन अम्बोंगो बेसुंगू ने कहा, "हमें किसी विशेष समस्या को हल करने के लिए नहीं बल्कि कलीसिया होने के एक नए तरीके की कल्पना करने के लिए बुलाया गया है।" उन्होंने कहा, "धर्मसभा अपने निर्धारित उद्देश्य से विचलित नहीं हुई है और एक नींव रखी है: इससे शुरू करते हुए, प्रत्येक व्यक्ति को अपना घर वापस जाना है, साथ ही विश्वव्यापी में, हमें हर समस्या के लिए धर्मसभा की इस भावना को लागू करना है।"
किंशासा के महाधर्माध्यक्ष ने धर्मसभा के समापन पर अपनी संतुष्टि व्यक्त की।
उन्होंने कहा, "हमारा देश अभी भी एक मिशनरी भूमि माना जाता है, हमारी कलीसिया कुछ दिनों पहले तक एक मिशनरी था, और इसे सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ की वास्तविकता के अनुकूल होना चाहिए," इसलिए "धर्मसभा के लिए बुलाए जाने को एक कैरोस (अवसर) के रूप में," अनुग्रह के क्षण, और "एक साथ मिलकर कलीसिया होने के एक नए तरीके की कल्पना करने के अवसर के रूप में देखा गया।"
अब जबकि कलीसिया में धर्मसभा उभर रही है, कार्डिनल अम्बोंगो ने पत्रकारों को आश्वासन दिया कि अफ्रीका में, कलीसिया, “हमारे अफ्रीकी भाइयों और बहनों के साथ मिलकर, इस नई गतिशीलता में प्रवेश करने की कोशिश करेगी, कि कैसे काथलिक कलीसिया अलग बने।” अफ्रीका, धर्मसभा के लिए उपजाऊ जमीन कैमरून के बामेंडा के महाधर्माध्यक्ष एंड्रयू नेकिया फुआन्या ने फिर मंच संभाला और धर्मसभा में अफ्रीकी योगदान पर टिप्पणी की, जिसकी शुरुआत जमीनी समुदायों और प्रचारकों से हुई।
उन्होंने कहा कि एक साथ चलनेवाली कलीसिया (सिनॉडालिटी) हम सभी के लिए द्वितीय आगमन का संकेत है जो दुनिया के विभिन्न हिस्सों से विविध विचारों के साथ आती है।
उन्होंने आशा व्यक्त की कि धर्मसभा में भाग लेनेवाले लोग न केवल निष्क्रिय रूप से सिनॉडालिटी प्राप्त करनेवाले लोगों के रूप में अपने घर लौटेंगे, बल्कि सिनॉडालिटी के लिए सक्रिय राजदूत के रूप में भी लौटेंगे, जिसके बारे में उन्होंने आगे कहा, "मेरा मानना है कि यह वास्तव में भविष्य है।"
अफ्रीका के संदर्भ में, जहाँ "गिरजाघर भरे होते हैं" समस्या यह है कि "उन्हें कैसे भरा रखा जाए", उन्होंने जोर दिया, और कहा, "हम इसे एक साथ चलनेवाली कलीसिया के माध्यम से करेंगे।"
महाधर्माध्यक्ष ने प्रचारकों (कटेकिस्ट), विशेषकर महिलाओं द्वारा निभाई गई मौलिक भूमिका पर प्रकाश डाला, जो कुल प्रचारकों की लगभग आधी संख्या हैं।
धर्मनिरपेक्षता के बाद के युग में काथलिक धर्म का पुनः सांस्कृतिकरण
जर्मनी में धर्मनिरपेक्षता के बाद की स्थिति के बारे में बोलते हुए, एसेन के धर्माध्यक्ष, फ्रांज-जोसेफ ओवरबेक ने काथलिक कलीसिया के पुनः सांस्कृतिक समन्वय की आवश्यकता पर बल दिया।
उन्होंने कहा, "कई वर्षों तक एक व्यक्ति काथलिक या प्रोटेस्टंट रहा, अब लगभग 84 मिलियन निवासियों में से आधे लोग बिना विश्वास, बिना धर्म और बिना ईश्वर के बारे में विचार के हैं, जबकि शेष आधे काथलिक और प्रोटेस्टेंट के बीच लगभग समान रूप से विभाजित हैं, जिनमें चार मिलियन से अधिक मुस्लिम हैं।" हालांकि नए छोटे समुदाय काम कर रहे हैं, लेकिन "नए सिरे से सुसमाचार प्रचार" करने और साथ ही "कलीसिया में महिलाओं की भूमिका पर एक नया जवाब देने" की आवश्यकता है।
धर्मनिरपेक्षता के बाद की इस स्थिति, जिसमें कलीसिया "एक ओर संरचना और दूसरी ओर एक नई आध्यात्मिकता के बीच तनाव में है," धर्मसभा "एक ऐसा मार्ग है जिस पर हम पहले से ही वर्षों से रह रहे हैं," धर्माध्यक्ष ने आगे कहा, और कहा कि जर्मनी में दुराचार कांड के बाद एक धर्मसभा दृष्टिकोण पहले ही विकसित हो चुका है।
एशिया, संवाद में एक जीवंत आस्था
मलेशिया के कुआलालंपुर में काथलिक अनुसंधान केंद्र के निदेशक फादर क्लेरेंस संदनाराज दवेदासन ने कलीसिया के भीतर और दूसरों के साथ मिलकर धर्मसभा में रहने के अनुभव के बारे में बात की।
उन्होंने बताया कि फिलीपींस और तिमोर लेस्ते के अलावा एशिया एक ऐसा महाद्वीप है जहाँ काथलिक अल्पसंख्यक हैं।
उन्होंने कहा कि हालाँकि विश्वास बहुत ज़्यादा जीवित है, लेकिन "इसका मतलब यह नहीं है कि सांसारिकता और अन्य समस्याएँ मौजूद नहीं हैं।"
उन्होंने आगे कहा कि अगर कई जगहों पर राजनीतिक और धार्मिक अतिवाद के कारण "विश्वास की अभिव्यक्ति के लिए सार्वजनिक स्थान छोटा होता जा रहा है", तो ऐसे संदर्भ में "हमें संवाद के ज़रिए सद्भाव की तलाश करनी चाहिए।"
उन्होंने जोर देकर कहा कि ऐसे संदर्भ में संवाद "कोई विकल्प नहीं है" बल्कि "अस्तित्व का मामला है। यह कोई नई बात नहीं है बल्कि एक आवश्यकता है और यह उस अनुभव का हिस्सा है जिसे हम एक बहुलवादी संस्कृति में रोजाना जीते हैं।"
उन्होंने आगे कहा कि धर्मसभा “इस सब की नींव है” और परिवार से शुरू करके, इसे हर जगह जीया जा रहा है, और यह लगातार फल दे रहा है।
इसलिए, उन्होंने कहा कि एशिया में चुनौती “दूसरों के साथ रहने के दृष्टिकोण से” ईशशास्त्र को सीखना और “जहाँ विश्वास को सार्वजनिक रूप से व्यक्त नहीं किया जा सकता है” वहाँ सुसमाचार प्रचार करने सीखना है।
अंत में, फादर दवेदासन ने प्रवास की स्थिति के बारे में बात की, जिसके कारण कई एशियाई लोग दुनिया के अन्य हिस्सों में रहने के लिए मजबूर हैं: "वे नए मिशनरी हैं, क्योंकि जब वे जाते हैं तो वे सिर्फ आय की तलाश में नहीं होते, बल्कि वे अपने साथ अपना विश्वास भी ले जाते हैं।" उन्होंने अंत में कहा "और मैं जानता हूँ कि दुनिया के कई स्थानों पर वे कलीसिया को जीवंत करते हैं, विश्वास को जीवित रखने में योगदान देते हैं।"
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