संत पापाः शहीदों का खून व्यर्थ नहीं होता
वाटिकन सिटी
संत पापा फ्रांसिस ने कलीसिया के प्रथम शहीद संत स्तीफन के पर्व दिवस पर विश्व भर के विश्वासियों और तीर्थयात्रियों के संग देवदूत प्रार्थना का पाठ किया। संत पापा ने सबों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों।
ख्रीस्त जयंती के तुरंत बाद आज हम प्रथम शहीद स्तीफन की यादगारी मनाते हैं। उनकी शहादत की चर्चा हम प्रेरित चरित में पाते हैं जो हमें उन्हें एक अच्छी ख्याति के व्यक्तित्व स्वरुप चित्रित करता है, जो गरीबों के लिए भोजन वितरण करते और उनके लिए करूणा के कार्य करते थे। मुख्यः रुप से अपनी इस उदारता में वह अपने मूल्यवान विश्वास का साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं और यह उनके विरोधियों को क्रोधित करता है, जो उन्हें क्रूरतापूर्ण ढ़ग से पत्थरों से मार डालते हैं। ये सारी बातें एक युवा व्यक्ति, साऊल के सामने होती हैं जो उत्साही रुप में ख्रीस्तीयों को प्रताड़ित करता था, वह इन कार्यों का साक्षी होता है।
सच्चाई खत्म नहीं होती है
संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि हम एक क्षण उस दृश्य के बारे में सोचें, साऊल और स्तीफन, एक प्रताड़ित करने वाला और दूसरा प्रताड़ना का शिकार। हमें ऐसा लगता है मानों कि उनके बीच एक अभेद्य दीवार है, जो युवा फरीसी के रुप में कट्टरवाद की कठोरता से भरा है और जो व्यक्ति को पत्थरों से मार कर सजा-ए-मौत देता है। वहीं हम उनके बीच दृश्य से परे कुछ ऐसी मजबूत चीजों को पाते हैं जो उन्हें एकता में बांधे रखती है। वास्तव में, स्तीफन के साक्ष्य के मध्य ईश्वर साऊल के हृदय को तैयार कर रहे होते हैं, जिसके बारे वे अनभिज्ञ हैं। उनमें मनफिराव उन्हें एक महान प्रेरित के रुप में परिवर्तित करेगा। स्तीफन की सेवा, उनकी प्रार्थना और विश्वास जिसे वे घोषित करते हैं, उनका साहस विशेष कर मृत्यु के क्षण में क्षमादान प्रदान करना अपने में व्यर्थ नहीं जाता है। धर्म सतावट के समय और आज भी जैसा की कहा जाता है,“शहीदों का खून ख्रीस्तीयों के लिए बीज है।” ये दोनों यूं ही खत्म नहीं होते बल्कि सच्चाई में बदल जाते हैं। स्तीफन का त्याग एक बीज की भांति उगता जो पत्थर के विपरीत दिशा में बढ़ता है, यह गुप्त रुप में खतरनाक विरोधी के हृदय में दफन होता है।
प्रताड़ना दुर्भाग्यपूर्ण
आज, दो हजार साल के बाद, दुर्भाग्यपूर्ण ढ़ंग से हम प्रताड़ना को जारी पाते हैं, हम उन्हें विभिन्न रुपों में अपने बीच पाते हैं- जिसके कारण बहुतों को येसु ख्रीस्त का साक्ष्य देते हुए दुःख उठाना और मरना पड़ता है। हम भिन्न स्तरों पर बहुत से विश्वासियों को देखते जो सुसमाचार के प्रति बिना दिखावा किये अपने रोजदिन के जीवन में ईमानदारी से अपने नेक कार्यों को करना जारी रखते हैं, वहीं दुनिया उनकी खिल्ली उड़ती और उन्हें दूसरे रूपों में व्यक्त करती है। वे हमारे भाई-बहनें अपने में असफल प्रतीत होते हैं लेकिन आज हम देखते हैं कि उनके संग ऐसी बात नहीं है। वास्तव में, आज भी पहले की भांति, उनके त्याग का बीज जो मरने जैसा प्रतीत है, लेकिन वह जन्मता और फल उत्पन्न करता है क्योंकि ईश्वर उनके द्वारा अपने चमत्कारी कार्य करना जारी रखते हैं। वे हमारे समय के नर और नारियों के हृदय को बदलते और उन्हें बचाते हैं।
संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि अतः हम स्वयं से पूछें क्या मैं उनके लिए प्रार्थना करता और उनकी चिंता करता हूँ जो विश्व के विभिन्न स्थानों में आज भी विश्वास के कारण दुःख सहते और मारे जाते हैंॽ बहुत से लोग आज भी अपने विश्वास के कारण मारे जाते हैं। क्या मैं अपनी ओर से सुसमाचार का साक्ष्य निरंतर अपने जीवन के द्वारा देता हूँॽ क्या मैं इस बात पर विश्वास करता हूँ कि नेक कार्य का बीज अपने में फल उत्पन्न करेगा यद्यपि उसका फल तुरंत दिखाई नहीं देता हैॽ
माता मरियम, शहीदों की रानी हमें येसु का साक्ष्य देने में मदद करें।
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