सिनॉड ब्रीफिंग – 14वाँ दिन : अधिक विकेन्द्रित कलीसिया की ओर
वाटिकन न्यूज
ठोस सिद्धांतों द्वारा निर्देशित होने पर विकेंद्रीकरण “स्वस्थ” होता है। यह विचार धर्मसभा के काम पर शुक्रवार की ब्रीफिंग के केंद्र में था, जिसमें बृहस्पतिवार दूसरी बेला और शुक्रवार सुबह (18 अक्टूबर) की चर्चाएँ शामिल थीं।
संचार विभाग के प्रीफेक्ट और धर्मसभा के सूचना आयोग के अध्यक्ष डॉ. पाओलो रूफिनी ने ब्रीफिंग की शुरूआत की। उसके बाद आयोग की सचिव शेइला पीरेस ने रिपोर्ट पेश किया।
क्षेत्र की अवधारणा को फिर से परिभाषित करना
पिछले दिनों हुई चर्चा "स्थानों" को समर्पित इंस्ट्रुमेंटम लेबोरिस के भाग 3 पर केंद्रित रही।
डॉ. रूफिनी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कई हस्तक्षेपों ने स्थानीय कलीसियाओं के महत्व को रेखांकित किया, उन्होंने कहा कि "वे नुकसान नहीं पहुँचाते, बल्कि एकता बढ़ाते हैं" क्योंकि "प्रत्येक की विशिष्टता" एक खतरा नहीं बल्कि "एक विशेष वरदान" है।
इसका एक उदाहरण, पूर्व की काथलिक कलीसियाएँ हैं, जिनकी परंपराओं को "संपूर्ण सार्वभौमिक काथलिक कलीसिया के खजाने" के रूप में संरक्षित किया जाना चाहिए और इस प्रकार "इसका एक अभिन्न और अपरिहार्य हिस्सा" होना चाहिए।
परिणामस्वरूप, कई लोगों ने न केवल "अस्तित्व" सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर ध्यान दिलाया, बल्कि "पूर्वी काथलिक कलीसियाओँ के पुनरुद्धार" की भी आवश्यकता पर जोर दिया, उनके मूल क्षेत्रों और प्रवासी समुदाय दोनों में।"
कुछ लोगों ने तर्क दिया कि "इतिहास में एकता की समझ बिल्कुल सही नहीं रही है" और कई बार लातीनी कलीसिया ने "पूर्वी 'सुई इयूरिस' कलीसियाओं (स्वतंत्र कलीसियाओं) के प्रति अन्यायपूर्ण व्यवहार किया, उनके ईशशास्त्र को गौण माना।" आज, हालांकि, चुनौतियों में से एक "क्षेत्र की अवधारणा को फिर से परिभाषित करना" है, जो "केवल एक भौतिक स्थान नहीं है।" प्रवासी होने के कारण, "पूर्वी काथलिक ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं जहाँ लातीनी रीति प्रमुख है।"
विकेंद्रीकरण
"बहन कलीसियाओं" के एक ही दिन पास्का महापर्व मनाने के व्यापक रूप से चर्चित मुद्दे के बारे में, रूफिनी ने कहा कि अगले वर्ष ऐसा करने के लिए एक समझौता किया गया है।
हालांकि, सभा की ओर से "एक स्थायी आम तिथि के लिए पूरी धर्मसभा से एक संदेश" के लिए अनुरोध किया गया।
रोम से लेकर सुदूर क्षेत्रों तक विकेंद्रीकरण धर्मसभा सत्रों में कई बार चिंतन के विषय रहे, जिसने कई ब्रीफिंग में पत्रकारों की जिज्ञासा को आकर्षित किया।
पीरेस ने बताया कि "स्वस्थ विकेंद्रीकरण" को परिभाषित करने के मानदंडों का विश्लेषण किया गया, जिसमें "निकटता और संस्कारात्मकता" शामिल है, जिसका अर्थ है संस्कार।
छोटे जमीनी समुदायों को भी "धर्मसभा स्वरूप कलीसिया में विशेषाधिकार प्राप्त स्थान" के रूप में महत्व दिया गया।
इन समुदायों के लिए, यह ध्यान दिया गया कि डिजिटल वातावरण बहुत महत्व रखता है, क्योंकि यह उन्हें "न केवल आभासी रूप से बल्कि क्षेत्रीय रूप से भी" जुड़े रहने में मदद कर सकता है।
लोकधर्मियों के साथ मिलकर चलना
पीरेस ने बताया कि कई हस्तक्षेपों ने "सिनॉडालिटी से नहीं डरने" के लिए प्रोत्साहित किया, क्योंकि यह विभिन्न विशिष्ठताओं और प्रेरिताई या स्थानों की विशिष्टता को कमज़ोर नहीं करता है।"
पल्ली के विषय को और विकसित करने का आह्वान किया गया, जहाँ "प्रशासनिक कार्य मिशनरी उत्साह को दबाते हैं, इसलिए हमें रचनात्मक रूप से सोचना चाहिए।"
विशेष रूप से, "पीड़ित लोगों की पुकार सुनना आवश्यक है, क्योंकि स्थानीय कलीसिया का एक साथ होना" भी "पीड़ा के समय वास्तविकताओं" में प्रकट होती है।
सांसारिकता की ओर झुके समाजों में विश्वास की अच्छी लड़ाई लड़ने के लिए, जैसा कि संत पॉल ने सलाह दी है, "लोकधर्मियों के साथ मिलकर चलें", इस बात की याद दिलाया गयी कि "कलीसिया का एक स्वस्थ विकेंद्रीकरण ईश प्रजा के बीच साझा जिम्मेदारी के आयाम को बढ़ा सकता है," हमेशा एकता के ढांचे के भीतर, "धर्मशिक्षा के प्रति निष्ठा, पेत्रुस के उत्तराधिकारी के साथ कलीसियाई सहभागिता, स्थानीय कलीसियाओं के लिए सम्मान, सहायकता और एक साथ होने की भावना।"
सुसमाचार को "हर संस्कृति और हर जगह सम्माहित होना चाहिए, आंदोलनों और नई कलीसियाई वास्तविकताओं के सामुदायिक आयाम में निवास करना और उसे मजबूत करना चाहिए।"
पीरेस ने उल्लेख किया कि एक अत्यधिक प्रशंसित हस्तक्षेप ने कलीसिया की "विविधता में एकता" के आह्वान पर जोर दिया, इसे "ख्रीस्त के हृदय के साथ जीवित अंग, और अपने लोगों के अस्तित्व के माध्यम से एक शरीर के रूप में जीवित रहने के रूप में वर्णित किया।"
महिलाओं एवं युवाओं का स्वागत
महिला उपयाजक के विषय पर, कुछ हस्तक्षेपों ने इस बात पर जोर दिया कि "कलीसिया को 'केवल पुरुषों का मामला' नहीं होना चाहिए" और भले ही महिलाएँ निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में शामिल हों, लेकिन यही काफी नहीं है।
अगर युवा लोग कहते हैं कि "वे आध्यात्मिक हैं लेकिन धार्मिक नहीं हैं," तो इससे कलीसिया को "डिजिटल स्पेस में भी मिशनरी बनने" के लिए प्रेरित होना चाहिए, जहाँ युवा पुरुष और महिलाएँ अपना समय बिताते और बातचीत करते हैं।
अंत में, डॉ. रूफिनी ने घोषणा की कि शुक्रवार के, कार्य समूहों की बैठकों के अलावा, कलीसियाई कानून आयोग का एक सत्र और एसइसीएएम, अफ्रीका और मेडागास्कर के धर्माध्यक्षीय सम्मेलनों की संगोष्ठी का एक और सत्र होगा, जिसे बहुविवाह पर ईशशास्त्रीय-प्रेरितिक विवेक का कार्य सौंपा गया है।
अगला सप्ताह अंतिम दस्तावेज़ के मसौदे पर चर्चा निर्णायक होगा, जिसे, जैसा कि कार्डिनल मारियो ग्रेक ने कहा, गहन प्रार्थना के माहौल में किया जाना जरूरी है।
यही कारण है कि डॉ. रूफिनी ने कहा, “सोमवार का सत्र सुबह 8:30 बजे संत पेत्रुस महागिरजाघर के सिंहासन की वेदी पर पवित्र आत्मा के आह्वान के साथ मिस्सा बलिदान से शुरू होगा।
भूमध्य सागर में चुनौतियाँ
भूमध्य सागर से लेकर अफ्रीका और लैटिन अमेरिका तक, भौगोलिक दृष्टि से दूर-दराज के क्षेत्र समान चुनौतियों और उन्हें हल करने की साझा इच्छा से एकजुट हैं।
यह हस्तक्षेपों और ब्रीफिंग प्रतिभागियों से पूछे गए बाद के प्रश्नों को जोड़ने वाला सामान्य सूत्र था।
फ्रांस के मार्सिले के कार्डिनल जॉ-मार्क एवेलिन पहले वक्ता थे। उन्होंने भूमध्यसागरीय क्षेत्र में कलीसिया के प्रयासों के समन्वय में अपनी भूमिका पर प्रकाश डाला, जिन्हें पोप फ्राँसिस ने एक मिशन सौंपा था।
कार्डिनल ने अपनी प्रतिबद्धता की समयरेखा पर गौर किया, जो 2020 में लगभग चालीस धर्माध्यक्षों के साथ शुरू हुई और कई सभाओं के साथ सितंबर 2023 की सभा द्वारा जारी रही, जब पोप फ्राँसिस ने "इस काम को जारी रखने, समन्वय करने और समर्थन करने की अपनी इच्छा व्यक्त की थी।"
मुख्य रूप से विभिन्न कलीसियाई समुदायों की कठिनाइयों को सुनने पर ध्यान केंद्रित किया गया है। कार्डिनल एवलिन ने कहा, "भूमध्यसागर केवल अध्ययन का विषय नहीं है, बल्कि एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ खतरनाक परिदृश्य सामने आते हैं: युद्ध, स्वतंत्रता का उल्लंघन, भ्रष्टाचार," प्रवासन का उल्लेख नहीं करना, जिसके लिए समर्पित समर्थन नेटवर्क बनाए गए हैं।
कार्डिनल ने भूमध्यसागर को समर्पित एक संभावित धर्मसभा के लिए अपने प्रस्ताव को याद करते हुए जोर दिया,
"हमें यह समझना चाहिए कि कलीसिया इस क्षेत्र में न्याय और शांति के प्रयासों में कैसे योगदान दे सकती है,"
लैटिन अमेरिका में दुःख और उम्मीदें
इसके बाद, कोलंबिया के बोगोटा के कार्डिनल लुइस जोस रुएडा अपारिसियो ने अपने देश और लैटिन अमेरिका में विश्वास के अनुभवों के बारे में बात की, जो एक "युवा महाद्वीप" है, जिसमें "दुख और उम्मीद दोनों हैं।"
स्थानीय कलीसिया "गरीबों के करीब आध्यात्मिकता" विकसित करने का प्रयास करती है, गरीबी एक ऐसा मुद्दा है जो न केवल उत्तरी अमेरिका की ओर प्रवास के कारण बल्कि नशीली दवाओं की तस्करी से संबंधित समस्याओं के कारण भी बढ़ गया है।
इस चुनौतीपूर्ण संदर्भ में, "कलीसिया ने एकजुट होकर वास्तविकता तक पहुँचने के तरीके खोजे हैं, तथा इसे विश्वास और आशा की आँखों से देखने का प्रयास किया है।" कार्डिनल के अनुसार, इसका परिणाम एक ठोस "राज्य की उपस्थिति" है, जिसका उद्देश्य पूरे महाद्वीप में "एकीकृत सुसमाचार प्रचार" को प्राप्त करना है।
दक्षिण सूडान में संघर्ष
दक्षिण सूडान के जुबा के महाधर्माध्यक्ष कार्डिनल स्टीफन अमेयू मार्टिन मुल्ला ने अपने देश और पड़ोसी सूडान के सामने आनेवाली चुनौतियों पर बात की।
उन्होंने कहा कि दक्षिण सूडान के लोगों ने स्वतंत्रता की तलाश में युद्ध लड़ा, लेकिन वे अभी भी शांति से दूर हैं, कई अनसुलझे मुद्दों से त्रस्त हैं।
दक्षिण सूडान में हस्ताक्षरित शांति समझौते अभी भी आंशिक रूप से ही लागू किए गए हैं - 2018 में पोप फ्राँसिस के साथ एक ऐतिहासिक मुलाकात में एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल के साथ भी इस विषय पर बात हुई थी।
हालांकि, तब से लेकर अब तक, पोप की अफ्रीकी देश की यात्रा के बाद भी, बहुत कम बदलाव हुए हैं।
महाधर्माध्यक्ष ने कहा, इस कारण से, उनका माननाहै कि धर्मसभा संवाद हमारे सामने आनेवाले सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को संबोधित कर सकता है।
राष्ट्र को प्रभावित करनेवाली एक और समस्या वैश्विक तापमान का बढ़ना है। कार्डिनल मुल्ला ने बेनटियू शहर का हवाला दिया, जो अब दक्षिण सूडान में भारी बारिश के कारण पूरी तरह से जलमग्न हो गया है।
जुबा के महाधर्माध्यक्ष के अनुसार, एक दूसरे से तेजी से जुड़ती दुनिया में, कोई भी यह नहीं कह सकता कि ऐसी समस्याओं का उनसे कोई लेना-देना नहीं है।
धर्मसभा को लेकर उत्साह
अंत में, संत मार्टिन के धर्माध्यक्ष लुइस मारिन दी जो एक अगुस्टिनियन हैं और धर्मसभा के महासचिव के उप सचिव तथा सूचना आयोग के सदस्य हैं, ने दुनिया के सामने आनेवाली चुनौतियों पर विचार किया, जैसा कि पिछले हस्तक्षेपों में उजागर किया गया था।
उन्होंने बतलाया कि धर्मसभा किस तरह सवालों का जवाब देते हुए आज के मुद्दों को संबोधित करने में सक्षम स्पष्ट भाषा के साथ एक खुली कलीसिया को सुदृढ़ करती है।
धर्माध्यक्ष ने चार बुनियादी स्तंभों की पहचान की जिन पर कलीसिया को खड़ा होना चाहिए: इसे मसीह-केंद्रित, भाईचारापूर्ण, समावेशी होना चाहिए ("जो लोग सिनॉडल सभा के भीतर सत्ता संघर्ष देखते हैं वे गलत हैं; ऐसा अस्तित्व में नहीं है," बिशप ने कहा) और गतिशील।
"काश हम संकटों से भरी दुनिया में अपना उत्साह साझा कर पाते।"
इस बीच, धर्मसभा की चर्चाएँ कई विरोधाभासों के इर्द-गिर्द घूमती रही हैं: धर्मसभा और समय के संकेतों को सुनना, एकता और विविधता, केंद्र और परिधि। उपसचिव का अंतिम आह्वान था कि "कभी-कभी हमें जकड़ लेने वाले निराशावाद" से निराश नहीं होना है।
तत्काल जवाब
प्रेस ब्रीफिंग के दौरान पत्रकारों के सवालों के लिए हमेशा की तरह जगह दी गई। "विविधता में एकता" की अवधारणा के कार्यान्वयन को संबोधित करते हुए, कार्डिनल रुएडा अपारिसियो ने बताया कि यह अवधारणा पहले से ही "नई और परिवर्तनात्मक धर्मसभा शैली" में परिलक्षित होती है, जहाँ महिला धर्मसभा सदस्यों की उपस्थिति "नवीनता और प्रगति" का सबसे स्पष्ट संकेत है।
धर्मसभा से तत्काल उत्तर मांगने वालों को जवाब देने के विषय पर, धर्माध्यक्ष मारिन ने इसकी तुलना ख्रीस्तीय धर्म से की: "यह ख्रीस्त का एक अनुभव है। अगर हम इसे नहीं जीते हैं, तो हम इसे कभी भी पूरी तरह से नहीं समझ पाएंगे।"
फिर भी, धर्माध्यक्ष ने इस बात पर जोर दिया कि संपूर्ण धर्मसभा प्रक्रिया अमूर्त नहीं रहनी चाहिए, बल्कि "वास्तविकता में निहित होनी चाहिए।" इस संदर्भ में, पल्ली "प्राथमिक समुदायों" के रूप में महत्वपूर्ण बने हुए हैं।
अंतिम दस्तावेज
प्रतिभागियों से धर्माध्यक्ष की भूमिका और अधिकार से संबंधित चर्चाओं के बारे में भी पूछा गया। "इस पर व्यापक रूप से चर्चा की गई है," कोलंबियाई कार्डिनल ने स्वीकार किया, संत जॉन 23वें के विश्वास का हवाला देते हुए कि विश्वास का भंडार "हमेशा एक जैसा" रहता है, फिर भी इसे "प्रत्येक स्थिति के लिए अनुकूलित किया जाना चाहिए।"
महाधर्माध्यक्ष बोगोटा ने भी देश में झेली जा रही समस्याओं पर गौर किया इसमें "विषाक्त ध्रुवीकरण" भी शामिल है, जिसके कारण समान विचार वाले समुदाय एक-दूसरे के "शत्रु" बन गए हैं।
कार्डिनल एवलिन ने धर्मसभा के अंतिम दस्तावेज़ के प्रारूपण के बारे में कुछ जानकारी दी। उन्होंने कहा कि उसके "संश्लेषण आयोग" का उद्देश्य "यह सुनिश्चित करना है कि मतदान के लिए प्रस्तावित दस्तावेज इन सप्ताहों के काम के दौरान व्यक्त की गई राय से बहुत दूर न हो।"
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