सिनॉड मंच : धर्माध्यक्षों से 'भाई और मित्र' बनने का आह्वान
वाटिकन न्यूज
"एक सिनॉडल कलीसिया में धर्माध्यक्ष की भूमिका और अधिकार" धर्मसभा के संदर्भ में आयोजित दो ईशशास्त्रीय-प्रेरितिक मंचों में से एक का शीर्षक है, जो बुधवार 9 अक्टूबर की शाम को आयोजित किया गया था।
रोम के पोंटिफिकल पैट्रिस्टिक संस्थान अगुस्तिनियानुम में, प्रोफेसर अन्ना रोलैंड्स, जो समग्र मानव विकास विभाग में सेवारत हैं तथा ब्रिटेन के डरहम विश्वविद्यालय में काथलिक सामाजिक विचार एवं व्यवहार में सेंट हिल्डा चेयर की धारक हैं, ने विभिन्न सिनॉडालिटी विषय पर वक्ताओं के भाषणों का संचालन किया।
पैनल में तूरिन के महाधर्माध्यक्ष और सूसा के धर्माध्यक्ष नवनियुक्त कार्डिनल रोबेर्तो रेपोले; सिस्टर ग्लोरिया लिलियाना फ्रांको एकेवेरी ओ. डी. एन; प्रोफेसर कार्लोस मरिया गली, अर्जेंटीना के काथलिक विश्वविद्यालय के ईशशास्त्र संकाय में प्रोफेसर; प्रोफेसर मातेओ विसिओली, परमा धर्मप्रांत के पुरहित; और प्रोफेसर गिले रूथियर, क्यूबेक में यूनिवर्सिटी लावल और पेरिस में इंस्टीट्यूट काथलिक में कलीसिया शास्त्र और व्यावहारिक ईशशास्त्र के प्रोफेसर उपस्थित थे।
कलीसिया के लिए और कलीसिया में काम करना
रोलैंड्स ने पहले अतिथि प्रोफेसर गली का परिचय कराया, जिन्होंने धर्माध्यक्षों की छवि को “भाइयों” और “मित्रों” के रूप में प्रस्तुत किया, उन्होंने द्वितीय वाटिकन महासभा की एक “नवीनता” को गौर किया: “धर्माध्यक्ष में, ‘हम ईश प्रजा’, दुनिया में अपनी तीर्थयात्रा में कलीसिया को साकार होते देख रहे हैं।”
प्रोफेसर गली के अनुसार, यह एक आधार है, जो कलीसिया के लिए और कलीसिया में प्रतिबद्ध धर्माध्यक्ष के व्यक्तित्व पर विचार करता है, जिसमें लोगों के समान ही उनकी "पुत्रवत गरिमा" होती है। प्रोफेसर गली के अनुसार, "अध्यक्षता" का तात्पर्य विभिन्न कार्यों से है, जिसमें सबसे ऊपर "घोषणा" और "साक्षी" शामिल हैं।
अंतिम लक्ष्य "सुसमाचार प्रचार मिशन की सेवा में व्यक्तियों और समुदायों के करिश्मे को समझना" ही रहना चाहिए।
गली ने कहा, धर्माध्यक्ष के व्यक्तित्व का आदर्श हमेशा येसु होते हैं, जो "सेवा करके शासन" करते हैं। इसलिए, कलीसिया के अधिकार में "करिश्मे की समग्रता" नहीं होती है। धर्माध्यक्ष "देखभाल" तो कर सकते हैं, लेकिन "सब कुछ नहीं कर सकते।" इसलिए, अपनी व्यक्तिगत कमज़ोरियों को छिपाए बिना, दूसरों को काम सौंपने की क्षमता को भी ज़रूरी माना जाता है।
प्रोफेसर गली ने अपने वक्तव्य को दो सवालों के साथ अंत किया : "धर्माध्यक्षों के पास जटिल व्यावहारिक मामलों के लिए सलाहकार होते हैं, लेकिन क्या उनके पास ईशशास्त्रीय सलाहकार होते हैं?" और "धर्माध्यक्ष अपनी प्रेरिताई के लिए ईश्वर के प्रति जवाबदेह होते हैं, तो वे समग्र रूप से ईश्वर के लोगों के प्रति कैसे जवाबदेह हो सकते हैं?"
हमेशा ईश प्रजा पर निर्भर
महाधर्माध्यक्ष रेपोले ने प्रोफेसर गली के बाद हस्तक्षेप करते हुए परिषदीय दस्तावेजों का हवाला दिया, जो अभिषिक्तों की प्रेरिताई को "सटीक शब्दों" में और "कलीसिया की सेवा" के रूप में तैयार करने में सक्षम हैं।
हालाँकि, अभिषिक्तों की प्रेरिताई, "उसे सौंपी गई ईश प्रजा के हिस्से से उसकी स्वतंत्रता की आवश्यकता नहीं है।"
तूरिन के महाधर्माध्यक्ष ने धर्माध्यक्ष की छवि को ऐसे व्यक्ति के रूप में चित्रित करने में प्रोफेसर गली से सहमति व्यक्त की जो "आत्मा द्वारा दिए गए हर वरदान को इकट्ठा करने में सक्षम है।"
यद्यपि इस तरह के कथनों को लगभग "निश्चित रूप से लिया जा सकता है", और फिर भी द्वितीय वाटिकन महासभा में "पुरोहिताई से लेकर यूखरिस्त के लिए निर्देशित पुरोहिताई तक" के मार्ग को चिह्नित करता है, जो "तीन डिग्री में विभाजित और उद्घोषणा, उत्सव और प्रेरितिक मार्गदर्शन पर लक्षित अभिषिक्त प्रेरिताई की अवधारणा है।
महाधर्माध्यक्ष रिपोले ने कहा कि यह एक "मूल रूप से इग्नेशियन" मॉडल है, जो अंतियोक के संत इग्नासियुस का हवाला देता है। हालांकि, उन्होंने आगे कहा, यह "एक छोटी कलीसिया में एक धर्माध्यक्ष के मॉडल" का प्रतिनिधित्व करता है, जिसे एक ऐसे व्यक्ति के रूप में व्याख्या किया जा सकता है जो "रोजाना यूखरिस्त का अनुश्ठान करता है।"
उन्होंने कहा कि इस तरह का दृष्टिकोण, जब "विभिन्न कलीसियाई मॉडल पर लागू होती है, तो शॉर्ट सर्किट पैदा कर सकती है जिसे यह धर्मसभा भंग कर सकती है।"
‘इसे शुरू करें!’
सिस्टर ग्लोरिया लिलियाना फ्रेंको एकेवेरी ने अगला भाषण दिया, जिसमें उन्होंने हॉल में मौजूद धर्माध्यक्षों से कहा कि उनकी बुलाहट उन्हें “हमारा सेवक और भाई” बनाता है।
उन्होंने उन्हें प्रार्थना करने के लिए आमंत्रित किया “ताकि वे खुद को ख्रीस्त की शैली में ढालने में सफल हो सकें।”
सिस्टर ग्लोरिया ने धर्माध्यक्षों से “नौकरशाही के मामलों पर समय बर्बाद किए बिना” अपने एजेंडे में अधिक समावेश करने के लिए कहा।
सिस्टर ने दुर्व्यवहार के नाटकीय संकट के बारे में कहा, "किसी भी तरह की दुर्व्यवहार को छिपाएँ नहीं, किसी भी चीज को न छिपाएँ" और कहा कि "किसी भी तरह का दुर्व्यवहार" धर्माध्यक्ष की आवाज को दबाना नहीं चाहिए।
सिस्टर एचेवेरी ने आगे कहा कि धर्माध्यक्ष को अपने समुदाय के सदस्यों से फुसफुसाते हुए खुद को नीचे करने के लिए आमंत्रित किया जाता है, "आप मौजूद हैं, आप महत्वपूर्ण हैं।"
एक और बिंदु जिस पर बात की गई वह कलीसिया के अधिकारियों की वास्तविकता के बारे में जानकारी थी जिसमें वे काम करते हैं। उन्होंने कहा, "विनम्र बनें, सीखने वाले की विनम्रता रखें।"
सिस्टर ग्लोरिया ने आगे कहा, "ऐसा समय भी आएगा जब आप खुद को पुराना महसूस करेंगे।" फिर भी, उन्होंने धर्माध्यक्षों को "नेटवर्क, बंधन, रिश्तों को बढ़ावा देने की कोशिश करने" के लिए प्रोत्साहित किया।
सिस्टर ग्लोरिया ने धर्माध्यक्षों को "भाई" के रूप में अवधारणा पर लौटते हुए अपनी टिप्पणी समाप्त की: "कोई भी आपको हमसे ज़्यादा प्यार करने से नहीं रोक सकता," उन्होंने कहा। "तो इसे शुरू करें!"
महासभा के बीच में
चौथे अतिथि वक्ता प्रोफेसर रूथियर थे, जिन्होंने धर्माध्यक्ष की प्रकृति पर ध्यान केंद्रित करते हुए संदेश दिया कि वे "भाइयों के बीच भाई" हैं। प्रोफेसर के अनुसार, धर्माध्यक्ष के कार्यों के बारे में बोलते हुए, कई पूर्वसर्गों का उपयोग किया जाता है, लेकिन शायद ही कभी "साथ", "में" या "बीच में" (ख्रीस्तीय लोगों को संदर्भित करते हुए) का उपयोग किया जाता है। धर्माध्यक्षों की स्थिति "इसलिए बहुत जटिल है। हालाँकि, वे कभी भी उस समुदाय से अलग नहीं होते, जिसकी वे अध्यक्षता करते हैं।"
रूथियर ने कहा, लुमेन जेंसियुम "पहले ईश प्रजा को प्रस्तुत करता है, और फिर हमें धर्माध्यक्ष के बारे में बताता है।" "कलीसिया की संरचना: ऐसी होनी चाहिए, एक सभा जिसके भीतर धर्माध्यक्ष की आकृति डाली जाती है।"
जब धर्माध्यक्ष प्रार्थना करते हैं तो वे अपने नाम से नहीं करते, लेकिन सम्पूर्ण विधानसभा को सम्मिलित किया गया है।
पारदर्शिता की आवश्यकता
अंत में, प्रोफेसर मात्तेओ विसिओली ने माग्ना सभागार में व्याख्यान दिया। उनका भाषण "शक्ति" की अवधारणा पर केंद्रित था, जिसे "आदेश" और "अधिकार क्षेत्र" के आयामों में विभाजित किया गया था: पहला संस्कारीय अनुष्ठानों को संदर्भित करता है, दूसरा प्रशासन के कार्यों को संदर्भित करता है।
विसिओली ने कहा कि इस अंतर के तीन परिणाम हैं। "अपनाए जानेवाले सिद्धांत से परे," यह आवश्यक है कि "प्रेरिताई को एक साझा प्रशासन के रूप में सोचा जाए।" नतीजतन, "पुरोहित अभिषेक की पूर्णता" के बावजूद इसे "राजशाही" प्रवृत्तियों की ओर नहीं जाना चाहिए।
दूसरा, धर्माध्यक्ष, "कलीसिया के प्रशासन में जिम्मेदारी के कार्यों" को लोकधर्मियों के उपयुक्त सदस्यों को सौंप सकता है और सौंपना चाहिए। विसिओली ने इस बात पर जोर दिया कि "शक्ति" धर्माध्यक्षों को "पारदर्शिता के तर्क के अनुसार अपने कार्यों के लिए जवाबदेह होने से नहीं रोक सकती।"
दर्शकों से सवाल
फिर दर्शकों से सवाल पूछने के लिए जगह दी गई। प्रोफेसर गली ने 1940 में एक "अज्ञात कलीसिया विशेषज्ञ" द्वारा लिखी गई एक किताब को याद किया, जिसका शीर्षक था एक्लेसियोलोगो इन दिवेनिरे ["निर्माण में कलीसिया शास्त्र"], जिसमें भविष्यवाणी की गई थी कि कैसे लुमेन जेंसियुम "कलीसिया के भविष्य के लिए अप्रत्याशित और भारी परिणाम" लाएगा। उनमें से एक वास्तव में "पारस्परिक सुनवाई" पर आधारित धर्मसभा का अनुभव है।
इस अर्थ में, गली ने "ईश्वर की बात सुनने और दूसरों की बात सुनने के बीच तनाव" की मौजूदगी को गौर किया। एक दरार जो मौजूद नहीं होनी चाहिए। "हमें प्रार्थना में, अपने अंतःकरण में आत्मपरख करना चाहिए। इस अर्थ में बहुत कुछ किया जाना है।" गली द्वारा लाया गया अंतिम उदाहरण पोप फ्राँसिस द्वारा संत पापा जॉन 23वें और संत पापा जॉन पॉल द्वितीय की संत घोषणा था।
पारदर्शी होना, एक कदम पीछे हटने में सक्षम होना
मंच के किनारे से, जब वाटिकन मीडिया द्वारा "पारदर्शिता" के बारे में पूछा गया, तो प्रोफेसर विसिओली ने समझाया कि दो पहलुओं पर विचार किया जाना चाहिए: "एक यह बताना है कि कोई क्या करता है, साथ ही सरकार के उद्देश्यों और विकल्पों का भी हिसाब देना है। दूसरा, अधिक छिपा हुआ पहलू जो, मेरी राय में, फिर से खोजा जाना चाहिए, किसी भी आस्तिक का अधिकार और कर्तव्य है कि वह धर्माध्यक्ष या शासन करनेवालों से उनके विकल्पों के कारणों के बारे में पूछे।"
प्रोफेसर ने स्पष्ट किया, "और यह, उसे जांच के दायरे में लाने या उसे असहज महसूस कराने के लिए नहीं है, बल्कि इसके विपरीत, उसे निर्णय लेने में उस एकांत से दूर करने के लिए है जो एक धर्माध्यक्ष अक्सर महसूस करता है।"
इसी तरह, पुरोहित ने "अन्य धर्माध्यक्षों के साथ जुड़ाव और संवाद" की ओर इशारा किया, जो एक पुरोहित के लिए यह समझने का एक तरीका है कि कब काम सौंपना है और कब एक कदम पीछे हटना है। विसियोली ने कहा, "आत्मपरख कभी भी अकेले नहीं किया जाता है, यह धर्मसभा हमें यही सिखाती है, और इसलिए 'मैं कब कर सकता हूँ' से संबंधित सभी प्रश्नों को आत्मपरख के लिए एक उपयुक्त मंच पर लाया जाना चाहिए, जो कि एक चर्चा का विषय है: धर्माध्यक्षों के बीच धर्माध्यक्ष, ईश्वर के लोगों के साथ धर्माध्यक्ष।"
विसियोली ने एक आशावादी टिप्पणी के साथ अंत किया, "जवाब निश्चित रूप से आएगा।"
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