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संत फ्राँसिस असीसी के प्राँगण में बनी चरनी संत फ्राँसिस असीसी के प्राँगण में बनी चरनी  (ANSA)

पोप ने ‘ख्रीस्त जयन्ती में चरनी’ शीर्षक किताब का इताली संस्करण प्रकाशित किया

संत पापा फ्राँसिस की किताब “इल मियो प्रेज़ेपे” (क्रिसमस में चरनी) को 21 नवंबर को इताली भाषा में प्रकाशित किया गया। जिसमें येसु के जन्म के दृश्य (चरनी) पर संत पापा की अप्रकाशित प्रस्तावना और कई लेख संकलित हैं।

वाटिकन न्यूज

वाटिकन सिटी, मंगलवार, 21 नवंबर 2023 (रेई) : पोप फ्राँसिस की पुस्तक "इल मियो प्रेज़ेपे" (क्रिसमस में चरनी) का इताली संस्करण आज, मंगलवार 21 नवंबर को जारी किया गया: हाल के दिनों में पब्लिशिंग हाउस पिएमे द्वारा लाइब्रेरिया एडिट्रिस वाटिकाना (एलईवी) के साथ एक सह-संस्करण में इसे फ्रेंच, अंग्रेजी और पुर्तगाली में पहले ही जारी किया जा चुका है। 

दस्तावेज में फ्राँसिस के पहले से अप्रकाशित प्रस्तावना और लेख, चिंतन, भाषणों और उपदेशों की एक श्रृंखला शामिल है जिनको पोप ने अपने परमाध्यक्षीय कार्यकाल के दौरान चरनी और इसे आबाद करनेवाले पात्रों को समर्पित किया है।

‘ख्रीस्त जयन्ती में चरनी’ शीर्षक किताब का इताली संस्करण
‘ख्रीस्त जयन्ती में चरनी’ शीर्षक किताब का इताली संस्करण

27 सितम्बर 2023 की प्रस्तावना का पूरा लेख नीचे पाया जा सकता है: 

प्रस्तावना

मैं दो बार ग्रेचो गया हूँ। पहली बार मैं उस स्थान के बारे जानने के लिए गया था, जहाँ संत फ्राँसिस असीसी ने चरनी का आविष्कार किया था, जिसने मेरे बचपन को भी प्रभावित किया: बोयनोस आयरिस में मेरे माता-पिता के घर में, क्रिसमस का यह चिन्ह हमेशा क्रिसमस ट्री से पहले लगाया जाता था। 

दूसरी बार मैं खुशी-खुशी आज की चरनी के अर्थ और महत्व पर प्रेरितिक पत्र अदमिराबिले सेन्यूम पर हस्ताक्षर करने के लिए रीती प्रांत में उस स्थान पर लौटा था।

दोनों अवसरों पर मुझे ग्रोटो से निकलने वाली एक विशेष भावना महसूस हुई, जहां एक मध्ययुगीन भित्तिचित्र की प्रशंसा की जा सकती है, इसके एक तरफ बेथलेहम की रात को दर्शाया गया है, और दूसरे में ग्रेचो की रात को दर्शाया गया है।

उस दृश्य का उत्साह मुझे उस ख्रीस्तीय रहस्य की गहराई में जाने के लिए प्रेरित करता है जो अत्यन्त छोटी चीज के भीतर छिपना पसंद करता है।

दरअसल, येसु ख्रीस्त का शरीरधारण ईश्वर की प्रकाशना का केंद्र है, हालांकि इसे आसानी से भुला दिया जाता है क्योंकि इसकी प्रकाशना इतना विनीत है कि किसी का ध्यान नहीं जाता।

वास्तव में, दीनता ईश्वर से मुलाकात करने का तरीका है। 

लोयोला के संत इग्नासियुस की समाधि पर लिखा है, "नॉन कोइर्चेरी अ मास्सिमो, सेड कॉन्टिनेरी अ मिनिमो, डिविनुम एस्त" (सबसे महान तक सीमित नहीं होना चाहिए, और फिर भी सबसे छोटे में समाहित होना चाहिए - यही ईश्वरीय है) संक्षेप में, किसी को बड़ी चीज़ों से नहीं डरना चाहिए; आगे बढ़ना चाहिए और छोटी-छोटी बातों को ध्यान में रखना चाहिए।'

यही कारण है कि चरनी की भावना की रक्षा करना, छोटी, कभी-कभी तुच्छ और दोहराव वाली रोजमर्रा की चीजों में प्रकट ईश्वर की उपस्थिति में एक स्वस्थ संबंध बन जाता है। यह जानना कि, ईश्वर के मार्गों को समझने और चुनने के लिए, उन चीज़ों को कैसे त्यागें, जो हमें लुभाती और बुरे रास्ते पर ले जाती हैं, एक खतरा है जिसका सामना हम करते हैं। 

इस संबंध में, आत्मपरख एक महान उपहार है, और हमें प्रार्थना में इसे मांगते हुए कभी नहीं थकना चाहिए। चरनी में ही चरवाहों ने ईश्वर के आश्चर्य का स्वागत किया और उनके साथ अपनी मुलाकात पर आश्चर्य व्यक्त की, उनकी आराधना की: लघुता में उन्होंने ईश्वर के चेहरे को पहचाना। मानवीय रूप से हम सभी महानता की तलाश में हैं, लेकिन यह जानना एक उपहार है कि वास्तव में इसे कैसे पाया जाए: यह जानना कि उस छोटेपन में महानता कैसे पाई जाए जिसे ईश्वर बहुत प्यार करते हैं।

जनवरी 2016 में, मैं येसु के जन्मस्थल की गुफा से ठीक ऊपर गिरजाघर में, रीति के युवाओं से मिला। मैंने उन्हें याद दिलाया कि आज भी क्रिसमस की रात में दो संकेत होते हैं जो येसु को पहचानने में हमारा मार्गदर्शन करते हैं। एक तो तारों से भरा आकाश। असंख्या तारें, लेकिन उन सभी के बीच एक विशेष सितारा खड़ा है, जिसने ज्योतिषियों को अपने घर छोड़ने और एक यात्रा शुरू करने के लिए प्रेरित किया, एक यात्रा जो उन्हें वहाँ ले गई जिसको वे नहीं जानते थे। हमारे जीवन में भी ऐसा ही होता है: एक निश्चित क्षण में कोई विशेष "तारा" हमें निर्णय लेने, चुनाव करने, यात्रा शुरू करने के लिए आमंत्रित करता है।

हमें दृढ़ता के साथ ईश्वर से उस तारे को दिखाने हेतु आग्रह करना चाहिए जो हमें हमारी आदतों से अधिक किसी दूसरी चीज की ओर आकर्षित करता है, क्योंकि वह तारा हमें येसु, उस बच्चे के बारे में चिंतन करने के लिए प्रेरित करेगा जो बेथलेहम में पैदा हुआ है और जो हमारी सम्पूर्ण खुशी चाहते हैं।

उस रात, उद्धारकर्ता के जन्म से पवित्र होकर, हमें एक और शक्तिशाली संकेत मिलता है: ईश्वर का छोटा बनना। स्वर्गदूत चरनी में जन्मे एक बच्चे की ओर चरवाहों को संकेत देते हैं। शक्ति, आत्मनिर्भरता या गौरव का प्रतीक नहीं। जी नहीं। शाश्वत ईश्वर एक असहाय, विनम्र, नम्र इंसान बन जाते हैं। ईश्वर ने स्वयं को नीचे उतारा ताकि हम उनके साथ चल सकें और वे हमारे साथ खड़े हो सकें, न कि हमसे ऊपर और दूर रहें।

विस्मय और आश्चर्य ऐसी दो भावनाएँ हैं जो युवा और बूढ़े, हर किसी को, चरनी के सामने प्रेरित करती हैं, जो पवित्र धर्मग्रंथ के पन्नों से बहते हुए एक जीवित सुसमाचार की तरह हैं। यह महत्वपूर्ण नहीं है कि चरनी कैसी बनी है; यह हमेशा एक जैसा रह सकती है या हर साल बदल सकती है; जो मायने रखती है वह है कि यह जीवन को प्रेरित करती है।

संत फ्राँसिस के पहले जीवनी लेखक, चेलानो के थॉमस, 1223 की क्रिसमस की रात का वर्णन करते हैं, जिसकी आठ सौवीं वर्षगांठ हम इस वर्ष मना रहे हैं। जब फ्रांसिस पहुंचे, तो उन्होंने घास, बैल और गधे के साथ पालना पाया। चरनी के सामने, जो लोग उस स्थान पर एकत्रित हुए थे, उन्होंने एक अवर्णनीय खुशी प्रकट की, जिसका स्वाद उन्होंने पहले कभी नहीं चखा था। 

तब पुरोहित ने, चरनी में, ईश्वर के पुत्र के शरीरधारण और यूखरिस्त के बीच संबंध दिखाते हुए, समारोही ख्रीस्तयाग अर्पित किया। उस अवसर पर, ग्रेचो में कोई मूर्ति नहीं थी: चरनी उन लोगों ने स्थापित की और अनुभव किया गया जो वहाँ उपस्थित थे।

मुझे यकीन है कि पहली चरनी, जिसने सुसमाचार प्रचार का एक महान कार्य पूरा किया, आज भी विस्मय और आश्चर्य को जगाने का एक अवसर हो। इस प्रकार, उस चिन्ह की सादगी ने संत फ्राँसिस को जो एहसास कराया, वह हमारे विश्वास की सुंदरता के वास्तविक रूप में आज भी हमारे समय में कायम रहे।

वाटिकन सिटी, 27 सितम्बर 2023

पोप फ्राँसिस

 

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21 November 2023, 16:14