हिरोसिमा के शांति स्मारक पर संत पापा का संदेश
उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी
वाटिकन सिटी, रविवार, 24 नवम्बर 19 (रेई)˸ संत पापा फ्राँसिस ने 24 नवम्बर को जापान के हिरोसिमा शांति स्मारक स्थल पर शहीदों को श्रद्धासुमन अर्पित किया तथा कुछ क्षण मौन प्रार्थना करने के बाद उपस्थित लोगों को शांति का संदेश दिया।
उन्होंने कहा, "मेरे भाई और मित्र यहाँ रहते हैं, इसलिए कहता हूँ : ''तुझ में शान्ति बनी रहे''। (स्तोत्र 122:8)
करुणा के ईश्वर एवं इतिहास के प्रभु, इस स्थान से हम तेरी ओर नजर उठाते हैं। जहाँ मृत्यु और जीवन, क्षति और पुनर्जन्म, पीड़ा और सहानुभूति एक साथ मिले। यहीँ, बिजली और आग के एक भयांकर विस्फोट में, अनेक स्त्री और पुरूष, कई स्वप्न एवं आशाएँ गायब हो गये, जो अपने पीछे केवल छाया एवं ख़ामोशी छोड़ गये। मुश्किल से एक पल में, विनाश और मृत्यु के एक काले कुंड से सब कुछ तबाह हो गया। उस पाताल के सन्नाटे से हम आज भी उन लोगों की आवाज सुनते हैं जो अब नहीं रहे। वे विभिन्न स्थानों से आये थे, उनके अलग-अलग नाम थे और उनमें से कई अलग भाषाएँ बोलते थे। फिर भी सभी को एक ही गति प्राप्त हुई। उस भयावाह घड़ी ने न केवल देश के इतिहास में बल्कि मानवता के चेहरे पर, हमेशा के अपनी गहरी छाप छोड़ दी।
मैं यहाँ सभी पीड़ितों को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ और उन लोगों की शक्ति एवं प्रतिष्ठा के सामने सिर झुकाता हूँ जो उस प्रथम क्षण में तो बच गये किन्तु बाद में वर्षों तक अपने शरीर में गहरे घाव को सहा एवं अपनी भावना में मौत के बीज को ढोया जिसने उनके जीवन की ऊजा को समाप्त कर दिया।
संत पापा शांति के तीर्थयात्री
मैं शांति के तीर्थयात्री की तरह यहाँ आना, मौन प्रार्थना में भाग लेना, हिंसा के निर्दोष शिकार लोगों की याद करना तथा हमारे समय के लोगों की प्रार्थना एवं विषाद को अपने हृदय में लेना, अपना कर्तव्य समझता हूँ। विशेषकर, युवा जो शांति की कामना करते, जो शांति के लिए कार्य करते और शांति के लिए अपने आपका त्याग करते हैं। मैं यहाँ यादगारी एवं भविष्य की आशा के स्थान पर आया हूँ। अपने साथ गरीबों का रूदन लाया हूँ जो घृणा और संघर्ष से सबसे अधिक प्रभावित हैं। मेरी दीन अभिलाषा है कि मैं आवाजहीनों की आवाज बनूँ, जो हमारे समय में बढ़ते तनाव के कारण चिंतित और परेशान हैं। अस्वीकृति, असमानता और अन्याय मानव अस्तित्व को खतरे में डाल रहा है, हमारे आमघर की देखभाल करने में असमर्थ है एवं सशस्त्र संघर्ष द्वारा निरंतर प्रभाव डाल रहा है मानो कि यही शांति के भविष्य की गारंटी दे सकता है।
युद्ध के लिए परमाणु ऊर्जा का प्रयोग अनैतिक
दृढ़ निश्चय के साथ मैं पुनः दोहराना करना चाहता हूँ कि आज युद्ध के लिए परमाणु ऊजा का प्रयोग, पहले से कहीं अधिक हो रहा है जो न केवल मानव प्रतिष्ठा के खिलाफ अपराध है बल्कि हमारे आमघर के संभावित भविष्य के खिलाफ भी। युद्ध के लिए परमाणु ऊर्जा का प्रयोग अनैतिक है। इसके लिए हमारा न्याय किया जाएगा। भावी पीढ़ी हमारी असफलता के लिए हमें दोषी ठहरायेगी यदि हम शांति की बात करके इसपर कोई कारर्वाई नहीं करेंगे। हम शांति की बात कैसे कर सकते यदि हम युद्ध के भयांकर हथियारों का निर्माण करते हैं? शांति के बारे हम कैसे बोल सकते जबकि हम भेदभाव एवं घृणा के भाषणों द्वारा नाजायज कार्रवाइयों को सही ठहराते हैं? मैं मानता हूँ कि शांति एक खाली शब्द मात्र रह जायगी यदि वह सच्चाई और न्याय पर आधारित न हो, उदारता से प्रेरित और परिपूर्ण न हो तथा स्वतंत्रता से प्राप्त न किया जाए।
सच्चाई और न्याय पर निर्मित शांति
सच्चाई और न्याय पर निर्मित शांति यह स्वीकार करती है कि लोग अक्सर ज्ञान, सदगुण, बुद्धि और धन में व्यापक रूप से भिन्न होते हैं और इसे कभी भी न्यायसंगत नहीं ठहराया जा सकता है कि हमारी पसंद को दूसरों पर थोपने की कोशिश की जाए। निश्चय ही, ये भिन्नताएँ अधिक जिम्मेदारी एवं सम्मान की मांग करती हैं। राजनीतिक समुदाय वैध रूप से संस्कृति अथवा आर्थिक विकास द्वारा एक-दूसरे से अलग हो सकते हैं किन्तु सभी लोग हरेक के आमहित के लिए समर्पित होने हेतु बुलाये गये हैं।
यदि हम सचमुच एक न्यायपूर्ण एवं सुरक्षित समाज का निर्माण करना चाहते हैं तब हमें हथियारों को अपने हाथ से फेंकना होगा। "अपने हाथों में घिनौना हथियार लेकर कोई भी प्रेम नहीं कर सकता।" (संत पापा पौल षष्ठम, संयुक्त राष्ट्र को सम्बोधित, 4 अक्टूबर 1965, 10) जब हम हथियार के तर्क को मान लेते हैं तथा संवाद को अपने आप से दूर करते हैं तब हम अपने नुकसान को भूल जाते हैं कि पीड़ितों और बर्बादी का कारण बनने से पहले, हथियार बुरे सपने उत्पन्न करते हैं। जिसकी भारी कीमत चुकानी पड़ती है, एकजुटता एवं उपयोगी श्रम की परियोजनाएँ बाधित होती तथा राष्ट्रों के दृष्टिकोण बिगड़ते हैं। हम किस तरह शांति का प्रस्ताव रख सकते हैं जबकि परमाणु युद्ध की लगातार धमकी को संघर्ष के समाधान का वैध उपाय माना जाता है? पीड़ा के निशान हमें उन सीमाओं की याद दिलायें, जिन्हें कभी पार नहीं किया जाना चाहिए। बेहथियार शांति ही सच्ची शांति हो सकती है क्योंकि शांति केवल युद्ध का अभाव नहीं बल्कि उसका लगातार निर्माण किया जाना चाहिए। यह न्याय, विकास, एकजुटता, पृथ्वी की देखभाल और सार्वजनिक कल्याण को बढ़ावा देने का फल है। हमने इतिहास से सीख ली है।
तीन नैतिक अनिवार्यताएँ
याद करना, एक साथ चलना और रक्षा करना ये तीन नैतिक अनिवार्यताएँ हैं जिनका हिरोसिमा में और भी शक्तिशाली और सार्वभौमिक महत्व है। यह शांति के एक सच्चे रास्ते को खोल सकता है। यही कारण है कि हम वर्तमान एवं भावी पीढ़ी को यहाँ जो हुआ उसकी याद नहीं खोने की सलाह देते हैं। यादगारी ही है जो स्पष्ट करती एवं प्रोत्साहन देती है कि हम अधिक न्याय एवं भाईचारापूर्ण भविष्य का निर्माण करें। एक विस्तृत यादगारी जो सभी लोगों के अंतःकरण को जागृत कर सकती है विशेषकर, जो आज राष्ट्रों के भाग्य के लिए महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। एक जीवित याद सभी पीढ़ियों को यह कहने में मदद कर सकता है कि ऐसा "फिर कभी नहीं।"
यही कारण है कि हम एक समझदारी एवं क्षमाशीलता के साथ, आशा के क्षितिज को खोलने और आकाश को आज अंधकार करने वाले बादलों के बीच एक प्रकाश की किरण को लाने के लिए साथ चलने हेतु बुलाये गये हैं।
आशा, मेल-मिलाप और शांति के लिए आह्वान
आइये, हम आशा के लिए अपना हृदय खोलें तथा मेल-मिलाप एवं शांति के माध्यम बनें। यह हमेशा संभव है यदि हम एक-दूसरे की रक्षा करें तथा महसूस करें कि हम एक आम लक्ष्य के द्वारा एक दूसरे से जुड़ें। हमारी दुनिया, न केवल वैश्वीकरण से, बल्कि उस धरती से भी जुड़ी है जिसमें हम जीते हैं। मांगें, आज पहले से कहीं अधिक हैं, कि कुछ समूहों या क्षेत्रों के लिए विशेष हितों को एक तरफ छोड़ दिया जाए, ताकि सामान्य भविष्य सुनिश्चित करने के लिए एक साथ संघर्ष करने वालों की महानता को प्रोत्साहन मिले।
परमाणु बम एवं युद्धों के शिकार लोगों की ओर से, ईश्वर एवं सभी भले लोगों से एक ही अर्जी है कि हम एक साथ बोलें, फिर कभी नहीं, हथियारों का संघर्ष फिर कभी नहीं, अत्यधिक पीड़ा फिर कभी नहीं। हमारे समय में और हमारे दुनिया में शांति आये। हे ईश्वर आपने हमारे लिए प्रतिज्ञा की है "हजार दिनों तक और कहीं रहने की अपेक्षा एक दिन तेरे प्रांगण में बिताना अच्छा है। दुष्टों के शिविरों में रहने की अपेक्षा ईश्वर के मन्दिर की सीढ़ियों पर खड़ा होना अच्छा है; क्योंकि ईश्वर हमारी रक्षा करता और हमें कृपा तथा गौरव प्रदान करता है। वह सन्मार्ग पर चलने वालों पर अपने वरदान बरसाता है।" (स्रोत्र 84:11-12)
हे प्रभु आइये, अब देर हो चुकी है और विनाश बहुत हो चुका है, हमें आशा से भर दे ताकि हम अलग भविष्य को प्राप्त कर सकें। हे प्रभु शांति के राजकुमार आइये हमें अपनी शांति के साधन एवं प्रतिबिंब बनाईये।
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