लक्समबर्ग के अधिकारियों से मुलाकात करते संत पापा फ्राँसिस लक्समबर्ग के अधिकारियों से मुलाकात करते संत पापा फ्राँसिस  (Vatican Media)

हमारा कर्तव्य है दुनिया में शांति, लोकतंत्र, मानवाधिकार हेतु प्रयास करना, लक्समबर्ग प्रधानमंत्री

संत पापा फ्राँसिस अपनी 46वीं प्रेरितिक यात्रा पर 26 सितम्बर को लक्समबर्ग पहुँचे। जहाँ ऐतिहासिक इमारत सर्कल सिटी में आयोजित सभा में संत पापा का स्वागत करते हुए लक्समबर्ग के प्रधानमंत्री लूक फिएडेन ने कहा कि राजनीतिक प्रतिनिधियों के रूप में, हमारा कर्तव्य है कि हम हर दिन, दुनिया में कहीं भी, शांति, लोकतंत्र, मानवाधिकार और अंतर्राष्ट्रीय कानून के सम्मान के लिए प्रयास करना।

लक्समबर्ग, बृहस्पतिवार, 26 सितम्बर 2024 (रेई) : संत पापा के भाषण से पहले लक्समबर्ग के प्रधानमंत्री लूक फिएडेन ने अपने स्वागत भाषण में कहा, “अति माननीय संत पिता, मेरे और मेरे साथी लक्समबर्गवासियों के लिए आज आपका लक्समबर्ग के ग्रैंड डची में, राष्ट्र प्रमुख, काथलिक कलीसिया के शीर्ष और दुनियाभर में मान्यता प्राप्त नैतिक अधिकारी के रूप में आपका स्वागत करना बहुत सम्मान की बात है। पोप जॉन पॉल द्वितीय के 40 साल बाद यह हमारे देश की आपकी पहली यात्रा है और हम आपको तहे दिल से धन्यवाद देते हैं। आप न केवल लक्समबर्ग की राजधानी बल्कि यूरोपीय संघ की तीन राजधानियों में से एक का भी दौरा कर रहे हैं - जो कई यूरोपीय लोगों की पसंदीदा जगह है। आज यहाँ यूरोपीय संस्थानों के प्रतिनिधियों और सड़कों पर दुनियाभर से हज़ारों लोगों की मौजूदगी इस बात का सबूत है। लक्समबर्ग एक ऐसा देश है जो अंतर्राष्ट्रीय कानून के सिद्धांतों के प्रति गहराई से प्रतिबद्ध है और जिसका इतिहास यहूदी-ईसाई परंपराओं और मूल्यों से काफी प्रभावित रहा है।

यह संत विलिब्रोर्ड का देश है, जो यूरोपीय संघ से बहुत पहले एक मिशनरी और सच्चे यूरोपीय थे। बेशक, जैसा कि हम सभी जानते हैं, संत विलिब्रॉर्ड के समय से दुनिया, यूरोप और हमारा देश काफी बदल गया है। लेकिन जो नहीं बदला है, और जिसे कभी नहीं बदलना चाहिए, वह है शांति का संदेश, अपने पड़ोसी के प्रति प्रेम और मानवीय गरिमा जो सभी धर्मों में समान है और जिसकी सभी मनुष्यों को, चाहे वे आस्तिक हों या नहीं, आकांक्षा करनी चाहिए।

लक्समबर्ग संविधान सही मायने में पहले मौलिक अधिकार के रूप में मानव गरिमा की अखंडता की घोषणा करता है। हम में से प्रत्येक को यह सुनिश्चित करने के लिए निरंतर प्रयास करना चाहिए कि यह गरिमा बनी रहे।

प्रधानमंत्री ने कहा, हमारे लोकतंत्र और हमारे समाज की विशेषता यह है कि इसमें अंतरात्मा की स्वतंत्रता है, किसी व्यक्ति के दार्शनिक या धार्मिक विश्वासों को प्रकट करने या न करने की स्वतंत्रता है, लेकिन किसी पर कोई धर्म थोपा न जाए, इसकी भी स्वतंत्रता है। प्रधानमंत्री के रूप में, मैं हमेशा यह सुनिश्चित करूंगा कि हमारे लोकतंत्र में अंतर्निहित इन मूलभूत सिद्धांतों की रक्षा की जाए और उन्हें बनाए रखा जाए।

उन्होंने स्वीकार किया कि कलीसिया और राज्य के बीच संबंध स्पष्ट अलगाव की ओर बढ़े हैं, और जबकि समाज के धर्मनिरपेक्षीकरण पर विवाद नहीं किया जा सकता, धर्म भी समाज की सीमाओं के बाहर मौजूद नहीं हैं। वे इसी के हिस्से हैं, और उन्हें नैतिक, सामाजिक और पर्यावरणीय मुद्दों पर हमारी बहस को समृद्ध बनाने के लिए आपसी सम्मान की भावना से योगदान देना चाहिए। मूल्यों और सिद्धांतों के बिना कोई समाज जीवित नहीं रह सकता। जिसकी निरंतर रक्षा की आवश्यकता है।

दुर्भाग्य से, हम कई देशों में जो युद्ध और आंतरिक कलह देख रहे हैं, वे उन महान सिद्धांतों के विपरीत हैं। राजनीतिक प्रतिनिधियों के रूप में, यह हमारा कर्तव्य है कि हम हर दिन, यहाँ और दुनिया में कहीं भी, शांति, लोकतंत्र, मानवाधिकार और अंतर्राष्ट्रीय कानून के सम्मान के लिए प्रयास करें।

उन्होंने संत पापा से कहा, हमें आपका स्वागत करते हुए और लक्समबर्ग में आपके शब्दों को सुनते हुए बहुत खुशी हो रही है, इसी कमरे में 70 साल पहले यूरोपीय कोयला और इस्पात समुदाय के न्यायालय की पहली सुनवाई हुई थी - जो आज के यूरोपीय संघ के अग्रदूत हैं और विश्व इतिहास में अभूतपूर्व शांति परियोजना का प्रारंभिक बिंदु है। यहाँ आकर लक्समबर्ग को सम्मान देने के लिए, हमें अपना संदेश बांटने के लिए संत पापा आपको शुक्रिया।

  

 

Thank you for reading our article. You can keep up-to-date by subscribing to our daily newsletter. Just click here

26 September 2024, 15:42