यूक्रेनः दो साल की लड़ाई में 14,600 मारे गए
वाटिकन सिटी
यूक्रेन, शुक्रवार, 23 फरवरी 2024 (रेई, वाटिकन रेडियो): यूक्रेन में कार्यरत गैर सरकारी संगठन सेव द चिल्ड्रेन ने प्रकाशित किया कि विगत दो वर्षों से जारी यूक्रेनी युद्ध में अब तक लगभग 14,600 नागरिक मारे गये हैं। मानवाधिकार संस्थाओं तथा ग़ैर सरकारी लोकोपकारी संस्थाओं के साथ मिलकर सेव द चिल्ड्रेन ने यूक्रेनी नागरिकों और नागरिक बुनियादी ढांचों तथा खासकर घनी आबादी वाले शहरी क्षेत्रों के खिलाफ सभी हमलों को तुरंत बंद करने का आह्वान किया है।
यूक्रेन में युद्ध की स्थिति
सेव द चिल्ड्रेन के बयान में कहा गया कि यूक्रेन में संघर्ष के सघन होने के दो साल बाद, 587 बालिकाओं और बालकों सहित 10,500 से अधिक नागरिक मारे गए हैं, और लगभग 20,000 लोग घायल हुए हैं, जबकि लगातार बमबारी, बारूदी सुरंगों और ड्रोन हमलों ने एक पीढ़ी को आघात, विस्थापित और डरा कर रख दिया है।
कहा गया कि संघर्ष के तेज़ होने के बाद से प्रति दिन औसतन 42 नागरिक मारे गए और घायल हुए हैं। यूक्रेन में मानवतावादी गैर सरकारी संगठनों के मंच के 51 सदस्यों का कहना है कि पिछले कुछ महीने विशेष रूप से घातक रहे हैं, जिसमें सेव द चिल्ड्रन भी शामिल है। देश में काम करने वाले स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से बना यह समूह नागरिकों की तत्काल सुरक्षा का आह्वान करता है और सदस्य राज्यों को यूक्रेन में आबादी की दयनीय मानवीय जरूरतों को पूरा करने के लिए किए गए वादों की याद दिलाता है।
नागरिक सह रहे परिणाम
मारे गए लोगों में से 87% से अधिक, यानि 9,241, विस्फोटक हथियारों के शिकार हुए थे, जबकि कई लोगों को ऐसे परिणाम झेलने पड़े जिन्होंने नाटकीय रूप से उनके जीवन को बदल दिया, जैसे कि अंगों या दृष्टि की हानि। ऐसा माना जाता है कि संख्या को काफी कम करके आंका गया है, क्योंकि संयुक्त राष्ट्र द्वारा आंकड़ों की पुष्टि करना अभी भी शेष है। साथ ही, यूक्रेन में अग्रिम पंक्ति से दूर लोगों को भी अपने जीवन के पुनर्निर्माण और पुनर्वास के लिए समर्थन की नितान्त आवश्यकता है।
दो वर्षों की निरन्तर जारी लड़ाई ने जीवन, घरों और आजीविका को नष्ट कर दिया है, जिससे पूरे यूक्रेन में लगभग 30 लाख बच्चों सहित लगभग साढ़े चौदह लाख लोगों को मानवतावादी सहायता की सख्त जरूरत है। इनमें से लगभग 80% लोगों को अपने मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी सहायता की आवश्यकता है। अकेले 2022 में यूक्रेन में ग़रीबी का स्तर 5 गुना बढ़कर 5 से 24% हो गया था।
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